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एच.जी. चैम्पियन के अनुसार भारतीय वनों का वर्गीकरण (Indian Forests Classification by H.G. Champion)

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एच.जी. चैम्पियन के अनुसार भारतीय वनों का वर्गीकरण (Indian Forests Classification by H.G. Champion)

एच.जी. चैम्पियन ने भारतीय वनों को निम्नलिखित 11 वर्गों में विभाजित किया है:

उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests)

  • उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन भारत के अत्यधिक आर्द्र तथा उष्ण भागों में मिलते हैं। इन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा 200 सेमी० से अधिक तथा सापेक्ष आर्द्रता 70% से अधिक होती है। 
  • ये वन उत्तर-पूर्वी भारत, पश्चिमी घाट के कुछ भागों, अंडमान तथा निकोबार द्वीप, ऊपरी असम, पूर्वी हिमालय के निचले ढालों में, उड़ीसा, हिमालय के पादगिरि, भाबर तथा तराई प्रदेशों में पाए जाते हैं। 
  • उच्च आर्द्रता तथा तापमान के कारण ये वन बड़े सघन तथा ऊंचे होते हैं। विभिन्न जाति के वृक्षों के पत्तों के गिरने का समय भिन्न होता है जिस कारण ये वन सारा साल हरे दिखाई देते हैं।
  • इन वनों में लम्बे वृक्ष (30 से 60 मीटर), एइफाइट, परजीवी, लिआनस तथा बेंत पाए जाते हैं तथा ये वन ऊपर से देखने पर कालीन जैसा प्रतीत होते हैं। 
  • इनमें सूर्य का प्रकाश भूमि तक कठिनाई से पहुँच पाता है। अतः इन वृक्षों में सूर्य का प्रकाश प्राप्त करने की होड़-सी लगी रहती है। अत: यहां वृक्ष अधिक लम्बे होते हैं।
  • घने वनों की गहरी छाया के चलते धरातल पर घासों की कमी होती है। 
  • यहाँ बेंत, ताड़, बाँस, फर्न तथा लताएँ पाई जाती हैं, जिसके चलते यहाँ पारगमन (आना-जाना) अत्यन्त मुश्किल होता है। 
  • इन वनों में पाई जाने वाली कुछ प्रमुख जातियाँ हैं – सफेद देवदार, तून, धूप, पैलनकीनस, मेसुआ, कोलोफाइलम. होपिया, बेंत, गुर्जन, चैपलास, अगोर, मुली तथा बाँस आदि।
  • ये वन आर्थिक दृष्टि से अधिक उपयोगी नहीं है। इसका कारण इन वनों की लकड़ी सख्त है और एक ही स्थान पर विभिन्न प्रकार के वृक्ष उगते हैं। इसके अतिरिक्त सघन वन होने के कारण परिवहन की सुविधाएं भी सीमित हैं।
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पश्चिमी घाट के उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन

उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन (Tropical Moist Deciduous Forest)

  • उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन मानसून वन हैं, जहाँ सागौन (टेकटोना ग्रैन्डिस) तथा साल (सखुआ-शोरिया रोबुस्टा) प्रमुख जातियाँ हैं।
  • ये वन देश के उन सभी भागों की प्राकृतिक वनस्पति हैं, जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 100 से 200 से.मी. के बीच होती है। 
  • उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन सहाद्रि (पश्चिमी घाट), प्रायद्वीप के उत्तर-पूर्वी भाग में तथा हिमालय के पादगिरि में पाए जाते हैं। 
  • यहां ऊँचे सागौन के वृक्ष पाए जाते हैं, जहाँ सखुआ, बाँस तथा झाड़ियाँ इसके नजदीक विकसित होकर झुरमुट (thicket) का निर्माण करते हैं। 
  • इन वनों में सागौन, सखुआ, चन्दन (सेंटलम एल्बम), शीशम (दलबर्जीया शीशो), हुर्रा (टर्मीनेलिया चेबुला) तथा खैर (एकेशिया कैटीचू) आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।
  • प्रमुख पेड़ साल, सागवान, शीशम, चन्दन, आम आदि हैं। यहां पेड़ों की ऊँचाई 30 से 45 मीटर होती है। 
  • इन वनों के पेड़ ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ में अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। इसलिए ये पतझड़ के वन कहलाते हैं।
  • ये इमारती लकड़ी प्रदान करते हैं, जिससे इनका आर्थिक महत्त्व अधिक है। 

उष्णकटिबंधीय कटीले वन (Tropical Thorny Forests)

  • उष्णकटिबंधीय कटीले वन आर्द्र पर्णपाती वन का एक निम्नकृत रूप है। 
  • ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 75 से 100 से.मी. के बीच होती है तथा औसत तापमान 16° से 22.5° सेंटिग्रेड के बीच होता है। 
  • ये वन प्रायद्वीपीय भारत, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, कच्छ, मध्य प्रदेश तथा हिमालय के पादगिरि में पाए जाते हैं। 
  • इन वनों के मुख्य वृक्ष हैं, बबूल, जंगली ताड़, यूफॉरबिआस, जहाद खैर, कोक्को, धामन इरून्झा, कैक्टस, कान्जु तथा पलास।

उपोष्ण पर्वतीय वन (Subtropical Montane Forests)

