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जलवायु के तत्वों जैसे धूप, तापमान, वाष्पीकरण, आर्द्रता, वाष्पोत्सर्जन (evapotranspiration), वर्षण (precipitation) आदि तथा मिट्टियों में नमी के आधार पर पौधों का निम्न 4 प्रमुख प्रकारों में वर्गीकरण किया जाता है :
जलवायु पर आधारित पौधों का वर्गीकरण (Classification of Plants Based on Climate)
हाइड्रोफाइट्स (hydrophytes)
स्थायी तर दशाओं तथा आवासों (wetlands, तरभूमि) जैसे डेल्टा, इस्चुअरी, दलदल, जलभराव वाले क्षेत्रों में उगने एवं विकसित होने वाले पौधों को कहते हैं। उदाहरणके लिए गंगा डेल्टा के सुन्दर वन के मैनग्रूव (सुन्दरी वृक्ष)।
ऐसे वृक्षों की निम्न विशेषतायें होती हैं :
- अत्यधिक जल में रहने की क्षमता
- चौड़ी मोमी पत्तियां, ताकि पत्तियों पर वर्षा का पानी न टिक सके वरन् सरक कर तुरन्त नीचे गिर जाय, परिणामस्वरूप अधिकतम प्रकाशसंश्लेषण हो सके
- जलीय सतह के ऊपर पौधों की तैरती जड़ें
- पौधों के खोखले तने जिसमें वायु रहती है ताकि वे जल में आसानी से तैर सकें आदि।
मैसोफाइट्स (mesophytes)
तर एवं शुष्क, उष्ण एवं सर्द दशाओं तथा ऋत्विक मौसम वाले क्षेत्रों में उगने एवं पनपने वाले पौधों को मेसोफाइट्स कहते हैं। ऐसे पौधों ने ऐसी आकृतिक (morphological) विशेषताएँ विकसित की हैं जो उन्हें चरम मौसम वाली दशाओं (यथा : चरम शुष्कता, अत्यधिक जलवर्षा, चरम ठंड या ताप) में अपना अनुकूलन (adaptation) तथा समायोजन (adjustment) करने में सहायक होती हैं।
जीवन-काल के आधार पर मेसोफाइट्स पौधों को निम्न 2 प्रकारों में विभाजित करते हैं :
लघु अवधि वाले (short-lived) क्षणभंगुर (ephemeral) तथा वार्षिक पौधे
वार्षिक मेसोफाइट्स पौधे लघु अवधि वाले, क्षणभंगुर या मौसमी होते हैं। अंकुरण (germination), वृद्धि, पुष्पन (flowering), फल लगने तथा उनके मर जाने तक का एक सम्पूर्ण जीवन चक्र एक मौसम के अंदर ही पूर्ण हो जाता है। ऐसे पौधे अत्यधिक सूखे वाली लम्बी अवधि को नहीं झेल पाते हैं वरन् नष्ट हो जाते हैं। वार्षिक शाक (herbs) तथा अन्य वार्षिक पौधे आर्द्र मौसम में उगते हैं तथा अत्यधिक हरे-भरे हो जाते हैं परन्तु वर्षाकाल के समाप्त होते ही मर जाते हैं तथा पूरा क्षेत्र वीरान हो जाता है।
बारहमासी (perennial) मेसोफाइट
ये पौधे पर्णपाती पौधे (deciduous plants) होते हैं जो, नमी को संरक्षित करने के लिए शुष्क मौसम में अपनी पत्तियां गिरा देते हैं। आर्द्र मौसम आने पर वे पुन: हरे-भरे हो जाते हैं। इस तरह स्पष्ट है कि बारहमासी मेसोफाइट पौधे मौसमी जलवायु अर्थात् मानसूनी जलवायु के पौधे होते हैं।
तर वर्षा काल में पर्णपाती पौधों में अधिकतम वानस्पतिक वृद्धि होती है जिस कारण वृक्षों के तनों की मोटाई (girth) में वृद्धि हो जाती है तथा वार्षिक वृद्धि वलय (annual growth ring) का निर्माण होता है। इन वार्षिक वृद्धि वलय के आधार पर पुरावनस्पतिशास्त्री (paleobotanist) वृक्षों की आयु का परिकलन करते हैं जिसे वृक्ष कालानुक्रमण (dendrochronology) कहते हैं।
मरुद्भिद् पौधे (xerophytes)
ये पौधे उष्णकटिबन्धी मरुस्थली जलवायु की शुष्क दशाओं में पनपने वाले पौधे होते हैं। इस प्रकार सहारा तुल्य जलवायु के जेरोफाइट पौधों ने विशिष्ट प्रकार की अपनी जड़ें, तने (stems) तथा पत्तियां विकसित कर ली हैं कि वे शुष्कता, उच्च तापमान तथा अत्यधिक वाष्पीकरण को सहन कर सकें, आर्द्रता क्षय को कम कर सकें तथा अपने में जल की मात्रा का संरक्षण कर सकें।
