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ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप समझने से पहले ग्रामीण बस्तियों के प्रकारों एवं प्रतिरूपों में अन्तर जानना आवश्यक है।
बस्तियों के ‘प्रकार’ एवं ‘प्रतिरूप’ में अंतर
जहां एक ओर ग्रामीण बस्तियों के ‘प्रकार’ (Types) बस्तियों के मकानों की संख्या और उनके बीच में पारस्पारिक दूरी के आधार पर निश्चित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए अलग-अलग बसे हुए एकाकी (isolated) घर, झोंपड़ी, वास गृह (Homestead), फार्म गृह (Farmstead) आदि को परिक्षिप्त अथवा एकाकी अथवा प्रकीर्ण (Dispersed or Scattered) बस्ती के नाम से पुकारा जाता है तथा जिस बस्ती में मकान पास-पास होते हैं, उसे सघन अथवा न्यष्टित (Nucleated or compact of Agglomerated) बस्ती कहा जाता है।
वहीं दूसरी ओर बस्तियों के प्रतिरूप (patterns) बस्तियों की आकृति (shape) अनुसार होते हैं। अतः ग्रामीण बस्तियों के प्रारूप अथवा प्रतिरूप को इनके मकानों तथा मकानों के बीच मागों की स्थिति के क्रम एवं व्यवस्था अथवा ज्यामितीय प्रारूप के अनुसार निश्चित किया जाता है। उदाहरण के लिए किसी सड़क या नहर के किनारे बसे हुए घरों को रेखीय प्रतिरूप (Linear pattern) कहते हैं क्योंकि इस उदाहरण में घर एक रेखा के रूप में व्यवस्थित होते हैं। इस आधार पर ग्रामीण बस्तियों के अनेक प्रतिरूप परिभाषित किए जा सकते हैं।
ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप (Patterns of Rural Settlements)
लम्बवत् अथवा रैखिक प्रतिरुप (The Linear Pattern)
इसे रिबन (Ribben) प्रतिरूप अथवा डोरी (String) प्रतिरूप भी कहते हैं। ऐसे गांवों में मकान किसी सड़क, रेल, नहर, नदी या नदी के किनारे पर पाए जाते हैं। ऐसे गांवों में मुख्य गलियां सड़क रेल या नदी आदि के समानांतर होती है और द्वार परस्पर आमने-सामने होते हैं। गांव की अधिकांश दुकानें इसी मुख्य गली में होती हैं। पर्वतीय इलाकों में नदी घाटियों के किनारों पर प्रायः रैखिक बस्तियां देखने को मिलती है। इन इलाकों में इस प्रकार की बस्तियों के प्रतिरूपों पर उच्चावच एवं भू-आकृतिक परिस्थितियों का बड़ा प्रभाव होता है।
नदी घाटियों के बाढ़ के मैदानों में बस्तियां उच्च स्थानों पर बनाई जाती हैं ताकि इन पर बाढ़ का न्यूनतम प्रभाव हो। ये बस्तियां समुद्री तटों पर भी पाई जाती हैं जहां पर उच्च ज्वारीय जल स्तर इनकी स्थिति को प्रभावित करता है। इस प्रकार की बस्तियां भारत के विभिन्न भागों में नदियों, नहरों, सड़कों एवं समुद्रों के किनारों पर देखी जा सकती हैं।
चौकपट्टी प्रतिरूप (Checkerboard Pattern)
जब किसी मैदानी भाग में किसी स्थान पर दो परिवहन मार्ग एक-दूसरे की लम्बवत् दिशा में आकर मिलते हैं तो उस चौराहे पर आयताकार प्रतिरूप में ऐसी बस्तियां बस जाती हैं, जिनमें गलियां मुख्य मार्गों के साथ मेल खाती हैं। ये गलियां एक-दूसरे के समानांतर होती हैं और आपस में लम्बवत् कोण पर मिलती हैं। ऐसे गांवों के प्रतिरूप को चौकपट्टी प्रतिरूप कहते हैं। उत्तरी चीन में इस प्रकार की बस्तियां बहुत मिलती हैं। उत्तरी भारत के विशाल मैदान में भी ऐसे गांव बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। इनमें से अधिकांश गांव धीरे-धीरे जनसंख्या में वृद्धि होने से बड़े आकार के बन जाते हैं और कालांतर में कस्बों का रूप धारण कर लेते हैं।
