पारिस्थितिक तंत्र की विशेषताएँ (Characteristics of Ecosystem)
किसी भी पारिस्थितिक तंत्र की निम्न मूलभूत विशेषताएँ होती हैं :
- किसी निश्चित स्थान-समय इकाई वाला पारिस्थितिक तंत्र उस क्षेत्र के सभी जीवधारियों (पौधों तथा जन्तु) एवं उसके भौतिक पर्यावरण के सकल योग को प्रदर्शित करता है।
- पारिस्थितिक तंत्र के तीन मूलभूत संघटक होते हैं : (i) ऊर्जा संघटक, (ii) जैविक (बायोम) संघटक, तथा (iii) अजैविक या भौतिक (निवास्य क्षेत्र) संघटक
- प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र का भूतल पर एक सुनिश्चित क्षेत्र होता है। यह पारिस्थितिक तंत्र का क्षेत्रीय आयाम (spatial dimension) होता है।
- पारिस्थितिक तंत्र का समय-इकाई के सन्दर्भ में पर्यवेक्षण किया जाता है। अर्थात् पारिस्थितिक तंत्र का समय आयाम (temporal dimension) भी होता है।
- किसी भी पारिस्थितिक तंत्र के जैविक, ऊर्जा तथा अजैविक (भौतिक) संघटकों के बीच जटिल अन्तर्कियाएं होती हैं, साथ ही साथ विभिन्न जीवों में भी पारस्परिक क्रियाएं होती हैं।
- पारिस्थितिक तंत्र एक विवृत तंत्र (open system) होता है जिसमें ऊर्जा तथा पदार्थों का सतत निवेश (input) तथा बहिगर्मन (output) होता रहता है।
- जब तक पारिस्थितिक तंत्र के एक या अधिक नियंत्रक कारकों (सीमाकारी कारक-limiting factors) में अव्यवस्था नहीं होती है, पारिस्थितिक तंत्र अपेक्षाकृत स्थिर समस्थिति (stable equilibrium) में होता है।
- पारिस्थितिक तंत्र विभिन्न प्रकार की ऊर्जा द्वारा चालित होता है परन्तु सौर ऊर्जा सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है।
- पारिस्थितिक तंत्र एक कार्यशील इकाई (functional unit) होता है जिसके अन्तर्गत जैविक संघटक (पौधे, मानव सहित जन्तु तथा सूक्ष्म जीव) तथा भौतिक या अजैविक संघटक श्रृंखलाबद्ध वृहद्स्तरीय चक्रीय क्रियाविधियों (जैसे ऊर्जा प्रवाह, जलीय चक्र, जैवभूरासायनिक चक्र, खनिज चक्र, अवसाद चक्र आदि) के माध्यम से घनिष्ठ रूप से एक दूसरे से सम्बन्धित तथा आबद्ध होते हैं।
- प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र की अपनी निजी उत्पादकता होती है। वास्तव में पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता उसमें (पारिस्थितिक तंत्र में) ऊर्जा की मात्रा की सुलभता पर निर्भर करती है। उत्पादकता किसी क्षेत्र में प्रति समय इकाई में जैविक पदार्थों की वृद्धि की दर की द्योतक होती है।
- पारिस्थितिक तंत्र में मापक आयाम (scale dimension) भी होता है। अर्थात् पारिस्थितिक तंत्र में क्षेत्रीय विस्तार की दृष्टि से विभिन्नता होती है। यह अति लघु आकार वाला हो सकता है, जैसे एक गोशाला या एक वृक्ष या किसी वृक्ष का कोई एक भाग (जड़, तना या पत्तियों सहित शाखायें) या वृहत्तम आकार वाला हो सकता है, जैसे समस्त जीवमण्डल । अतः क्षेत्रीय आकार के आधार पर पारिस्थितिक तंत्र को कई कोटियों में विभाजित किया जा सकता है।
- किसी भी पारिस्थितिक तंत्र के विकास के विभिन्न अनुक्रम (sequences) होते हैं। पारिस्थितिक तंत्र के विकास के अनुक्रमों की संक्रमणकालीन अवस्थाओं (transitional stages) को सेरे (sere) कहते हैं। सेरे पारिस्थितिक तंत्र के श्रृंखलाबद्ध क्रमिक विकास को प्रदर्शित करता है जो प्राथमिक अनुक्रम (primary succession) से प्रारम्भ होकर अन्तिम अनुक्रम में परिणत होता है, जिसे ‘चरम’ (climax) या ‘जलवायु चरम’ (climatic climax) कहते हैं। अन्तिम अनुक्रम की प्राप्ति के बाद पारिस्थितिक तंत्र सर्वाधिक स्थिर दशा को प्राप्त हो जाता है। अत: पारिस्थितिक तंत्र के विकास का अध्ययन पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से पर्यावरण नियोजन में सहायक हो सकता है।
- पारिस्थितिक तंत्र प्राकृतिक संसाधन तंत्र होते हैं।
- पारिस्थितिक तंत्र एकल संकल्पना (monistic concept) है क्योंकि भौतिक पर्यावरण (भौतिक या अजैविक संघटक) तथा जैविक संघटक (मनुष्य, जन्तु, सूक्ष्म जीव तथा पौधे) एक ही ढाँचे (framework) में साथ-साथ होते हैं। अत: इन संघटकों (जैविक तथा अजैविक दोनों) में आपसी अन्तक्रियाओं के प्रारूप का अध्ययन आसान हो जाता है।
- यह संरचित तथा सुसंगठित तंत्र होता है।
- पारिस्थितिक तंत्र का, सुविधा के लिए, ब्लैक बाक्स मॉडल के सन्दर्भ में अध्ययन किया जा सकता है। ब्लैक बाक्स उसे कहते हैं जो आन्तरिक जटिलताओं के लिए अपारदर्शक होता है। इसके तहत निवेश (input) तथा निर्गम (output) के विचरों (variables) का अध्ययन किया जा सकता है परन्तु उसके आन्तरिक विचरों को नजर अन्दाज कर दिया जाता है ताकि तंत्र की जटिलताओं को कम किया जा सके।