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भूगोल विषय के विद्यार्थी के लिए प्रायोगिक कार्य (practical work) करने हेतु मापनी का बड़ा महत्व रहता है। अत: उसको मापनी का अर्थ एवं उसको व्यक्त करने की विभिन्न विधियों का ज्ञान होना चाहिए। जिसके बारे में हम अपने लेख मापक: अर्थ एवं व्यक्त करने की विधियाँ (Scale: Meaning and Methods of Expression) में चर्चा कर चुके हैं। इस लेख में हम मापनी को व्यक्त करने की आलेखी विधि में मापनी की रचना करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ,की चर्चा करेंगे। आलेखी मापनी (Graphical Scale) की रचना करते समय निम्नलिखित सामान्य नियमों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है :
आलेखी मापनी बनाने के सामान्य नियम (General Principles of Constructing a Graphical Scale)
- वैसे तो मानचित्र के आकार के अनुसार किसी भी लम्बाई की छोटी या बड़ी आलेखी मापनी बनाई जा सकती है, लेकिन भूगोल की अभ्यास-पुस्तिका आदि में प्रायः 12 से 16 सेमी लम्बी आलेखी मापनी बनाना अच्छा माना जाता है।
- मापनी में प्राथमिक व गौण भागों का विभाजन किसी ज्यामितीय विधि के अनुसार करना चाहिए, जिससे विभाजन में पूर्ण शुद्धता बनी रहे।
- आलेखी मापनी (Graphical Scale) को इस प्रकार विभाजित करते हैं कि उसका प्रत्येक भाग धरातल की दूरी को पूर्णांकों (integers) में प्रकट करे।
- आलेखी मापनी (Graphical Scale) के प्राथमिक भाग सदैव शून्य से दाई ओर को तथा गौण भाग, जो प्रथम प्राथमिक भाग के उप-विभाग होते हैं, शून्य से बाई ओर को अंकित किए जाते हैं।
- यदि मापनी में केवल प्राथमिक भाग दिखाए गए हैं, तो मापनी के बाएं सिरे पर शून्य(zero) अंकित करके दाई ओर को प्राथमिक भागों पर मान लिखे जाएंगे।
- इसके विपरीत यदि मापनी में प्राथमिक व गौण दोनों भाग दिखलाने होते हैं तो बाई ओर से 1 प्राथमिक भाग छोड़कर शून्य अंकित करते हैं। इसके बाद प्राथमिक भागों पर शून्य से दायीं ओर को तथा गौण भागों पर शून्य से बायीं ओर को मान लिखते हैं। ऐसा करने से मापनी पर दूरी मापना सरल हो जाता है।
- आलेखी मापनी (Graphical Scale) पढ़ने में सरल एवं देखने में आकर्षक होनी चाहिए।
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