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इस लेख में आप ग्रिफिथ टेलर एवं ममफोर्ड द्वारा बताई गई नगरीय विकास की अवस्थाओं (Stages of Urbanization) के बारे में जानेंगे।
नगरीय विकास की अवस्थाएं (Stages of Urbanization)
वैसे तो नगर के विकास चक्र का वैज्ञानिक अध्ययन विभिन्न विद्वानों द्वारा किया गया है। लेकिन पैट्रिक गेडिस, ममफोर्ड तथा ग्रिफिथ टेलर के कार्य उन सब में महत्वपूर्ण माने गए हैं। यहां हम ग्रिफिथ टेलर तथा ममफोर्ड के अनुसार बताई गई नगरीय विकास की अवस्थाओं का ही अध्ययन करेंगे।
पैट्रिक गेडिस ने नगर के विकास एवं पतन को 6 अवस्थाओं में वर्णित किया है। ग्रिफिथ टेलर ने 1953 में बताया कि नगरों का भी एक जीवन चक्र होता है। प्रत्येक नगर अपने आप में किसी विशिष्ट काल खंड की सांस्कृतिक अवस्था और सभ्यता की दशाओं को प्रकट करता है। लेकिन यह भी संभव है कि कोई नगर निम्न में से किसी एक भी अवस्था से होकर ना गुजरे।
ग्रिफिथ टेलर के अनुसार नगरीय विकास की अवस्थाएं
ग्रिफिथ टेलर ने नगरीय विकास की सात अवस्थाएं बताई हैं, जिनका वर्णन नीचे किया गया है:-
पूर्व शैशवावस्था (sub-infantile stage)
नगरीय विकास की इस अवस्था में एक गली या किसी सड़क के दोनों तरफ मकान व दुकानें बनने लग जाते हैं। यह भी देखा जाता है कि लोग मकान के अंदर ही दुकानें बन जाती है। ऐसे नगर प्राय: के बस स्टैंड तथा रेल मार्गों के आसपास बनने लगते हैं।
शैशवावस्था (infantile stage)
इस अवस्था में सड़कों तथा गलियों का कुछ सुधार हुआ रूप दिखाई देने लग जाता है तथा नगरीय बस्ती बढ़ने लग जाती है हमारे देश में मुख्य मार्गों के दोनों ओर स्थित ग्रामीण बस्तियां इसका स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
बाल्यावस्था (juvenile stage)
नगरीय विकास की तीसरी अवस्था में मुख्य सड़क के दोनों किनारो पर गलियों का निर्माण होना शुरू हो जाता है। इन गलियों के बनने का प्रमुख कारण वहां पर बने मकानों में रहने वाले लोगों के आने-जाने की सुविधा के कारण होता है।
किशोरावस्था (adolescent stage)
इस अवस्था में विभिन्न प्रकार के मकान दिखाई देने लग जाते हैं तथा नगर का व्यापारिक क्षेत्र अपना अलग से स्थान बना लेता है।
प्रौढ़ावस्था (mature stage)
नगरीय विकास की इस पांचवी अवस्था में प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अलग पहचान दिखाई देने लग जाती है। इस अवस्था में रिहायशी क्षेत्र, व्यापारिक क्षेत्र तथा औद्योगिक क्षेत्र काअलग-अलग रूप स्पष्ट रूप से दिखाई देने लग जाता है। मकान की ऊंचाई या कहें मंजिलें बढ़ने लगती है।
उत्तर प्रौढ़ावस्था (late-mature stage)
इस अवस्था में नगर का विकास योजना के अनुसार होने लगता है। मकान को बनाने का कार्य निर्धारित सड़कों के सहारे ही किया जाता है। इसी प्रकार उद्योगों का विकास भी एक निश्चित स्थान पर ही होने लगता है तथा मकान को नए-नए डिजाइनों के आधार पर तैयार किया जाने लग जाता है। इस श्रेणी में आने वाले प्रमुख नगरों में हम दिल्ली, मुंबई, कानपुर, लंदन, मास्को आदि को शामिल कर सकते हैं।
वृद्धावस्था (senile stage)
यह नगरीय विकास की अंतिम अवस्था है। इस अवस्था में नगर उजड़ने लगता है। कुछ इलाके तो जन-शून्य होने लगते हैं। ज्यादातर लोगों की भीड़ केवल मुख्य सड़क के आसपास ही दिखाई देने लग जाती है। इस श्रेणी में चित्तौड़, कन्नौज, फर्रुखाबाद आदि भारतीय नगरों को शामिल किया जा सकता है। वैश्विक स्तर पर ईरान के इरफान, अफ्रीका के थेविस तथा मध्य एशिया के समरकंद नगर को शामिल किया जा सकता है।
ममफोर्ड के अनुसार नगरीय विकास की अवस्थाएं
ममफोर्ड ने अपनी पुस्तक ‘द कल्चर आफ सिटीज’ में सामाजिक वातावरण को ध्यान में रखते हुए नगरों के विकास की 6 अवस्थाएं बताई हैं जिनका वर्णन यहां किया जा रहा है
इयोपोलिस (eopolis)
विकास की यह प्रथम अवस्था मानव के आदिम समाज से हमारा परिचय कराती है, जिसमें पशुपालन एवं कृषि संबंधी कार्यों का विकास प्रारंभ होता हुआ दिखाई देता है। इस अवस्था में हमें पाषाण युगीन सभ्यता एवं संस्कृति देखने को मिलती है तथा केंद्रीय एवं बड़े गांवों का विकास भी इस अवस्था में दिखाई देता है। इन बड़े गांव में शिक्षा, संस्कृति, कला आदि का भी विकास हुआ होता है। इन गांवों को ग्रागर भी कहा जाता है।
