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कोटि-आकार नियम (Rank-Size Rule) 

किसी प्रदेश के नगरों के आकार में भिन्नता उस प्रदेश के नगरीकरण की विशेषताओं को दर्शाती है। यह माना जाता है कि कोटि-आकार नियम (Rank-Size Rule) नगरों के आकार के अनुसार उनके वितरण का सही चित्र प्रस्तुत करता है।

नगरों के आकार और उनकी कोटि (Rank) के बीच एक नियमित सम्बन्ध हो सकता है। इस पर सबसे पहले एफ० ओयरबक (F. Auerbach) ने 1913 में ध्यान दिया। इसके बाद कई विद्वानों ने इस पर शोध और विचार प्रस्तुत किए। जिनमें जी० के जिफ (1949), वाल्टर इजार्ड (1956), सी० टी० स्टीवर्ट (1958), बी० जे० एल० बेरी और डब्ल्यू० एल० गैरीसन (1958), एन० बी० के० रेड्डी (1969), तथा एस० निवास (1982) आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

कोटि-आकार नियम (Rank-Size Rule) 

कोटि-आकार नियम  (Rank-Size Rule) एक परिकल्पना है, जो नगरों के आकार और उनकी श्रेणी के बीच के संबंध को समझाने का एक आदर्श मॉडल है। इस नियम के अनुसार, “नगरों का आकार एक निश्चित क्रम में होता है और उनका आपस में संबंध होता है।”

मुख्य बिंदु:

  1. यह नियम नगर तंत्र (Urban System) की अभिव्यक्ति का माध्यम है।
  2. इसके अनुसार, नगरों की श्रेणी और उनकी जनसंख्या में एक स्पष्ट संबंध होता है।
  3. किसी भी क्षेत्र (देश, राज्य, या विश्व) में:
    • कुछ बड़े नगर,
    • कई मध्यम आकार के नगर,
    • और कई छोटे नगर होते हैं।

नियम का अनुपात:

यदि किसी क्षेत्र के नगरों को जनसंख्या के आधार पर अवरोही क्रम (Descending Order) में व्यवस्थित किया जाए, तो:

  • दूसरी श्रेणी के नगर की जनसंख्या पहली श्रेणी के नगर की जनसंख्या की आधी होगी।
  • तीसरी श्रेणी के नगर की जनसंख्या पहली श्रेणी के नगर की जनसंख्या का एक-तिहाई होगी।
  • इसी तरह से अन्य श्रेणियों के नगरों की जनसंख्या में यह अनुपात घटता जाएगा।

इस प्रकार सबसे बड़ा नगर (पहली श्रेणी का नगर) से शुरू होकर, हर श्रेणी का नगर पहले के अनुपात में घटता है। इस नियम को कोटि-आकार नियम या Rank-Size Rule कहा जाता है।

कोटि-आकार नियम (Rank-size rule) का सूत्र यह है:
Pn =P₁  × (n)-1

  • Pn का मतलब है किसी क्षेत्र के नगरों का कोटि-क्रम
  • यह क्रम 1 से शुरू होकर n संख्या तक जाता है।
  • P₁ से उस क्षेत्र के सबसे बड़े नगर की जनसंख्या को दर्शाया जाता है।
  • Pn का मतलब है किसी विशेष कोटि के नगर की जनसंख्या।

उदाहरण के लिए यदि किसी प्रदेश (जैसे उत्तर प्रदेश) के सबसे बड़े नगर कानपुर की जनसंख्या 2011 में 45.81 लाख थी, तो:

  • P₁ = 45.81 लाख।
  • दूसरी कोटि के नगर की जनसंख्या:
    P2 = 45.81 ÷ 2 = 22.90 लाख।
  • तीसरी कोटि के नगर की जनसंख्या:
    P3 = 45.81 ÷ 3 = 15.27 लाख।
  • बारहवीं कोटि के नगर की जनसंख्या:
    P12 = 45.81 ÷ 12 = 3.81 लाख।

कोटि-आकार नियम (Rank-Size Rule) का चित्रीय प्रदर्शन

Rank Size Rule

(1) एक प्रदेश के नगरों को कोटि-आकार के अनुसार रेखाचित्र द्वारा दिखाया जाता हैं। जब रेखाचित्र को बनाने में अंकगणितीय अक्ष का प्रयोग किया जाता है, तब नगरों के कोटि-आकार सम्बन्धों की रेखा ऊपर की ओर नतोदर रूप ग्रहण कर लेती है।

(2) लॉग स्केल का उपयोग

  • अगर दोनों अक्षों (x और y) पर लॉग स्केल का उपयोग किया जाए, तो रेखा सीधी बनती है।
  • इंग्लैंड और वेल्स के नगरों को कोटि-आकार नियम के अनुसार दिखाने के लिए यह विधि अपनाई गई।
  • सीधी रेखा सैद्धांतिक (theoretical) परिणामों की ओर संकेत करती है।
  • वक्र रेखा वास्तविक नगरों के कोटि और जनसंख्या को दर्शाती है।
  • इस पद्धति से स्पष्ट होता है कि लंदन की जनसंख्या नियमित अनुमान से अधिक है, जबकि छोटे नगर नियम के अनुरूप हैं।

