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भारत में लौह-अयस्क (Iron Ore in India): परिचय
” लोहा आज की सभ्यता की रीढ़ है। यह औद्योगिक विकास की आधारशिला है।” आज लोहा संसार के सभी भागों में प्रयोग किया जाता है। किसी भी देश के जीवन स्तर का अनुमान वहाँ पर प्रयोग होने वाले लोहे की मात्रा से लगाया जाता है। यही कारण है कि लोहा एवं इस्पात के उत्पादन को किसी देश के आर्थिक विकास को मापने का बेरोमीटर माना जाता है। इसके विश्व व्यापी प्रयोग का कारण इसकी निम्नलिखित विशेषताएं हैं:
लोहे को आर्थिक उन्नति का बैरोमीटर क्यों कहा जाता है? सूई, कील, बर्तन, चाकू व छुरियों जैसी सामान्य वस्तुओं से लेकर भारी-भरकम मशीनों, मशीनी औजारों, भवनों व कारखानों का निर्माण तथा रेलगाड़ियों, जहाज़ों व परिवहन और संचार के सभी साधनों में लोहे का प्रयोग होता है। लोहे के बिना आधुनिक जीवन-शैली की कल्पना भी संभव नहीं। इसीलिए लोहे को आर्थिक उन्नति का बैरोमीटर क्यों कहा जाता है। |
अन्य धातुओं की बजाय लोहे का प्रयोग ज़्यादा क्यों होता है ?
- लोहा भारी, कठोर, सबल व टिकाऊ होता है।
- यह अधिक मात्रा में सुलभ होने के कारण सस्ता भी है।
- लोहे को कई रूपों (जैसे ढलवाँ लोहा, पिटवाँ लोहा, चुम्बकीय लोहा) में बदला जा सकता है और कई प्रकार की स्टील बनाई जा सकती हैं।
- घातवर्ध्यता (Malleability) के गुण से युक्त होने के कारण लोहे को चादरों के रूप में ढाला व तारों के रूप में खींचा जा सकता है।
- लोहे में अन्य धातुएँ मिलाकर मिश्रधातुएँ (Alloys) बनाई जाती हैं जो लोहे से भी कठोर साबित होती हैं।
- लोहे का चक्रीय उपयोग (Recycling) सम्भव है। पुराने लोहे (Scrap) को गलाकर लोहे की नई वस्तुएँ बनाई जा सकती हैं।
- इसमें चुम्बकीय गुण होते हैं।
लोहा खानों से शुद्ध धातु के रूप में नहीं निकलता, अपितु यह लौह-अयस्क के रूप में पाया जाता है। अलग-2 लौह-अयस्कों में लोहे की की मात्रा भिन्न होती है। लोहे के अंश की मात्रा के आधार पर लौह -अयस्कों को चार भागों में विभाजित कर सकते है।
लौह-अयस्क के प्रकार
1. मैग्नेटाइट (Magnetite)
यह सबसे उत्तम प्रकार का प्रकार का लौह -अयस्क होता है। इसमें धातु का अंश 72% होता है। यह भारी तथा कठोर होता है। मैग्नेटाइट का रंग काला अथवा भूरा होता है। इसमें चुम्बकीय गुण पाए जाते हैं जिसके कारण इसे मैग्नेटाइट कहते है। यह अधिकतर आग्नेय एवं रूपांतरित चट्टानों में पाया जाता है। भारत में मैग्नेटाइट तमिलनाडु तथा कर्नाटक में पाया जाता है।
2. हैमेटाइट (Hematite)
हैमेटाइट ग्रीक भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ ‘रक्त’ होता है। अतः इस अयस्क का रंग लाल होता है। इसमें 60% से 70% तक शुद्ध लोहे का अंश मिलता है। यह प्रायः अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। भारत में इस लोहे के भंडार झारखंड, उड़ीसा तथा छत्तीसगढ़ में हैं। कुछ हैमेटाइट लोहा कर्नाटक तथा महाराष्ट्र में भी मिलता है।
3. लिमोनाइट (Limonite)
इसमें 40% से 60% शुद्ध लोहे का अंश होता है। यह अयस्क पीले या हल्के भूरे या बादामी रंग का होता है। यह भी तलछटी या अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। पश्चिम बंगाल में रानीगंज कोयला क्षेत्र में विकसित निम्न गोंडवाना क्रम में लिमोनाइट लोहे की चट्टानें मिलती है।