पोलिस (polis)
पोलिस शब्द का अर्थ होता है कस्बा। नगरीय विकास की इस द्वितीय अवस्था में बड़े गांव एक कस्बे का रूप धारण कर लेते हैं, जहां पर व्यापारिक क्रियाकलापों का विकास भी होना प्रारंभ हो जाता है तथा साप्ताहिक बाजार लगने लगते हैं। इस अवस्था में श्रम-विभाजन का भी विकास हो जाता है। एक परिवार एक प्रकार का कार्य करने लग जाता है तथा प्रत्येक परिवार अपने-अपने व्यवसाय में महारत हासिल कर लेता है।
इस द्वितीय अवस्था में मनोरंजन तथा शिक्षा कार्यों का प्रारंभ हो जाता है। संगीत कला, चित्रकला आदि कलाओं का भी विकास होना प्रारंभ हो जाता है। भवन एवं शिल्प कला की उन्नति भी देखने को मिलती है। पोलिस तथा गांव के बीच यातायात, संचार और परिवहन द्वारा संपर्क स्थापित होने शुरू हो जाते हैं तथा रिहायशी क्षेत्रों में सडकों एवं गलियों का निर्माण भी प्रारंभ हो जाता है।
मेट्रोपोलिस (metropolis)
नगरीय विकास की इस अवस्था तक पहुंचते-2 नगर अपने आसपास के नगरों से बड़ा हो जाता है। अब नगर अन्य भौतिक सुविधाओं से भी परिपूर्ण स्थान पर बस गए होते हैं, जिससे नगरीय विकास को वहां पर काफी फल मिलता है। इन स्थानों पर यातायात, संचार एवं परिवहन की सुविधा इकट्ठा हो जाने से जनसंख्या ऐसे नगरों तरफ आकर्षित होने लगती है तथा नगर का आकार लगातार बढ़ने लग जाता है।
ऐसे नगरों में विशेषीकृत उद्योगों तथा कलाओं का विकास होने लगता है तथा ऐसे नगर अपने आसपास के क्षेत्र से भी अपना संबंध स्थापित करने लग जाते हैं। उनके आसपास क्षेत्रों से अनाज तथा कच्चा माल इन महानगरों में आना प्रारंभ हो जाता है। विदेशी और अन्य प्रदेशों के विद्यार्थी, विद्वान, वैज्ञानिक आदि का इन महानगरों में आदान-प्रदान होने लग जाता है। ऐसे नगरों में बड़े स्तर पर कारखाने, शिक्षा संस्थान, व्यापारिक एवं वाणिज्यिक संस्थानों की स्थापना हो जाती है। ऐसे महानगरों में आर्थिक प्रतिस्पर्धा बढ़ने से उद्योगपतियों तथा श्रमिकों के बीच संघर्ष शुरू हो जाते हैं।
मैगालोपोलिस (megalopolis)
नगर विकास की इस चौथी अवस्था में नगर अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है। ऐसे नगरों में व्यापार तथा धन-धान्य की वृद्धि से मकान का भारी जमघट देखने को मिलता है। नगर में गंदी बस्तियों का उद्भव हो जाता है। जीवन नारकीय रूप ले लेता है। ऐसे नगरों में पूंजीवादी व्यवस्था का प्रसार, नैतिकता का पतन, शक्ति की पूजा आदि बातों को अधिक महत्व दिया जाने लग जाता है। कला, साहित्य, शिल्प कला, संस्कृति आदि पर धनी वर्ग के लोगों का बोलबाला हो जाता है। नौकरशाही विकसित हो जाती है तथा नगर विराट रूप ले लेता है। ऐसे नगरों में मानव का शोषणयुक्त जीवन विकसित होता हुआ दिखाई देने लगता है।
टायरनोपोलिस (tyranopolis)
टायरनोपोलिस नगरीय विकास की पांचवीं अवस्था है। इस अवस्था में वर्गीय प्रतिस्पर्धा का विकास हो जाता है तथा व्यापार एवं वाणिज्य के क्षेत्र में दस्युवृत्ति पनपने लगती है। गांव, कस्बे, उपनगर तथा निकटवर्ती क्षेत्रों का शोषण प्रारंभ हो जाता है। नगर में खुले स्थान का अभाव देखने को मिलता है। मकानों की कमी, सड़क पर ट्रैफिक की अनियंत्रित भीड़-भाड़ बढ़ जाती है। इस प्रकार के नगरों में अनेक समस्याएं देखने को मिलती है। नगर आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से संकट में आ जाता है।
नैक्रोपोलिस (nacropolis)
यह नगरीय विकास के पतन की अवस्था कहलाती है। इस अवस्था में नगर अपनी अधोगति को प्राप्त कर लेता है। यह पतन किसी ने किसी ऐसे कारण से होता है, जो मानव की शक्ति से भी परे होता है। नगर महामारी युद्ध आदि से प्रभावित होकर विनाश की ओर उन्मुख हो जाता है। ऐसी अवस्था में नगर में सड़के वीरान दिखने लग जाती है तथा चारों ओर खंडहरों के अवशेष दिखाई देने लगते हैं और नगर कब्रिस्तान का स्वरूप ले लेता है। इस अवस्था में नगर अपनी मृत्यु के समीप पहुंचता हुआ नजर आता है।
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