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इस लेख में आप मानचित्रकला (cartography) का अर्थ , परिभाषा, प्रकृति एवं विषयक्षेत्र के बारे में विस्तार से जानेंगे।
मानचित्रकला (Cartography) का अर्थ
धरातल पर स्थित किन्हीं दो स्थानों के बीच की दूरियों एवं कोणों को मापकर उन्हें किसी समतल सतह जैसे कागज आदि पर एक निश्चित मापक के अनुसार चित्रित करना मानचित्रण कहलाता है।
देखा जाए तो सामान्य से सामान्य व्यक्ति को भी कभी ना कभी अपने दैनिक जीवन में मानचित्र की आवश्यकता रही होगी। वर्तमान समय में तो हम अपने मोबाइल में गूगल मैप या किसी अन्य एप्लीकेशन का उपयोग करके गंतव्य स्थान के बारे में पता लगा लेते हैं। लेकिन प्राचीन समय में, जब मनुष्य का तकनीकी विकास नहीं हुआ था व उसके पास मोबाइल आदि यंत्र नहीं थे। तब मानव गंतव्य स्थान तक पहुंचने के लिए दूसरे लोग जो उसे स्थान के बारे में जानते थे, उनसे पूछ कर गंतव्य स्थान पर पहुंच जाता था।
उदाहरण के लिए जब कभी कोई व्यक्ति किसी दूसरे गांव में जाता और वह किसी व्यक्ति विशेष के घर के बारे में पूछता, तो बताने वाला व्यक्ति जवाब देता था कि आप यहां से 100 मीटर दूर सीधा जाएं, वहां पर आपको एक मंदिर मिलेगा जहां से आपको दाएं हाथ की ओर गली में मुड़ना है। उसके बाद आगे एक चौराहा आएगा वहां से आप बाएं ओर जाओगे तो दाएं तरफ पांचवा मकान उसी व्यक्ति का है।
उपरोक्त उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि मानचित्रण मानव का एक जन्मजात गुण है। अतः मानचित्रकला का इतिहास भी उतना ही पुराना है जितना कि स्वयं मानव का इतिहास। अंतर केवल इतना है कि प्राचीन समय में मानव विभिन्न स्थानों के मानचित्रों को दीवारों या गुफाओं आदि में बना लेता था। लेकिन वर्तमान समय में तकनीकी विकास से यह कार्य किसी छोटे कागज या छोटे से मोबाइल आदि में कर लेता है।
मानचित्रकला (Cartography) की परिभाषा
अंग्रेजी भाषा में मानचित्र कला को कार्टोग्राफी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है: चार्टों या मानचित्रों की रचना करना। इस प्रकार मानचित्र बनाने की कला एवं विज्ञान को ही मानचित्रकला कहा जाता है। आइए विभिन्न विद्वानों के द्वारा दी गई कुछ परिभाषाओं को जानते हैं
एफ. जे. मोंकहाउस के अनुसार ‘मानचित्र कला में धरातल के वास्तविक सर्वेक्षण से मानचित्र मुद्रण तक मानचित्रो के प्रक्रमों की की संपूर्ण श्रृंखला शामिल होती है।’
इरविन रेंज ने मानचित्र, उच्चावच प्रतिरूप, व मानारेख आदि बनाने की कला एवं विज्ञान को मानचित्रकला कहा है। उनके अनुसार सर्वेक्षणकर्ता धरातल की माप करता है; मानचित्रकार इन मापों को एक इकट्ठा करके उन्हें मानचित्र पर प्रदर्शित करता है तथा भूगोलवेत्ता मानचित्र पर प्रदर्शित तथ्यों का अर्थ निकलता है।
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि मानचित्र कला एक ऐसा विज्ञान और कला है जिसमें धरातल के किसी भाग के आलेखी निरूपण की ससभी विधियों जैसे मानचित्र, ग्लोब, चार्ट, आरेख व मानारेख आदि को पूरा करने के लिए शुरुआत से अंत तक की जाने वाली सभी प्रक्रियाएं शामिल होती हैं।
