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विश्व के प्रमुख वनस्पति प्रदेश (Major Floral Regions of the World)

किसी खास प्रकार के आवासों (समान पर्यावरण वाले) में वानस्पतिक समूहों के बृहद्स्तरीय रूपों को वानस्पतिक जगत (floristic kingdoms) कहते हैं। प्रत्येक वानस्पतिक जगत में भी प्रादेशिक स्तर पर कुछ विभिन्नताएं अवश्य होती हैं, अत: प्रत्येक वानस्पतिक जगत को छोटे-2 क्षेत्रीय वानस्पतिक प्रान्तों (floristic provinces) या वानस्पतिक प्रदेशों में विभक्त किया जाता है। 

प्रत्येक वानस्पतिक प्रदेश में विभिन्न जीवन रूपों (life forms) वाले समस्त पादपों (जो उस प्रदेश में मौजूद होते हैं) को (यथा, वृक्ष, झाड़ी, घास आदि) शामिल किया जाता है। इस तरह वानस्पतिक प्रदेश को ‘Formation’ भी कहते हैं।

प्रजातियों के व्यापाक वितरण के आधार पर समस्त विश्व को 6 प्रमुख वानस्पतिक जगत (स्थलीय पौधों को) में विभक्त किया गया है, जिनका विवरण नीचे किया जा रहा है : 

विश्व के प्रमुख वनस्पति प्रदेश (Major Floral Regions of the World)

Major Floral Regions of the World
विश्व के प्रमुख वनस्पति प्रदेश (Major Floral Regions of the World)

आस्ट्रेलियन वनस्पति जगत (Australian flora)

  • इस वनस्पति जगत में  समस्त आस्ट्रेलिया महाद्वीप आता है तथा यहाँ पर विशिष्ट प्रकार के पौधे पाए जाते हैं जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण युकेलिप्टस है जिसकी संख्या आस्ट्रेलिया के सम्पूर्ण वृक्षों का 75 प्रतिशत है।
  • यहाँ पर युकेलिप्टस की 600 प्रजातियाँ (species) पाई जाती हैं। ऊँचे तथा बृहदकार छायादार वृक्षों से लेकर युकेलिप्टस तथा मरुस्थलीय बौने वृक्षों तक होते हैं। 
  • युकेलिप्टस को मिमोसा (mimosa) का सम्बन्धी बताया जाता है जिसकी कुछ प्रजातियाँ आज भी द० अमेरिका में पाई जाती हैं। 
  • आस्ट्रेलिया से युकेलिप्टस का मनुष्य ने प्रायः प्रत्येक महाद्वीप में विसरण किया है। भारत के प्रायः प्रत्येक प्रान्त में युकेलिप्टस के वृक्ष (मुख्य रूप से सड़कों तथा रेल लाइन्स के किनारे-किनारे) लगाए गए हैं तथा इनका विस्तार (मानव द्वारा) तीव्र गति से किया जा रहा है। 
  • महाद्वीपीय प्रवाह के कारण आस्ट्रेलिया के पृथक्करण (isolation) के फलस्वरूप यहाँ पर विशेष क्षेत्री वनस्पति (endemic flora) का विकास हुआ है।

केप वनस्पति जगत (Cape kingdom)

  • इस वनस्पति जगत का विस्तार अफ्रीका के दक्षिणी छोर पर हुआ है जहाँ पर शल्क कन्द (bulbs or tubers) वाले पौधों का विकास हुआ (ऐसे पौधों की जड़ों में मृदा के नीचे बल्ब या कन्द का जनन होता है जिनसे नये पौधों का जनन होता है, जैसे कन्दमूल आदि)। 
  • इस तरह के पौधे वाटिका के पुष्पी पौधे होते हैं यथा Lobelia, Kniphogia, Erica Freesia आदि प्रजातियाँ हैं। 
  • इस क्षेत्र से यूरोपीय लोगों द्वारा औपनिवेशीकरण के बाद इन पुष्पी प्रजातियों के पौधों को विश्व के अधिकांश देशों की वाटिकाओं में फूलों के लिए ले जाया गया। 
  • वैसे तो  इन वाटिका पुष्पी पौधों (garden flowering plants) का अन्यत्र विसरण एवं वितरण हुआ है परन्तु अपने मूल स्थान में ही इनकी संख्या तथा क्षेत्र में ह्रास हो रहा है क्योंकि इन्हें हटा कर कृषि के अन्तर्गत भूमि का क्षेत्र बढ़ाया जा रहा है। 
  • जिन क्षेत्रों में अभी तक कृषि का प्रसार नहीं हुआ है वहाँ पर Sclerophyllous झाड़ियाँ पाई जाती हैं जिनकी ऊँचाई एक मीटर से कई मीटर तक होती है। इनके नीचे शाकीय झाड़ियाँ (herbaceous shrubs) होती हैं। 
  • इस क्षेत्र में इन वनस्पतियों के विकास के पहले यहाँ पर सदाबहार शीतोष्ण कटिबन्धीय वन थे परन्तु यूरोपियन लोगों ने इन मौलिक वनों को साफ कर दिया तथा बाद में उक्त झाड़ियों का विकास हुआ।

अण्टार्कटिक वनस्पति जगत (Antarctic flora)

