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भारत के औद्योगिक प्रदेश (Industrial Regions of India)

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Table of contents

औद्योगिक प्रदेश का अर्थ (Meaning of industrial region)

विभिन्न उद्योगों के अनेकों कारखानों के एक ही स्थान या क्षेत्र में स्थापित होने से बने विशाल औद्योगिक भूदृश्य को औद्योगिक प्रदेश कहते हैं। किसी भी औद्योगिक प्रदेश में सामान्यतया निम्नलिखित विशेषताएँ देखने को मिलती हैं:

  • उद्योगों की प्रधानता और कारखानों का एक ही स्थान पर केन्द्रण
  • औद्योगिक श्रमिकों के निवास के लिए कालोनियों और औद्योगिक सामानों तथा कच्चा माल के बाजार के लिए कई छोटे बड़े कस्बों का उद्भव
  • परिवहन और संचार साधनों के सघन जाल
  • आनुषंगिक इकाइयों (ancillary units)(प्रमुख उद्योगों के कारण विकसित लघु उद्योग) की स्थापना से औद्योगिक संकुलों (industrial complexes) के विकास
  • नगर केन्द्र में सर्वाधिक सघन और बाहर की तरफ कम होता घनत्व
  • औद्योगिक विशिष्टताओं जैसे, चिमनी, रेलयार्ड, बड़े वाहन, औद्योगिक आवासीय इमारतों की प्रधानता
  • उपान्त क्षेत्र (शहर का बाहरी आस-पास का क्षेत्र) में सब्जी, फल, दूध आदि उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन पर जोर 

औद्योगिक प्रदेशों की सीमाओं के निर्धारण हेतु आधार (Basis for determining the boundaries of industrial areas)

औद्योगिक प्रदेशों के परिसीमन का कोई सुनिश्चित आधार नहीं है। विभिन्न विद्वानों ने औद्योगिक प्रदेशों की सीमाओं के निर्धारण हेतु अनेक मानकों पर आधारित अपने-2 सुझाव दिए, जिनमें से प्रमुख आधार या मानक हैं  

(i) कारखानों की संख्या

(ii) औद्योगिक श्रमिकों की संख्या

(iii) उत्पादन क्रियाओं में लगी जनसंख्या

(iv) कुल कार्यशील जनसंख्या के संदर्भ में औद्योगिक श्रमिकों का प्रतिशत

(v) सकल औद्योगिक उत्पादन

(vi) मूल्य संबंधी आँकड़ें

(vii) उत्पादन प्रक्रिया जन्य मूल्य वृद्धि (दो औद्योगिक प्रदेशों के बीच तुलनात्मक अध्ययन हेतु) । 

भारत के औद्योगिक प्रदेश (Industrial Regions of India)

भारत में उद्योगों का कुछ हद तक समूहन और प्रादेशिक संकेन्द्रण पाया जाता है, भले ही यहाँ यूरोप और अमेरिका की तरह उद्योगों की सुस्पष्ट मेखलाएँ न बन पाई हों। केवल फरीदाबाद-दिल्ली-मेरठ प्रदेश को छोड़कर सभी विद्वानों में देश के प्रमुख औद्योगिक प्रदेशों के बारे में आम सहमति है। इस नए प्रदेश के तेजी से विकास में राष्ट्रीय राजधानी के कर्षण की प्रमुख भूमिका है। यहाँ देश के औद्योगिक प्रदेशों का संक्षिप्त विवरण देने का प्रयास किया गया है। 

मुम्बई-पुणे औद्योगिक प्रदेश (Mumbai-Pune Industrial Region)

मुम्बई-पुणे औद्योगिक प्रदेश पश्चिमी तट के सहारे मुम्बई से शोलापुर के बीच फैला हुआ है। इसके प्रारंभिक विकास का श्रेय ब्रिटिश शासन को जाता है जिसके दौरान यहाँ सूती वस्त्र उद्योग की शुरुआत हुई और मुम्बई को ‘सूती वस्त्र की राजधानी’ (cottonopolis) होने का गौरव प्राप्त हुआ। 