आयताकार प्रतिरूप (Rectangular Pattern)
इन बस्तियों की आकृति आयत जैसी होती है, जिस कारण से इसे आयताकार प्रतिरूप कहा जाता है। भारत की अधिकांश बस्तियां इसी प्रकार की हैं। इस प्रतिरूप में मकान एक-दूसरे से सटे हुए होते हैं और गलियां सीधी होती हैं। ये बस्तियां मुख्य रूप से भारत के उत्तरी मैदान में पाई जाती हैं और एक-दूसरे से सड़कों एवं पगडंडियों द्वारा मिली हुई होती हैं। राजस्थान में इन्दिरा गांधी नहर अपवाह क्षेत्र में योजनाबद्ध ढंग में बसी बस्तियां आयताकार हैं। सूरतगढ़, हनुमानगढ़ तथा गंगानगर आदि क्षेत्रों में इनका विशेष संकेन्द्रण पाया जाता है।
क्रॉस की आकृति
इस प्रकार के गांव उन स्थानों पर बसते हैं जहां मार्ग चारों ओर से आकर एक-दूसरे के लगभग समकोण पर मिलते हैं। इन गांवों में चौमुखी दिशाओं में घर बन जाते हैं।
अरीय प्रतिरूप (Radial Pattern)
अरीय प्रतिरूप वाले गांवों में कई ओर से मार्ग आकर मिलते हैं या उस गांव से बाहर अन्य गांवों के लिए कई दिशाओं को मार्ग जाते हैं। इन गांवों की गलियां गांव के भीतरी भाग में आकर मिलती हैं। गांव के मुख्य चौराहे से निकलने वाले मार्गों पर घर बस जाते हैं। मकानों के सामने से मार्ग जाते हैं और मकानों की पीठ की ओर भी मार्ग हो सकते हैं। भारत, चीन तथा पाकिस्तान के लगभग एक-तिहाई गांव अरीय प्रतिरूप के होते हैं।
तारक प्रतिरूप (Starlike Pattern)
ये गांव में पहले अरीय प्रतिरूप के होते हैं और बाद में गांव से बाहर जाने वाले मार्गों के साथ अधिक मकान बन जाते हैं। इस प्रकार गांव का फैलाव मार्गों के साथ-साथ हो जाता है और गांव तारे का रूप ग्रहण कर लेता है। अतः इसे तारक प्रतिरूप कहते हैं। गांवों के अतिरिक्त नगरों में भी तारक प्रतिरूप पाया जाता है। भारत के विशाल उत्तरी भाग में स्थित पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा बिहार में इस प्रकार के गांव बड़ी संख्या में मिलते हैं।
त्रिभुजाकार प्रतिरूप (Triangular Pattern)
त्रिभुजाकार प्रतिरूप वाले गांव उन स्थानों पर विकसित होते हैं, जहां कोई सड़क या नहर दूसरी सड़क या नहर से मिलती है। ऐसे गांवों को नहर अथवा सड़क के पार बसने के लिए उचित सुविधाएं नहीं होतीं और वे दो आपस में मिलने वाली सड़कों अथवा नहरों के बीच वाले इलाके में ही विकसित होते हैं। नहरों अथवा सड़कों द्वारा गांव को दो भुजाएं बनाई जाती हैं और त्रिभुज के आधार की ओर खुली भूमि में गांव फैलता है।
गोलाकार प्रतिरूप (Circular Pattern)
इसे वृत्तीय प्रतिरूप भी कहते हैं। जब कभी झील या तालाब के किनारे मकान बन जाते हैं, तो गांव की गोलाकार आकृति होती है। यह प्रतिरूप किसी हरे-भरे मैदान में भी मिलता है। ऐसे प्रदेश में गांव के निवासी अपना मकान जल के समीप बनाना चाहते हैं। पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश में इस प्रकार के गांव बहुत मिलते हैं। गोलाकार गांवों में गलियां केन्द्र से बाहर की ओर प्रकीर्ण होती हैं।
अर्द्ध-वृत्ताकार प्रतिरूप (Semi-Circular Pattern)
