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इस लेख में आप पारिस्थितिक तंत्र में पदार्थों का चक्रमण (Cycle of Elements in Ecosystem) जैसे कार्बन चक्र, अवसाद चक्र, फास्फोरस चक्र, नाइट्रोजन चक्र आदि के बारे में जानेंगे।
पारिस्थितिक तंत्र में पदार्थों का चक्रमण (Cycle of Elements in Ecosystem)
सौर ऊर्जा जीवमण्डल को पार करती हुई आती है और कुछ मात्रा में पृथ्वी पर अवशोषित होकर पुनः अन्तरिक्ष में चली जाती है। इस प्रक्रिया में कोई चक्र स्थापित नहीं होता। जीव एवं वनस्पति इस ऊर्जा को ग्रहण कर रासायनिक रूप में आत्मसात करते हैं और इसका उपभोग करते हैं। जैव भू-रसायन चक्र में जैविक पदार्थों का निर्माण, पोषण एवं विनाश होता रहता है। जीवों को अपनी जैविक क्रियाओं को चलाने में एवं जीव द्रव्य का निर्माण करने हेतु अनेक पदार्थों की आवश्यकता होती है।
कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन आदि तत्वों की अधिक मात्रा में तथा फास्फोरस, सल्फर, पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सोडियम, लोहा, मैंगनीज, ताँबा, कोबाल्ट, जिंक, बोरोन, एल्यूमिनियम, मोलब्डीनम् आदि तत्वों की अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है। पदार्थों के चक्रमण से कार्बनिक तथा अकार्बनिक तत्वों के बीच रासायनिक तत्व आदान-प्रदान होते हैं। फलस्वरूप भौतिक पर्यावरण और जैव तत्वों के बीच विभिन्न रासायनिक तत्वों का संचार होता है।
किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में सजीव एवं निर्जीव घटकों की चक्रीय रूप में क्रियाशीलता जैवीय-भू-रासायनिक चक्र (Biogeochemical Cycle) कहलाती है। कुछ महत्त्वपूर्ण चक्रमण निम्नलिखित हैं-
- कार्बन चक्र (Carbon Cycle)
- ऑक्सीजन चक्र (Oxygen Cycle)
- नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen Cycle)
- हाइड्रोजन चक्र (Hydrogen Cycle)
- फास्फोरस चक्र (Phosphorus Cycle)
- सल्फर चक्र (Sulphur Cycle)
- जल चक्र (Hydrological Cycle)
- अवसाद चक्र (Sediment Cycle)
- भूगर्भिक चक्र (Geological Cycle)
- पारिस्थितिक जीवन चक्र (Eco-life Cycle)
कार्बन चक्र (Carbon Cycle)
कार्बन जीवित पदार्थों में लगभग 18 प्रतिशत किंतु मृत पदार्थों में नगण्य होता है। जैव जगत का यह एक आधारभूत तत्व है। कार्बन वायुमण्डल से हरे पेड़ पौधों (प्राथमिक उत्पादकों), जीवों (उपभोक्ताओं) तथा जीवाणुओं, कवक एवं सूक्ष्म जीवों (अपघटकों) से होता हुआ मृत जीवों से पुनः वायुमण्डल में आ जाता है। कार्बन का प्रमुख स्रोत वायुमण्डलीय कार्बन डाइ-ऑक्साइड (CO2), ज्वालामुखी क्रिया, उद्योगों से निकली तथा जल में घुली हुई कार्बन-डाई-ऑक्साइड हैं।
हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा भोजन बनाने के लिए कार्बन डाई ऑक्साइड स्थिर कर लेते हैं। पौधे जीवों द्वारा खाये जाते हैं। पेड़-पौधों का कुछ भाग ईंधन, कोयला, पेट्रोलियम आदि का निर्माण करता है जो जलने पर पुनः वायुमण्डल में पहुँच जाता है। सभी पादप एवं जीव-जन्तु श्वसन क्रिया द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड वायुमण्डल में छोड़ते हैं। वायुमण्डल में लगभग 0.03 प्रतिशत कार्बन-डाई-ऑक्साइड पाई जाती है।
ऑक्सीजन चक्र (Oxygen Cycle)