  • उपोष्ण पर्वतीय वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 100 से 200 से.मी. के बीच होती है तथा तापमान 15° से 22° सेंटिग्रेड के बीच होता है। 
  • ये वन उत्तर-पश्चिमी हिमालय (लद्दाख तथा कश्मीर को छोड़कर), हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश तथा उत्तर-पूर्वी पर्वतीय राज्यों के ढालों पर पाए जाते हैं। 
  • चीड़ (पाइन) इस वन का सबसे प्रमुख वृक्ष है लेकिन चौड़े पत्तों वाले वृक्ष भी इस प्रदेश में पाए जाते हैं। 
  • वृक्षों की ओक (बांज), जामुन तथा रोडोडेन्ड्रोन इस वन में पाई जाने वाली अन्य जातियाँ हैं।
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शुष्क पर्णपाती वन (Dry Deciduous Forests)

  • शुष्क पर्णपाती वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 100 से 150 से.मी. के बीच होती है।
  • इन वनों की विशेषता बन्द तथा असामान्य वितान है। 
  • घासों तथा लताओं के विकास के लिए धरातल तक पर्याप्त प्रकाश पहुँचता है। 
  • अकाशिया (बबुल), जामुन, मोदेस्ता, तथा पिस्तासिया यहाँ के मुख्य वृक्ष हैं। इन वनों में घास तथा झाड़ियाँ बरसात के मौसम में देखे जा सकते हैं।

हिमालय के आर्द्र वन (Himalayan Moist Forests)

  • ये वन जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड तथा उत्तर बंगाल के उत्तरी पर्वतीय भाग में पाए जाते हैं। 
  • आर्द्र शीतोष्ण वन उस प्रदेश में पाए जाते हैं जहाँ ऊँचाई 1000 से 2000 मीटर के बीच होती है। 
  • ये शंकुधारी किस्म गहरे हरे शिखाधर भूआकृति के पट्टी के रूप में पाए जाते हैं। 
  • यहाँ पाई जाने वाली प्रमुख किस्में हैं-ओक (बांज), चेस्टनट, पाइन (चीड़), साल, झाड़ियाँ तथा पौष्टिक घासें।

हिमालय के शुष्क शीतोष्ण वन (Dry Temperate Forests of the Himalayas)

  • ये वन जम्मू एवं कश्मीर, लाहुल, चम्बा, किन्नौर (हिमाचल प्रदेश) तथा सिक्किम में पाए जाते हैं। 
  • ये वन प्रमुख रूप  शंकुधारी वन हैं जहाँ झाड़ियाँ भी देखी जा सकती हैं। 
  • वृक्ष की प्रमुख किस्म हैं – देवदार, ओक (बांज), चिलगोजा, ऐश (अंगू) मैपिल, ऑलिव (जैतून), मलबरि (शहतूत), विलो (भिसा), केलटिस तथा पैरोसिया ।

पर्वतीय आर्द्र शीतोष्ण वन (Montane Wet Temperate Forests)

  • ये वन पूरे हिमालय प्रदेश में जम्मू एवं कश्मीर से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक 1500 मीटर से 3300 मीटर की ऊँचाई के बीच पाए जाते हैं, इन प्रदेशों में तापमान 12° से 15° सेंटिग्रेड के बीच होता है। 
  • ओक, देवदारू, स्प्रूस (पिसिया), देवदार (सेडरस देवदारा), मैगनोलिया (मैगनोलिया ग्लेनडीफोरा), केलटिस, चेस्टनट, कैमेसाइपेरिस, मैपल, सिल्वर फर (एबिइस अल्बा), केल तथा यू इस प्रदेश में पाए जाते हैं।
  •  इन वनों में झाड़ियाँ, लताएँ तथा पर्णांग (फर्न) पाए जाते हैं। 
  • इन वनों की लकड़ी टिकाऊ होती हैं।
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अल्पाईन तथा अर्ध-अल्पाईन वन (Alpine and Subalpine Forests)

  • अल्पाईन वन हिमालय के उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जिसकी ऊँचाई 2500 से 3500 मीटर के बीच होती है। 
  • छोटे तथा कम ऊँचे शंकुवृक्ष एवं गर्मी के मौसम में हरे पोषक घासें इस प्रदेश की विशेषता हैं। 
  • इन वनों में पाए जाने वाले वृक्ष हैं – कैल, स्प्रूस, यू, देवदारू, बर्च (भूर्ज), हनिसकल, अटॅमेसिया, पेटिनशिला तथा छोटे झाड़ियाँ ।

मरुस्थल वनस्पति (Desert Vegetation)

  • मरुस्थल वनस्पति अरावली के पश्चिम में राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात तक सीमित हैं। 
  • यहां औसत वार्षिक वर्षा 50 से.मी. से कम होती है। 
  • इस प्रदेश में दैनिक तथा वार्षिक तापान्तर अधिक होता है। 
  • अकेशिया, कैक्टस, झार, खेजरा, कान्जू तथा खजूर इस प्रदेश में पाए जाते हैं।

ज्वारीय (कच्छ वनस्पति) (Tidal (Mangrove)

  • ज्वारीय वन बंगाल की खाड़ी के तटीय प्रदेशों में पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु में तथा दूसरी ओर कच्छ, कठियावाड़ तथा खम्भात की खाड़ी के तटीय प्रदेशों में पाए जाते हैं। 
  • इन वनों का केन्द्रीयकरण उन प्रदेशों में अधिक है जहाँ ज्वार-भाटा अधिक सक्रिय है। 
  • मैंग्रोव जिसकी ऊँचाई 30 मीटर तक होती है, इस प्रदेश का सबसे प्रमुख वृक्ष है। इसका उपयोग ईंधन के लिए किया जाता है। 

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