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पवन का अर्थ एवं महत्व (Meaning and Importance of Wind)

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पवन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Wind)

धरातल के लगभग समानान्तर बहने या प्रवाहित होने वाली वायु को पवन (wind) कहा जाता है। बायर्स के अनुसार पवन की परिभाषा इस प्रकार है:- “पवन मात्र गतिशील वायु है जिसका मापन उसके क्षैतिज घटक में किया जाता है”। 

ट्रेवार्था ने भी पवन को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है :- “पवन ऐसी गतिशील वायु है जिसकी दिशा आवश्यक रूप से पृथ्वी तल के समानान्तर होती है।” 

नोट: वायुमण्डल में ऊर्ध्वाधर (vertical) तथा क्षैतिज (horizontal) दो प्रकार की गतियाँ पाई जाती हैं। जब वायु धरातल से ऊपर की ओर अथवा ऊपर से नीचे की ओर गतिशील होती है, तब हमें उसका अनुभव नहीं होता, और उसे हम वायु तरंग (air current) कहते हैं। 

मौसम के विभिन्न घटकों जैसे, मेघ, वृष्टि, तड़ित् झंझा (thunder storm) आदि की उत्पत्ति में इन वायु तरंगों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। किन्तु वायुमण्डल के सम्पूर्ण क्षैतिज प्रवाह की तुलना में उसकी ऊर्ध्वाधर गति का परिमाण अपेक्षाकृत कम होता है। वैसे तो वायुमण्डलीय संचार प्रणाली के वास्तविक ज्ञान के लिए उसकी ऊर्ध्वाधर एवं क्षैतिज दोनों गतियों का ज्ञान अपेक्षित हैं, फिर भी धरातलीय पवनों के अध्ययन पर विशेष बल दिया जाता है। 

इसके दो कारण हैं: पहला कारण यह है कि पवनों के द्वारा निम्न अक्षांशों और उच्च अक्षांशों के बीच ऊष्मा का स्थानान्तरण होता है, जिससे अक्षांशीय ताप सन्तुलन बना रहता है; दूसरा कारण यह है कि पवनों द्वारा ही महासागरों से महाद्वीपों के दूरस्थ आन्तरिक क्षेत्रों तक आर्द्रता पहुँचाई जाती है जिससे वृष्टि होती है। 

पवन का महत्व (Importance of Wind)

मौसम के विभिन्न घटकों में पवनों का सर्वाधिक महत्व है। यह जलवायु का एक ऐसा तत्व है जिसका तापमान एवं वृष्टि आदि अनेक तत्वों पर प्रभावकारी नियन्त्रण होता है। तेज गति से प्रचलने वाली वायु ऊष्मा तथा आर्द्रता को पृथ्वी तल के एक भाग से दूसरे भाग में स्थानान्तरित करती है। तूफान, मेघ, वृष्टि अथवा मौसम के अन्य घटकों की उत्पत्ति में पवन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सर्वाधिक प्रभावशाली कारक माना जाता है। 

किन्तु यह भी सत्य है कि पवन स्वयं भी मौसम के अन्य तत्वों द्वारा नियंत्रित होती है। जैसा कि हम जानते हैं, पवन अधिक दाब से कम दाब वाले क्षेत्र की ओर प्रवाहित होती है तथा पवन की दिशा और वेग, दोनों ही वायुदाब-प्रवणता पर निर्भर होते हैं। वस्तुतः वायु संचार का मूल कारण धरातल के विभिन्न भागों में उपस्थित तापान्तर है जो वायु दाब में अन्तर उत्पन्न करता है।

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