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क्या होती है तापमान की व्युत्क्रमणता (Inversion of Temperature)?
सामान्य तौर पर वायुमण्डल के निचले भाग में धरातल से 8 से 18 कि०मी० ऊपर तक ऊँचाई में वृद्धि के साथ तापमान क्रमशः कम होता जाता है। तापमान की सामान्य ह्रास दर 6.5° सेल्सियस प्रति 1000 मीटर मानी जाती है। किन्तु प्रायः ऐसा देखा जाता है कि ताप ह्रास के सामान्य नियम के विपरीत वायुमण्डल की कुछ परतों में ऊँचाई में वृद्धि के साथ ही तापमान में भी वृद्धि होती है। इस प्रकार तापमान की ऊर्ध्वाधर प्रवणता (vertical temperature gradient) उलटी (inverted) हो जाती है।
ऐसी विपरीत तापीय दशा में वायु की ठंडी परतें नीचे तथा ऊष्ण परतें ऊपर हो जाती हैं। ऐसी प्रतिलोम दशा को तापमान की व्युत्क्रमणता (inversion of temperature) की संज्ञा प्रदान की जाती है। इस अवस्था को ऋणात्मक पतन दर (Negative Lapse Rate) कहा जाता है। ताप का व्युत्क्रमण एक अस्थायी दशा है जो केवल स्थानीय स्तर पर ही उत्पन्न होती है और वायुमण्डल में अल्प ऊँचाई तक ही सीमित रहती है।
तापमान की व्युत्क्रमणता (Inversion of Temperature) की परिभाषाएं
ट्रीवार्था के अनुसार “ऐसी दशा को, जिसमें शीतल वायु धरातल के निकट तथा ऊष्ण वायु उससे ऊपर पायी जाती है, तापमान की व्युत्क्रमणता कहते हैं।” वायुमण्डल में तापमान की ऐसी विलोमता धरातल के निकट अथवा उससे कुछ ऊँचाई पर भी उत्पन्न हो जाती है।
क्रिचफील्ड के अनुसार, “कभी-कभी परिवर्तनमण्डल के निचले भागों में तापमान की सामान्य हास दर विशिष्ट प्रक्रियाओं के कारण उलट जाती है अर्थात् ऊँचाई के साथ तापमान कम होने की बजाय बढ़ने लगता है तो उसे तापमान प्रतिलोमन कहा जाता है।”
तापमान की व्युत्क्रमणता (Inversion of Temperature) के लिए अनिवार्य भौगोलिक दशाएँ
लम्बी रातें
शीत ऋतु की लम्बी रातों के कारण पार्थिव विकिरण के द्वारा विसर्जित ऊष्मा की मात्रा दिन में धरातल द्वारा प्राप्त सूर्याभिताप की मात्रा से अपेक्षाकृत अधिक होती है। अतः धरातल को अधिक शीतल होने का काफी समय मिल जाता है। रातें लम्बी होंगी तो पृथ्वी से ऊष्मा का विकिरण अधिक होगा और भूतल ठण्डा होगा। तभी वायु की निचली परत ऊपरी परत से अधिक ठण्डी हो पाएगी।
स्वच्छ आकाश
स्वच्छ आकाश के कारण पार्थिव विकिरण के द्वारा धरातल से ऊष्मा का तीव्र गति से अवक्षय होता है। वायुमण्डल में बादलों की उपस्थिति से पार्थिव विकिरण के द्वारा नष्ट हुई गरमी बादलों तथा धरातल के बीच की वायु में ही बनी रहती है जिससे धरातल के निकट की वायु का तापमान अपेक्षाकृत ऊँचा ही रहता है और ऊपर की परतों का कम।
शुष्क वायु
शुष्क वायु आर्द्र वायु की अपेक्षा पार्थिव विकिरण का कम अवशोषण करती है, जिससे उनका तापमान ऊँचा नहीं उठने पाता।
शान्त वायु
व्युत्क्रमणता के लिए यह भी आवश्यक है कि धरातल के निकट की वायु में प्रवाह न हो अथवा अत्यन्त मन्द गति से पवन चलता हो, जिससे वायुमण्डल की विभिन्न परतों में मिश्रण न हो सके तथा धरातल से लगी हुई वायु की परत को काफी ठंडा होने का
बर्फ से ढका धरातल
बर्फ़ सौर विकिरण के अधिकांश भाग को परिवर्तित करके लौटा देती है, इससे वायु की निचली परत गर्म नहीं हो पाती अर्थात् ठण्डी रहती है। हिमताप की कुचालक होने के कारण ऊष्मा के ऊपरी प्रवाह को रोकती है। यह दशा तापमान के प्रतिलोमन के लिए आवश्यक है।
ढालू घाटियाँ
तीव्र ढाल वाली गहरी घाटियों में ठण्डी वायु तेज़ी से नीचे बहकर इकट्ठी हो जाती है जिससे इन घाटियों में तापमान का प्रतिलोमन पैदा हो जाता है।
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