ऑक्सीजन सभी प्राप्त 106 तत्वों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि यह जीवों की श्वसन क्रिया का आधार है। इसीलिए इसे प्राण-वायु कहा जाता है। सजीव घटक श्वसन क्रिया के दौरान ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं तथा कार्बन-डाई-ऑक्साइड पर्यावरण में छोड़ देते हैं। जीव वायुमण्डल अथवा जल में घुली हुई ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।
ऑक्सीजन जीवों की कोशिकाओं में भोज्य पदार्थों का दहन करके ऊर्जा छोड़ती है, जिससे सभी जीव अपनी उपापचयी क्रियाएँ सम्पन्न करते हैं। पौधे सूर्य के प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना विकास करते हैं तथा इस क्रिया में वे वायुमण्डलीय कार्बन-डाई-ऑक्साइड का उपयोग करते हैं तथा ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इस प्रकार पौधे जीवों द्वारा उत्सर्जित कार्बन-डाई-ऑक्साइड को ग्रहण करके उसे ऑक्सीजन में परिवर्तित कर देते हैं और यह प्रक्रिया एक चक्रीय रूप में सतत् चलती रहती है। वायुमण्डल में लगभग 21 प्रतिशत ऑक्सीजन की मात्रा पाई जाती है।
नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen Cycle)
जीवों में प्रोटीन तथा कुछ कार्बनिक अणुओं के निर्माण के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता पड़ती है। सामान्यतया यह सीधे वायुमण्डल से जीवों द्वारा ग्रहण नहीं की जा सकती। पौधे मृदा से नाइट्रेट्स के रूप में नाइट्रोजन ग्रहण करते हैं। कुछ वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को जीवाणुओं द्वारा स्थिर कर लिया जाता है जो पौधों की जड़ों में रहते हैं। कुछ जीवाणु शत्रु भाव से नाइट्रोजन स्थिर करते हैं।
नाइट्रोजन यौगिकीकरण जीवाणुओं द्वारा वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को घुलनशील अमोनिया तथा नाइट्रेट में रूपांतरित कर दिया जाता है। मिट्टी में घुले नाइट्रोजन के यौगिक रूप पौधों की जड़ों द्वारा शोषित कर अन्ततः एमीनो अम्ल तथा पादप प्रोटीन की रचना करते हैं। जीव-जन्तु जब इन पौधों को ग्रहण करते हैं तो नाइट्रोजन उनके शरीर में पहुँच जाता है।
जीव-जन्तुओं में उपापचय क्रिया के फलस्वरूप नाइट्रोजन अपशिष्ट जैसे; मूत्र-मल के उत्सर्जन से पुनः मृदा में पहुँच जाते हैं। मृदा में उपस्थित जीवाणु इन अपशिष्टों को अमोनिया एवं नाइट्रेट में बदल देते हैं। मृत पादप एवं जीव-जन्तुओं के उतकों का सूक्ष्म जीवों द्वारा विघटन करने से उनमें उपस्थित प्रोटीन अमोनिया यौगिक में परिवर्तित कर दिये जाते हैं। विघटित पदार्थ पुनः नाइट्रेट के रूप में पौधे द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं और नाइट्रोजन चक्र सतत् चलता रहता है। वायुमण्डल में सर्वाधिक लगभग 78 प्रतिशत मात्रा नाइट्रोजन होती है।
हाइड्रोजन चक्र (Hydrogen Cycle)
जलमण्डल हाइड्रोजन का एक मात्र स्त्रोत है। जीवधारियों में हाइड्रोजन प्रकाश संश्लेषण के द्वारा पाया जाता है। इस क्रिया में जल के अणु हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में टूटते हैं। हाइड्रोजन ग्लूकोज के अणुओं का हिस्सा बन जाता है। श्वसन क्रिया एवं अपघटन क्रिया द्वारा हाइड्रोजन के अणु ग्लूकोज से पृथक हो जाते हैं और ऑक्सीकरण की क्रिया से पुनः जल में बदल जाते हैं, इस प्रक्रिया की चक्रीय रूप में पुनरावृत्ति होती रहती है।
फास्फोरस चक्र (Phosphorus Cycle)