4. सिडेराइट (Siderite)
सिडेराइट निम्न श्रेणी का लौह -अयस्क है, जिसमें लोहे का अंश 40% से 50% तक के बीच का होता है। इस अयस्क का रंग भूरा या राख के रंग का होता है। इसमें अशुद्धियों की मात्रा अधिक होती है। जिस कारण इसका आर्थिक महत्व अपेक्षाकृत कम होता है। तेज धार वाली वस्तुएँ बनाने के लिए यह अयस्क विशेष रूप से अनुकूल है।
भारत में लौह-अयस्क उत्पादन तथा वितरण (Production and Distribution)
भारत विश्व का लगभग 12 प्रतिशत लोहे का उत्पादन करके विश्व में चौथे स्थान पर है। भारत का अधिकांश लोहा उच्च कोटि (हैमेटाइट) का है। अपितु अति उच्च कोटि (मैग्नेटाइट) के लौह संसाधन अपेक्षाकृत कम हैं और छत्तीसगढ़ के बैलाडीला, कर्नाटक के विलोरी-हॉस्पेट तथा झारखंड-उड़ीसा के बड़ा जमादा क्षेत्र तक ही सीमित हैं। 2021-22 के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल 2,04,035 हजार टन लौह-अयस्क का उत्पादन किया गया (तालिका 1)। भारत में अधिकतर लौह -अयस्क का उत्पादन मध्य-पूर्वी भाग में ही होता है। पिछले कुछ वर्षों के आंकडों से पता चलता है कि भारत में लोहे के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
तालिका 1
वर्ष | उत्पादन (‘000 टन में) |
2018-19 | 2,06,495 |
2019-20 | 2,44,083 |
2020-21 | 2,05,042 |
2021-22(P) | 2,04,035 |
भारत के प्रमुख लौह-अयस्क उत्पादन करने वाले राज्य
1. ओडिशा
ओडिशा भारत का लगभग आधे से अधिक लोहा पैदा करके प्रथम स्थान पर है। यहाँ हैमेटाइट तथा मैगनेटाइट जाति का उत्तम लोहा मिलता है। प्रमुख उत्पादक जिले क्योंझार, मयूरभंज संभलपुर, कटक तथा सुंदरगढ़ है। वरसुआ बोलाई, किरुबरू, दैतारी, बादाम पहाड़, गुरुमहिमानी तथा सुलेपत प्रमुख खानें हैं। इन क्षेत्रों से राउरकेला, बोकारो तथा जमशेदपुर के लोहा-इस्पात केंद्रों को लोहा भेजा जाता है।
2. कर्नाटक
यह राज्य भारत का लगभग 16.62% लोहा पैदा करता है। नवीनतम अनुमानों के अनुसार लोहे के सबसे अधिक भंडार कर्नाटक में ही हैं। यहाँ बेल्लारी तथा चिकमगलूर प्रमुख उत्पादक जिले हैं। बेल्लारी जिले में हेमेटाइट उत्तम किम्म का लोहा मिलता है जिसमें 60% से 70% लोहांश है। इस जिले में 127 करोड़ टन लोहे के भंडार आंके गए हैं। बेलारी जिले का हास्पेट क्षेत्र अग्रगण्य है।
चिकमगलूर जिले में बाबाबूदन पहाड़ी, कालाहाड़ी, केमानगुंडी तथा कुद्रेमुख महत्वपूर्ण उत्पादक क्षेत्र हैं। इसके अतिरिक्त चित्रदुर्ग, शिमोगा, धारवाड़ तथा तुमकूर जिलों से भी लोहा प्राप्त किया जाता है। चिकमगलूर के कुद्रेमुख क्षेत्र का लोहा ईरान को नियत किया जाता है। केमानगुंडी का लोहा भद्रावती लोहा-इस्पात केंद्र को भेजा जाता है।
तालिका 2
राज्य | भारत के कुल उत्पादन का% | उत्पादन (‘000 टन में) |
ओडिशा | 53.75 | 109675 |
कर्नाटक | 16.62 | 33911 |
छत्तीसगढ | 15.84 | 32315 |
झारखंड | 10.14 | 20680 |
मध्य प्रदेश | 2.70 | 5504 |
अन्य | 0.96 | 1950 |
अखिल भारतीय | 100.00 | 204035 |
भारत में लौह-अयस्क का वितरण (2021-22)
3. छत्तीसगढ़
यह राज्य भारत का लगभग 15.84 प्रतिशत लोहा पैदा करता है और देश का तीसरा बड़ा लौह उत्पादक राज्य है। छत्तीसगढ़ के बस्तर तथा दुर्ग जिले सबसे अधिक महत्वपूर्ण लोहा उत्पादक जिले हैं। अकेला बस्तर जिला भारत का लगभग 11% लोहा पैदा करता है। बस्तर जिले की बैलाडिला पहाड़ी की खान एशिया की सबसे बड़ी यंत्र सुसज्जित खान है।
