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भारत भौगोलिक विवधताओं का देश है। एक ओर जहां ऊंचे-ऊंचे पर्वत स्थित हैं, वहीं दूसरी ओर सपाट मैदान तथा प्राचीन चट्टानों वाले पठार भी देखने को मिलते हैं। भारत के कुल क्षेत्रफल का 10.6% भाग पर्वतों द्वारा, 18.5% भाग पहाड़ियों द्वारा, 27.7% भाग पठारों द्वारा, 43.2% भाग मैदानों द्वारा घेरा गया है।
विवर्तनिक इतिहास के आधार पर, भारत के उच्चावच को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है:
- हिमालय पर्वत
- उत्तरी भारत का विशाल मैदान
- केन्द्रीय उच्च भूमि
- प्रायद्वीपीय पठार
- पश्चिमी तटीय मैदान
- पूर्वी तटीय मैदान
- द्वीप समूह
यहाँ हम केवल हिमालय पर्वत अथवा उत्तरी और उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र की चर्चा करेंगे:
- हिमालय पर्वत में उत्तरी और उत्तरपूर्वी पर्वत श्रृंखलाओं और पूर्वाचल की पहाड़ियों को शामिल किया जाता हैं।
- यह दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला है, जिसकी अधिकांश चोटियाँ सदा बर्फ से ढकी रहती हैं। यही कारण है कि इसे हिमावन (बर्फ का निवास) या हिमाद्री के नाम से जाना जाता है।
- हिमालय पूर्व-पश्चिम में धनुषाकार रूप में फैला है और इसकी लंबाई पश्चिम में सिंधु नदी के महाखड्ड से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के महाखड्ड तक 2400 किमी है।
- हिमालय की चौड़ाई कश्मीर में लगभग 500 किमी और अरुणाचल प्रदेश में लगभग 200 किमी है।
- यह 5 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में फैला है।
- इसकी औसत ऊंचाई 6,000 मीटर है।
- एशिया महाद्वीप में 7300 से अधिक ऊंची चोटियां 94 हैं जिनमें से 92 चोटियां हिमालय व कराकोरम श्रेणी में स्थित है।
हिमालय का भौगोलिक या अनुदैर्ध्य विभाजन (Longitudinal Division of Himalaya)
हिमालय कोई एक पर्वत नहीं है, अपितु अनेक पर्वत श्रृंखलाओं का समूह है जो एक दूसरे के समानांतर हैं। उत्तर से दक्षिण तक, ये श्रृंखलाएं ट्रांस-हिमालय, ग्रेटर हिमालय, लघु हिमालय और शिवालिक हैं।
ट्रांस हिमालय
- इसे टेथिस और तिब्बत हिमालय के नाम से भी जाना जाता है।
- इसकी चौड़ाई लगभग 40 किमी है, और लंबाई लगभग 965 किमी है।
- इसमें काराकोरम, लद्दाख और कैलाश पर्वत शामिल हैं।
- इसकी औसत ऊँचाई 3100 मीटर से 3700 मीटर के बीच पाई जाती है।
- यह श्रेणी बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों और तिब्बत की झीलों के बीच जल विभाजक के रूप में कार्य करती है।
- पूरे क्षेत्र में वनस्पति आवरण का अभाव है।
- ट्रांस-हिमालय की सबसे महत्वपूर्ण श्रेणी काराकोरम है, जिसे ‘उच्च एशिया की रीढ़’ कहा जाता है।
- यह अफगानिस्तान और चीन के साथ भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा बनाता है
- इसमें 8000 मीटर से अधिक ऊंचाई की सबसे ऊँची चोटियाँ K2 (8611 m), हिडन पीक (8068 m), ब्रॉड पीक (8047 m), गशेर ब्रैम II (8035 m), और बड़े ग्लेशियर (सियाचिन 72 कि.मी., वायफो, बाल्टारो, हिस्पार आदि ) स्थित हैं।
- पश्चिम की ओर, काराकोरम रेंज पामीर-गाँठ में मिलती है जबकि दक्षिण-पूर्व की ओर यह तिब्बत में कैलाश रेंज बन जाती है।
- काराकोरम के दक्षिण में लद्दाख रेंज (ऊंचाई 5800 मीटर) स्थित है जो सिंधु और उसकी सहायक श्योक नदी के बीच जल विभाजक के रूप में कार्य करती है।
महान हिमालय अथवा वृहत हिमालय अथवा आंतरिक हिमालय
- इसे हिमाद्री के नाम से भी जाना जाता है।