मुम्बई के प्राकृतिक बन्दरगाह के अतिरिक्त इसे पृष्ठ प्रदेश से कपास कच्चा माल, स्वेज नहर (1869) की समीपता, विद्युत ऊर्जा के (खोपाली, भिवपुरी, भीरा, कोयना के टाटा जल विद्युत शक्तिगृह, चोल के ताप गृह और ट्राम्बे एवं तारापुर के परमाणु विद्युत गृह, सस्ते एवं प्रशिक्षित श्रमिक (रत्नगिरि जनपद), परिवहन (मुम्बई- थाणे प्रथम रेलमार्ग की शुरुआत 1853, थाल घाट एवं भोर घाट के रास्ते प्रायद्वीपीय क्षेत्र से रेल और सड़क मार्गों से अभिगम्यता, शान्ताक्रुज हवाई अड्डे की सुविधा), पूँजी (कपास के व्यापार से प्राप्त धन) और बाजार आदि की सुविधाएँ प्राप्त हैं। 

मुम्बई और पुणे इस प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं जो एक दूसरे से तेज चलने वाले बिजली वाले  रेल मार्ग से जुड़े हैं। यहाँ वस्त्र उद्योग की प्रधानता है जिसमें कारखाना श्रमिकों का 42 प्रतिशत भाग लगा है। शेष श्रमिकों का भाग इंजीनियरिंग (20%), खाद्य प्रसंस्करण (7%), रासायनिक (6%), धातु (2%) और अन्य उद्योगों (23%) में लगा है। 

बृहत्तर मुम्बई में 6000 से अधिक पंजीकृत कारखाने हैं जिसमें 800 इंजीनियरिंग, 330 वस्त्र, 216 रासायनिक, 190 खाद्य प्रसंस्करण और 50 चमड़ा शोधन उद्योगों में लगे हैं। केवल मुम्बई नगर में ही देश के 20 प्रतिशत तकुए और 30 प्रतिशत करघे पाए जाते हैं। हाल के वर्षों में वस्त्र उद्योग का महत्व घट रहा है। इसके स्थान पर रासायन, विद्युत उपकरण, इंजीनियरिंग, पेट्रोलियम शोधन, पेट्रो रसायन, उर्वरक, परिवहन उपकरण, रबर उत्पाद, कागज, इलेक्ट्रानिक सामान, चमड़ा, सेन्थेटिक और प्लास्टिक सामान, दवाइयों और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों का महत्व बढ़ा है। 

पुणे में 1150 पंजीकृत कारखाने हैं। यहाँ धातुकर्मीय, रासायनिक, स्कूटर निर्माण आदि उद्योगों की प्रधानता है। इस क्षेत्र के अन्य औद्योगिक केन्द्रों में थाणे (1300 कारखाने), नासिक (250 कारखाने), कुर्ला, घाटकोपर, विलेपारले, जोगेश्वरी, अन्धेरी, भाण्डुप, कल्याण, पिपरी, किरकी, अम्बरनाथ, ट्राम्बे, शोलापुर, कोल्हापुर, सतारा, उल्हासनगर, सांगली, अहमदनगर, विक्रोली आदि शामिल हैं । 

मुम्बई-पुणे औद्योगिक प्रदेश की समस्याएँ

मुम्बई-पुणे औद्योगिक प्रदेश को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इनकी शुरुआत देश के विभाजन के बाद 21 प्रतिशत कपास उत्पादक क्षेत्र (45 प्रतिशत मध्यम और लम्बे रेशे वाली कपास) और 30 प्रतिशत बाजार के पाकिस्तान में चले जाने के कारण हुई। इससे सूती वस्त्र मिलों के सामने कच्चा माल का गंभीर संकट उत्पन्न हो गया। कोयला उत्पादक क्षेत्रों से दूर होने के कारण ऊर्जा का संकट यहाँ की शाश्वत समस्या है।

द्वीपीय स्थिति के कारण जगह की कमी उद्योगों के सामने बड़ी समस्या बन गयी है। भूमि के बढ़ते मूल्य के साथ-साथ ऊँचे सरकारी टैक्स ने समस्या को और विकराल बना दिया है। यही कारण है कि बहुत से उद्योगपति मुम्बई से बाहर के भागों में अथवा गुजरात आदि में उद्योगों को लगाना शुरू कर दिया है। 

श्रमिक असंतोष, हड़ताल, तालाबन्दी, रेयान और कृत्रिम रेशों से प्रतिस्पर्धा, पुरानी मशीनरी, आधुनिकीकरण की कमी, बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण, स्वास्थ्य संकट, भूकम्प का खतरा आदि ऐसी समस्याएँ हैं जिनसे इस क्षेत्र का औद्योगिक विकास प्रभावित हो रहा है। यद्यपि मुम्बई में औद्योगिक विकास अपने चरम स्तर पर पहुँच गया है परन्तु आने वाले कई वर्षों तक इसके सर्वोच्च बिन्दु तक ही बने रहने की संभावना है।

