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भू-विक्षेपी पवन (Geostrophic Wind)

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भू-विक्षेपी पवन (Geostrophic Wind) का अर्थ

‘ज्योस्ट्रॉफिक’ (geostrophic) ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘पृथ्वी द्वारा मोड़ा गया’। जब वायुदाब-प्रवणता बल तथा विक्षेपक बल में संतुलन हो जाता है, तब पवन-प्रवाह समदाब रेखाओं के समानान्तर होता है। इस प्रकार समदाब रेखाओं के समानान्तर चलने वाली पवन को भू- विक्षेपी पवन (geostrophic wind) कहते हैं। 

बायर्स के शब्दों में “वायुदाब-प्रवणता बल के द्वारा विक्षेपक बल के सन्तुलन किए जाने की अवस्था में घर्षण-रहित सीधे बहाव वाले पवन को ज्योस्ट्रॉफिक पवन कहते हैं।”

विलियम एल० डॉन ने भू-विक्षेपी वायु की परिभाषा इन शब्दों में दी है “आवर्तनजनित विक्षेपक बल तथा वायुदाब-प्रवणता बल में संतुलन के फलस्वरूप उत्पत्र समदाब रेखाओं के समानान्तर चलने वाले पवन को भू-विक्षेपी पवन कहते हैं।”

वैसे तो धरातल पर चलने वाली पवन  वायुदाब-प्रवणता बल, विक्षेपक या कोरियालिस बल, तथा घर्षण बल तीनों का सम्मिलित प्रभाव का परिणाम होती हैं, तथा समदाब रेखाओं से न्यून कोण बनाती हुई प्रवाहित होती है। लेकिन वायुमण्डल के ऊपरी भागों में जहां घर्षण बल का प्रभाव नगण्य होता है तथा वायुदाब-प्रवणता बल व कोरियालिस बल ही प्रभावी होते हैं, वहाँ पवनों की दिशा समदाब रेखाओं के समांतर होती है। इस प्रकार समदाब रेखाओं के समानान्तर चलने वाले पवन को भू-विक्षेपी पवन कहते हैं।

Geostrophic Wind
भू-विक्षेपी पवन

भू-विक्षेपी पवनों (Geostrophic Wind) की गति को प्रभावित करने वाले कारक

धरातल के निकट घर्षण बल के हस्तक्षेप के कारण भू-विक्षेपी पवन का विकास नहीं हो पाता। भू-विक्षेपी पवन की गति पर वायुदाब-प्रवणता, अक्षांश तथा वायु के घनत्व का प्रभाव पड़ता है। यह पवन वायुदाब-प्रवणता का समानुपाती होता है। समदाब रेखाएं जितनी ही सघन होती हैं, इस पवन का वेग उतना ही अधिक होता है। यह पवन अक्षांश के ज्या (sine of latitude) का विलोमानुपाती होता है अर्थात् इन पवनों का वेग ध्रुवों की ओर जाने पर कम होता जाता है । इस पवन का वेग वायु के घनत्व का भी विलोमानुपाती होता है। 

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भू-विक्षेपी पवन के इन्हीं सम्बन्धों को बायर्स ने इन शब्दों में व्यक्त किया है :- “यह स्पष्ट है कि समदाब रेखाएं जितनी ही सघन होंगी, अक्षांश जितना ही न्यून होगा, तथा वायु का घनत्व जितना ही कम होगा, भू-विक्षेपी पवन का वेग उतना ही अधिक होगा।” दूसरे शब्दों में, ध्रुवों की अपेक्षा निम्न अक्षांशों तथा धरातल से अधिक ऊँचाई पर भू-विक्षेपी पवन का वेग अधिक होता है। 

भू-विक्षेपी पवन (Geostrophic Wind) का मापन

भू-विक्षेपी वायु के मापन के लिए विभिन्न प्रकार के मापकों की रचना की जाती है। इनके द्वारा कान्स्टेन्ट लेवेल चार्ट अथवा कान्स्टेन्ट प्रेशर चार्ट पर अंकित समदाब रेखाओं की सहायता से इस पवन का वेग ज्ञात कर लिया जाता है। ऐसे मापक की रचना निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर की जाती है :- 

  • उस ऋतु मानचित्र का मापक, जिस पर ज्योस्ट्रॉफिक पवन मापी का प्रयोग करना हो 
  • अक्षांशीय विस्तार
  • समदाब रेखाओं की दूरी
  • वायु का घनत्व, तथा 
  • वायु के वेग का मात्रक 

धरातल से ऊँचाई में वृद्धि के साथ भू-विक्षेपी पवन में भी परिवर्तन होते हैं। इस परिवर्तन की विस्तृत जानकारी के लिए एक विशेष प्रकार का आरेख बना लिया जाता है जिसे होडोग्राफ (Hodograph) कहते हैं। भू-विक्षेपी वायु के द्वारा मौसम के पूर्वानुमान में बड़ी सहायता मिलती है। भू-विक्षेपी पवन तथा वायुदाब के वितरण में घनिष्ट सम्बन्ध होता है। इस विषय में बाइज बैलट नामक डच मौसम वैज्ञानिक ने नवम्बर सन् 1857 में एक महत्वपूर्ण नियम प्रकाशित किया, जो आगे चल कर मौसम विज्ञान में ‘बाइज बैलट का नियम’ (Buys-Ballot law) नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

इस नियम के अनुसार, यदि उत्तरी गोलार्द्ध में कोई व्यक्ति पवन की दिशा की ओर पीठ करके खड़ा हो, तो उसके बायीं ओर निम्न वायुदाब तथा दायीं ओर उच्च वायुदाब होगा। इसके विपरीत, दक्षिणी गोलार्द्ध में निम्न वायुदाब दायीं ओर तथा उच्च वायुदाब बायीं ओर होगा। इसी नियम का संशोधित रूप अग्रलिखित है :- यदि पवन की ओर पीठ करके खड़े होकर अपनी बाहों को धरातल के समानान्तर सीधा फैलाया जाए, तथा 30° दायीं ओर मुड़ा जाए, तो बायाँ हाथ निम्नदाब क्षेत्र, तथा दाहिना हाथ उच्च दाब क्षेत्र की ओर इंगित करेगा। 

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उपर्युक्त कथन उत्तरी गोलार्द्ध के लिए सत्य है। दक्षिणी गोलार्द्ध में दाहिना हाथ निम्नदाब क्षेत्र तथा बायाँ हाथ उच्चदाब क्षेत्र प्रदर्शित करेगा। इस सम्बन्ध में ऐसा कहा जाता है कि कॉफिन तथा फेरेल (Coffin and Ferrel) नामक दो अमेरिकी मौसम वैज्ञानिकों ने इस तथ्य का पहले ही पता लगा लिया था। विलियम फेरेल प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने पृथ्वी के आवर्तन से उत्पन्न विक्षेपक बल के प्रभावों का पता लगाया था। उनके मतानुसार उत्तरी गोलार्द्ध में प्रत्येक गतिशील वस्तु अपने पथ के दायीं तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती है। इसे “फेरेल का नियम” (Ferrel’s law) कहा जाता है।

भू-खण्डों पर वास्तविक पवन का वेग भू-विक्षेपी पवन का 40 प्रतिशत तथा महासागर तल पर लगभग 70 प्रतिशत होता है। 

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