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नगरों का कार्यिक वर्गीकरण (Functional Classification of Towns)

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Functional Classification of Towns
नगरों का कार्यिक वर्गीकरण

नगरों का कार्यिक वर्गीकरण ( Functional Classification of Towns)

विभिन्न विद्वानों द्वारा किए गए नगरों के कार्यिक वर्गीकरण के आधार पर नगरों को निम्नलिखित 8 वर्गों में बाँट सकते हैं- 

सुरक्षा केन्द्र (Defence Centres)

ऐतिहासिक काल में विश्व में अनेक नगरों की स्थापना सुरक्षा की दृष्टि से की गई थी। ऐसे सुरक्षा नगरों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बाँटा जाता है:

दुर्ग नगर

यूरोप में दुर्गों का निर्माण आरम्भिक काल से होता आया है। जब यूरोपीय जातियों ने उपनिवेशों की स्थापना की तो सुरक्षा के लिए दुर्गों का भी निर्माण किया। रोमन उपनिवेश भी इसी प्रकार के दुर्ग नगर थे। वे रोमन साम्राज्य की सुरक्षा करते थेः। बेसानकन (Besancon), लिंकन (Lincoln), ट्रियर (Trier), कोलोन (Cologne) आदि नगरों का निर्माण इसी उद्देश्य से हुआ था। 

फ्रांस ने भी अल्जीरिया को अपने अधीन करके वहाँ पर सुरक्षा की दृष्टि से दुर्गों का निर्माण किया। रूस में भी अनेक दुर्गों का निर्माण किया गया, जहाँ नगर बस गए। भारत में मध्यकाल में मुगलों तथा राजपूतों ने अनेक दुर्ग बनवाए, जहाँ पर नगर बस गए । चित्तौड़गढ़, जोधपुर, अजमेर, रणथम्भौर, ग्वालियर, चन्देरी आदि अनेक दुर्ग नगर हैं। 

नौ-सैनिक केन्द्र

ये नगर समुद्री तट पर होते हैं और प्रायः बन्दरगाह के रूप में विकसित हो जाते हैं। इनका मुख्य कार्य गश्त लगाने वाले बेड़ों को आश्रय देना होता है। कुक्सहैवन ब्रेस्ट, पोर्ट्समाउथ तथा डेवनपोर्ट ऐसे ही नगर हैं।

वायु-सैनिक नगर

आमतौर पर हवाई अड्डे नगरों से दूर बनाए जाते हैं किन्तु फिर भी इन अड्डों के आस-पास बस्ती बस जाती है, जो बाद में वायु-सैनिक नगरों के रूप में विकसित हो जाते हैं। आइसलैंड की राजधानी रेकजाविक (Reckjavik) से तीस किलोमीटर की दूरी पर बनाए गए केफ्लाविक (Keflavik) हवाई अड्डे के निकट एक छोटा-सा नगर विकसित हो गया है।

उत्पादन केन्द्र (Production Centres)

उत्पादन की प्रकृति के अनुसार इन नगरों को दो वर्गों में रखा जाता है-

प्राथमिक उत्पादन केन्द्र (Primary Production Centres)

इनका संबंध प्राथमिक उत्पादनों से है, जिनमें खनिज, वन उत्पाद, मत्स्य आदि सम्मिलित हैं। इस वर्ग के नगर सामान्यतः खानों, वनों तथा समुद्र-तटों के निकट बसते हैं।