कोलकाता – हुगली औद्योगिक प्रदेश (Kolkata-Hooghly Industrial Region)

कोलकाता-हुगली प्रदेश देश का एक पुराना और महत्वपूर्ण औद्योगिक प्रदेश है। यह हुगली नदी के दोनों किनारों पर लगभग 100 किमी० की लम्बाई में उत्तर में बांसबेरिया से दक्षिण में बिड़ला नगर तक फैला है। इसकी शुरुआत सत्रहवीं सदी में ब्रिटिश शासन के दौरान हुई जब कोलकाता का विकास राजधानी (1773-1912) के अलावा एक प्रमुख व्यापार केन्द्र और नदी पत्तन के रूप में हुआ। 

इस क्षेत्र को दामोदर घाटी के कोयला, छोटा नागपुर के खनिज संसाधन, असम एवं उत्तरी बंगाल के चाय बागान, बंगाल डेल्टा क्षेत्र के जूट उत्पादन, बिहार- उड़ीसा के सस्ते श्रम, अफीम, नील और कपास की बिक्री से संग्रहीत पूँजी, सुविकसित परिवहन तंत्र (आंतरिक जल परिवहन, रेल, सड़क परिवहन) और अनुकूल संस्थिति की सुविधाएँ प्राप्त हैं जिनसे औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिला है। 

यहाँ औद्योगिक समूहन की शुरुआत हुगली तट के सहारे रिशरा में प्रथम जूट मिल की स्थापना से हुई और 1921 तक इस क्षेत्र में देश की दो-तिहाई कारखाना रोजगार की क्षमता संग्रहीत हो गई। देश के विभाजन से इस क्षेत्र को बड़ा आघात लगा जब देश का 80 प्रतिशत जूट उत्पादक क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में चला गया और जूट मिलों के सामने कच्चे माल का गंभीर संकट उत्पन्न हो गया। 

इस विभाजन से असम को जोड़ने वाला नदी परिवहन तंत्र भी विच्छिन्न हो गया। इस औद्योगिक मेखला में 8746 पंजीकृत कारखाने (1989) हैं। इसके अलावा यहाँ 33,749 पंजीकृत छोटे कारखाने भी हैं (1990)। इस प्रदेश के कुल 20 लाख औद्योगिक श्रमिकों में से 12.7 लाख परिवहन और तृतीयक सेवाओं में, 2.4 लाख जूट उद्योग में और 2.2 लाख इंजीनियरिंग और सूती वस्त्र उद्योग में लगे हैं। 

कोलकाता नगर की एक-तिहाई से अधिक श्रमिक शक्ति सेवा उद्योगों में, 25 प्रतिशत विनिर्माण और 24 प्रतिशत व्यापार और वाणिज्य में कार्यरत है। इस औद्योगिक मेखला में जूट (80%), कागज (30%), सूती वस्त्र, भारी इंजीनियरिंग (लोकोमोटिव, मोटर वाहन, जलयान निर्माण), रासायन, औषधि, रबड़, प्लास्टिक, परिवहन उपकरण, पेट्रोलियम शोधन, पेट्रो रसायन, विद्युत उपकरण, जूता, लौह-इस्पात, इलेक्ट्रानिक्स और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के कारखाने पाए जाते हैं। 

कोलकाता के अलावा हावड़ा, नैहाटी, जगतदल, अगरपाड़ा, शामनगर, बैरकपुर, टीटागढ़, बेलघरिया, खिदरपुर, बाटानगर, बजबज, त्रिबेणी, हुगली, सिरामपुर, कोन्नगर, उत्तरपाड़ा, बेलूर, लिलुआ, शिवपुर, रिशरा, अन्दुल, बिड़लापुर, हल्दिया, बांसबेरिया, चन्दननगर और काकीनाडा इन उद्योगों के प्रमुख केन्द्र हैं। इसी प्रकार आसनसोल, कुल्टी, बर्नपुर, रानीगंज और दुर्गापुर लौह- इस्पात उद्योग के केन्द्र हैं।

कोलकाता-हुगली प्रदेश औद्योगिक मन्दी और औद्योगिक ह्रास के दौर से गुजर रहा है। यह क्षेत्र भीड़-भाड़, हुगली में रेत जमाव, परिवहन अवरोध, जगह की कमी, ऊर्जा संकट, अस्वच्छता, पेय जल और नागरिक सुविधाओं की कमी और पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं से जूझ रहा है। 