बैलाडिला का लोहा विशाखापट्टनम भेजा जाता है, जहाँ से इसे जापान तथा अन्य देशों को निर्यात किया जाता है। दुर्ग जिले में दल्ली- राजद्वारा पहाड़ियाँ महत्वपूर्ण उत्पादक हैं। छत्तीसगढ़ के अन्य महत्वपूर्ण उत्पादक क्षेत्र बिलासपुर, रायगढ़ तथा सरगुजा जिलों में हैं।
4. झारखंड
यह राज्य भारत का 10.14 प्रतिशत से अधिक लोहा पैदा करके चौथे स्थान पर है। यहाँ की लौह उत्पादक पेटी उड़ीसा की लौह उत्पादक पेटी से जुड़ी हुई है। यहाँ उच्च कोटि का हैमेटाइट तथा मैगनेटाइट लोहा मिलता है। इस राज्य में सिंहभूम सबसे प्रमुख उत्पादक जिला है। इस जिले से नोटूबूरू, नाआमुंडी, पनासिरावुड, बुदावुड तथा सासगंडा क्षेत्रों में हैमेटाइट लोहा प्राप्त किया जाता है।
पलामू जिले के डाल्टनगंज क्षेत्र से भी लोहा प्राप्त किया जाता है। इन जिलों के अतिरिक्त धनबाद, हजारीबाग, तथा राँची जिलों में मैगनेटाइट लोहा मिलता है। झारखंड के लोहा-इस्पात केंद्रों को इन्हीं क्षेत्रों से लोहा प्राप्त होता है। कुछ लोहा निर्यात भी कर दिया जाता है।
अन्य उत्पादक
जन्य उत्पादकों में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर-प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर, गुजरात, केरल आदि सम्मिलित हैं।
महाराष्ट्र के प्रमुख उत्पादक जिले चंद्रपुर तथा रत्नागिरि हैं। इन क्षेत्रों में 60 से 70% लौहांश वाला हेमेटाइट लौह-अयस्क मिलता है। तमिलनाडु में सलेम जिला सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। घटिया किस्म का लोहा कोयम्बटूर, मदुरई, तिरूनेलवेली तथा रामनाथपुरम् जिलों में मिलता है। आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा, करनूल, गंतूर, कुडप्पा, अनन्तपुर, खम्मान, नेल्लोर आदि जिलों में लोहे के भंडार पाए जाते हैं। विशाखापट्नम के इस्पात कारखाने से इन स्थानों का महत्व बढ़ गया है।
राजस्थान में जयपुर, उदयपुर, अलवर, सीकर, बूंदी, तथा भीलवाड़ा जिलों में हैमेटाइट लोहा मिलता है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में लोहे के भण्डार हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल, अल्मोड़ा तथा नैनीताल जिलों में लगभग एक करोड़ टन लोहे के भंडार होने का अनुमान है। इन क्षेत्रों में हैमेटाइट तथा मैगनेटाइट लोहा मिलता है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा और मण्डी जिलों में 60% लौहांश वाला मैगनेटाइट लोहा मिलता है।
हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले में लगभग चार किलोमीटर लंबी पट्टी में मैगनेटाइट लोहे के लगभग 36 लाख टन भंडार हैं। पश्चिम बंगाल के बर्दवान, वीरभूमि, तथा दार्जिलिंग जिलों में लोहे के भंडार हैं। जम्मू-कश्मीर में जम्मू तथा ऊधमपुर जिलों में लिमोनाइट किस्म का घटिया लोहा पाया जाता है। गुजरात के भावनगर, नवानगर, पोरबन्दर, जूनागढ़, बडोदरा तथा खण्डेश्वर जिलों में घटिया किस्म का लोहा मिलता है। केरल के कोजीकोड जिले में भी लोहा होने के प्रमाण मिले हैं।
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5 Responses
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