  • इसका विस्तार एक पतली मेखला में अण्टार्कटिका महाद्वीप के उत्तर में दक्षिण अमेरिका के पैटागोनिया तथा दक्षिणी चिली से न्यूजीलैंड तक पाया जाता है। 
  • इस जगत का सर्वप्रमुख पौधा Nothofagus (दक्षिणी बीच) है। 
  • न्यूजीलैंड में देशीय (native) शीतोष्ण घासों में (आज से लगभग 100 मिलियन वर्ष पूर्व) ऐसी प्रजातियाँ विकसित थीं, जो गुच्छेदार होती थीं जिनके साथ नरकुल (sedges, पानी के साथ उगने वाले) तथा द्विबीजपत्री (dicotyledons) झाड़ियाँ भी थीं। 
  • यूरोपीय लोगों के आगमन के साथ ही न्यूजीलैंड में उपरोक्त वनस्पति में पर्याप्त परिमार्जन (modification) हुआ है। इन परिमार्जित तथा रूपान्तरित घासों में आज भी दो प्रमुख प्रकार पाये जाते हैं : लघु तृणगुच्छ घास क्षेत्र (short tussock grasslands) जिनमें festuca तथा poa प्रमुख प्रजातियाँ हैं। 
  • न्यूजीलैंड के गर्म शीतोष्ण भागों में वनों में अनावृत्तबीजी (gymnosperms) तथा आवृत्तबीजी (angiosperms) वृक्षों की भरमार पाई जाती है। 
  • अनावृत्तबीजी में कोणधारी परिवार (family) में प्रमुख हैं – Podocarpaceae, Cupressaceae तथा Araucariaceae तथा आवृत्तबीजी समूह में पुष्पी पौधे आते हैं जिनमें प्रमुख हैं – Nothofagus, न्यूजीलैंड के उपोष्ण कटिबन्धीय वन सदाबहार प्रकार के हैं जिनमें ऊँचे- ऊँचे वृक्ष घने आवरण के रूप में पाए जाते हैं। 
  • न्यूजीलैंड में मानव क्रिया-कलापों तथा यूरोप से लाए गए स्तनधारी जानवरों (यथा लाल हिरन) के कारण वनस्पति समुदाय (vegetation community) में बड़े स्तर पर असंतुलन हो गया है। 

 पुराउष्णकटिबन्धी वनस्पति जगत (Paleo Tropical Floral Kingdom)

  • इसके अन्तर्गत अफ्रीका का अधिकांश भाग, द० प० एशिया, द० एशिया, द० पू० एशिया तथा चीन का द० एवं मध्यवर्ती भाग सम्मिलित किया गया है। 
  • इस वनस्पति जगत को तीन प्रमुख उपजगत में विभक्त किया जाता है – अफ्रीकी उपजगत, भारत-मलाया उपजगत तथा पोलीनेसियन उपजगत तथा इन उपजगत को पुन: कई प्रदेशों में विभक्त किया जाता है।
  • कुछ ऐसे पौधे हैं जो सभी प्रदेशों में पाए जाते हैं। 

नवायनवर्तीय जगत (Neotropical Kingdom)

  • इसके अन्तर्गत पैटागोनिया तथा द० चिली को छोड़कर समस्त द० अमेरिका का भाग सम्मिलित किया जाता है। 
  • इस जगत तथा पुरायनवर्तीय जगत (Palaeo Tropical Kingdom, खासकर अफ्रीका) के वनस्पति प्रदेशों के कई वंश (genera) उभय रूप में मिलते हैं। 
  • प्रारम्भ में जबकि गोण्डवानालैंड के सभी सदस्य आपस में संलग्न थे तो क्रीटैसियस युग में उष्ण कटिबन्धीय पुष्पी पौधों का विकास गोण्डावानालैंड के अधिकांश भागों में हुआ। बाद में गोण्डावानालैंड के विभंजन तथा द० अमेरिका के पश्चिम की ओर प्रवाह तथा अटलांटिक महासागर के सागर-नितल प्रसरण (sea-floor spreading) के फलस्वरूप विस्तार के कारण इसका गोण्डवानालैंड के अन्य सदस्यों से सम्बन्ध-विच्छेद हो गया जिस कारण (पृथक्करण isolation) द० अमेरिका तथा अफ्रीका की वनस्पतियों में अन्तर आ गया । 

उत्तरी वनस्पति जगत (Boreal Floral Kingdom)

  • इस वनस्पति जगत में मध्य अमेरिका को छोड़कर समस्त उ० अमेरिका, ग्रीनलैंड, समस्त यूरोप तथा उ० एशिया एवं आर्कटिक क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है तथा यह सभी वनस्पति जगत (floral kingdoms) में सर्वाधिक विस्तृत है। 
  • इसके अन्तर्गत कई उप-जगत तथा प्रदेशों का निर्धारण किया गया है। यथा: रूम सागरीय प्रदेश रॉकी पर्वतीय प्रदेश, अंटलाटिक उत्तरी अमेरिकी प्रदेश , आर्कटिक तथा उप-आर्कटिक प्रदेश, यूरोसाइबेरियन प्रदेश आदि। 
  • इन उप-जगत तथा वनस्पति प्रदेशों का एक दूसरे से अलगाव महासागर, पर्वत, मरुस्थलीय अवरोधों (barriers) द्वारा हुआ है।

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