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ग्रामीण बस्तियाँ: अर्थ, परिभाषाएँ तथा प्रकार (Rural Settlements: Meaning, Definitions and Types)

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Table of contents

 ग्रामीण बस्तियों का अर्थ एवं परिभाषाएँ

ग्रामीण बस्ती छोटे आकार की मानवीय बस्ती होती है, जिसके निवासी जल, जंगल और ज़मीन पर मेहनत करके आजीविका कमाते हैं। 

एफ०एस० हडसन (F.S. Hudson) के अनुसार, “ग्रामीण बस्ती से आशय उस बस्ती से है जिसके निवासी अपने जीवनयापन के लिए भूमि विदोहन पर निर्भर करते हैं। अधिकांश ग्रामीण बस्तियों के अधिकांश निवासी कृषि-कार्यों में संलग्न रहते हैं।” 

कृषि-कार्यों के अतिरिक्त ग्रामीण बस्तियों में पशुपालन, मुर्गीपालन, मछली पकड़ना, लकड़ी काटना, वनोत्पाद संग्रह जैसे प्राथमिक -कार्यों पर निर्भर जनसंख्या भी हो सकती है। 

रिचथोफेन (Richthofen) के अनुसार, “ग्रामीण बस्ती परिवारों का वह समूह होता है जो वंश परम्परा द्वारा एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, उनके रीति-रिवाज़ एक-समान हैं और वे एक- जैसी फ़सलों की खेती के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग करने के लिए आपसी सम्बन्ध कायम करते हैं।”

विडाल-डी-ला-ब्लाश (Vidal de la Blache) के अनुसार, “गाँव एक परिवार या वंश से बड़ा जन-समुदाय है।”

गेलेस्की (Galeski) ने स्पष्ट किया कि, “गाँव केवल खेतों का समूह ही नहीं होता, बल्कि यह एक निश्चित सामाजिक इकाई है। गाँव के अपने ही स्थानिक (Spatial), प्रजातीय (Tribal) तथा सांस्कृतिक लक्षण होते हैं जो इसे इसका अस्तित्व प्रदान करते हैं।”

ग्रामीण बस्तियों के प्रकार (Types of Rural Settlements)

बस्तियों के वर्गीकरण का सबसे अधिक ठोस आधार घरों के बीच की दूरी होती है। ग्रामीण घरों की स्थानिक अथवा पारस्परिक दूरी बस्तियों की कुछ विशिष्ट आकृतियों को जन्म देती है। आकृति के आधार पर बस्तियाँ अनेक प्रकार की होती हैं। परन्तु हम यहाँ केवल चार प्रकार की ग्रामीण बस्तियों की चर्चा करेंगे। 

परिक्षिप्त बस्तियाँ (Dispersed Settlements)

इन्हें एकाकी (Isolated) या प्रकीर्ण (Scattered) बस्तियाँ भी कहा जाता है। परिक्षिप्त बस्तियों के प्रमुख लक्षण (Main Features of Dispersed Settlements) निम्नलिखित हैं – 

