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Table of contents
- भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषताएँ (Characteristics of Indian Agriculture)| Bhartiya Krishi ki Visheshtaen
- जीवन निर्वाहक कृषि
- भारतीय कृषि पर जनसंख्या का दबाव
- खाद्यान्नों की प्रधानता
- फसलों की विविधता
- भौगोलिक क्षेत्र
- छोटा भू-जोत आकार
- पारंपरिक खेती की प्रधानता
- भारवाही पशुओं का उपयोग
- वर्षा पर निर्भरता
- चारा फसलों पर कम ध्यान
- सरकार द्वारा उपेक्षित
- नवीनीकरण एवं सुधार की धीमी गति
- बुनियादी सुविधाओं की कमी
- कृषि भूमि उपयोग नीति का अभाव
- कृषि के प्रति नकारात्मक सोच
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इस लेख में आप भारतीय कृषि की विभिन्न विशेषताओं (Characteristics of Indian Agriculture) के बारे में विस्तार से जानेंगे।
हम सब जानते हैं कि भारत मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान देश है जिसमें लोगों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में कृषि की प्रमुख भूमिका रहती है। कृषि का प्रभाव इस हद तक देखा जा सकता है कि राजनीतिक दल का भविष्य और सरकार की सफलता भी कृषि उत्पादन की मात्रा और जन साधारण के लिए सस्ते दाम पर अनाजों की उपलब्धता पर निर्भर करती है। आइए अब हम भारतीय कृषि की कुछ प्रमुख विशेषताओं पर नजर डालते हैं।

भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषताएँ (Characteristics of Indian Agriculture)| Bhartiya Krishi ki Visheshtaen
जीवन निर्वाहक कृषि
भारतीय कृषि निर्वाहक किस्म की है जिसका मुख्य उद्देश्य देश की सम्पूर्ण आबादी की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। यहाँ किसान फसलों का चयन राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों के लिए अतिरिक्त उत्पादन के बजाय अपनी घरेलू आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर करते हैं। हालांकि वर्तमान में भारतीय कृषि व्यापारिक और बाजारोन्मुख हो रही है जिसमें देश के विकसित क्षेत्रों और बड़े कृषकों की प्रमुख भूमिका है।
भारतीय कृषि पर जनसंख्या का दबाव
भारतीय कृषि पर जनसंख्या का बड़ा दबाव है। देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या कृषि एवं इससे जुड़े व्यवसायों से अपना गुजरा करती है। देश की जनसख्या तीव्र गति, लगभग प्रतिवर्ष 1.7 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है जिसके कारण प्रतिव्यक्ति कृषि भूमि का औसत आकार लगातार कम होता जा रहा है (1951 में 0.75 हे० से 1971 में 0.29 हे० एवं 2001 में 0.14 हे० था और विश्व का औसत 4.5 हे० है। इससे कृषि भूमि पर बढ़ते दबाव का सहज अनुमान किया जा सकता है।
खाद्यान्नों की प्रधानता
भारतीय कृषि में मुख्य रूप से खाद्यान्नों का ही उत्पादन किया जाता है, जो कुल कृषि भूमि का 76 प्रतिशत भाग और संपूर्ण कृषि उत्पादन का 80 प्रतिशत भाग प्रदान करते हैं। इनमें चावल, गेहू, ज्वार-बाजरा, चना,मक्का एवं दालें सम्मिलित है जिससे देश की विशाल आबादी (2021 में लगभग 135 करोड़) को भोजन मिलता है।
फसलों की विविधता
कृषि में फसलों की विविधता पाई जाती है। कभी-कभी तो एक ही खेत में एक साथ चार-पाँच फसलें बोई जाती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि प्रतिकूल(ख़राब) मौसमी दशाओं में कुछ न कुछ उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है। हालांकि इस प्रकार के मिश्रित शस्यन से प्रति हेक्टेयर कृषि उत्पादन घट जाता है।
भौगोलिक क्षेत्र
