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भारत की जलवायु को समझने के लिए यहाँ के विभिन्न भौगोलिक और प्राकृतिक तत्वों की जानकारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस लेख में, हम उन कारकों पर चर्चा करेंगे जो भारत की जलवायु को प्रभावित करते हैं, जैसे कि अक्षांशीय विस्तार, स्थलाकृति, समुद्र से दूरी, और मानसून पवनें। भारत का भौगोलिक विस्तार और हिमालय पर्वत जैसे प्राकृतिक अवरोध, यहाँ की जलवायु पर गहरा प्रभाव डालते हैं। इसके अलावा, पश्चिमी विक्षोभ, उष्ण कटिबंधीय चक्रवात, और एल-नीनो जैसे बाहरी तत्व भी भारत की जलवायु को प्रभावित करते हैं। यह परिचय उन विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण है जो B.A., M.A., UGC NET, UPSC, RPSC, KVS, NVS, DSSSB, HPSC, HTET, RTET, UPPCS, और BPSC जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं।
Table of contents
- भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Climate of India)
- स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तार(Location and Latitudinal Extent)
- समुद्र से दूरी (Distance from sea)
- उत्तर पर्वतीय श्रेणियां (Northern mountain ranges)
- स्थलाकृति (Topography)
- मानसून पवनें (Monsoon winds)
- ऊपरी वायु परिसंचरण(Upper air circulation)
- पश्चिमी विक्षोभ तथा उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Western Disturbances and Tropical Cyclones)
- एल-नीनो प्रभाव (El-Nino effect)
- दक्षिणी दोलन (southern oscillation)
- Test Your Knowledge with MCQs
- FAQs
- You May Also Like
इस लेख में हम भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों (Factors affecting Climate of India) की विस्तार से चर्चा करेंगे।
परिचय
किसी भी देश की जलवायु अच्छे से समझने के लिए वहाँ के तापमान, वर्षा, यायुदाब तथा पवनों की गति तथा दिशा का ज्ञान होना आवश्यक है। किसी भी देश की जलवायु पर उस देश के अक्षांशीय विस्तार, उच्चावच तथा जल व स्थल के वितरण का गहरा प्रभाव पड़ता है। हम जानते हैं कि कर्क रेखा भारत को लगभग दो बराबर भागों में बांटती है। अतः इसका दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में तथा उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में स्थित है। भारत के उत्तर में विशाल हिमालय पर्वत स्थित है।
हिमालय पर्वत भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया से अलग करता है और यहाँ से आने वाली ठण्डी पवनों को रोकता है। इस प्रकार समस्त भारत में उष्ण कटिबन्धीय जलवायु पाई जाती है। भारत के दक्षिण में स्थित हिन्द महासागर से आने वाली मानसून पवनों का भारत की जलवायु पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। अतः भारत की जलवायु को उष्ण मानसूनी जलवायु कहा जाता है।
भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Climate of India)
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:
स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तार(Location and Latitudinal Extent)
भारत मोटे तौर पर 8°4′ उ0 से 37°6′ उ० अक्षांशों के मध्य स्थित है। कर्क रेखा भारत के मध्य से होकर गुजरती है। विषुवत् वृत्त के पास होने के कारण भारत के दक्षिणी भागों में वर्ष भर ऊंचा तापमान रहता है। दूसरी ओर भारत का उत्तरी भाग गर्म शीतोष्ण पेटी में स्थित है। अतः यहाँ विशेषकर शीतकाल में कम तापमान रहता है।