श्रमिक अशान्ति और साम्यवादी सरकार की नीति ने उद्योगपतियों को असुरक्षित कर रखा है। फरक्का बैराज के निर्माण, भूमिगत रेल, साल्ट लेक सिटी और नए हल्दिया पत्तन के विकास, डीवीसी के विद्युत उत्पादन में वृद्धि, सरकारी उदारीकरण की नीति आदि से उपरोक्त समस्याओं के निदान का प्रयास किया जा रहा है। 

अहमदाबाद- वडोदरा औद्योगिक प्रदेश (Ahmedabad-Vadodara Industrial Region)

यह प्रदेश गुजरात के कपास उत्पादक क्षेत्र के निकट स्थित है। यहाँ का औद्योगिक विकास मुम्बई के विकेन्द्रीकरण से सम्बद्ध रहा है। इस प्रदेश को कच्चा माल और बाजार की समीपता, सस्ती जमीन, सस्ते प्रशिक्षित श्रमिक, कांडला बन्दरगाह, परिवहन, बिजली (धुवरन तापगृह, उत्तारन गैस शक्ति गृह, उकाई जल विद्युत परियोजना एवं काकरापारा परमाणु ऊर्जा संयंत्र), पूँजी (मारवाड़ी उद्योगपति), खनिज तेल की उपलब्धता (खम्भात की खाड़ी) की सुविधाएँ प्राप्त हैं। 

यहाँ 9000 पंजीकृत कारखाने हैं जिनमें प्रतिदिन 6 लाख श्रमिक कार्य करते हैं। अहमदाबाद इस प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक केन्द्र हैं जिसमें क्षेत्र की 25 प्रतिशत से अधिक इकाइयाँ लगी हैं। यह देश में सूती वस्त्र उद्योग का दूसरा बड़ा केन्द्र है। रसायन, इंजीनियरिंग और औषध निर्माण अन्य प्रमुख उद्योग हैं। सूरत दूसरा बड़ा केन्द्र है जो कृत्रिम रेशा, रेशमी वस्त्र और हीरा तराशने के लिए प्रसिद्ध है। वडोदरा ऊनी वस्त्र उद्योग का मुख्य केन्द्र है। कोयली और जामनगर पेट्रोल शोधन और पेट्रोरसायन उद्योगों के लिए तथा आनन्द और नदियाड डेरी उद्योग के लिए प्रसिद्ध हैं। 

अन्य औद्योगिक केन्द्रों में कलोल, भड़ौच, खेड़ा, सुरेन्द्रनगर, राजकोट, वलसाड़, अंकलेश्वर, नवसारी, भावनगर आदि सम्मिलित हैं। वस्त्र उद्योग के अलावा यहाँ रासायन, पेट्रो रसायन, इंजीनियरिंग, रेयान, दियासलाई, औषध निर्माण, पेट्रोल शोधन, चमड़ा, प्लास्टिक, बर्तन और कांच के सामान, चीनी, दुग्ध उत्पादन, खाद्य प्रसंस्करण, सीमेण्ट, इलेक्ट्रानिक आदि उद्योगों का विकास हुआ है। हाल में यह क्षेत्र ऊर्जा और जल की कमी की समस्या से प्रभावित हो रहा है। 

मदुरै – कोयम्बतूर – बंगलौर औद्योगिक प्रदेश (Madurai-Coimbatore-Bangalore Industrial Region)

यह प्रदेश भी कपास उत्पादक क्षेत्र में स्थित है और यहाँ सूती वस्त्र उद्योग की प्रधानता पाई जाती है। इस क्षेत्र के औद्योगिक विकास में इसके पृष्ठ क्षेत्र की कृषि सम्पन्नता, विशाल घरेलू बाजार, सस्ते प्रशिक्षित श्रमिक, अच्छी जलवायु, सस्ती एवं नियमित विद्युत आपूर्ति (पाइकारा, मेटूर, शिवमुद्रम, पापनाशम एवं शरावती परियोजनाएँ), खनिज संसाधन और परिवहन विकास का योगदान रहा है। 

चेन्नई, बंगलौर, कोयम्बतूर, मदुरै, शिवकाशी, मैसूर, तिरुचिरापल्ली, सलेम, माण्ड्या, भद्रावती, इरोद, डिंडीगुल और मेटूर इस क्षेत्र के प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं। यहाँ औद्योगिक वैविध्य देखा जाता है जिसमें वस्त्र, चीनी, चमड़ा,रबड़ सामान, रासायन, कागज, इंजीनियरिंग, बिजली मशीनरी, घड़ी निर्माण, दवा, अल्युमिनियम, कांच, दवा, पेट्रोल शोधन आदि मुख्य उद्योग हैं। 

