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Table of contents
- मुण्डा जनजाति का परिचय (Introduction)
- मुण्डा जनजाति का निवास क्षेत्र (Habitat of Munda Tribe)
- भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions)
- मुण्डा जनजाति के शारीरिक लक्षण (Physical Traits of Munda Tribe)
- मुण्डा जनजाति की भाषा (Language of Munda Tribe)
- मुण्डा जनजाति का व्यवसाय (Occupation of Munda Tribe)
- मुण्डा जनजाति का भोजन (Food of Munda Tribe)
- मुण्डा जनजाति के कपड़े एवं आभूषण (Clothes and Ornaments of Munda Tribe)
- मुण्डा जनजाति के घर तथा अधिवास (Houses and Settlements of Munda Tribe)
- मुण्डा जनजाति का सामाजिक संगठन (Social Organizations of Munda Tribe)
- FAQs
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मुण्डा जनजाति का परिचय (Introduction)
मुण्डा लोगों को होरो-होन (Horo-Hon), मुरा (Mura) तथा मंकी (Manki) भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है- गाँव का मुखिया। ये लोग स्वयं को सर्वश्रेष्ठ भगवान् सिंगा-बोंगा के वंशज मानते हैं। इन आरम्भिक लोगों के नाम पर भारत के चार भाषा परिवारों में से एक का नाम मुण्डारी रखा गया है। इस भाषा परिवार को ऑस्ट्रो-एशियाटिक अथवा कोलारियन भी कहा जाता है।
मुण्डा जनजाति का निवास क्षेत्र (Habitat of Munda Tribe)
मुण्डा जनजाति का मूल निवास झारखण्ड का छोटा नागपुर पठार है। रॉय के अनुसार, मुण्डा मूलतः उत्तर-पश्चिमी भारत के निवासी थे जो बाद में छोटा नागपुर के जंगलों में आ बसे। लेकिन यह मान्यता अब विवादित हो गई है। कुछ विद्वान् मानते हैं कि मुण्डा उत्तर-पूर्व से यहाँ आए थे। लेकिन फिर भी पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। मुण्डा लोकगीतों के अनुसार आरम्भ में ये लोग मुण्डार पर्वत पर बसे हुए थे जो कालान्तर में विभिन्न दिशाओं में प्रवास कर गए। वर्तमान में मुण्डा झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश व ओडिशा में रहते हैं।
भौगोलिक दशाएँ (Geographical Conditions)
छोटा नागपुर पठार एक प्राचीन विच्छेदित पठार है जिस पर स्वर्णरेखा व उसकी सहायक नदियों ने गहरी व संकरी घाटियाँ व खड्डे बना रखे हैं। दामोदर इस पठार की मुख्य नदी है जो एक भ्रंश घाटी से बहती है। स्वयं छोटे-छोटे पठारों में बँटा यह पठार समुद्र तल से लगभग 500 मीटर ऊँचा है। इस क्षेत्र की जलवायु उष्ण कटिबन्धीय मानसूनी है।
मार्च से जून तक यहाँ भयंकर गर्मी पड़ती है व दिन का तापमान 40° से 45° सेल्सियस तक पहुँच जाता है। जुलाई से अक्तूबर तक वर्षा ऋतु होती है जिसमें 150 से 180 सें०मी० वर्षा हो जाती है। शीतकालीन चक्रवातों द्वारा सर्दियों में 10 से 15 सें०मी० वर्षा हो जाती है। पर्याप्त वर्षा के कारण यहाँ मानसूनी वन पाए जाते हैं जिनमें शीशम, साल, सागवान, नीम, ढाक व बाँस के वृक्ष मिलते हैं।