यद्यपि फास्फोरस वायुमण्डल में नहीं पाया जाता और शरीर में अल्प मात्रा में होता है तथापि इसका कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसमें न्यूक्लिक अम्ल का प्रमुख रचनात्मक भाग पाया जाता है। यह अम्ल आनुवंशिक कूट को संगृहीत करने का कार्य करता है। एडीनोसीन डाइ फास्फेट (ADP) में भी फास्फोरस फास्फेट रूप में होता है। यह जैवद्रव्य का आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण घटक है। यह चट्टानों की तहों में निक्षेपित रहता है।
इसका अधिकांश भाग समुद्रों में मिलता है जो कि उथले एवं गहरे अवसादों में पाया जाता है। यह पौधों द्वारा मिट्टी से आर्थो फास्फेट के रूप में अवशोषित होता है। पौधों से जीवों में तथा मृत पादप-जीवों से पुनः फास्फेटाइजिंग जीवाणुओं द्वारा मृदा में विलीन हो जाता है। मृदा अपरदन से समुद्र में चला जाता है जहाँ से इसका आंशिक उपयोग ही हो पाता है। अतः फास्फोरस चक्र एक पूर्ण चक्र नहीं होता है।
सल्फर चक्र (Sulphur Cycle)
सल्फर सभी प्रकार के प्रोटीन में पाया जाता है। यह जीव-जगत का एक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। सल्फर चक्र जल, वायु और मृदा को जोड़ने का कार्य करता है। सूक्ष्म जीवाणुओं की इस चक्र में अहम् भूमिका रहती है। ये जीवाणु अकार्बनिक सल्फेट के रूप में सल्फर ग्रहण करते हैं। कुछ ही जीवाणु सल्फर को कार्बनिक रूप में (अमीनो अम्ल, सिस्टीन) ग्रहण करते हैं।
कार्बनिक रूपी सल्फर बैक्टिरीया द्वारा खनिज रूप में बदल दी जाती है। कुछ सल्फर पेट्रोलियम ईंधनों के अधूरे दहन के कारण सल्फर-डाई-ऑक्साइड के रूप में वायुमण्डल में विलीन होकर अम्ल वर्षा के रूप में पुनः धरातल पर आ जाती है। दलदली जीवों एवं पौधों के सड़ने से कार्बनिक सल्फर वायुमण्डल में मिलकर पुन: ऐसिड रेन द्वारा पृथ्वी पर आ जाता है। इस प्रकार सल्फर अपना सफर एक चक्र के रूप में जारी रखता है।
जल चक्र (Hydrological Cycle)
जल जीवन का आधार है। जीव-जगत को इसकी प्राप्ति जल चक्र द्वारा होती है। जल चक्र समुद्री जल के वाष्पीभवन तथा वर्षा से सम्बन्धित है। सूर्यताप से समुद्री जल वाष्प में, वाष्प से बादल और उससे वर्षा होती है। वृष्टिजल बाहीजल के रूप में नदियों द्वारा पुनः समुद्र में मिलकर जल चक्र पूर्ण करता है।
अवसाद चक्र (Sediment Cycle)
धरातल पर आंतरिक एवं बाह्य बलों द्वारा रचनात्मक एवं अपरदनात्मक क्रियाओं द्वारा अवसाद चक्र चलता है। उत्थित भूदृश्य का बाह्य कारकों द्वारा अपरदन कर चट्टानों का अवसादीय स्थानांतरण एवं निक्षेपण कार्य इस चक्र द्वारा सम्पादित किया जाता है। भीतरी बल ज्यों ही नये भूदृश्य का उत्थान करते हैं बाह्य बल उसे अपरदन द्वारा अवसाद में बदल देते हैं।
भूगर्भिक चक्र (Geological Cycle)
इकोतंत्र भूगर्भिक शक्तियों ज्वालामुखी, भूकम्प, पर्वत निर्माण, उत्थान एवं निभज्जन द्वारा प्रभावित होता है। उदाहरणार्थ, महाद्वीपीय विस्थापन से सम्पूर्ण पारिस्थितिकी का स्वरूप परिवर्तित हो जाता है। इसी प्रकार आकस्मिक भूगर्भिक घटनाएँ इकोतंत्र को बदल देती हैं। भूगर्भिक घटनाएँ दीर्घकालीन प्रभाव छोड़ती हैं, यद्यपि इनका चक्रीय स्वरूप दृष्टिगोचर नहीं होता है।
पारिस्थितिक जीवन चक्र (Ecolife Cycle)
धरातल पर जीव-ऊर्जा-पदार्थ श्रृंखला का जीवन मृत्यु-चक्र (Biological Clock) इकोतंत्र को समय और स्थान से आबद्ध रखता है। बीज अंकुरित होते हैं, पौधे पुष्पित पल्लवित होते हैं; फलों से नये बीज निकलते हैं और पुराने पौधे समाप्त हो जाते हैं तथा एक जीवन चक्र पूरा हो जाता है, दूसरा जीवन चक्र शुरू हो जाता है।
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