- यह पश्चिम में सिंधु नदी के महाखड्ड से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक फैला हुआ है।
- इसका आंतरिक भाग आर्कियन चट्टानों (ग्रेनाइट, गनीस, शिस्ट) से बना है, इसके पार्श्व में कायांतरित तलछटी चट्टानें पाई जाती हैं।
- हिमालय की अधिकांश हिमनद चोटियाँ और कटक इसी श्रेणी में स्थित हैं।
- इसकी औसत ऊंचाई 6100 मीटर है, लेकिन कई चोटियों की ऊंचाई 8000 मीटर से अधिक पाई जाती है जैसे माउंट एवरेस्ट (8848 मीटर), कंचनजंगा (8598 मीटर), मैकल (8481 मीटर), धौलागिरी (8172 मीटर), मनासालू (8156 मीटर) ), नंगा पर्वत (8126 मीटर) और अन्नपूर्णा (8078 मीटर)।
- इस श्रेणी में महत्वपूर्ण दर्रे कश्मीर के बुर्जिल और ज़ोजिला, हिमाचल प्रदेश के बारा लाचा ला और शिपकी ला, उत्तराखंड के नीती, लिपु लेख और सिक्किम के नाथू ला और जेलेप ला हैं।
- माउंट एवरेस्ट को तिब्बती में ‘पहाड़ों की रानी‘ कहा जाता है। इसे सागरमाथा या गौरीशंकर के नाम से भी जाना जाता है।
- प्रसिद्ध कश्मीर घाटी बृहत हिमालय और पीरपंजाल श्रेणियों के बीच पाई जाती है।
- महान हिमालय अथवा वृहत हिमालय अथवा आंतरिक हिमालय, लघु हिमालय या मध्य हिमालय से मुख्य केन्द्रीय क्षेप (MCT) द्वारा अलग होता है।
लघु हिमालय या मध्य हिमालय
- यह श्रेणी शिवालिक के उत्तर में स्थित है जहाँ यह मुख्य सीमा क्षेत्र (MBT) द्वारा शिवालिक से अलग होता है।
- इस क्षेत्र में धौलाधार, पीरपंजाल, नाग टीबा, महाभारत और मसूरी पर्वतमालाएं उल्लेखनीय हैं।
- कश्मीर की पीर पंजाल श्रेणी इनमें सबसे लंबी और सबसे महत्वपूर्ण है।
- पीर पंजाल (3494 मीटर) और बनिहाल (2832 मीटर) इस श्रेणी के प्रमुख दर्रे हैं।
- हिमालय क्षेत्र के अधिकांश पर्यटन स्थल जैसे शिमला, रानीखेत, मसूरी, नैनीताल, अल्मोड़ा, दार्जिलिंग आदि इसी श्रेणी में स्थित हैं।
- लघु हिमालय के दक्षिणी ढलान खडे और लहरदार हैं, जबकि उत्तरी ढलान कोमल हैं और घने जंगलों से आच्छादित हैं।
- उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण सदाबहार वन (पाइन, देवदार, ब्लू पाइन, ओक, मैगनोलिया) 1500 मीटर से 2400 की ऊंचाई के बीच पाए जाते हैं।
- चरागाह क्षेत्र ढलानों के साथ पाए जाते हैं, जिन्हें कश्मीर में मर्ग (जैसे, गुलमर्ग, सोनमर्ग, तंगमर्ग, आदि) और उत्तराखंड में बुग्याल और पयार कहा जाता है।
उप-हिमालय या शिवालिक
- इसे बाहरी या बाह्य हिमालय भी कहा जाता है।
- यह हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है।
- इस श्रेणी की औसत ऊँचाई लगभग 600 मीटर और चौड़ाई 15 से 50 कि.मी. है।
- उत्तरी श्रेणियों से निकलने वाली अधिकांश नदियाँ इसकी पहाड़ियों को काटकर चौड़ी और खड़ी ढाल वाली घाटियाँ बनाती हैं। इन नदी घाटियों को पश्चिम में ‘दून’ और पूर्व में ‘द्वार’ कहा जाता है। देहरादून इस प्रकार की घाटी (75 कि.मी. x 20 कि.मी.) का एक उदाहरण है जो शेल और मिट्टी के निक्षेपों से भरी हुई है।
- इस श्रेणी को कई स्थानीय नामों से जाना जाता है, जैसे जम्मू कश्मीर में जम्मू हिल्स, उत्तराखंड में डुंडवा रेंज, नेपाल में चुरिया मुरिया हिल्स, अरुणाचल प्रदेश में दफला, मिरी, अबोर और मिश्मी हिल्स।
- शिवालिक के दक्षिणी ढलान बंजर और अत्यधिक अपरदित हैं, जिन्हें हिमाचल प्रदेश में ‘चो’ कहा जाता है।
- शिवालिक श्रेणी उत्तरी भारत के विशाल मैदान से हिमालय सीमा भ्रंश (HFF) द्वारा अलग होती है।
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