  • खनन केन्द्र: जब किसी जगह कोई महत्त्वपूर्ण खनिज प्राप्त होता है तो वहाँ पर श्रमिक और विशेषज्ञ एकत्रित हो जाते हैं और एक नगर बस जाता है। कोयले तथा लोहे जैसे भारी खनिजों के स्रोत के निकट प्रायः उद्योग भी स्थापित हो जाते हैं, जिस कारण नगर तेजी से उन्नति करते हैं। भारत में झरिया, रानीगंज, बोकारो आदि कोयले के कारण तथा खेतड़ी (राजस्थान) ताँबे के कारण विकसित हुए हैं। ऑस्ट्रेलिया में कालगूली व कूलगार्डी, अफ्रीका में जोहन्सबर्ग व एलिजाबेथविले, ब्रिटेन का ब्लैक कण्ट्री व किम्बलें, संयुक्त राज्य अमेरिका में पेन्सिलवेनिया आदि नगर खनन के कारण विकसित हुए हैं।
  • तेल उत्पादन के केन्द्र: तेल उत्पादक क्षेत्रों ने भी कई नगरों को जन्म दिया है। सन् 1859 में संयुक्त राज्य अमेरिका के पेन्सिलवेनिया राज्य के टाइटसविले नामक स्थान पर तेल का प्रथम कुआँ मिलने के तुरन्त बाद ऑयल सिटी (Oilcity), ओलियन (Olean) तथा पेट्रोलिया (Petrolia) जैसे तेल से संबंधित नामों वाले कई नगर बस गए। भारत में डिगबोई (असम) तथा नवगाँव (गुजरात) भी तेल के कारण ही विकसित हुए हैं। मध्य-पूर्व में नफ्त सफेद, हफ्तकेल, मस्जिद-ए- सुलेमान, नफत-ई-शाही, लाली, गेच, बाबा गुरगुर आदि इसी प्रकार के नगर हैं। अजरबैजान का प्रसिद्ध नगर बाकू भी तेल के कारण ही विकसित है। 
  • लकड़ी चीरने व काटने के केन्द्र: कनाडा तथा साइबेरिया के टैगा वनों के पास लकड़ी चीरने तथा काटने के व्यवसाय विकसित हो गए हैं, जिनसे इन व्यवसायों से सम्बन्धित कई नगर बस गए हैं। साइबेरिया में टोबोलस्क, मोगोचिन एवं अर्चाजेल तथा कनाडा में चिकाडटिस, अथाबास्का, बर्नाड हारबर एवं कैम्ब्रिज इसी प्रकार के नगर हैं। 
  • मत्स्य-ग्रहण के केन्द्र: उत्तरी गोलार्द्ध के शीतोष्ण कटिबंध में मछली पकड़ने का व्यवसाय बहुत उन्नत अवस्था में है जिस कारण इस कटिबंध में स्थित समुद्री तटों पर मत्स्य-ग्रहण के केन्द्र स्थापित हो गए। अटलांटिक तट पर इनका विशेष विकास हुआ है। सेंट, जॉन, हैलीफैक्स नोवास्कोटिया, फ्लीटवुड, बैकुवर, विक्टोरिया, एबरडीन व हल आदि विश्व के प्रमुख मत्स्य केन्द्र हैं।

औद्योगिक उत्पादन केन्द्र (Manufacturing Centres)

जब किसी स्थान पर उद्योग चालू होता है तो लोग वहाँ आकर बस जाते हैं और एक नगर का निर्माण हो जाता है। साथ ही यातायात और व्यापार मैं भी वृद्धि होती है। औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप औद्योगिक नेगरों की संख्या तथा उनके आकार में द्रुत गति से वृद्धि हुई। बीसवीं शताब्दी में तो विशेष रूप से उन्नति हुई। 

भारत में भी स्वतंत्रता के पश्चात् कई औद्योगिक नगरों का निर्माण हुआ। इनमें दुर्गापुर, राउरकेला, भिलाई तथा नांगल आदि प्रमुख हैं। विश्व में औद्योगिक नगरों की सूची बड़ी लम्बी है, परन्तु फिर भी शिकागो, पिट्सबर्ग, यंगस्टन, बरमिंघम, ओसाका, कोबे, नागासाकी, शंघाई, मैग्नीटोगोरस्क, खारकोव, टूला आदि प्रमुख उदाहरण हैं।

व्यापारिक एवं वाणिज्य केन्द्र (Trade and Commerce Centres)