भारत के सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 54 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है (संयुक्त राज्य अमेरिका 16.3%, जापान 14.9%, चीन 11.8% और कनाडा 4.3%)। यहाँ की जलवायु दशाएँ विशेषकर तापमान वर्ष भर फसलों के उगाने के लिए उपयुक्त है। जनसंख्या के दबाव के कारण मैदानी भागों में तो वनों का लगभग सफाया ही कर दिया गया है। कृषित क्षेत्र अपने सर्वोच्च स्तर को पहुँच गया है और कुछ क्षेत्रों में तो इसमें घटाव की प्रवृत्ति देखी जा रही है।
छोटा भू-जोत आकार
भौतिक, आर्थिक और सामाजिक कारकों के कारण भू जोतें छोटी, विखंडित और आधुनिक कृषि के उपयुक्त नहीं हैं।
पारंपरिक खेती की प्रधानता
देश में कुछ भागों में ही गहन कृषि की जाती है। अन्यत्र केवल पारंपरिक खेती की ही प्रधानता है। यही कारण है कि विश्व के अन्य देशों की तुलना में यहाँ प्रति हेक्टेयर उपज कम है। और कुल कृषि उत्पादन संतोषप्रद और लाभदायक नहीं है।
भारवाही पशुओं का उपयोग
भारतीय कृषि में बैल, भैंसा एवं ऊँट आदि भारवाही पशुओं का उपयोग किया जाता है। इसमें जुताई, बुआई, निराई, कीटनाशकों के छिड़काव, कटाई, दवाई आदि कार्यों में मानव श्रम का भरपूर उपयोग किया जाता है। वर्तमान में समृद्ध किसानों में मशीनों का प्रयोग बढ़ रहा है।
वर्षा पर निर्भरता
भारतीय कृषि अधिकतर वर्षा पर आधारित है। वर्षा की अनिश्चितता का कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह अत्यन्त चिन्ता का विषय है कि पांच दशक के नियोजित विकास के बावजूद केवल 41.2 प्रतिशत कृषित क्षेत्र को ही सींचा जा सका है शेष अभी भी वर्षा देवता को कृपा पर आश्रित है। यदि समस्त कृषि को सिंचाई की सुविधा दे दी जाय तो कृषि उत्पादन आसानी से दुगुना किया जा सकता है।
चारा फसलों पर कम ध्यान
भारतीय कृषि में चारा फसलों पर (कृषित क्षेत्र का 4 प्रतिशत) बहुत कम ध्यान दिया जाता है। इसके अतिरिक्त चरागाहों के अभाव से डेरी फार्मिंग पर बुरा असर पड़ा है। यहाँ विश्व में मवेशियों की सबसे बड़ी संख्या पाई जाती है परन्तु पशु उत्पादों में इसका स्थान नगण्य है।
सरकार द्वारा उपेक्षित
भारतीय कृषि सरकार की उपेक्षा और सौतेले व्यवहार का शिकार रही है। आज भी ग्रामीण अंचल के बजाय उद्योगों और नगरीय क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। अभी भी कृषि उत्पादों के लिए लाभकारी मूल्य, जोतने वाले का भूमि पर स्वामित्व, फसल बीमा आदि के लक्ष्य नहीं प्राप्त किए जा सके हैं। हालांकि सरकारें इसके लिए लगातार प्रयासरत हैं।
नवीनीकरण एवं सुधार की धीमी गति
कुछ प्रगति के बावजूद आज भी देश की कृषि अर्थव्यवस्था पारंपरिक है। हजारों वर्ष पहले शुरू की गई आत्मभरित, जाति आधारित, जमीन्दारी अर्थव्यवस्था में नवीनीकरण एवं सुधार की गति बहुत धीमी है।
बुनियादी सुविधाओं की कमी
भारतीय कृषि छोटी भूजोतों, अवैज्ञानिक कृषि पद्धति, सिंचाई की कम सुविधाओं, रासायनिक, जैव एवं प्राकृतिक उर्वरकों के कम उपयोग, नाशी जीव एवं बीमारियों से भेद्यता, कृषि उपजों के कम लाभकारी मूल्य, कृषकों की गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी ऐसी अनेकों समस्याओं से ग्रस्त है।
कृषि भूमि उपयोग नीति का अभाव
भारतीय कृषि में राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर पर सुस्पष्ट कृषि भूमि उपयोग नीति का अभाव पाया जाता है। किसी फसल का चुनाव किसानों की मर्जी पर है। इससे अकसर विभिन्न फसलों के उत्पादन की अतिरेकता या कमी देखी जाती है। बाजार एवं भंडारण सुविधाओं के अभाव, बिचौलियों और दलालों के कारण किसानों को कृषि उत्पादन का सही मूल्य नहीं मिल पाता है।
कृषि के प्रति नकारात्मक सोच
भारत में कृषि को सम्मानजनक पेशा नहीं माना जाता है। यही कारण है कि नवयुवक कृषि के बजाय छोटी सरकारी नौकरी को अधिक महत्व देते हैं। कृषि से अर्जित लाभ को धनी किसान, गैर कृषि व्यवसायों में लगाते हैं। गाँवों से लगातार मानव और आर्थिक संसाधनों का पलायन नगरों को हो रहा है जहाँ मलिन बस्तियाँ बढ़ती जा रही हैं।
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