औद्योगिक श्रमिकों का 57 प्रतिशत भाग वस्त्र उद्योग, 16 प्रतिशत इंजीनियरिंग, 10 प्रतिशत खाद्य प्रसंस्करण, और 5 प्रतिशत रासायन उद्योगों में लगा है। चेन्नई में सूती वस्त्र उद्योग, वनस्पति तेल पेट्रोल शोधन और चमड़ा के सामान; कोयम्बतूर में कताई मिलें, कहवा, तेल, सीमेण्ट और चमड़ा के सामान; बंगलौर में कपास, ऊनी और रेशमी वस्त्र उद्योग, मशीन टूल्स, वायुयान, टेलीफोन और इलेक्ट्रानिक्स उद्योगों की प्रधानता है। बंगलौर इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी के एक प्रमुख केन्द्र के रूप में उभरा है। सलेम में लौह-इस्पात और उर्वरक नवीनतम उद्योग हैं। 

छोटा नागपुर औद्योगिक प्रदेश (Chhota Nagpur Industrial Region)

इस प्रदेश का विस्तार झारखंड, उत्तरी उड़ीसा और प० बंगाल में पाया जाता है। इसे दामोदर घाटी के कोयला खदान, झारखण्ड-उड़ीसा मेखला के खनिज संसाधन, बिजली (दामोदर घाटी परियोजना), सस्ता श्रम (बिहार, उड़ीसा और पू० उत्तर प्रदेश), निकट के बाजार, परिवहन और बन्दरगाह (कोलकाता, हल्दिया, पाराद्वीप) की सुविधायें प्राप्त हैं। 

यहाँ जमशेदपुर, दुर्गापुर, आसनसोल, बोकारो, राउरकेला, कुल्टी, बर्नपुर लौह इस्पात उद्योग के लिए; सिन्द्री और राउरकेला उर्वरक उद्योग के लिए; चित्तरंजन रेल इंजन के लिए; रामगढ़ और भुरकुण्डा कांच उद्योग के लिए; और खलारी सीमेण्ट उद्योग के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ की श्रम शक्ति का 47 प्रतिशत भाग धातुकर्मीय और भारी उद्योगों, 19 प्रतिशत इंजीनियरिंग, 10 प्रतिशत खाद्य प्रसंस्करण और 7 प्रतिशत रासायन उद्योगों में लगा है। 

इस क्षेत्र के अन्य प्रमुख उद्योगों में कागज, दियासलाई, कांच, सीमेण्ट, फर्नीचर, प्लाईवुड, विद्युत सामान आदि सम्मिलित हैं। यह क्षेत्र मिलों की रूग्णता, ऊर्जा की कमी और राजनीतिक अशान्ति (नक्सलवादी आन्दोलन) आदि समस्याओं से प्रभावित है ।

मथुरा-दिल्ली-सहारनपुर-अम्बाला औद्योगिक प्रदेश (Mathura-Delhi-Saharanpur-Ambala Industrial Region)

इस क्षेत्र का विकास स्वतंत्रता के बाद के काल में हुआ है। इसे राष्ट्रीय राजधानी के सामीप्य, सस्ते कच्चामाल (गन्ना, कपास), विशाल बाजार, नियमित विद्युत आपूर्ति (फरीदाबाद – हरदुआगंज ताप संयंत्र, भाखड़ा नांगल और यमुना जलविद्युत परियोजना), सस्ते श्रमिक और विकसित परिवहन तंत्र की सुविधाएँ प्राप्त हैं। 

इसमें दिल्ली (इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रानिक्स, रासायन, कांच, वस्त्र एवं उपभोक्ता उद्योग), गाजियाबाद (सिन्थेटिक रेशा, रासायन, इलेक्ट्रानिक्स, औषध निर्माण, कृषि उपकरण, साइकिल टायर एवं ट्यूब), शाहदरा (होजरी), मोदीपुरम (मोटरगाड़ी टायर), फरीदाबाद (इंजीनियरिंग), फिरोजाबाद (कांच), गुड़गाँव (मोटरगाड़ी), मुरादनगर (आर्डिनेंस फैक्ट्री), मोहननगर (शराब, ऐलकोहॉल), मेरठ (चीनी) और मथुरा (पेट्रोलियम शोधन) प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं।