Types of Rural Settlements: Dispersed Settlements
परिक्षिप्त बस्तियाँ

परिक्षिप्त बस्तियों के प्रमुख लक्षण

  • प्रकीर्ण बस्तियाँ प्रायः पर्वतीय, पठारी तथा उच्च भूमियों के क्षेत्र में बिखरी हुई पाई जाती हैं। ब्लाश ने भी कहा है कि परिक्षिप्त बस्तियाँ उन क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहाँ उच्चावच (Relief) तथा जल-प्रवाह के अपरदन से कृषि भूमि टुकड़ों में बँट जाती है। 
  • ऐसी बस्तियों में दो-तीन घर होते हैं क्योंकि ये बस्तियाँ विरल जनसंख्या वाले प्रदेशों में विकसित होती हैं। 
  • खेत बड़े-बड़े होते हैं। किसान अपने नौकरों, पशुओं तथा कृषि-यंत्रों के साथ अपने खेत पर ही बने आवास में रहता है। नौकरों के लिए उसी घर में अलग-अलग कमरे भी हो सकते हैं। 
  • इन घरों को प्रायः कृषि भूमि या कई बार खाली भूमि अलग करती है। 
  • जब स्वामी तथा नौकरों के मकान बिल्कुल पास-पास होते हैं, तो इससे एक मिली-जुली बस्ती बन जाती है। ऐसी बस्ती को कनाडा संयुक्त राज्य अमेरिका में कृषि-गृह (Farmstead) अथवा वास-गृह (Homestead) कहा जाता है।
  • प्रत्येक फार्म पर एक गोदाम या भण्डार-गृह (Store) होता है जिसमें कृषि यन्त्रों, बीज, खाद व कृषि उपजों को रखा जाता है।
  • इसी फार्म पर पशुशाला, मुर्गीशाला, डेयरी की व्यवस्था तथा मनुष्यों के रहने का स्थान होता है। 
  • कई बार घर के बाहर की ओर एक शाक वाटिका (Kitchen Garden) भी होती है।
  • गंगा के मैदान में कृषि के बड़े-बड़े फार्म एक-दूसरे से दूर बसे हुए हैं। जान-माल को खतरा न होने पर फार्म के स्वामी स्वयं अपने पशुओं एवं कृषि यंत्रों के साथ वहाँ रहते हैं। इन्हें स्थानीय भाषा में ‘कोठा’ या ‘गोठ’ कहते हैं। 

परिक्षिप्त या प्रकीर्ण बस्तियों का वितरण (Distribution of Dispersed Settlements)

भारत में प्रकीर्ण बस्तियाँ हिमालय की ढलानों, उत्तर प्रदेश के तराई व खादर क्षेत्रों, पश्चिमी मालवा पठार, पश्चिमी घाट तथा राजस्थान के पूर्वी व दक्षिणी भागों में पाई जाती हैं। ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी कनाडा, पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका तथा न्यूज़ीलैंड में बिखरी हुई बस्तियाँ पाई जाती हैं। अफ्रीका में भी ऐसी प्रकीर्ण बस्तियाँ खूब पाई जाती हैं। चीन के पर्वतीय प्रदेशों में प्रकीर्ण पुरवे पाए जाते हैं। दक्षिण अमेरिका तथा एशिया के बागानों तथा पशु फार्मों (Ranches) पर ऐसी ही बस्तियों का उद्भव हुआ है। 

परिक्षिप्त बस्तियों के गुण व दोष (Merits and Demerits of Dispersed Settlements)

परिक्षिप्त बस्तियों के गुण व दोष निम्नलिखित हैं:

गुण (Merits)
  • परिक्षिप्त बस्तियों में कृषक व उसके परिवार के सदस्य अपने खेतों तथा पशुओं के निकट रहते हैं। इन्हें प्रतिदिन घर से खेतों में जाने व शाम को वापिस गाँव लौटने में वक्त बर्बाद नहीं करना पड़ता। 
दोष (Demerits)
  • सामाजिक दृष्टिकोण से प्रकीर्ण बस्तियों में रहने वाले परिवारों का अन्य मानव-समाजों से घनिष्ठ संबंध नहीं रह जाता।
  • एकाकी अधिवास सामाजिक व सामुदायिक सुविधाओं के लाभ से वंचित रह जाते हैं।
  • परिक्षिप्त बस्ती में रहने वाले किसान के लिए अपने निकटवर्ती गाँव में रहने वाले अन्य किसानों द्वारा निश्चित की गई फार्म व्यवस्था का अनुसरण करना जरूरी नहीं होता । अतः वह अपने ढंग से काम करते हुए तेजी के साथ खेती में उन्नति कर सकता है। विशेष प्रतिभा वाले किसानों को इससे बहुत लाभ पहुँचता है और वे व्यक्तिगत उन्नति के साथ-साथ देश की आर्थिक उन्नति में भी अपना योगदान दे सकते हैं। 
  • सघन गाँवों में किसानों के अलावा अन्य व्यवसायों के लोग; जैसे बढ़ई, लुहार, नाई, धोबी, कुम्हार, मिस्त्री, पशु- चिकित्सक आदि भी रहते हैं। इससे श्रम-विभाजन का लाभ मिलता है। परिक्षिप्त बस्तियों के निवासी एक-दूसरे से दूर-दूर रहते हैं और केवल अपने व्यवसाय के लोगों से ही मेल-जोल बनाए रखने के कारण अन्य व्यवसायों के लोगों की संगति, सहयोग तथा सेवा से वंचित रह जाते हैं।
  • सघन गाँवों में लोग कृषि-कार्य को टोलियाँ बनाकर करते हैं, जिससे उन्हें श्रम की थकान महसूस नहीं होती। परन्तु परिक्षिप्त बस्ती में रहने वाला कृषि फार्म का स्वामी अकेला ही खेत में काम करता है, जिससे उसके काम में नीरसता आ जाती है और वह श्रम की थकान शीघ्र ही महसूस करने लगता है। 

