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विश्व के दूसरे विकासशील देशों की तरह भारत में भी हरित क्रान्ति ने अर्थव्यवस्था को काफी हद तक प्रभावित किया है। हरित क्रान्ति के महत्वपूर्ण प्रभाव निम्नलिखित हैं :
हरित क्रान्ति के प्रभाव (Effects of Green Revolution)
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि (Increase in Agricultural Production)
1967-68 में हरित क्रान्ति शुरू होने के बाद कृषि उपजों, विशेषकर खाद्यान्नों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली। खाद्यान्नों में भी मुख्य रूप से गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा तथा मक्का की उपज बढ़ाने के लिए अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग किया गया। अतः 1967 के बाद हरित क्रान्ति का मुख्य उद्देश्य ‘अनाज क्रान्ति’ लाना हो गया (From 1967 onwards, the Green Revolution aimed at bringing about a Grain Revolution.)
ऊपर बताए गए पांच खाद्यान्नों में भी गेहूं का उत्पादन सबसे अधिक बढ़ा। 1966-67 (74.23 मिलियन टन) से 2020-21 (308.65मिलियन टन) तक खाद्यान्नों के उत्पादन में लगभग पांच गुना की वृद्धि हुई जबकि इसी समय अवधि में गेहूँ के उत्पादन (11.39 मिलियन टन से 109.52 मिलियन टन) में लगभग दस गुना वृद्धि देखने को मिली। इसी कारण प्रायः यह कहा जाता है कि भारत में हरित क्रान्ति मुख्यतः ‘गेहूँ क्रान्ति’ है।
2. किसानों की समृद्धि (Prosperity of Farmers)
हरित क्रान्ति से कृषि उत्पादन में बढोतरी होने के कारण किसानों की आर्थिक दशा में काफी सुधार देखने को मिला औरकिसान भी समृद्धि के रास्ते पर अग्रसर हुए। हालांकि, हरित क्रान्ति से बड़े किसानों को सबसे अधिक लाभ हुआ।
3. खाद्यान्नों के आयात में कमी (Reduction in Import of Foodgrains)
हरित क्रान्ति से खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ा जिससे उनके आयात में भारी कमी देखने को मिली। वर्तमान में तो हम खाद्यान्नों का निर्यात भी करते हैं। प्रो० दन्तेवाला के अनुसार, “हरित क्रान्ति ने साँस लेने का समय दिया है। इसके फलस्वरूप खाद्यान्न की कमी की चिन्ता से छुटकारा मिलेगा तथा नियोजकों का ध्यान भारत की योजनाओं की और लगेगा।”
4. पूँजीवादी खेती (Capitalistic Farming)
हरित क्रान्ति से पूरा लाभ उठाने के लिए विभिन्न प्रकार की मशीनों, उर्वरकों, उन्नत बीजों आदि का प्रयोग किया जाता है जिसके लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। इससे कृषि में पूँजीवाद को बढ़ावा मिला। दस हेक्टेयर से अधिक भूमि रखने वाले किसानों के पास पर्याप्त आर्थिक साधन होते हैं, जिससे ये कृषि में पूंजी लगा सकते हैं।
5. लाभ का पुनर्निवेश (Ploughing Back of Profits)
हरित क्रान्ति से किसानों की आय में वृद्धि हुई और किसानों ने अपनी अतिरिक्त आय का अधिकांश भाग कृषि में सुधार करने में खर्च किया। इससे कृषि में लाभ का पुनर्निवेश सम्भव हो सका। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के एक अध्ययन से पता चलता है कि किसान अपनी पारिवारिक आय का गभग 55% भाग कृषि के विकास में पुनर्निवेश कर रहे हैं।
6. उद्योगों का विकास (Development of Industries)
हरित क्रान्ति के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की मशीनें (जैसे-ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रैशर, कम्बाइन, डीजल इंजन, सेट, आदि) तथा उर्वरक (जैसे-नाइट्रोजन, फास्फेट, पोटाश, आदि) बड़े पैमाने पर प्रयोग किए जाते हैं। अतः इन वस्तुओं के निर्माण उद्योग विकसित होते गए। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में इन उद्योगों ने उल्लेखनीय उन्नति की है।
7. मूल्यों पर प्रभाव(Effect on Prices)
तृतीय पंचवर्षीय योजना में मूल्यों, विशेषतः कृषि उपजों के मूल्यों में तीव्र गति से वृद्धि हुई। परन्तु हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप कृषि-उपजों के मूल्यों में वृद्धि की गति कुछ कम हुई। सन् 1961-62 में मूल्य सूचकांक 100 रखा गया था जो बढ़ाकर 1967-68 में 167 हो गया। परन्तु 1968-69 में यह घटकर 165 रह गया। 1970-71 में यद्यपि मूल्य सूचकांक में 1968-69 की अपेक्षा 8.7% की वृद्धि हुई तथापि खाद्यान्नों के मूल्य सूचकांक में 0.1 प्रतिशत की कमी हुई। 1972-73 में यह कभी 2.5 प्रतिशत हो गई।
1974-75 में इसमें 2.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 1986-87 में मूल्य सूचकांक 7.8 प्रतिशत बढ़ गए। अतः स्पष्ट है कि हरित क्रान्ति ने अपने आरम्भिक वर्षों में मूल्यों को अधिक बढ़ने से रोकने में सहायता की।
8. ग्रामीण रोजगार पर प्रभाव (Impact on Rural Employment)
हरित क्रान्ति के अन्तर्गत जहाँ एक और मशीनों के प्रयोग से बेरोजगारी बढ़ने का भय उत्पन्न हो गया, वहीं दूसरी ओर वर्ष में एक से अधिक फसले होने तथा उर्वरकों के अधिकाधिक प्रयोग से मजदूरी की माँग बढ़ने लगी। इससे ग्रामीण रोजगार की प्रकृति तथा उसकी माँग पर प्रभाव पड़ा।
पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में भू-स्वामियों को फसलों की बुवाई तथा कटाई के समय श्रमिकों की कमी महसूस होने लगी है। परन्तु धीरे-धीरे इस कमी को मशीनों के अधिकाधिक प्रयोग से पूरा करने के प्रयास किए जा रहे हैं। अतः हरित क्रान्ति के फलस्वरूप ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी बढ़ने की सम्भावना हो सकती है।
9. किसानों की विचाराधारा में परिवर्तन (Change in the Attitude of Farmers)
भारतीय किसान प्राचीन काल से ही अनपढ़, रूढ़िवादी तथा अंधविश्वासी रहा है। यह कृषि के पुराने ढंग ही अपनाता रहा और अपनी निर्धनता तथा अज्ञानता को अपने दुर्भाग्य का परिणाम मात्र समझता रहा। परन्तु हरित क्रान्ति ने भारतीय किसान की विचारधारा में मूलभूत परिवर्तन किए। जिस समझदारी से किसानों ने नई कृषि-पद्धति को अपनाया, उससे यह भ्रम दूर हो गया है कि भारतीय किसान नए विचारों तथा तकनीकी को नहीं अपना पाएँगे।
बुल्फ साडेजिन्सकी के शब्दों में, “जहाँ कहीं भी नई तकनीकी मिली है, किसी श्री किसान ने उसके प्रभाव से इन्कार नहीं किया। उत्तम कृषि विधियों तथा उच्च जीवन स्तर की इच्छा केवल गिने-चुने बड़े किसानों में ही नहीं बढ़ रही, बल्कि यह इच्छा असंख्य छोटे किसानों में भी बढ़ रही है जो अभी फल की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
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