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वायुमण्डल में संघनित होने वाले जल-वाष्प को हम विविध रूपों में देख सकते हैं। अलग -2 वायुमंडलीय परिस्थितियों में वायु के शीतल होने के कारण संघनन की क्रिया द्वारा जल-वाष्प ओस (dew), पाला (frost), कोहरा (fog) अथवा मेघों (clouds) के रूप में परिवर्तित हो जाता है। संघनन के विविध रूपों का संक्षिप्त वर्णन नीचे किया जा रहा है:
संघनन के विविध रूप (Forms of Condensation)
ओस (Dew)
विशेषकर शीत ऋतु में सुबह के समय हमें घासों और छोटे-छोटे पौधों की पत्तियों पर मोती के समान जल की नन्हीं-बूंदों पड़ी हुई दिखाई देती हैं, जिन्हें ओस कहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय मौसम वैज्ञानिक समिति के द्वारा ओस की मान्य परिभाषा इस प्रकार है-
“धरातल की निकटवर्ती वायु में उपस्थित जल-वाष्प के प्रत्यक्ष संघनन के द्वारा, मुख्यतः रात्रिकालीन विकिरण द्वारा, शीतलीकृत क्षैतिज तलों पर संचित जल की बूंदों को ओस कहते हैं।”
जब स्वच्छ और शान्त मौसम में सूर्यास्त के पश्चात् पृथ्वी का धरातल विकिरण के द्वारा बहुत तेजी से ठण्डा हो जाता है तथा धरातल के साथ लगती वायु की अपेक्षा इसका तापमान नीचा हो जाता है। तत्पश्चात् धरातल के सम्पर्क में आने वाली वायु चालन की प्रक्रिया द्वारा शीतल हो जाती है। वायु का तापमान निरन्तर नीचे गिरता जाता है और अंत में उसका ताप ओसांक तक पहुँच जाता है। इस प्रकार वायु संतृप्त हो जाती है।
चालन प्रक्रिया द्वारा शीतल होने के कारण धरातल के साथ लगी वायु की बहुत पतली परत, जिसकी मोटाई कुछ सेन्टीमीटर हो सकती है, प्रभावित होती है। संतृप्त वायु के तापमान में ज्यों ही कुछ और कमी आती है, संघनन की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है तथा वायु में अतिरिक्त जल-वाष्प संघनित हो जाती है। धरातल पर उपस्थित गहरे रंग के पदार्थ, जैसे वनस्पतियाँ आदि, अपेक्षाकृत शीघ्र ठण्डे हो जाते हैं, क्योंकि ये ऊष्मा के उत्तम अवशोषक होने के कारण उत्तम विकिरक भी होते हैं।
अतः धरातल पर इन ठण्डी वस्तुओं के सम्पर्क में आने वाली वायु अपनी अतिरिक्त नमी इनके ठण्हे तल पर जल की बूंद के रूप में छोड़ देती है। ओस पड़ने के लिए आदर्श दशायें निम्नलिखित हैं:-
- स्वच्छ आकाश, जिससे दिन में वाष्पीकरण अधिक होने से वायु में आर्द्रता की मात्रा में वृद्धि हो तथा रात्रि में स्वतन्त्र विकिरण के कारण धरातल को अधिक ठण्डा होने का अवसर मिल सके।
- शान्त वायु, जिससे उसे ठण्डे धरातल के सम्पर्क में अधिक देर तक रहने का अवसर मिल सके, ताकि उसका तापमान ओसांक तक नीचे गिर सके। तेज पवन के झोंकों से वायु का आस पास की वायु से मिश्रण होता है जिससे उसे अधिक शीतल होने में बाधा पड़ती है।
- वायुमण्डल में आर्द्रता की मात्रा जितनी अधिक होगी, ओस उतनी ही अधिक बनेगी।
- रात्रि की लम्बाई अधिक होने से वायु को विकिरण तथा चालन द्वारा शीतल होने का अधिक समय मिल जाता है। यही कारण है कि जाड़े की रातों में अन्य सभी ऋतुओं की अपेक्षा ओस अधिक पड़ती है।
- यह सबने अनुभव किया होगा कि जिस रात आकाश में बादल छाए होते हैं तथा तेज हवा चलती है, उस रात ओस कम पड़ती है। इसके विपरीत, स्वच्छ और शान्त मौसम वाली शीतकालीन लम्बी रातों में ओस की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है। यह याद रहे कि ओस पड़ने के लिए यह भी आवश्यक है कि वायु का ओसांक 0° सेल्सियस से ऊपर हो।
तुषार अथवा पाला(Frost or Frost)
कभी-कभी धरातल पर स्थित पदार्थों जैसे घास, पत्तियों अथवा पौधों का तापमान हिमांक से भी नीचे गिर जाता है। ऐसी स्थिति में उन पर ओस की बूंदों के स्थान पर हिम के कण जम जाते हैं जिसे तुषार या पाला कहते हैं। अनेक संवेदनशील फसलों के लिए तुषार अत्यन्त हानिकारक होता है। यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि जमी हुई ओस को तुषार नहीं कहते।