(3) लॉग नॉर्मल वितरण

  • नगरों को लॉग नॉर्मल वितरण के अनुसार कोटि और आकार में दर्शाया जा सकता है।

(4) संचयी प्रतिशत का उपयोग

  • y-अक्ष पर नगरों की संख्या को संचयी प्रतिशत (Cumulative Percentage) के रूप में दिखाया जाता है।
  • x-अक्ष पर नगरों को उनकी जनसंख्या के आकार के अनुसार प्रदर्शित किया जाता है।
  • इसे लॉगरिथ्मीय नापक (Logarithmic Scale) कहते हैं।
  • एन. वी. के. रेड्डी ने अपने अध्ययन में बताया कि अगर वितरण लॉग नॉर्मल है, तो ग्राफ सीधी रेखा बनाएगा।

जी. के. जिफ का कोटि-आकार नियम  (Rank-Size Rule) में योगदान

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, इस शताब्दी की शुरुआत से ही इस नियम पर विद्वानों का ध्यान गया है। फेलिक्स ओयरबाक पहले जर्मन विद्वान थे, जिन्होंने 1913 में नगरों के आकार और उनकी श्रेणी में एक नियमित संबंध बताया। 1936 में एच. डब्ल्यू. सिंगर ने पारेटो के आय नियम को नगरों के आकार पर लागू करके देखा और बताया कि यह नियम नगरों को उनके आकार के हिसाब से वर्गीकृत करने में मदद कर सकता है।

जी. के. जिफ ने 1949 में इस कोटि-आकार नियम  (Rank-Size Rule) की विस्तार से व्याख्या की। तभी से इस नियम को मान्यता मिली और इसका उपयोग बढ़ा। जिफ ने नगरों के आकार और श्रेणी में संबंध को समझाया और इसे मानव व्यवहार का एक सामान्य सिद्धांत बताया। उन्होंने एक सूत्र बनाया, जिससे नगरों के आकार और श्रेणी के बीच संबंधों की पुष्टि हुई। यह सूत्र अमेरिका के 100 बड़े महानगरीय क्षेत्रों का 1940 की जनसंख्या के आधार पर अध्ययन करके बनाया गया। सूत्र इस प्रकार है:
P₁ = P₁/r
जहाँ,

  • P₁ = सबसे बड़े नगर की जनसंख्या
  • P = किसी श्रेणी के नगर की जनसंख्या
  • r = उस नगर की श्रेणी

जिफ के अनुसार, यदि सबसे बड़े नगर की जनसंख्या 10 लाख है, तो 10वें स्थान के नगर की जनसंख्या 1 लाख होगी और 100वें स्थान के नगर की जनसंख्या 10 हजार होगी। यह नियम एकरूपता (Uniformity) और विविधता (Diversification) दोनों से प्रभावित होता है। विविधता छोटे नगरों को बढ़ावा देती है, जिससे इनकी संख्या अधिक होती है। जबकि एकरूपता बड़े नगरों को कम संख्या में स्थापित करती है।

नगरों की श्रेणी और आकार का निर्धारण करने के लिए:

  1. महानगरीय प्रदेश के नगरों को उनकी जनसंख्या के आधार पर श्रेणी दी जाती है।
  2. हर नगर की पारस्परिक श्रेणी (Reciprocal rank) तय की जाती है।
  3. सभी पारस्परिक श्रेणियों का योग किया जाता है।
  4. प्रदेश की कुल जनसंख्या को पारस्परिक श्रेणी संख्या के योग से भाग देकर पहले बड़े नगर की जनसंख्या ज्ञात की जाती है।

यदि पहले नगर की जनसंख्या को 2 से भाग दें, तो दूसरे नगर की जनसंख्या मिलेगी। इसी तरह 4 से भाग देने पर चौथे नगर की जनसंख्या मिलेगी। इस प्रक्रिया से सभी नगरों की जनसंख्या निकाली जा सकती है। इन सभी नगरों की जनसंख्या जोड़ने पर कुल प्रदेश की जनसंख्या के बराबर होगी।

जिफ ने इस नियम को इस सूत्र से समझाया:
ri (Piq) = k
जहाँ,

  • r = नगर की श्रेणी
  • Pi = नगर की जनसंख्या
  • k = एक स्थिरांक

यदि विभिन्न नगरों की जनसंख्या को दोहरे लॉग ग्राफ पर दर्शाया जाए, तो ग्राफ सीधी या लगभग सीधी रेखा के रूप में दिखेगा।

Important Note: 

कोटि-आकार नियम  (Rank-Size Rule) पर कई विद्वानों ने नगरों के आकार में पाई जाने वाली समानताओं पर सीधे या परोक्ष रूप से विचार किया है। 1875 में वॉन थ्यूनेन ने कृषि अवस्थिति सिद्धांत दिया, वी. पारेटो ने आय वितरण का नियम बताया, 1901 में वेबर ने उद्योगों की अवस्थिति का सिद्धांत पेश किया, 1939 में मार्क जेफरसन ने प्राइमेट नगर नियम की बात की, और क्रिस्टालर (1933) व लॉश (1939) ने केंद्रीय स्थल सिद्धांत प्रस्तुत किया। इन सभी ने किसी न किसी रूप में नगरों के कोटि-आकार नियम को समझाने का प्रयास किया है।

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