इन्होंने आर्द्रता संरक्षण की अपनी स्वयं की विधायें (devices) विकसित कर ली हैं जैसे लम्बी जड़ें, मोटी छाल से ढके मोटे-मोटे तने (stems), मोमी पत्तियां, कांटें तथा छोटी-छोटी पत्तियां ताकि वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन को कम कर सकें और नमी का न्यूनतम क्षय हो पाए। अधिकांश वनस्पतियां झाड़ियों के रूप में मिलती हैं। कैक्टस (नागफनी), बबूल, खजूर, खेजरा वृक्ष, बेर, कुछ फूल वाले पौधे आदि जेरोफाइट वर्ग की वनस्पति के प्रमुख पौधे हैं।
हिमोद्भिद या शीतानुकूलित (cryophytes)
इस श्रेणी के पौधों के अन्तर्गत वे पौधे आते हैं जो आर्कटिक टुण्ड्रा जलवायु की अति शीतल दशाओं के साथ पूर्णतया अनुकूलित (well adapted) होते हैं। टुण्ड्रा बायोम में भी मृदा में नमी की स्थिति तथा वनस्पति के बीच पूर्ण सहसम्बन्ध पाया जाता है। लिथोसोल (पूर्ण प्रवाह युक्त मिट्टी जिसमें आधार शैल पतली होती है) में लाइकेन तथा मॉस का शुष्क समुदाय (xeric community) विकसित होता है, आर्कटिक भूरी मिट्टियों पर बौनी झाड़ियाँ तथा बौने शाकीय पौधे (dwarf herbaceous plants) विकसित होते हैं तथा बॉग मृदा में सेज तथा मॉस का विस्तार पाया जाता है।
आर्कटिक टुण्ड्रा में शीत की कठोरता तथा सूर्य प्रकाश के अभाव के कारण समस्त विश्व की कुल पादप प्रजातियों की मात्र 3 प्रतिशत पादप प्रजातियाँ ही विकसित हो पायी हैं। यहाँ की वनस्पतियाँ शीतानुकूलित (cryophytes) होती हैं अर्थात् इनमें अतिशीत दशाओं को सहन करने की सामर्थ्य होती है।
यन० पोलुमिन (1959) के अनुसार आर्कटिक टुण्ड्रा में शीतानुकूलित पादपों के 66 परिवार (families) पाए जाते हैं। उत्तर की ओर जाने पर शीत की कठोरता बढ़ती जाती है तथा पादप-प्रजातियों की संख्या भी कम होती जाती है। अधिकांश पादप गुच्छेदार (tufted) होते हैं तथा ऊँचाई 5 से 8 सेण्टीमीटर तक होती है। ये जमीन से चिपके रहते हैं क्योंकि धरातल का तापमान ऊपर स्थित वायु के ताप से अपेक्षाकृत अधिक होता है।
झाड़ियाँ प्रायः उन भागों में विकसित होती हैं जहाँ पर हिम का ढेर उन्हें तेज चलने वाली बर्फानी हवाओं से बचा सके। इनमें आर्कटिक विलो (Salix herbacea तथा Salix arctica) प्रमुख हैं। इनके तने तथा पत्तियाँ मृदा स्तर के ऊपर कुछ सेण्टीमीटर तक ही होती हैं। इनकी वृद्धि दर अत्यन्त मन्द होती है परन्तु इनकी आयु बहुत अधिक होती है ( 150 से 300 वर्ष पुराने पादपों के उदाहरण मिले हैं)। सदाबहार पुष्पी पादपों का विकास धरातल पर गद्दे (cushion) के रूप में होता है। इनमें प्रमुख हैं मॉस कैम्पियन (Silene acaulis)।
टुण्ड्रा की कुछ पादप प्रजातियों में गूदेदार पत्तियाँ (fleshy leaves) होती हैं। Saxifirage प्रजाति के कुछ पादपों (यथा Saxifiragus nivalis) का आकार गुलदस्ते जैसा होता है। कुछ पादपों का विकास गुच्छों (tussocks) के रूप में होता है जबकि कुछ चटाई की तरह भूमि पर क्षैतिज रूप में फैलते हैं (यथा Dryas octopetala) I आर्कटिक टुण्ड्रा के पादपों का विकास काल लघु ग्रीष्म काल (50 दिन तक) होता है जिस समय इनके अवयवों का विकास, फूलों का खिलना, परागण, बीजों का बनना, उनका पकना तथा अन्ततः विसरण अदि क्रियाएं सम्पादित होती हैं।
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