नदियों द्वारा निर्मित नदी विसर्प अथवा गोखुर झील या गिरिपाद पर स्थित झील के किनारे पर बसने वाले गांव अर्द्ध-वृत्ताकार प्रतिरूप धारण करते हैं। उत्तरी भारत में गंगा तथा इसकी सहायक नदियों के तटों पर कई अर्द्ध-वृत्ताकार गांव बसे हुए हैं। ये प्रायः नदी द्वारा निर्मित ऊंचे तटबन्धों पर बनाए जाते हैं जहाँ पर बाढ़ का खतरा कम होता है।
तीर प्रतिरूप (Arrow Pattern)
ऐसे गांव किसी अन्तरीप के सिरे पर या किसी नदी के नुकीले मोड़ पर बसते हैं। इनके अग्रभाग में मकानों की संख्या कम तथा पृष्ठ भाग में मकानों की संख्या अधिक होती है। इस प्रकार के गांव कन्याकुमारी, चिल्का झील, खम्भात की खाड़ी, मध्य प्रदेश की सोनार नदी तथा बिहार की बूढ़ी गंडक नदियों के किनारे पर पाए जाते हैं।
नीहारिका प्रतिरूप (Nebular Pattern)
नीहारिका से मिलती-जुलती आकृति वाले गांवों को नीहारिका प्रतिरूप् कहते हैं। ऐसे गावों में सड़के वृत्तीय आकार में होती हैं और बस्ती के केन्द्र पर आकर समाप्त हो जाती हैं। ये बस्तियां सामान्य रूप में छोटे आकार की होती हैं। इनका विकास गांव के प्रमुख जमींदार अथवा किसी धार्मिक स्थल के चारों ओर होता है। इस प्रकार की बस्तियां हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड एवं विंध्य क्षेत्र की छोटी पहाड़ियों एवं टीलों पर तथा उत्तर प्रदेश के गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र में पाई जाती हैं।
सीढ़ी-नुमा प्रतिरूप (Terraced Pattern)
सीढ़ी-नुमा प्रतिरूप वाले गांव पहाड़ों की ढलानों पर मिलते हैं। पहाड़ों के ढलानों को सीढ़ी-नुमा काटकर उन्हें कृषि के योग्य बनाया जाता है। प्रायः किसान इन सीढ़ी-नुमा खेतों में ही घर बनाकर रह हैं। मकान आपस में सटे हुए अथवा दूर-दूर दोनों ही प्रकार के होते हैं। इनका निर्माण ढाल के अनुसार विभिन्न ऊंचाइयों प किया जाता है।
इन गांवों की स्थिति किसी जल स्रोत (spring) या सरिता के निकट होती है। घरों का निर्माण पत्थर, लक. स्लेट आदि से किया जाता है। ये निर्माण, सामग्रियां स्थानीय रूप में आसानी से मिल जाती हैं। इस प्रतिरूप वाले गांव हिमालय अल्प्स, रॉकीज, एण्डीस आदि पर्वतों की ढलानों पर बड़ी संख्या में मिलते हैं।
शू-स्ट्रिंग प्रतिरूप (Shoe-String Pattern)
कुछ गांव किसी नदी के प्राकृतिक तटबन्ध (Natural Levees) अथवा समुद्रतटीय कटक (beach ridge) पर बसे हुए होते हैं और उनमें कटक शिखर (ridge crest) पर बनी हुई सड़कों के किसी और मकान बन जाते हैं। ऐसी बस्तियों को फिन्च-ट्रेवार्था ने शू-स्ट्रिंग के नाम से पुकारा है।
पंखा प्रतिरूप (Fan Pattern)
इस प्रकार के गांव नदी के निक्षेप कार्य द्वारा निर्मित जलोढ़ पंखों (Alluvial Fans) तथा डेल्टा क्षेत्रों में बसते हैं। हिमालय के पाद प्रदेशों (Piedmont area) में निर्मित जलोढ़ पंखों तथा महानदी, गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टा क्षेत्रों में बहुत से गांव इसी प्रतिरूप के हैं।
उपरोक्त प्रतिरूपों के अतिरिक्त कुछ अन्य प्रतिरूप भी हैं, जिनमें मधुछत्ता प्रतिरूप (Beehive Pattern), मकड़ी जाल प्रतिरूप (Web Pattern) तथा टेढ़ा-मेढ़ा प्रतिरूप (Zig-Zag Pattern) प्रमुख हैं।
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