मुण्डा जनजाति के शारीरिक लक्षण (Physical Traits of Munda Tribe)
मुण्डा जनजाति का सम्बन्ध भारत के प्राचीन कोलिद या निषाद वर्ग से है। इन लोगों का कद मध्यम से छोटा, रंग काला, सिर लम्बा, नाक छोटी और चपटी, होंठ मोटे तथा बाल घुँघराले होते हैं। इनका शरीर हृष्ट-पुष्ट होता है। पश्चिम बंगाल के मुण्डा पर पूर्वोत्तर भारत की जनजातियों का प्रभाव नजर आता है।
मुण्डा जनजाति की भाषा (Language of Munda Tribe)
यह जनजाति मुण्डारी भाषा का प्रयोग करती है जो भारत की प्रमुख ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषाओं में से एक है। अन्य लोगों से ये साद्री, हिन्दी, बिहारी, बंगाली व ओडिया भाषाओं में बात कर लेते हैं तथा देवनागरी और बंगाली लिपियों का प्रयोग करते हैं।’ईसाई मिशनरियों के सम्पर्क में आने के परिणामस्वरूप ये लोग मुण्डारी-मिश्रित हिन्दी बोलते हैं।
मुण्डा जनजाति का व्यवसाय (Occupation of Munda Tribe)
वर्तमान में दो-तिहाई से अधिक मुण्डा स्थायी तौर पर कृषि करने लगे हैं। संग्रहण अब इनकी गौण आर्थिक क्रिया है। खेती छोटे-छोटे विच्छेदित मैदानों में होती है जिन्हें दोन्सो (Donso) कहा जाता है। यहाँ की मुख्य फसल धान (Rice) है जिसकी दो से तीन फसलें उगाई जाती हैं। गन्ना, मक्का, तम्बाकू व सब्जियाँ, आलू व दालें भी यहाँ उगाई जाती हैं। बहुत थोड़े लोग पशुपालन के काम में भी जुटे हैं। ये काम मुख्यतः घर के युवा सदस्य करते हैं।
ये लोग घरों में मुर्गियाँ और बत्तख पालने के अतिरिक्त तालाबों से मछलियाँ पकड़ने का व्यवसाय करते हैं। मुण्डा जनजाति के लगभग एक-तिहाई लोग अपने मूल स्थान से प्रवास करके औद्योगिक नगरों की ओर चले गए हैं।
A Well Studied Tribe…………………….. मुण्डा दुनियाँ की उन जनजातियों में से एक है जिसका सबसे ज्यादा अध्ययन हुआ है। सम्भवतः यह अकेली जनजाति है जिस पर 16 बड़े-बड़े खण्डों में मुण्डारिका विश्वकोष (Encyclopedia Mundarika) लिखा गया है। जॉन बैप्टिस्ट हॉफ़मैन (John Baptist Hoffmann) (1857-1928) तथा अन्य विद्वानों द्वारा रचा गया यह विश्वकोष मुण्डा लोगों, उनके निवास, परम्पराओं, गीत, नृत्यों, उत्सवों व प्रमुख संस्कारों का प्रामाणिक एवं तथ्य-परक विवरण प्रस्तुत करता है। |
वे वहाँ मजदूरी करके अपना जीवन यापन करने लगे हैं। कुछ लोग राजमहल पहाड़ियों व अन्य स्थानों पर स्थित कोयला, लोहा, अभ्रक व मैंगनीज आदि की खादानों में तथा चाय बागानों में मजदूरी करने लगे हैं। उपनगरीय क्षेत्रों में कच्चे-पक्के मकान बनाकर रहने वाले इन औद्योगिक मजदूर मुण्डा पुरुषों की महिलाओं को भी रोजगार के अवसर प्राप्त हो जाते हैं।