परिक्षिप्त बस्तियों को प्रोत्साहित करने वाले कारक (Factors Favoring to Dispersed Settlements)-

भौतिक कारक (Physical Factors)

परिक्षिप्त बस्तियों को निम्नलिखित भौतिक कारक प्रभावित करते हैं

  • पर्वतीय उच्चावच (Mountainous Topography): पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि बड़ी सीमित तथा बिखरी हुई होती है। इसलिए खेत बिखरे हुए तथा बस्तियाँ परिक्षिप्त होती हैं।
  • वन (Forests): वनों और जंगलों में कृषि-योग्य भूमि यत्र-तत्र बिखरी हुई होती है। वन में गृह-निर्माण के लिए लकड़ी तथा अन्य निर्माण सामग्री हर स्थान पर मिल जाती है, अतः वनों में रहने वाले लोग कहीं भी अपना घर बना सकते हैं। परिणामस्वरूप वनों में लोग एक स्थान पर एकत्रित होकर नहीं रहते हैं और इस प्रकार परिक्षिप्त बस्तियों का जन्म होता है।
  • दलदली भूमि (Marshy Land): दलदली भूमि में कहीं-कहीं प्राकृतिक उच्च भाग अथवा कृत्रिम रूप से बनाए गए भागों में अधिवास बस जाते हैं। वहाँ पर कृषि-भूमि भी बहुत ही सीमित होती है। अतः अधिवासों का आकार छोटा होता है और वे परिक्षिप्त अधिवास होते हैं। पश्चिम बंगाल में सुन्दरवन में ऐसी ही बस्तियाँ पाई जाती हैं।
  • जल की प्रचुरता (Abundance of Water): जिन क्षेत्रों में पर्याप्त वर्षा हो जाती है और स्थलीय एवं भूमिगत जल पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है, उन क्षेत्रों में कृषकों को विवश होकर जल के स्रोत के निकट नहीं रहना पड़ता । अतः कृषक कहीं भी अपनी सुविधा एवं इच्छा के अनुसार घर बसाकर रह सकता है। इस प्रकार परिक्षिप्त बस्तियों को प्रोत्साहन मिलता है। 
  • बाढ़ (Floods): बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में बाढ़ से बचने के लिए आवास के लिए ऊँचे स्थानों को चुना जाता है। ऐसे स्थल जल-विभाजक, टीले तथा तटबंध आदि होते हैं। इन पर लोग एकाकी रूप में झोंपड़ियाँ या मकान बनाकर रहते हैं और परिक्षिप्त बस्तियाँ बसती हैं। 
मानवीय कारक (Human Factors)

इनमें आर्थिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, जातीय तथा राजनीतिक कारक सम्मिलित हैं। 