समुद्र से दूरी (Distance from sea)
प्रायद्वीपीय भारत पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण में हिन्द महासागर तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। अतः भारत के समुद्री तटीय क्षेत्रों की जलवायु सम है। इसके विपरीत जो प्रदेश तट से दूर देश के भीतरी भागों में स्थित हैं, वे समुद्री प्रभाव से अअछूत हैं। फलस्वरूप उन प्रदेशों की जलवायु अति विषम या महाद्वीपीय है।
उत्तर पर्वतीय श्रेणियां (Northern mountain ranges)
हिमालय व उसके साथ की श्रेणियां जो उत्तर-पश्चिम में कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक फैली हुई हैं, भारत को शेष एशिया से अलग करती हैं। एक ओर ये पर्वत श्रेणियां शीत ऋतु में मध्य एशिया से आने वाली ठण्डी व शुष्क पवनों से भारत की रक्षा करती हैं।
वहीं दूसरी ओर वर्षादायिनी दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के सामने एक प्रभावी अवरोध बनाती हैं, ताकि वे भारत की उत्तरी सीमाओं को पार न कर सकें। इस प्रकार से श्रेणियाँ भारतीय उपमहाद्वीप तथा मध्य एशिया के बीच एक जलवायु विभाजक का कार्य करती हैं।
स्थलाकृति (Topography)
देश के विभिन्न भागों में स्थलाकृतिक लक्षण यहाँ के तापमान, वायुमण्डलीय दाब, पवनों की दिशा वर्षा की मात्रा को प्रभावित करते हैं। उत्तर में हिमालय पर्वत नमीयुक्त मानसून पवनों को रोककर सम्पूर्ण उत्तरी भारत में वर्षा का कारण बनता है। मेघालय पठार में पहाड़ियों की कीपनुमा आकृति से मानसून पवनों द्वारा विश्व की सबसे अधिक होती है। अरावली पर्वत मानसून पवनों की दिशा के समानान्तर है। अतः यह मानसून पवनों को रोकने में असफल होता है और लगभग सारा राजस्थान एक विस्तृत मरूस्थत है।
पश्चिमी घाट दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनों के रास्ते में दीवार की भांति खड़ा है जिस कारण इस पर्वत माला के पश्चिमी ढालों तथा पश्चिमी तटीय मैदान में भारी वर्षा होती है। इसके पूर्व में पवने नीचे उतरती है और गर्म व शुष्क हो जाती है। अतः इस क्षेत्र में बहुत कम वर्षा होती है और यह ‘वर्षा छाया’ क्षेत्र कहलाता है।
मानसून पवनें (Monsoon winds)
दक्षिण-पश्चिमी ग्रीष्मकालीन पवने समुद्र से स्थल की और चलती है और समस्त भारत देश को प्रचुर वर्षा प्रदान करती हैं। इसके विपरीत शीतकालीन उत्तर-पूर्वी मानसून पवने स्थल भाग से समुद्र की ओर चलती हैं और वर्षा करने में असमर्थ होती है। बंगाल की खाड़ी से कुछ जलवाष्प ग्रहण करने के बाद ये पवनें तमिलनाडु के कोरोमंडल तट पर थोड़ी सी वर्षा करती हैं।
ऊपरी वायु परिसंचरण(Upper air circulation)
भारत में मानसून के अचानक विस्फोट का एक अन्य कारण भारतीय भू-भाग के ऊपर वायु परिसंचरण में होने वाला परिवर्तन भी है। ऊपरी वायुतंत्र में बहने वाली जेट वायुधारायें भारतीय जलवायु को निम्न प्रकार से प्रभावित करती है
पश्चिमी जेट धारा(westerly jet stream)
शीतकाल में, समुद्र तल से लगभग 8 किमी० की ऊँचाई पर पश्चिमी जेट अधिक तीव्र गति से समशीतोष्ण कटिबन्ध के ऊपर चलती है। यह जेट वायुधारा हिमालय की श्रेणियों द्वारा दो भागों में विभाजित हो जाती है। इस जेट वायुधारा की उत्तरी शाखा इस अवरोध के उत्तरी सिरे के सहारे चलती है। दक्षिणी शाखा हिमालय श्रेणियों के दक्षिण में 25° उत्तरी अक्षांश के ऊपर पूर्व की ओर बनती है। मौसम वैज्ञानिकों का ऐसा विश्वास है कि यह शाखा भारत की शीतकालीन मौसमी दशाओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