रेटजेल (Ratzel) के अनुसार, “व्यापार एवं वाणिज्य किसी भी नगर की आत्मा होती है। ऐसे नगर की कल्पना भी नहीं की जा सकती जहाँ किसी प्रकार का व्यापार न होता हो।” व्यापारिक नगरों का मुख्य कार्य वस्तुओं के क्रय द्वारा नगर की केन्द्रीकरण और विक्रय द्वारा उनका विकेन्द्रीकरण करना होता है। औद्योगिक क्रांति से पहले नगरों के विकास का आधार व्यापार तथा वाणिज्य ही था। आज विश्व के हर देश में व्यापारिक नगर पनपे हुए हैं; जैसे लन्दन, न्यूयॉर्क, विनिपेग, ब्यूनस आयर्स, हांगकांग, सिंगापुर, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, रोम, पेरिस, ग्लासगो, बोस्टन आदि । 

राजनीतिक एवं प्रशासनिक केन्द्र (Political and Administrative Centres)

औद्योगिक क्रांति से पहले विश्व के लगभग सभी बड़े नगर अपने-अपने देशों की राजधानियाँ या प्रशासनिक नगर हुआ करते थे। इन्हीं नगरों में व्यापारिक गतिविधियाँ भी चलती रहती थीं। अब भी विश्व के बहुत-से राजधानी नगर बहुत बड़े व्यापारिक केन्द्र भी हैं परन्तु उनका मुख्य कार्य प्रशासन ही है। 

संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्यों की राजधानियाँ मुख्यतः राजनीतिक केन्द्र ही हैं। भारत में भी अधिकांश राज्यों की राजधानियों का प्रमुख कार्य प्रशासन ही है। इस दृष्टि से विश्व में जितने भी देश हैं, कम-से-कम उतने तो राजनीतिक एवं प्रशासनिक नगर भी हैं। विश्व के अधिक शक्तिशाली राजनीतिक एवं प्रशासनिक नगर वाशिंगटन (डी.सी), मास्को, लंदन, पेरिस, दिल्ली, टोकियो, बीजिंग, बर्लिन, जेनेवा, केनबरा, रोम आदि हैं। 

सांस्कृतिक केन्द्र (Cultural Centres)

अनेक नगर अपनी सभ्यता, संस्कृति, धर्म, शिक्षा व आध्यात्मिकता के लिए भी विख्यात होते हैं। प्राचीनकाल से ही नगर धार्मिक केन्द्रों के निकट बसते आए हैं। ऐसे नगर तीर्थ-यात्रियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन जाते हैं। भारत के तीर्थ-स्थानों में हरिद्वार, ऋषिकेश, मथुरा, वृन्दावन, इलाहाबाद, वाराणसी, द्वारिका, रामेश्वरम, अयोध्या, बद्रीनाथ, केदारनाथ, कुरुक्षेत्र, अमृतसर आदि प्रमुख स्थल हैं तथा विदेशों में मक्का, मदीना, येरुशेलम, वेटिकन सिटी आदि प्रमुख हैं। 

प्राचीनकाल में भारत के नालन्दा तथा तक्षशिला दो विश्व-विख्यात शिक्षा केन्द्र थे। बहुत-से धार्मिक नगर भी शिक्षा के बहुत बड़े केन्द्र बन जाते हैं। आज भारत में बहुत-से ऐसे नगर हैं जो धर्म तथा शिक्षा दोनों के लिए ही विख्यात हैं। इनमें बनारस, इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन, कुरुक्षेत्र आदि प्रमुख हैं। रुड़की, पिलानी, अलीगढ़ आदि मुख्यतः शिक्षा के केन्द्र हैं। विदेशों में ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज, विसकान्सिन, स्टॉकहोम, हॉरवर्ड आदि प्रमुख शिक्षा केन्द्र हैं।

परिवहन केन्द्र (Transport Centres)