  • आर्थिक कारक (Economic Factors):आर्थिक कारक निम्नलिखित हैं-
    • प्रति व्यक्ति कृषि-भूमि (Per Head Agricultural Land): विश्व के जिन देशों में जनसंख्या कम तथा कृषि-भूमि अधिक है, वहाँ पर प्रति व्यक्ति कृषि-भूमि अधिक है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया तथा अर्जेण्टीना में ऐसी ही स्थिति पाई जाती है। इन क्षेत्रों में फार्म बड़े आकार के हैं और कृषक उन्हीं में अपना घर बनाकर रहता है। अतः इन विशाल क्षेत्रों में कई स्थानों पर परिक्षिप्त बस्तियाँ बस गई हैं। 
    • पशु-चारण (Animal Grazing): चलवासी चरवाहे अपने पशुओं के साथ स्थान-स्थान पर घूमते रहते हैं और रहने के लिए अस्थाई एकाकी आवास बनाते हैं। व्यापारिक स्तर पर पशु-चारण का कार्य विस्तृत चरागाहों तथा घास के मैदानों में होता है। इन क्षेत्रों में पशुओं के बाड़े बहुत बड़े तथा एक-दूसरे से दूर स्थित होते हैं। इन परिस्थितियों में परिक्षिप्त बस्तियाँ विकसित होती हैं।
  • सामाजिक, ऐतिहासिक, जातीय तथा राजनीतिक कारक (Social, Historical, Caste related and Political Factors): सामाजिक, ऐतिहासिक, जातीय तथा राजनीतिक कारक निम्नलिखित हैं-
    • जाति प्रथा (Caste System): भारत में बस्तियों के संगठन (Organization) पर जाति प्रथा का प्रभाव स्पष्ट देखने को मिलता है। उच्च वर्ग के लोग किसी विशिष्ट स्थान पर अपने घर बनाना पसंद करते हैं। निम्न जातियों के लोग मुख्य बसाव स्थल से हटकर अपनी झोंपड़ियाँ या मकान बनाते हैं। इस प्रकार विभिन्न जातियों के लोग विभिन्न स्थानों पर रहते हैं और परिक्षिप्त बस्तियाँ बसती हैं।
    • सुरक्षा (Security: ग्रामीण बस्तियों के निवासियों पर सुरक्षा की भावना का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। जिन प्रदेशों में चोरी, आक्रमण तथा लूट-पाट से जान-माल को खतरा नहीं होता, वहाँ पर लोग निडर होकर कहीं भी घर बना लेते हैं और इस प्रकार परिक्षिप्त बस्तियों का विकास होता है। 
    • भूमि सुधार (Land Reforms): जमींदारी प्रथा के उन्मूलन से भूमि के उपयोग पर किसानों का पूर्ण अधिकार हो गया और वे अपनी सुविधा के अनुसार मुख्य बस्ती से कुछ दूरी पर खेतों में ही अपने घर बनाकर रहने लगे। इस प्रकार पहले से बसी हुई न्यष्टित (Nucleated) बस्तियाँ विकेन्द्रित हो गईं और परिक्षिप्त बस्तियों का निर्माण शुरू हुआ। 

न्यष्टित या संहत बस्तियाँ (Nucleated Settlements)

ऐसी ग्रामीण बस्तियों को जिनमें झोंपड़ियाँ या मकान पास-पास सटे हुए होते हैं, फिन्च और ट्रिवार्था ने उन्हें न्यष्टित बस्तियाँ कहा है। इन बस्तियों को ब्लाश ने गुच्छित या पुंजित (Clustered) तथा ब्रूंश (Brunhes) ने केन्द्रित (Concentrated) बस्तियों का नाम दिया है। इन्हें सामान्यतः सघन (Compact) बस्तियों के नाम से जाना जाता है। इन्हें एकत्रित (Agglomerated) अथवा नाभिक अथवा संहत बस्तियाँ भी कहते हैं।