यह जेट वायुधारा भूमध्य सागरीय प्रदेशों से पश्चिमी विक्षोभों को भारतीय उपमहाद्वीप में लाने के लिए उत्तरदायी है। उत्तर पश्चिमी मैदानों में होने वाली शीतकालीन वर्षा व ओलावृष्टि तथा पहाड़ी प्रदेशों में कभी-कभी होने वाला भारी हिमपात इन्हीं विक्षोभों का परिणाम है। इनके प्रभाव से सम्पूर्ण उत्तरी मैदानों में शीत लहरें चलती है।
पूर्वी जेट वायुधारा (easterly jet stream)
ग्रीष्मकाल में, सूर्य के उत्तरी गोलार्द्ध में आभासी गति के कारण ऊपरी वायु परिसंचरण में परिवर्तन हो जाता है। पश्चिमी जेट वायुचारा के स्थान पर पूर्वी जेट वायुधारा चलने लगती है, जो तिब्बत के पठार के गर्म होने से उत्पन्न होती है। इसके परिणामस्वरूप पूर्वी ठण्डी जेट वायुचारा विकसित होती है जो 15° उत्तरी अक्षांश के आसपास प्रायद्वीपीय भारत के ऊपर चलती है। यह दक्षिण पश्चिमी मानसून पवनों के अचानक आने में सहायता देती है।
पश्चिमी विक्षोभ तथा उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Western Disturbances and Tropical Cyclones)
पश्चिमी विक्षोभ भारतीय उपमहाद्वीप में पश्चिमी जेट प्रवाह के साथ भूमध्य सागरीय प्रदेश से आते हैं। यह देश के उत्तरी मैदानी भागों व पश्चिमी हिमालय प्रदेश की शीतकालीन मौसमी दशाओं को प्रभावित करते हैं।
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात बंगाल की खाड़ी में पैदा होते हैं। इन चक्रवातों की तीव्रता तथा दिशा दक्षिण पश्चिम मानसून काल में भारत के अधिकांश भागों तथा पीछे हटते मानसून की ऋतु अर्थात अक्टूबर व नवम्बर में पूर्वी तटीय भागों की मौसमी दशाओं को प्रभावित करते हैं। कुछ उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात अरब सागर में भी पैदा होते हैं और भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेश को प्रभावित करते हैं।
एल-नीनो प्रभाव (El-Nino effect)
भारत में मौसमी दशाएं एल-नीनो से भी प्रभावित होती हैं, जो संसार के उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में विस्तृत बाढ़ और सूखों के लिए जिम्मेवार है। एल-नीनो एक संकरी गर्म समुद्री जलधारा है जो कभी-कभी दक्षिण अमेरिका के पेरू तट से कुछ दूरी पर दिसम्बर के महीने में दिखाई देती है। कई बार पेरू की ठण्डी धारा के स्थान पर यह अस्थायी गर्म धारा के रूप में बहने लगती है।
कभी-कभी अधिक तीव्र होने पर यह समुद्र के ऊपरी जल के तापमान को 10° से० तक बड़ा देती है। उष्ण कटिबन्धीय प्रशांत महासागरीय जल के गर्म होने से भूमण्डलीय दाब व पवन तंत्रों के साथ-साथ हिन्द महासागर में मानसून पवने भी प्रभावित होती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि 1987 में भारत में भयंकर सूखा एल-नीनो का ही परिणाम था।
दक्षिणी दोलन (southern oscillation)
दक्षिणी दोलन मौसम विज्ञान से संबंधित वायुदाब में होने वाले परिवर्तन का प्रतिरूप है, जो हिन्द व प्रशांत महासागरों के मध्य प्राय: देखा जाता है। ऐसा देखा गया है कि जब वायुदाब हिन्द महासागर में अधिक होता है तो प्रशान्त महासागर पर यह कम होता है अथवा इन दोनों महासागरों पर वायु दाब की स्थिति एक-दूसरे के उलट होती है।
जब शीतकालीन वायुदाब प्रशान्त महासागरीय क्षेत्र पर अधिक होता है तथा हिन्द महासागर पर कम होता है तो भारत में दक्षिण पश्चिमी मानसून अधिक शक्तिशाली होता है। इसके विपरीत परिस्थिति में मानसून के कमजोर होने की सम्भावना अधिक होती है।
Test Your Knowledge with MCQs
1. भारत की जलवायु को कौन सा प्रमुख भौगोलिक कारक सबसे अधिक प्रभावित करता है?