नोएडा एक बड़े औद्योगिक संश्लिष्ट के रूप में विकसित हो रहा है। यहाँ निर्यात परिष्करण क्षेत्र (EPZ) का निर्माण किया गया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के निर्माण से यहाँ के औद्योगिक विकास को और भी प्रोत्साहन मिल रहा है। 

दिल्ली महानगरीय प्रदेश ईंधन (कोयला, खनिज तेल) और खनिज संसाधनों से दूर स्थित है। इस कमी को रेल और सड़क परिवहन द्वारा पूरा किया जाता है। इसे पाइप लाइन द्वारा पश्चिम तट से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। यह क्षेत्र पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से प्रभावित है जो दिल्ली महानगर में सबसे गंभीर है। एन० सी० आर० की योजना के तहत प्रदूषक उद्योगों को राजधानी से दूर ले जाने की योजना है। 

भारत के गौण औद्योगिक प्रदेश (Secondary industrial regions of india)

उपरोक्त प्रमुख औद्योगिक प्रदेशों के अलावा 8 गौण / लघु औद्योगिक प्रदेश हैं जो देश के विभिन्न भागों में स्थित हैं :

असम घाटी (Assam Valley)

यह क्षेत्र कृषि एवं वन उत्पादों तथा खनिज तेल में संपन्न है। यहाँ चाय, जूट, खाद्य प्रसंस्करण (जोगिगोपा), दियासलाई, प्लाईवुड, रेशम वस्त्र, पेट्रोल शोधन (नूनमती), पेट्रो रसायन (बोंगाई गांव) और रासायन उद्योगों का विकास हुआ है। गुवाहाटी, डिग्बोई, डिब्रूगढ़, धुबरी और तिनसुकिया यहाँ के प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं। 

दार्जिलिंग तराई (Darjeeling Terai)

इस क्षेत्र में चाय और पर्यटन प्रमुख उद्योग हैं। दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी मुख्य केन्द्र हैं। 

उत्तरी बिहार-पूर्वी उत्तर प्रदेश (Northern Bihar-Eastern Uttar Pradesh)

यह एक कृषि प्रधान क्षेत्र है। यहाँ कृषि आधारित उद्योगों (चीनी, खाद्य प्रसंस्करण, वनस्पति तेल, वस्त्र) के अलावा इंजीनियरिंग, सीमेण्ट, रेल इंजन निर्माण, कागज, पेट्रोल शोधन, रासायन, उर्वरक, काँच आदि उद्योगों का विकास हुआ है। इलाहाबाद, गोरखपुर, वाराणसी, डालमियानगर, पटना, बरौनी, भागलपुर, बक्सर आदि मुख्य औद्योगिक केन्द्र हैं। 

इन्दौर-उज्जैन (Indore-Ujjain)

इसे कपास उत्पादन और परिवहन की सुविधायें प्राप्त हैं। यहाँ के मुख्य उद्योगों में सूती वस्त्र, खाद्य प्रसंस्करण, रासायन और इंजीनियरिंग सम्मिलित हैं। इन्दौर को ‘लघु मुम्बई’ कहा जाता है।

नागपुर – वर्धा (Nagpur – Wardha)

यहाँ सूती वस्त्र, इंजीनियरिंग, रासायन और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की प्रधानता है। नागपुर और वर्धा यहाँ के मुख्य केन्द्र हैं । 

धारवाड़ – बेलगाम (Dharwad – Belgaum)

धारवाड़, हुबली, बेलगाम इस क्षेत्र के प्रमुख केन्द्र हैं जहाँ इंजीनियरिंग, सूती वस्त्र, रासायन, चावल और मसाला पैकिंग के कारखाने पाए जाते हैं। 

गोदावरी-कृष्णा डेल्टा (Godavari-Krishna Delta)

इस क्षेत्र में सूती वस्त्र, चावल, जूट, इंजीनियरिंग, रासायन, चीनी और मत्स्य उद्योग का विकास हुआ है। गुन्टूर, विजयवाड़ा, राजामुन्द्री, मछलीपत्तनम और विशाखापत्तनम यहाँ के प्रमुख केन्द्र हैं।

केरल तट (Kerala coast)

यहां चावल मिल, नारियल तेल उत्पादन, मछली – डिब्बाबन्दी, रेयान, कागज, पोत निर्माण (कोच्चि, पेट्रोल शोधन (कोच्चि) और रासायन उद्योगों का विकास हुआ है। कोच्चि, एर्णाकुलम, कोल्लम और कोझिकोड इस क्षेत्र के प्रमुख केन्द्र हैं। 

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