Types of Rural Settlements: Nucleated Settlements
न्यष्टित या संहत बस्तियाँ

संहत बस्तियों के प्रमुख लक्षण (Main Features of Nucleated Settlements)

  • संहत बस्तियाँ नदी घाटियों तथा उपजाऊ समतल मैदानों में विकसित होती हैं। अधिक उत्पादन के कारण उपजाऊ प्रदेशों में अधिक जनसंख्या निर्वाह कर सकती है। 
  • इन बस्तियों में बहुत सारे मकान एक-साथ बने होते हैं। यहाँ मकान एक-दूसरे से सटे हुए होते हैं। इसमें रहने का स्थान (Living Space) कम तथा गलियाँ तंग होती हैं। 
  • इन बस्तियों का आकार भूमि की उपजाऊ शक्ति तथा निकटवर्ती क्षेत्र में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों की मात्रा पर निर्भर करता है। अधिक उपजाऊ भूमि पर बस्तियाँ बड़ी और खेत छोटे होते हैं, जबकि अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों की ओर बस्तियाँ छोटी किंतु खेत बड़े होते हैं। उदाहरणतः मरुस्थलों के सीमावर्ती क्षेत्रों में एक ग्रामीण बस्ती में पाँच या छह झोंपड़ियाँ ही पाई जाती हैं जबकि गंगा के मैदान में एक बस्ती में 500 से 1000 व्यक्ति निवास करते हैं।
  • संहत ग्रामीण बस्तियाँ किसी केन्द्रीय स्थल के चारों ओर बाहर की ओर विकसित होती हैं। यह केन्द्रीय स्थल कुआँ, तालाब, बावड़ी, धार्मिक स्थल या फिर कोई चौराहा या महत्त्वपूर्ण निवास-स्थान हो सकता है।
  • इन बस्तियों के निवासी सामूहिक जीवन व्यतीत करते हैं। वे हिंसक पशुओं तथा डाकुओं से अपनी रक्षा एवं कृषि-कार्य मिल-जुलकर करते हैं। इन्हें सभी प्रकार की सामाजिक- आर्थिक सुविधाओं का भी लाभ प्राप्त होता है।
  • प्रायः जल-निकास की प्रणाली सुचारू न होने के कारण इन बस्तियों में गलियाँ गंदी होती हैं।
  • ऐसी बस्तियों में मनुष्य सामाजिक व्यवस्था (Social System) में जकड़ा होता है। 

संहत बस्तियों का वितरण (Distribution of Nucleated Settlements)

चीन तथा थाइलैंड के मैदानों तथा म्यांमार के इरावदी डेल्टा में संहत गाँव पाए जाते हैं। जापान के क्वांटो मैदान में संहत बस्तियों का सबसे बड़ा जमाव पाया जाता है। सऊदी अरब के दक्षिणी भागों में समुद्र तट के निकट ग्रामीण बस्तियों का संकेन्द्रण पाया जाता है।

यूरोप में वोल्गा तथा डेन्यूब नदियों के मैदानों में संहत बस्तियाँ पाई जाती हैं। राइन नदी के पर्वतीय शीर्षों पर भी संहत बस्तियों का बिंदुनुमा वितरण पाया जाता है। 

न्यष्टित या संहत बस्तियों को प्रोत्साहित करने वाले कारक (Factors Favoring Nucleated Settlements)

संहत बस्तियों को निम्नलिखित भौतिक व मानवीय कारक प्रभावित करते हैं- 

भौतिक कारक (Physical Factors)