मानचित्र कला (Cartography) की प्रकृति
इरविन रेंज के अनुसार एक मानचित्रकार को 50% भूगोलवेत्ता, 30% कलाकार, 10% गणितज्ञ तथा 10% अन्य विषयों का ज्ञाता होना चाहिए। उनके इस कथन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि मानचित्रकला में कलात्मक तथा वैज्ञानिक दोनों ही पक्ष शामिल होते हैं। अतः मानचित्रकला की प्रकृति को अच्छे से जानने के लिए हमें इसके कलात्मक एवं वैज्ञानिक दोनों पक्षों पर अलग-अलग विचार कर लेना चाहिए।
मानचित्रकला (Cartography) का कलात्मक पक्ष
हम यह जान चुके हैं कि मानचित्रों के द्वारा किसी आकाशीय पिंड व पृथ्वी तल के किसी भाग को समतल कागज पर आलेखित किया जाता है। आलेखन का यह कार्य निश्चित वैज्ञानिक नियमों पर ही आधारित होता है। लेकिन मानचित्र में कला का पक्ष भी महत्वपूर्ण रहता है।मानचित्र दिखने में स्पष्ट व सुंदर होने चाहिए। लेकिन सवाल यह उठता है कि मानचित्रकला को किस सीमा तक कला माना जाना चाहिए। यह प्रश्न अभी तक विवादित है।
लेकिन यहां पर यह कहना आवश्यक है कि मानचित्रकला तथा कला का उद्देश्य एक समान नहीं होता। कलाकार तो अपनी कल्पना को मूर्त रूप देने के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, भले ही उसके द्वारा तैयार की गई कलाकृति अस्पष्ट हो अथवा सामान्य व्यक्ति के लिए महत्वहीन हो। इसके विपरीत मानचित्रकार मानचित्रण के नियमों में बंधकर कार्य करता है। इसका उद्देश्य कलाकार की भांति केवल कला की वस्तु बनाना ही नहीं होता, बल्कि उसे ऐसे मानचित्र बनाने होते हैं जो कलात्मक होने के साथ-साथ स्पष्ट हो तथा उपयोग में लाने के योग्य हों।
मानचित्रकार को विभिन्न स्थानों के बीच दूरियों के अनुपात, उनकी आकृति तथा रंग की अनुरूपता आदि का ध्यान रखना पड़ता है।
मानचित्रकला (Cartography) का वैज्ञानिक पक्ष
मानचित्र कला एक ऐसा विज्ञान है जो हमारी पृथ्वी के संबंध में अनेक प्रकार के विभिन्न जटिल तथ्यों को मानचित्रोत्रों, चार्टों आलेखों व मामनारेखों के माध्यम से दर्शाकर सरल, स्पष्ट एवं बोधगम्य बनाता है। क्योंकि मानचित्र में तथ्यों का वितरण दिखलाया जाता है। अतः मानचित्रकर को संबंधित तथ्यों का पृथ्वी पर वास्तविक वितरण एवं स्थान की अवस्थिति का ज्ञान होना अति आवश्यक है। जिसके लिए उसे भौतिक भूगोल का समुचित ज्ञान होना चाहिए। इस प्रकार मानचित्रकर अपने भौगोलिक ज्ञान के बल पर मानचित्र में प्रदर्शित किए जाने वाले आवश्यक तत्वों का चयन अच्छे से कर सकता है तथा अनावश्यक तथ्यों को छोड़ भी सकता है।