ऐसे केन्द्र निम्नलिखित स्थानों पर विकसित होते हैं

  • जहाँ रेलमार्ग समाप्त (Terminate) होता है और आगे सड़क-मार्ग या छोटी रेल लाइन जाती है। भारत में इस वर्ग के नगर मुख्यतः हिमालय के पर्वत-पदीय (Piedmont) क्षेत्र में बसे हैं। इनमें कालका, जम्मू, ऋषिकेश, कोटद्वार, काठगोदाम, टनकपुर आदि प्रमुख हैं।
  • जहाँ समुद्री मार्ग समाप्त होकर स्थलीय मार्ग अथवा आंतरिक जल-मार्ग शुरू होता है, वहाँ पर भी नगर बस जाते हैं। ऐसे स्थानों पर माल उतारना व चढ़ाना पड़ता है और गोदामों की आवश्यकता होती है। मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई-लंदन, योकोहामा, शंघाई इस प्रकार के उदाहरण हैं।
  • जहाँ आंतरिक जल-मार्ग समाप्त होकर स्थल-मार्ग शुरू होता है वहाँ नगर का विकास होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में महान् झीलों के किनारों पर बसे डुलुथ, शिकागो, गारी, बफैलो आदि इस श्रेणी के नगर हैं। 
  • जहाँ दो या दो से अधिक परिवहन मार्ग आकर मिलते हैं, वहाँ पर भी नगरों का विकास हो जाता है। नागपुर, आगरा, पेरिस, बर्लिन आदि के विकास का यह भी एक कारण है। परिवहन की सुविधा के कारण इन नगरों में व्यापार भी पनप जाता है, जिससे ये प्रायः व्यापारिक केन्द्रों में भी विकसित हो जाते हैं।

विनोद स्थल (Resort Centres)

ये केन्द्र स्वास्थ्यवर्द्धक जलवायु, सुन्दर प्राकृतिक दृश्यावली, खेल, खाना, मौज-मस्ती, मनोरंजन आदि की सुविधा प्रदान करते हैं। ऐसे स्थान मुख्यतः पर्वतों अथवा समुद्री तटों पर होते हैं। पर्वतीय केन्द्रों में श्रीनगर, डलहौजी, शिमला, कुल्लु, मनाली, मसूरी, नैनीताल, ऊटकमण्ड, आबू तथा दार्जिलिंग हैं। विदेशों में जेनेवा, न्यूजर्सी, लॉस एंजिल्स, बायटन आदि प्रमुख हैं। 

शीतोष्ण कटिबंध में समुद्री तट के बीच (Beach) पर नगर मनोरंजन के बहुत बड़े साधन हैं। भारत में चेन्नई, मुम्बई, गोवा आदि प्रमुख हैं। कुछ नगर जल के झरनों के निकट भी बस जाते हैं। बहुत-से झरनों के जल में विभिन्न प्रकार के खनिजों का मिश्रण होता है, जो चर्म रोग, गठिया तथा अन्य कई प्रकार के रोगों में लाभकारी होते हैं। इस प्रकार ये चिकित्सा तथा पर्यटन के स्थल बन जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में मणिकर्ण, हरियाणा में सोहना तथा बिहार में राजगिरि व सीताकुण्ड बड़े विख्यात स्थल हैं।

अन्य केन्द्र (Other Centres)

कुछ नगर विशेषीकृत चिकित्सा के बड़े केन्द्र होते हैं और उसी नाम से जाने जाते हैं। फ्रांस में कलरमोट-डी-ओएसी नगर में एक मस्तिष्क रोगों का बहुत बड़ा अस्पताल है जहाँ 4,000 रोगियों के रहने की व्यवस्था है जबकि पूरे नगर की जनसंख्या केवल 6,000 है। कई स्थानों पर सेनिटोरियम स्थापित किए जाते हैं, जहाँ कुछ विशेष प्रकार के रोगों (जैसे क्षय रोग) का इलाज किया जाता है। नैनीताल के निकट भुआली इसी प्रकार का स्थान है। 

विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के आधुनिक युग में किसी एक नगर को किसी विशिष्ट कार्य के साथ जोड़ना बहुत कठिन है। बहुत-से नगरों में विभिन्न कार्य लगभग समान रूप से विकसित हुए हैं और उन्हें किसी भी वर्ग में नहीं रखा जा सकता, अतः उनका वर्गीकरण सम्भव नहीं है। उदाहरणतः मुम्बई, कोलकाता व चेन्नई आदि प्रशासनिक, राजनीतिक, व्यापारिक, औद्योगिक, सांस्कृतिक अथवा मनोरंजन, किसी भी प्रकार के नगर हो सकते हैं।

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