संहत बस्तियों को प्रभावित करने वाले भौतिक कारक अग्रलिखित

  • समतल भूमि (Plane Land): दुनिया के अधिकांश समतल मैदानों में घनी जनसंख्या निवास करती है और वहाँ पर संहत बस्तियाँ पाई जाती हैं। समतल भूमि पर किसी केन्द्रीय स्थल पर निर्मित बस्ती से खेतों तथा अन्य स्थानों तक जाने के लिए परिवहन के मार्ग उपलब्ध होते हैं और उस बस्ती का आकार बढ़ जाता है। 
  • उपजाऊ मिट्टी (Fertile Land): जिन क्षेत्रों में मिट्टी उपजाऊ होती है, वहाँ पर छोटे खेतों से भी परिवार के सदस्यों का जीवनयापन हो सकता है। अतः इन क्षेत्रों में एक स्थान पर रहकर कृषि द्वारा निर्वाह किया जा सकता है और संहत बस्तियाँ बस जाती हैं। विश्व के प्रमुख नदी घाटी मैदानों; जैसे गंगा-सिन्धु का मैदान, नील नदी का मैदान, ह्वेग-ही का मैदान आदि में उपजाऊ मिट्टी होने के कारण मुख्यतः संहत बस्तियाँ ही मिलती हैं।
  • जल का अभाव (Lack of Water): जिन प्रदेशों में वर्षा की कमी के कारण जल का अभाव रहता है, वहाँ पर लोग सामूहिक रूप से कुएँ, तालाब, नहर व बाँध आदि का निर्माण करते हैं तथा उसका लाभ उठाने के लिए सामूहिक रूप में उसके पास ही अपने घर बनाते हैं। इस प्रकार संहत बस्तियों का विकास होता है। राजस्थान तथा पश्चिमी घाट की वर्षा छाया क्षेत्र में न्यष्टित बस्तियों के विकास का मुख्य कारण जल का अभाव ही है। 
मानवीय कारक (Human Factors)

संहत बस्तियों को प्रभावित करने वाले मानवीय कारक निम्नलिखित हैं-

  • सामूहिक सहयोग (Collective Cooperation): खेती के काम में सामूहिक सहयोग की जरूरत पड़ती है। किसान एक-दूसरे के साथ वस्तुओं तथा श्रम का आदान-प्रदान करते हैं। इससे कृषि-कार्य आसान हो जाता है और संहत बस्तियों को प्रोत्साहन मिलता है।
  • भूमि का अपखण्डन (Fragmentation of Holdings): भारत तथा कई अन्य देशों में पिता की जमीन उसके पुत्रों में बाँटी जाती है, जिससे भूमि का अपखण्डन होता है। उसके छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं और यह यत्र-तत्र बिखरी हुई होती है। अतः आर्थिक दृष्टि से केवल किसी केन्द्रीय स्थान पर रहकर ही भूमि का प्रयोग किया जा सकता है। 
  • भूमि का स्वामित्व (Ownership of Holdings): भारत में आजादी से पहले भूमि का स्वामित्व जमींदारों, ठाकुरों तथा किसानों के बीच बिचौलियों तक ही सीमित था। ये लोग किसानों को वार्षिक पट्टे पर जमीन दिया करते थे। भूमि से बेदखल हो जाने पर वे अपने जीवन-निर्वाह के लिए जमींदारों पर ही निर्भर हो जाते थे और वे वहीं पर रहने लग जाते थे। इस प्रकार प्राचीनकाल में न्यष्टित बस्तियों का विकास हुआ।
  • असुरक्षा क भावना (Insecurity Spirit): ऐतिहासिक काल में आक्रमणों के डर से लोग बड़ी बस्तियाँ बनाकर रहते थे । चोर-डाकुओं से सुरक्षित होने के लिए भी ग्रामीण समुदाय के लिए बड़ी बस्तियों में संयुक्त रूप से रहना अनिवार्य हो गया। राजस्थान तथा गुजरात आदि में न्यष्टित बस्तियों के विकास का यह एक बड़ा कारक है। 
  • वंश सम्बन्ध (Clam Solidarity): अधिकांश ग्रामीण लोग किसी-न-किसी वंश से सम्बन्धित होते हैं और वे एक ही स्थान पर रहना पसंद करते हैं। इसके परिणामस्वरूप संहत बस्तियाँ विकसित हो जाती हैं। राजस्थान तथा हरियाणा में बहुत-से लोग बड़े-बड़े वंशों के नाम से जाने जाते हैं।
  • धार्मिक प्रवृत्तियाँ (Religious Activities): बहुत-से ग्रामीण लोग किसी-न-किसी धर्म को मानते हैं और धार्मिक स्थल के पास ही बस जाते हैं। कई लोग अपने पूर्वजों के स्थान को पवित्र मानकर वहीं पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी रहते हैं और एक संहत बस्ती को जन्म देते हैं। 