हम देखते हैं कि मानचित्र मूल रूप से पृथ्वी या उसके किसी भू-भाग का एक सामान्य चित्रण होता है। धरातल से संबंधित जटिल विवरण का सामान्यकरण करने के लिए मानचित्रकार को भूगोल के साथ-साथ उन सभी विषयों के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए जिनके संबंध में उसे मानचित्र बनाने होते हैं। क्योंकि मानचित्रकार को विभिन्न विषयों एवं समाज के विभिन्न वर्गों के मनुष्यों की जरूरत के अनुसार मानचित्र तैयार करने पड़ते हैं। इसीलिए मानचित्र कला एक अंतर अनुशासनिक विज्ञान भी है, जो विभिन्न भौतिक विज्ञानों, मानवीय विज्ञानों तथा सामाजिक विज्ञानों के बीच कड़ी का कार्य करता है। दूसरे शब्दों में मानचित्र कला विभिन्न विषयों के परस्पर सहयोग पर आधारित विज्ञान ही है।
मानचित्रकला (Cartography) का अध्ययन क्षेत्र
ग्लोब, मानचित्र, आरेख व मानारेख आदि को बनाने के लिए शुरुआत से लेकर अंत तक विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है। इन अवस्थाओं की विविधता एवं व्यापकता को देखकर मानचित्र कला के अध्ययन क्षेत्र की विशालता का पता लगाया जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों में मानचित्र कला की बहुत ही शाखाएं जैसे सांख्यिकीय मानचित्रकला, भौगोलिक मानचित्रकला, थेमेटिक मानचित्रकला, समाचार-पत्र संबंधी मानचित्रकला तथा वैज्ञानिक मानचित्रकला आदि सामने आए हैं।
वैसे तो इन सभी शाखाओं के विकास से मानचित्रकला की वर्तमान समाज में बढ़ती हुई लोकप्रियता एवं इसमें विशेषीकरण की प्रवृत्ति को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। लेकिन मानचित्रकला के मूल नियमों व तकनीक के विचार से देखा जाए तो ये सभी शाखाएं लगभग एक समान है। मानचित्र कला की प्रकृति के अनुसार इसके अध्ययन क्षेत्र को मूल रूप से दो भागों में विभाजित किया जाता है जिनका विवरण नीचे किया जा रहा है:-
सैद्धांतिक मानचित्रकला (Cartography)
सैद्धांतिक मानचित्रकला, मानचित्र कला की वह शाखा है जिसमें मानचित्र कला के विभिन्न सिद्धांतों एवं संकल्पनाओं का अध्ययन किया जाता है। एक सैद्धांतिक मानचित्रकार का उद्देश्य मानचित्र कला को विकसित करना एवं उसे अधिक से अधिक उपयोगी बनाना होता है। इस कार्य के लिए वह मानचित्रकला की विधियों में आवश्यक संशोधन करके नई एवं उत्कृष्ट विधियों का सृजन करता है। जिससे उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं के अनुरूप मानचित्रों की रचना की जा सके। सैद्धांतिक मानचित्रकला में मानचित्रो के संकलन, डिजाइन, अभिन्न्यास, आरेखन, संपादन एवं मुद्रण आदि से संबंधित विभिन्न पक्षों के वर्तमान मानकों का मूल्यांकन तथा नई खोजी गई विधियों एवं उच्च मानकों का सृजन एवं अध्ययन किया जाता है।
अनुप्रयुक्त मानचित्रकला (Cartography)
सैद्धांतिक मानचित्रकला के द्वाराजो सिद्धांत, मानक एवं निर्देश दिए जाते हैं,उनके अनुसार मानचित्र बनाने की वास्तविक क्रिया अनुप्रयुक्त मानचित्रकला कहलाती है। मानचित्रकला की इस शाखा में सर्वेक्षणकर्त्ता उपकरणों का प्रयोग करके तथा विभिन्न विवरणों को इकट्ठा करके, उनका वर्गीकरण व विश्लेषण करके तथा आलेखन करके मानचित्रों को पूर्ण करता है। इस प्रकार एक अनुप्रयुक्त मानचित्रकर विभिन्न विषयों से जुड़ी हुए जटिल तथ्यों एवं विचारों को आलेखित करके पढ़ने वाले के समक्ष प्रस्तुत करता है।