इनकी महिलाएँ सूत कातने, कपड़ा बुनने, स्वेटर बुनने, रंगाई करने, खिलौने चटाई, मैट, चिक, टोकरियाँ व दरियाँ बनाने का भी काम करने लगी हैं। आज इन लोगों में विद्वान्, कलाकार, डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक, प्रकाशक व राजनीतिक नेता इत्यादि हैं जो इन्हें बाहरी दुनियाँ से जोड़ते हैं।
मुण्डा जनजाति का भोजन (Food of Munda Tribe)
मुण्डा माँसाहारी होते हैं। ये लोग सूअर का मांस (Pork) तो खाते हैं, मगर गोमाँस (Beef) नहीं खाते । चावल इनका मुख्य आहार है। कभी-कभी गेहूँ, मक्का व मरुआ भी खाया जाता है। ये लोग चावल से बनी बियर (हारिया) तथा देसी दारू के शौकीन होते हैं। पुरुष नियमित रूप से तथा औरतें विशेष अवसरों पर मदिरा सेवन करती हैं। मुण्डा पान और तम्बाकू खाने के भी शौकीन होते हैं।
मुण्डा जनजाति के कपड़े एवं आभूषण (Clothes and Ornaments of Munda Tribe)
मूल स्थान पर बसे हुए कुछ मुण्डा आज भी परम्परागत वस्त्र धारण करते हैं। पुरुष कमर में करधानी (Kardhani) व सिर पर पगड़ी पहनते हैं। ये लोग सदा नंगे पैर रहते हैं। महिलाएँ लहंगा व धोती का प्रयोग करती हैं। मुण्डा महिलाओं को शरीर के विभिन्न अंगों पर चित्र गुदवाने व आभूषणों से सजने का प्रबल शौक है। देश की मुख्ख धारा में रचने-बसने के बाद आज अधिकतर मुण्डा पुरुष और स्त्रियाँ वस्त्र पहनने लगे हैं।
मुण्डा जनजाति के घर तथा अधिवास (Houses and Settlements of Munda Tribe)
आदिवासी मुण्डा लोगों के घर पहाड़ी ढलानों, पठारों के गिरिपदों तथा वनों में बने होते हैं। प्रत्येक बस्ती में 10 से 15 घर होते हैं। प्रत्येक घर में दो झोंपड़ियाँ बनी होती हैं। इनमें से एक का प्रयोग रसोई के रूप में व दूसरी का प्रयोग सोने के लिए किया जाता है।
प्रमुख मुण्डा वंश (Clans) और समूह………………………. झारखण्ड: हशं, कच्छप, लाँग, नाग, बघेला, बधेर, एण्ड, होरो, भेंगड़ा और टूटी। पश्चिम बंगाल: खरिया, माझी, कोल, भूमिज, महाली, नागवंसी, सावर, मंकी। ओडिशा: संथाली, नागपुरिया, कोल्हणी, तमारिया, लोहारा, महालिस। त्रिपुरा: करकेटा, कण्डूरू, गोण्डली, हंसा, झिरहुल, भंगड़ा, मिरनदोरी, पोस्ती। मध्य प्रदेश: बाघ, नाग, कच्छिम। |
मुण्डा जनजाति का सामाजिक संगठन (Social Organizations of Munda Tribe)
रिसले महोदय ने मुण्डाओं के 13 उपवर्ग बनाए हैं। लेकिन मोटे तौर पर मुण्डा दो बड़े वर्गों में बँटे हुए हैं-
(i) कोम्पट (Kompat) मुण्डा तथा
(ii) खांगार (Khangar) या पात्तर (Pattar) मुण्डा
इनमें से पहला वर्ग कुलीन है तथा दूसरा निम्नवर्गीय। खांगारों में बुनकर मुण्डा को महाली (Mahali) मुण्डा तथा तमार क्षेत्र में रहने वाले मुण्डा को तमारिया मुण्डा कहा जाता है। मुण्डा समाज कुल अथवा गोत्रों में व्यवस्थित है। कुलों का नाम ऋषि-मुनियों, नदियों, पक्षियों अथवा फलों के नाम पर रखा गया है।
मुण्डा जनजाति के परिवार (Family of Munda Tribe)