ओस एवं तुषार दोनों की निर्माणविधि लगभग समान है। अन्तर केवल इतना है कि ओस पड़ने के लिए वस्तुओं का तापमान 0° सेल्सियस से ऊपर होना चाहिए, जबकि तुषार के लिए उनका तापमान इससे कम होना चाहिए। इतने कम तापमान के कारण जल-वाष्प बिना द्रव हुए ठण्डे पदार्थों पर सीधे हिम के रूप में संघनित हो जाती है।
कोहरा (Fog)
कोहरा संघनित जल-वाष्प का एक अत्यधिक महत्वपूर्ण स्वरूप होता है। धरातल के निकट जल-वाष्प के संघनन से ही इसकी उत्पत्ति होती है। इसके कारण वायुमण्डल की पारदर्शकता कम हो जाती है। धरातल से संलग्न वायु की परतों में कोहरा उत्पन्न हो जाने से ऐसा प्रतीत होता है मानो चारो ओर धुआँ छा गया हो। आधुनिक युग में मानव जीवन पर कोहरे का इतना अधिक प्रभाव पड़ता है कि इसकी उत्पत्ति, विकास एवं स्वरूप तथा इसके अपघटन आदि विविध पक्षों का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया जाने लगा है।
वायु, रेल एवं समुद्री यातायात अथवा मनुष्य के अन्य दैनिक क्रिया-कलापों पर कोहरे का निश्चित रूप से प्रतिकूल प्राभव पड़ता है। इसके द्वारा विभिन्न प्रकार के यातायात में बाधा पड़ने का मूल कारण वायुमण्डल की पारदर्शकता अथवा दृश्यता में कमी पड़ जाना है। विश्व की महानगरियों में कोहरे के कारण यातायात प्रायः ठप पड़ जाता है, जिसके कारण नागरिकों को कितना कष्ट भोगना पड़ता है, कितनी दुर्घटनायें होती हैं, तथा हर प्रकार के काम-काज में कितना व्यवधान पड़ता है, इन सब की कल्पना सहज में ही की जा सकती है।
सारांश यह कि मौसम के विभिन्न तत्वों में कोहरे का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान होता है।
मेघ (Cloud)
पृथ्वी की सतह से विभिन्न ऊँचाइयों पर वायुमण्डल में जल-वाष्प के संघनन से निर्मित हिम कणों अथवा जल सीकरों की राशि को मेघ (cloud) कहते हैं। धरातल से जल का निरन्तर वाष्पीकरण होता रहता है। जल-वाष्प, जो पूर्णतया पारदर्शक तथा अदृश्य होती है, वायु में विलीन हो जाती है। आर्द्रतायुक्त वायु आरोहण एवं प्रसारण की प्रक्रियाओं द्वारा शीतल होकर पूर्णतया संतृप्त हो जाती है।
ओसांक के नीचे पहुंचने पर वायु में संघनन होने लगता है जिससे वायु में उपस्थित जल-वाष्प जल की अत्यन्त सूक्ष्म बूंदों के रूप में परिवर्तित हो जाता है। वायुमण्डल की ऊपरी परतों में संघनित जल-वाष्प को ही हम भू-पृष्ठ से मेघ के रूप में देखते हैं। आरम्भ में जल की बूंदों का आकार इतना छोटा होता है कि वे वायु में तैरती रहती हैं। किन्तु विभिन्न प्रक्रियाओं के कारण जब उन बूंदों का आकार बड़ा हो जाता है, तब वायु की तरंगें उन्हें नहीं रोक सकतीं और वे धरातल पर गिर पड़ती हैं, इसी को हम वृष्टि(precipitation) कहते हैं।
बूंदों के आकार तथा वायुमण्डल की जिन परतों में से होकर ये बूँदें गिरती हैं उनके तापमान के आधार पर वृष्टि के कई प्रकार होते हैं जैसे, फुहार, जल-वृष्टि, हिम-वृष्टि अथवा उपल-वृष्टि आदि। वाष्पीकरण की प्रक्रिया से आरम्भ होकर वृष्टि की प्रक्रिया तक जलीय-चक्र पूरा हो जाता है, और मेघ इस चक्र की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
वायुमण्डल में निर्मित होने वाले मेघ केवल वृष्टि की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि जलवायु के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में भी उल्लेखनीय हैं। इनके अनेक महत्त्वपूर्ण पक्ष होते हैं जैसे, इनकी ऊँचाई, आकार, संघटन, संरचना, रंग, निर्माण-विधि अथवा विघटन आदि।
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