अर्द्ध-संहत अथवा अर्द्ध-न्यष्टित बस्तियाँ (Semi- Compact or Semi-Nucleated Settlements)

अर्द्ध-संहत बस्तियाँ वे ग्रामीण बस्तियाँ हैं जो पूरी तरह से न्यष्टित बस्तियाँ नहीं बनी हैं। इन बस्तियों का विकास या तो न्यष्टित बस्तियों के बढ़ने से या अप्रवासी लोगों के बसने के कारण होता है। ये अप्रवासी मुख्य रूप से कृषक मज़दूर होते हैं जो काफी समय तक आजीविका कमाने के लिए वहाँ रह रहे होते हैं। कई बार इन बस्तियों का विकास जातीय भेदभाव के कारण भी होता है। 

प्रायः गाँव के उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों के साथ रहना पसन्द नहीं करते और उन्हें गाँव के बाहर किसी अलग हिस्से में ही रहना पड़ता है। जब कभी परिक्षिप्त बस्तियों की जनसंख्या बढ़ती है तब से बस्तियाँ अर्द्ध-न्यष्टित बस्तियों का रूप धारण कर लेती हैं। इनके विकास के लिए कोई सामान्य वातावरणिक तर्क मान्य नहीं है। 

उदाहरण के लिए इनका विकास परुस्थलीय इलाकों तथा आई इलाकों में भिन्न-भिन्न कारणों से होता है। इसी प्रकार ये आंशिक उर्वर तथा अधिक उर्वर गहन कृषीय भूमि में भी विभिन्न कारणों से विकसित होती हैं। अधिक उपजाऊ इलाकों में शुरू में इनका आकार छोटा होता है, परन्तु बाद में जनसंख्या के बढ़ जाने से इनका आकार बड़ा हो जाता है और अर्द्ध-न्यष्टित बस्तियों का रूप धारण कर लेती हैं। कुछ समय के बाद ये बस्तियाँ न्यष्टित बस्तियों में परिवर्तित हो जाती हैं। 

ऐसी बस्तियाँ गंगा-यमुना दोआब, गंगा एवं इसकी सहायक नदियों के खादर प्रदेश, यमुना नदी की खड्ड भूमि, अरावली के पूर्वी भाग, राजस्थान की मरुभूमि, मध्य प्रदेश के पहाड़ी भाग, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम तथा शिवालिक की ढलानों पर पाई जाती हैं।

पल्ली अथवा पुरवा बस्तियाँ (Hamleted Settlements)

ये छोटी-छोटी बस्तियाँ होती हैं, जिनमें घरों का एक छोटा-सा समूह अथवा व्यक्तिगत घर होते हैं, जो मुख्य बस्ती के विभिन्न भागों में बिखरे हुए होते हैं। इन बिखरे हुए घरों के बीच कृषि भूमि होती है। बिखरे हुए घरों के कारण बस्ती में गलियों अथवा अन्य मार्गों का अभाव होता है जिस कारण से इनका आपसी संबंध भी कम होता है। सामान्यतः ऐसी बस्तियाँ सघन तथा परिक्षिप्त बस्तियों के मध्य परिवर्ती क्षेत्र में स्थित होती हैं। प्रत्येक बस्ती में औसतन 5 अथवा उससे अधिक पुरवा होते हैं और कहीं-कहीं अपवाद के रूप में 50 या इससे अधिक पुरवा भी हो सकते हैं।

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