हिन्दू समाज की लगभग सभी प्रथाओं को अपना चुकी इस जनजाति में परिवार एक महत्त्वपूर्ण संस्था मानी जाती है। मुण्डा परिवार पितृसत्तात्मक व गोत्र पितृवंशीय होते हैं। विवाह के बाद स्त्री का गोत्र, पिता के गोत्र के स्थान पर पति का गोत्र बन जाता है। मृत व्यक्ति की सम्पत्ति उसके बेटों में बराबर बाँटी जाती है, लेकिन अब बेटियाँ व बहनें भी पैतृक सम्पत्ति में से अपना हक माँगने लगी हैं। महिलाएँ आर्थिक एवं सामाजिक गतिविधियों तथा रीति-रिवाजों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पुजारी (पाहन) का पद बड़े बेटे को दिया जाता है।
मुण्डा जनजाति के विवाह (Marriage)
मुण्डा समुदाय में वयस्क (Adult) विवाह का प्रचलन है, किन्तु कहीं-कहीं बाल-विवाह भी देखने को मिल जाता है। विवाह गोत्र के बाहर माता-पिता की सहमति से, या बातचीत से या सेवा करके या भगाकर या अदला-बदली से अथवा अन्तर्भेद (Intrusion) के द्वारा होता है। यदि 18 वर्ष से अधिक आयु की लड़की गाँव से बाहर किसी लड़के को वर के रूप में पसन्द करे तो उसकी इच्छा पर गौर किया जाता है। माथे पर सिन्दूर व बाएँ बाजू में चूड़ियाँ विवाहिता की निशानी हैं।
अधिकतर मुण्डा परिवारों में एक-विवाह प्रथा(Monogamy) पाई जाती है, लेकिन बहुविवाह को भी मान्यता है। यद्यपि दहेज-प्रथा का रिवाज घट रहा है, लेकिन दुल्हन का मूल्य (Bride Price) नकद व सामग्री (Cash and Kind) के रूप में दिया जाता है। अविवाहित युवक-युवतियों को परिवार के साथ नहीं सोने दिया जाता। रात्रि के समय वे अलग झोंपड़े में सोते हैं जिसे ‘गिटियोरा’ (Gitiora) कहा जाता है।
अपराध अथवा मर्यादाओं का उल्लंघन करने पर पति अथवा पत्नी पर जुर्माना हो सकता है। तलाक पति अथवा पत्नी कोई भी ले सकता है। तलाकशुदा दम्पति के बच्चे पिता के साथ रहते हैं। विधवा विवाह हो सकता है।
मुण्डा जनजाति की पंचायत (Panchayat of Munda Tribe)
गाँव के स्तर पर सामाजिक नियन्त्रण का कार्य सामुदायिक सभा (Community Council) करती है जिसका अध्यक्ष सभापति कहलाता है। कई वंशों से सम्बन्धित गाँवों के समूह को परहा (Parha) कहा जाता है जिसका अध्यक्ष राजा कहलाता है। लोकतान्त्रिक समाज में विश्वास करने वाले मुण्डा के लिए पंचायत का निर्णय अन्तिम एवं मान्य होता है। सार्वजनिक व सामाजिक कल्याण का कार्य पंचायतें करती हैं।
मुण्डा जनजाति का धर्म एवं विश्वास (Religion and Faith of Munda Tribe)
अधिकतर मुण्डा हिन्दू व थोड़े-बहुत ईसाई हैं। आरम्भ में ये लोग केवल प्रकृति और अपने पूर्वजों की पूजा किया करते थे। हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करने वाले इन लोगों का सबसे महत्त्वपूर्ण देवता सिंग बोंगा है जो समस्त शक्तियों व ऊर्जा का स्रोत है। मारन बारू भी इनका महत्त्वपूर्ण देवता है। ये लोग वंश और गाँव के देवताओं को भी पूजते हैं। प्रत्येक तीन-चार महीनों में ये लोग देव-पूजन के मेले आयोजित करते हैं।
