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जल एवं स्थल भाग अलग-2 दरसे ठंडे व गर्म क्यों होते हैं?

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जल एवं स्थल भाग अलग-2 दर से ठंडा व गर्म होने के कारण

हम जानते हैं कि हमारी पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे प्रमुख स्रोत सूर्य है। सूर्याभिताप या सौर ऊर्जा के प्रभाव की दृष्टि से पृथ्वी के धरातल पर स्थल तथा जल में सबसे अधिक अन्तर पाया जाता है। जल की अपेक्षा स्थल भाग तेजी से और अधिक मात्रा में गरम व ठण्डा होता है। इस लेख में हम इस अन्तर के कुछ प्रमुख कारणों का उल्लेख करेंगे जो इस प्रकार हैं :- 

विशिष्ट ऊष्मा (Specific Heat)

स्थल भाग की अपेक्षा जल की विशिष्ट ऊष्मा (specific heat) ढाई गुनी अधिक होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि समान मात्रा के स्थल भाग और जल भाग को समान रूप से गरम करने के लिए जल को स्थल की अपेक्षा 2.5 गुणाअधिक ताप शक्ति की आवश्यकता होती है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि, एक ही समय स्थल भाग और जल भाग पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों से स्थल का तापमान जल की अपेक्षा अधिक ऊंचा हो जाता है। 

वाष्पीकरण (Evaporation)

हम जानते हैं कि जल की सतह से हमेशा कम या अधिक मात्रा में वाष्पन क्रिया (evaporation) होती रहती है। यह क्रिया केवल तभी बन्द हो सकती है जब कि जल की सतह से लगी हुई वायु पूर्ण रूप से संतृप्त हो जाए। जल की तरल अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तन के लिए अर्थात् वाष्पन की क्रिया में ताप शक्ति का व्यय होता है, जिसके कारण सूर्य की किरणों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा का कुछ भाग तो इस क्रिया में खर्च हो जाता है। 

लेकिन स्थल खण्डों पर वाष्पीकरण की मात्रा बहुत कम होने के कारण अधिक मात्रा में ताप शक्ति इसे गरम करने के लिए उपलब्ध रहती है। इस प्रकार स्थल भाग जल भाग की अपेक्षा जल्दी गरम हो जाता है। हालांकि स्थल खण्डों में आर्द्र धरातल से भी दिन की गरमी में वाष्पीकरण होता है तथा उष्णार्द्र भू-खण्डों में उच्च ताप के कारण धरातल से वाष्पन क्रिया निरन्तर होती रहती है, फिर भी ऐसा अनुमान है कि किसी क्षेत्र में जलाशयों से होने वाला वाष्पन स्थल खण्डों की वाष्पन क्रिया का दुगुना होता है। 

पारदर्शकता (Transparency)

जल तरल और पारभासक (translucent) होता है, किन्तु स्थल ठोस और अपारदर्शी (opaque) होता है। जहां एक ओर सूर्य की किरणें स्थल भाग पर बहुत अभिक गहराई में प्रवेश नहीं कर पातीं, तथा सूर्य ताप का प्रभाव धरातल से कुछ ही सेन्टीमीटर की गहराई तक होता है। वहीं दूसरी ओर, सूर्य की किरणें जल में उसके पारभासक होने के कारण अधिक गहराई तक प्रवेश कर जाती हैं। क्योंकि किरणों के प्रवेश की गहराई तीन बातों पर निर्भर करती है, जो निम्नलिखित हैं :- 

  • जल की पारदर्शकता (transparency)
  • आपाती किरणों का तरंग-दैर्ध्य; तथा 
  • आपतन कोण

लम्बी किरणों की अपेक्षा मध्यम लम्बाई की तरंगें जल में अधिक गहराई तक प्रवेश करती हैं। अतः सूर्यताप का जल की एक विशाल राशि में बिखराव हो जाता है, किन्तु स्थल पर तापशक्ति ऊपर ही केन्द्रित रहती है तथा उसका ह्रास  नहीं होता। जिससे सूर्य ताप की समान मात्रा से जल की अपेक्षा स्थल अधिक गर्म हो जाता है। शीतलन की प्रक्रिया में भी स्थल की ऊपरी परतें शीघ्र ठण्डी हो जाती हैं, जबकि जल को शीतल होने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है। 

