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किसी वस्तु या व्यक्ति या स्थान का फ़ोटो उस वस्तु या व्यक्ति या स्थान के वास्तविक आकार (size) से छोटा या बड़ा हो सकता है; परन्तु उस वस्तु या व्यक्ति या स्थान की वास्तविक आकृति (shape) तथा फ़ोटो में अंकित आकृति एक जैसी होती है।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि फोटो लेते समय वस्तु या व्यक्ति या स्थान के सभी भाग या अंग एक निश्चित अनुपात (ratio) में छोटे अथवा बड़े हो जाते हैं। इसलिए आकार में अन्तर आ जाने के बावजूद भी फ़ोटो में उनकी आकृति शुद्ध रहती है। यह अनुपात ही मापक (scale) कहलाता है। भूगोल के विद्यार्थी के लिए मानचित्रों की रचना में इस अनुपात या मापक का विशेष महत्व होता है।
मापक का अर्थ (Meaning of Scale)
मानचित्र में प्रदर्शित किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच की दूरी तथा उन बिन्दुओं के बीच की धरातल पर वास्तविक दूरी के बीच के अनुपात को उस मानचित्र की मापक कहते हैं। उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी मानचित्र पर दो बिन्दुओं के बीच की दूरी 1 सेमी है तथा उन बिन्दुओं के मध्य धरातल पर मापी गई दूरी 1 किमी अथवा 100000 सेमी है तो स्पष्ट है कि मानचित्र व धरातल पर मापी गई दूरियों में 1 तथा 100,000 (सेमी) का अनुपात है। यही अनुपात अर्थात् 1:100,000 उस मानचित्र का मापक कहलाएगा।
दूसरे शब्दों में, मापक (Scale) वह अनुपात है जिसमें धरातल की दूरियों को छोटा करके मानचित्र पर प्रदर्शित किया जाता है। हमारी पृथ्वी इतनी विशाल है कि इसके आकार के बराबर आकार वाला कोई मानचित्र बनाना अथवा ऐसे मानचित्र को एक दृष्टि में पढ़ना एक असम्भव बात है। मापक वह युक्ति है, जिसके द्वारा समस्त पृथ्वी अथवा उसके किसी भाग को आवश्यकतानुसार आकार वाला मानचित्र बनाकर प्रदर्शित किया जा सकता है तथा उस मानचित्र की सहायता से धरातल पर स्थानों के बीच की वास्तविक दूरियाँ ज्ञात की जा सकती हैं।
नोट: बिना मापक केवल अनुमान से बनाए गए किसी ‘मानचित्र’ को रेखा मानचित्र (sketch map) की संज्ञा दी जाती है।
मापक का चयन (Selection of Scale)
किसी मानचित्र के लिए उपयुक्त मापक (Scale) का चयन करते समय दो बातों पर विचार किया जाता है-
कागज़ आदि का आकार जिस पर मानचित्र बनाना है
क्योंकि मानचित्र का आकार चुने गए मापक (Scale) पर निर्भर करता है। अतः मापक निश्चित करने से पहले उपलब्ध कागज़ का आकार देख लेना अति आवश्यक है। इस बात पर ध्यान न दिए जाने के कारण कभी-कभी मानचित्र या तो इतना बड़ा हो जाता है कि उसे दिए हुए कागज़ पर बनाना सम्भव नहीं होता अथवा अनावश्यक रूप से बहुत छोटा बन जाता है। दोनों ही दशाओं में सारा परिश्रम व्यर्थ हो जाता है।
मानचित्र की रचना करने का उद्देश्य
मापक (Scale) के चयन पर मानचित्र बनाने के उद्देश्य के प्रभाव को इस बात से समझा जा सकता है कि किसी स्थान के अधिक विवरण (छोटी-2 चीजों आदि भी) को प्रदर्शित करने के लिए ज्यादा स्थान की आवश्यकता होती है। अतः नगरों के प्लान तथा अन्य भूसम्पत्ति मानचित्रों के लिए अपेक्षाकृत बड़े मापक का चयन करते हैं। इसके विपरीत मानचित्रावलियों में संसार एवं महाद्वीपों के अपेक्षाकृत कम विवरण वाले भौतिक, आर्थिक, राजनीतिक व समाज-सांस्कृतिक मानचित्र छोटे मापक पर बने होते हैं।
मापक व्यक्त करने की विधियाँ (Methods of Expressing the Scale)
जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि प्रत्येक मानचित्र पर उसके मापक का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए जिससे पढ़ने वाला धरातल एवं मानचित्र पर मापी गई दूरियों का अनुपात समझ सकें। मानचित्रों पर मापक प्रदर्शित करने की तीन विधियाँ होती हैं; जिनको संक्षेप में नीचे समझाया गया है।
साधारण कथन विधि (Simple statement method)
साधारण कथन विधि में शब्दों के द्वारा किसी मानचित्र का मापक बताया जाता है। जैसे:- 1 सेमी = 1 किमी, अथवा 1 इन्च = 1 मील आदि। भारत में ग्रावों के भूसम्पत्ति मानचित्रों तथा व्यक्तिगत भवनों आदि के प्लानों में प्रायः इसी विधि से मापक को प्रदर्शित करते हैं।
वैसे तो मापक व्यक्त करने की यह सबसे सरल विधि है परन्तु इसका प्रयोग बहुत सीमित है, जिसके दो कारण हैं – प्रथम, इस विधि से व्यक्त मापक को पढ़कर केवल वे ही व्यक्ति मानचित्र पर दूरियों की गणना कर सकते हैं, जो उस रैखिक माप-प्रणाली (linear measurement system) को समझते हों । उदाहरण के लिए ‘पैल्ट्ज’ तथा ‘वर्स्टस्’ में लिखी मापक को पढ़कर मानचित्र पर दूरियों की गणना करना तभी सम्भव हो सकता है जब हम रूसी रैखिक माप-प्रणाली के इन शब्दों का अर्थ जानते हों।
द्वितीय, शब्दों में व्यक्त किए गए मापक वाले मानचित्रों को उनके मूल आकारों से भिन्न आकारों अर्थात बड़ा या छोटा करना सम्भव नहीं है क्योंकि ऐसा करने से नए बने मानचित्र की मापक अशुद्ध हो जाएगी (मानचित्र का आकार छोटा या बड़ा तो हो जाएगा लेकिन उस पर अंकित मापक वही रहेगा)।
निरूपक भिन्न विधि (Representative fraction or R. F. method)
मानचित्र एवं धरातल पर मापी गई दूरियों के अनुपात को प्रदर्शित करने वाली भिन्न को निरूपक भिन्न या प्रदर्शक भिन्न (R. F.) कहते हैं। इस भिन्न का अंश (numerator) मानचित्र व हर (denominator) धरातल पर मापी गई दूरियाँ प्रकट करते हैं तथा इस भिन्न में अंश का मान सदैव 1 होता है। उदाहरण के लिए यदि किसी मानचित्र की निरूपक भिन्न 1/50,000 है तो इसका यह अर्थ होगा कि मानचित्र व धरातल की दूरियों में 1 तथा 50,000 का अनुपात है अर्थात् मानचित्र में किसी माप-प्रणाली की एक इकाई दूरी धरातल पर उसी माप-प्रणाली की 50,000 इकाई दूरी के बराबर है।
अतः निरूपक भिन्न (R. F.) = मानचित्र में किसी रैखिक माप की एक इकाई की दूरी/ उस रैखिक माप की उन्हीं इकाइयों में धरातल पर मापी गई दूरी
इस विधि का सबसे बड़ा गुण यह है कि निरूपक भिन्न को देखकर मानचित्र में प्रदर्शित धरातल की वास्तविक दूरियों का किसी भी रैखिक माप-प्रणाली में मान ज्ञात किया जा सकता है। उदाहरण के लिए 1/50,000 निरूपक भिन्न का अर्थ मीट्रिक प्रणाली में 1 सेमी = 50,000 सेमी, अंग्रेज़ी रैखिक माप-प्रणाली में 1 इन्च = 50,000 इन्च तथा रूसी माप-प्रणाली में 1 पैल्ट्ज = 50,000 पैल्ट्ज होगा।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि मूल आकार में छापे जाने वाले मानचित्रों पर मापक व्यक्त करने के लिए निरूपक भिन्न विधि का प्रयोग सर्वाधिक उपयोगी रहता है क्योंकि इसे देखकर किसी भी देश के लोग अपने यहाँ प्रचलित माप प्रणाली में मानचित्र से वास्तविक दूरियाँ ज्ञात कर सकते हैं।
आलेखी विधि (Graphical method)
इस विधि में निरूपक भिन्न के अनुसार ज्ञात की गई लम्बाई के बराबर मानचित्र पर एक रेखा खींचकर उसे प्राथमिक व गौण भागों में विभाजित कर देते हैं तथा इन उपविभागों पर उनके द्वारा प्रदर्शित वास्तविक दूरियों के मान लिख दिए जाते हैं। मूल आकार से भिन्न आकारों में मुद्रित किए जाने वाले मानचित्रों पर केवल इसी विधि के द्वारा मापक व्यक्त करते हैं।
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