सरहुल, कर्म, जीतिया, मण्डा, दीपावली, दशहरा, सोहोराई, खरबाज, देओथान तथा शिवरात्रि आदि इनके महत्त्वपूर्ण उत्सव हैं। विवाह, उत्सवों एवं आयोजनों को मुण्डा अत्यन्त चाव और पारम्परिक विधि-विधान से मनाते हैं। इनमें सामूहिक रूप से गायन, वादन व नृत्य की भी परम्परा है। कई बार ये आयोजन पूरी-पूरी रात चलते हैं। इनमें से कुछ लोगों ने ईसाईयत कबूल कर ली है, लेकिन धर्म परिवर्तन के बावजूद ये लोग अपने हिन्दू उत्सवों व रीति-रिवाजों को नहीं छोड़ पाए।
ईसाई मिशनरियों के लम्बे सम्पर्क से मुण्डा जनजाति की सोच, खान-पान, पहनावे आदि में कुछ परिवर्तन अवश्य आया है। मुण्डा लोगों के पास लोक-कथाओं व लोक-गीतों का एक समृद्ध भण्डार है जो इनकी उत्पत्ति, प्रवास और परम्पराओं का बखान करता है।
बहादुर एवं आन के लिए मर मिटने वाले होते हैं मुण्डा ……………. उपनिवेशवाद (Colonialism) का प्रतिरोध तथा भूमि- सम्बन्धी (Agrarian) मामलों पर बार-बार विद्रोह करने वाले मुण्डा सम्भवतया पहले जनजातीय लोग थे।’ भूमि प्रथा के टूटने के विरोध में सन् 1819-20 में इनके द्वारा किया गया तामार विद्रोह (Tamar Insurrection) इसका ज्वलन्त उदाहरण है। सन् 1831-32 में इन्होंने कोल विद्रोह (Kol Insurrection) का झण्डा बुलन्द किया। सन् 1850 के बाद छोंटा नागपुर पठार में ईसाईयत के प्रसार ने जमीन से जुड़े मुद्दों को नई करवट दी। सन् 1858 के बाद 40 वर्षों तक चले सरदार आन्दोलन या मुल्की लड़ाई का मुख्य उद्देश्य ज़मींदारी प्रथा तथा बेगार (Forced Labour) के विरुद्ध अपना आक्रोश दर्ज कराना था। मुण्डा राज की स्थापना, स्वतन्त्रता-प्राप्ति तथा आने वाले समय की चुनौतियों के मद्देनज़र समाज-सुधार के उद्देश्य से इस जनजाति ने बिरसा मुण्डा (1874-1901) के नेतृत्व में एक विख्यात सहस्त्राब्दि आन्दोलन³ (Millenium Movement) चलाया । यद्यपि यह आन्दोलन दबा दिया गया फिर भी मुण्डा भूमि-प्रया के संरक्षण के लिए एक कानून बना दिया गया। छोटा नागपुर पठार में आंशिक प्रभुता (Sectarian Autonomy) आन्दोलन के अतिरिक्त मुण्डा लोगों ने झारखण्ड आन्दोलन में भी शिरकत (Participation) की। |
FAQs
मुण्डा जनजाति को होरो-होन (Horo-Hon), मुरा (Mura), तथा मंकी (Manki) भी कहा जाता है।
मुण्डा लोग स्वयं को सर्वश्रेष्ठ भगवान सिंगा-बोंगा के वंशज मानते हैं।
मुण्डा जनजाति झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, और ओडिशा में निवास करती है।
मुण्डा जनजाति का सामाजिक संगठन कोम्पट (Kompat) मुण्डा और खांगार (Khangar) मुण्डा में विभाजित है।
मुण्डा जनजाति के लोग मध्यम से छोटे कद के, काले रंग के, लम्बे सिर वाले, छोटी और चपटी नाक वाले, मोटे होंठ और घुँघराले बाल वाले होते हैं।