ऊष्मा का स्थानान्तरण (Transfer of Heat)

ठोस स्थलीय धरातल में ऊष्मा संचार का एक मात्र साधन चालन क्रिया (conduction) है जिसके कारण बहुत  धीमी गति से तापमान में परिवर्तन होता है। धरातल के नीचे कुछ गहराई पर तापमान में बहुत कम परिवर्तन होता है। जल तरल होता है, अतः इसमें ऊष्मा का स्थानान्तरण संवहन अथवा विक्षोभ के द्वारा होता है। जल की ऊपरी सतह पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें जल में संवहन धाराएं पैदा कर देती हैं, जिससे ऊर्जा की मात्रा जल की बहुत बड़ी राशि में वितरित हो जाती है। अतः स्थल की भाँति जल शीघ्र गरम नहीं हो पाता। 

परावर्तन (Reflection)

स्थल की अपेक्षा जल की सतह अधिक चिकनी होने से उससे आपाती किरणों का परावर्तन (reflection) अपेक्षाकृत अधिक होता है। सूर्य की किरणें जल की सतह पर जितनी ही तिरछी पड़ेंगी, परावर्तन उतना ही अधिक होगा। लम्बवत् किरणों से होने वाले परावर्तन की मात्रा नगण्य होती है। 

जल की गतिशीतलता (Mobility of Water)

गरम और ठंडा होने की दृष्टि से जल की गतिशीलता उसकी सबसे बड़ी विशेषता है जो स्थल में नहीं पाई जाती। महासागरों अथवा सागरों में गर्म और ठंडी धाराएं, ज्वार-भाटा, लहरें तथा संवहन धाराएं आदि पाई जाती हैं। इनके द्वारा अवशोषित ऊष्मा जल की विशाल राशि में फैला दी जाती है जिससे जल की सतह का गर्म तथा ठंडा होने में  स्थल की अपेक्षा अधिक समय लेती है। 

जल में क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों ही प्रकार की गतियाँ भी पाई जाती हैं। महासागरों में जल से उत्पन्न विक्षोभ (turbulence) के द्वारा लगभग 10 मीटर की गहराई तक सूर्यातप का फैलाव हो जाता है। समुद्र के जल के घनत्व में अन्तर भी विक्षोभ उत्पन्न करने में सहायक होता है। रात में, जब ताप विकिरण के द्वारा सतह का जल ठण्डा हो जाता है, तब वह भारी होकर नीचे बैठने लगता है और उसका स्थान नीचे का गरम जल ग्रहण कर लेता है। इस प्रकार रात्रि में स्थल की भाँति जल शीतल नहीं होने पाता। समुद्री धाराएं समुद्र के जल को हजारों किलोमीटर की दूरी तक ले जाती हैं तथा उनका मिश्रण करती हैं।

सारांश यह कि जल में ऊष्मा की संचायक शक्ति (storage capacity) बहुत अधिक होती है तथा स्थल में इसका प्रभाव कम पाया जाता है। अतः जल देर में गरम और देर में ठण्डा होता है। इसके फलस्वरूप सागरीय जलवायु में दैनिक व वार्षिक ताप परिसर अपेक्षाकृत कम होता है। स्थल शीघ्र गरम और शीघ्र ठण्डा होता है। दिन के समय तथा ग्रीष्म ऋतु में स्थल खण्डों का तापक्रम अत्यधिक ऊँचा तथा रात्रि एवं शीत ऋतु में अत्यधिक नीचा हो जाता है। इसके फलस्वरूप स्थल प्रधान अथवा महाद्वीपीय जलवायु विषम होती है तथा उसमें दैनिक एवं वार्षिक ताप परिसर (diurnal and annual range of temperature) अपेक्षाकृत अधिक होता है।

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