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पारिस्थितिकीय निचे (कर्मता) (Ecological Niche)

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‘पारिस्थितिकीय निचे’ (Ecological Niche) की संकल्पना का प्रतिपादन सर्वप्रथम जे० ग्रिनेल द्वारा 1917 में किया गया परन्तु इसका विकास एवं सम्वर्द्धन चार्ल्स एल्टन (1927) ने किया। 

पारिस्थितिक निचे (Ecological Niche) का विभिन्न पारिस्थितिकिय विद्वानों द्वारा विभिन्न सन्दर्भों के लिए प्रयोग किया गया है। उदाहरण के लिए  प्रजातियों की भूमिका (role) के रूप में; किसी पारिस्थितिक तंत्र में किसी खास प्रजाति (species) के विशेष कार्य (particular function) के सन्दर्भ में; आवास कारक (habitat function) के रूप में; समस्त पर्यावरणीय दशाओं वाले किसी खास पारिस्थितिक तंत्र में प्रजातियों के वितरण प्रतिरूप के सन्दर्भ में, सामुदायिक भूमिका (community role) के रूप में; किसी खास पारिस्थितिक तंत्र में प्रजातियों के वितरण प्रतिरूप के संदर्भ में, आदि। 

पारिस्थितिकीय निचे (कर्मता) (Ecological Niche) का अर्थ

हम जानते हैं कि एक प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में पौधों एवं जन्तुओं की कई प्रजातियां होती हैं। तथा प्रत्येक प्रजाति अपना भोजन प्राप्त करने के लिए विभिन्न तरीके से सक्रिय होती है। अत: प्रत्येक प्रजाति किसी खास स्थान में ही निवास करती है। इस तरह के स्थान को, जिसमें किसी खास प्रजाति के अस्तित्व के लिए आवश्यक पर्यावरण की दशायें सुलभ होती हैं, पारिस्थितिकीय निचे (कर्मता)((Ecological Niche) कहते हैं। 

दूसरे शब्दों में ‘पारिस्थितिकीय निचे’ को निम्न रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है : 

‘पारिस्थितिकीय निचे” किसी खास प्रजाति के उसके पर्यावरण में कार्य की भूमिका (functional role) तथा स्थिति (position) को प्रदर्शित करता है। इसके अन्तर्गत प्रजातियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले संसाधनों की प्रकृति, उनके उपयोग के तरीकों एवं समय तथा उसके (प्रजाति) अन्य प्रजातियों के साथ अन्तक्रिया को भी शामिल किया जाता है’। (W.P. and M.A. Cunningham, 2003) 

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि किसी खास निचे की प्रजाति दूसरे निचे में नहीं पनप सकती है। हमे याद रखना होगा कि किसी खास पारिस्थितिक तंत्र में कई ‘निचे’ होते हैं।

प्रतिस्पर्धात्मक निष्कासन का नियम  

समय के साथ प्रजातियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों को प्राप्त करने के लिए नए-2 तरीके अपनाए जाते हैं। इन तरीकों में विकास के साथ ही पारिस्थितिक निचे में भी कालिक परिवर्तन (temporal changes) होते रहते हैं। इस तरह दो प्रजातियां एक ही निचे में निवास नहीं कर सकतीं। ऐसी स्थिति में ‘प्रतिस्पर्धात्मक निष्कासन का नियम’ (law of competitive exclusion) कार्य करता है। 

इस नियम के अनुसार दो प्रजातियां एक ही पारिस्थितिक निचे का उपयोग नहीं कर सकतीं तथा लम्बे समय तक एक ही आवास (habitat) में एक ही प्रकार के संसाधन के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकतीं (डब्लू० पी० कन्निंघम तथा यम० ए० कन्निंघम, 2003)। इनमें से कम से कम एक प्रजाति को निम्न वैकल्पिक मार्गों को अपनाना पड़ता है :

  • या तो एक प्रजाति दूसरे नए पारिस्थितिक निचे में प्रवास कर जाती है
  • या वह प्रजाति विलुप्त (extinct) हो जाती है 
  • या उसे एक ही प्रकार के संसाधन की प्राप्ति के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए अपने में शरीरक्रियात्मक (physiological) परिवर्तन करना होता है। 

संसाधन विभाजन (Resource Partition)

जीविका के लिए संसाधनों की प्राप्ति के लिए प्रतिस्पर्धा को न्यूनतम करने की प्रक्रिया को ‘संसाधन विभाजन’ (re- source partition) कहते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा एक ही आवास में विभिन्न प्रजातियां एक ही संसाधन के विभिन्न भागों का अलग-अलग रूप में सेवन करती हैं। परिणामस्वरूप उनका एक ही आवास में अस्तित्व बना रहता है। 

पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता पारिस्थितिकीय निचे की विविधता (diversity) पर निर्भर करती है। पारिस्थितिकीय निचे की विविधता जितनी ही अधिक होगी, पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता भी उतनी ही अधिक होगी, क्योंकि उस पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह मार्ग (अर्थात् आहार श्रृंखला) अधिक लम्बा होगा तथा प्रजातियों की संख्या में कम से कम उतार- चढ़ाव (fluctuation) होगा। यदि कुछ प्रजातियां विलुप्त हो जाती हैं तो पारिस्थितिक तंत्र अस्थिर हो जाता है क्योंकि कुछ ‘निचे’ खाली हो जाते हैं तथा ऊर्जा का मार्ग (आहार श्रृंखला) छोटा हो जाता है।

पारिस्थितिक निचे (Ecological Niche) की विशेषताएँ

यस० जे० मैकनाटन एवं यल०यल० उल्फ (1970) ने पारिस्थितिक निचे की निम्नांकित विशेषताएँ बताई हैं: 

  1. किसी भी प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के ‘निचे’ की प्रजातियों की संख्या उसमें उपलब्ध संसाधनों के प्रकारों एवं मात्रा पर निर्भर करती है। यदि संसाधन पर्याप्त हैं तो संख्या अधिक होगी, अन्यथा प्रजातियों की संख्या संसाधन कम होने पर कम होगी। 
  2. किसी ‘निचे’ के जीव समुदाय की प्रजातियों की संख्या में वृद्धि होने पर उन प्रजातियों के ‘निचे’ की औसत चौड़ाई (विस्तार) कम हो जाती है, अत: जीवन-निर्वाह के लिए संसाधन की कमी पड़ जाती है। 
  3. कम प्रभावशाली प्रजातियों की तुलना में अधिक प्रभावशाली प्रजातियों (dominant species) का पारिस्थितिकीय निचे अधिक विस्तृत होता है क्योंकि उन्होंने विशेष प्रकार के निचे के साथ अपने को अनुकूलित कर लिया है। 
  4. यदि किसी निचे का संकुचन हो जाता है, अर्थात् उसका विस्तार कम हो जाता है, तो विस्तृत या बड़े ‘निचे’ वाले पारिस्थितिक तंत्र में कई और प्रजातियों का समावेश हो सकता है।
  5. यदि किसी पारिस्थितिक तंत्र में आवासों (habitats) या स्थानों का समान वितरण है तथा उनमें संसाधनों का वितरण भी समान है तो किसी खास प्रजाति के प्रभावशाली होने की सम्भावना कम हो जाती है।  

पारिस्थितिक निचे (Ecological Niche) को प्रभावित करने वाले कारक

यस० ए० विटेकर तथा आर० बी० रूट (1973) के अनुसार निम्न तीन प्रकार के कारक पारिस्थितिक निचे को प्रभावित करते हैं: 

(1) आवास विचार

इसके अन्तर्गत भौतिक विचरों (variables) को सम्मिलित किया जाता है, जिनके अन्तर्गत उच्चावच्च (ऊँचाई), ढाल की मिट्टियों की नमी, मृदा की उर्वरता आदि प्रमुख हैं। 

(2) निचे विचर

इसके अन्तर्गत निम्न को सम्मिलित किया जाता है : 

  • स्थान की धरातलीय सतह से ऊँचाई
  • अन्तर्समुदाय प्रतिरूप में सम्बन्ध, अर्थात् आहार श्रृंखला
  • आहार ग्रहण करने की आदत आदि का प्रतिरूप
  • मौसमी एवं दैनिक समय की अवधि
  • भक्ष्य (prey) जन्तुओं की संख्या तथा उनका आकार
  • जन्तुओं की संख्या तथा सुलभ आहार में अनुपात, आदि। 

(3) संख्या विचर (population variables)

इसके अन्तर्गत निम्न को सम्मिलित किया जाता है 

  • पौधों एवं जन्तुओं की संख्या का घनत्व
  • प्रजाति का क्षेत्र
  • खाने की आवृत्ति (frequency) 
  • जनन की सफलता (अर्थात् जन्म लेने पर कितने जीवित रह पाते हैं) तथा जनन करने की क्षमता
  • जन्तुओं का स्वास्थ्य आदि।

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