a) अक्षांशीय विस्तार
b) जनसंख्या घनत्व
c) औद्योगिकीकरण
d) सांस्कृतिक विविधता
2. भारत के दक्षिणी भाग की जलवायु पर सबसे अधिक प्रभाव किसका होता है?
a) कर्क रेखा
b) हिमालय पर्वत
c) पश्चिमी विक्षोभ
d) हिन्द महासागर
3. भारत में ‘वर्षा छाया’ क्षेत्र का निर्माण किस कारण से होता है?
a) पश्चिमी विक्षोभ
b) हिमालय पर्वत
c) अरावली पर्वत
d) पश्चिमी घाट
4. भारत में शीतकालीन वर्षा किसके कारण होती है?
a) दक्षिण-पश्चिमी मानसून
b) उत्तरी जेट वायुधारा
c) पश्चिमी विक्षोभ
d) दक्षिणी दोलन
5. भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें किस दिशा से आती हैं?
a) उत्तर-पश्चिम से
b) उत्तर-पूर्व से
c) दक्षिण-पूर्व से
d) दक्षिण-पश्चिम से
6. एल-नीनो प्रभाव भारत की जलवायु को किस प्रकार प्रभावित करता है?
a) मानसून की शुरुआत को विलंबित करता है
b) गर्मी की लहरों को बढ़ाता है
c) अधिक बर्फबारी लाता है
d) सम तापमान बनाए रखता है
7. भारत में मानसून के अचानक विस्फोट का कारण क्या है?
a) पश्चिमी विक्षोभ
b) उत्तरी जेट वायुधारा
c) ऊपरी वायु परिसंचरण
d) दक्षिणी दोलन
8. कौन सा पर्वत भारत के उत्तरी भाग को मध्य एशिया की ठंडी पवनों से बचाता है?
a) अरावली
b) पश्चिमी घाट
c) हिमालय
d) विंध्याचल
9. भारत के पूर्वी तट पर शीतकालीन वर्षा का प्रमुख कारण क्या है?
a) पश्चिमी विक्षोभ
b) उत्तरी जेट वायुधारा
c) दक्षिणी-पश्चिमी मानसून
d) उत्तर-पूर्वी मानसून
10. भारत की किस भौगोलिक विशेषता के कारण यहाँ उष्ण कटिबंधीय मानसूनी जलवायु पाई जाती है?
a) कर्क रेखा का विस्तार
b) हिमालय पर्वत
c) पश्चिमी विक्षोभ
d) हिन्द महासागर
उत्तर:
- a) अक्षांशीय विस्तार
- d) हिन्द महासागर
- d) पश्चिमी घाट
- c) पश्चिमी विक्षोभ
- d) दक्षिण-पश्चिम से
- a) मानसून की शुरुआत को विलंबित करता है
- c) ऊपरी वायु परिसंचरण
- c) हिमालय
- d) उत्तर-पूर्वी मानसून
- b) हिमालय पर्वत
FAQs
कर्क रेखा भारत को लगभग दो बराबर भागों में बांटती है। इसका दक्षिणी भाग उष्ण कटिबंध में और उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबंध में स्थित है, जिससे दक्षिणी भाग में ऊँचा तापमान और उत्तरी भाग में शीतकाल में कम तापमान रहता है।
समुद्र से निकटता वाले क्षेत्रों की जलवायु सम होती है, जबकि तट से दूर स्थित भीतरी भागों की जलवायु अति विषम या महाद्वीपीय होती है। उदाहरण के लिए, तटीय क्षेत्रों में दैनिक व वार्षिक तापांतर अधिक नहीं होता, जबकि भीतरी भागों में दैनिक व वार्षिक तापांतर अधिक देखने को मिलता है।
हिमालय पर्वत उत्तर की ओर से आने वाली ठंडी और शुष्क पवनों को भारत में प्रवेश करने से रोकता है, जिससे भारत की जलवायु शीत व शुष्क न होकर उष्ण कटिबंधीय रह जाती है। यह पर्वत श्रेणी दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के लिए अवरोध बनती है, जिससे उत्तरी भारत में वर्षा पर्याप्त वर्षा होती है।
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