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चक्रवात (Cyclone)

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चक्रवात : अर्थ एवं परिभाषा (Cyclone: Meaning and Definition)

चक्रवात वायु की वह राशि है जिसके मध्य में न्यून वायुदाब होता है तथा बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है। 

फिलिप लेक के अनुसार, “चक्रवात उस कम भार वाले क्षेत्र का नाम है जो आमतौर पर अण्डाकार आकृति की समदाब रेखाओं से घिरा होता है।”

टी०ए०ब्लेयर के अनुसार, “एक या अधिक समदाब रेखाओं से घिरे हुए न्यून वायुदाब केन्द्र को चक्रवात कहा जाता है।”

चक्रवात की सामान्य विशेषताएँ (General Characteristics of a Cyclone)

  • चक्रवात की समदाब रेखाओं की आकृति अण्डाकार, गोलाकार अथवा V-आकार की होती है। 
  • केन्द्र में वायुदाब सबसे कम होता है जबकि बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है।
  • चक्रवात में पवनें चारों ओर से तेज़ गति से चलती हुई निम्न दाब केन्द्र की ओर अभिसरित (Converge) होती हैं।
  • पृथ्वी के घूर्णन के कारण ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा (वामावर्त) में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सूई की दिशा के अनुरूप (दक्षिणावर्त) (Clockwise) चलती हैं।
  • चक्रवातों में वायु ऊपर उठती है तथा वर्षा करती है।
  • स्थायी पवनों विशेष रूप से सन्मार्गी पवनों तथा पछुवा पवनों में चक्रवात भली-भाँति विकसित होते हैं और प्रायः अस्थिर (Unstable) रहते हैं।
  • आमतौर पर चक्रवात के दक्षिणी भाग की वायु गर्म तथा उत्तरी भाग की वायु ठण्डी रहती है।
Direction of winds in cyclones in the Northern and Southern Hemispheres

चक्रवातों के प्रकार (Types of Cyclones)

उत्पत्ति, पवन वेग तथा तापीय दशाओं आदि के आधार पर चक्रवातों के दो प्रकार माने जाते हैं-

  • शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Temperate Cyclones)
  • उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Tropical Cyclones)।

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Temperate Cyclones)

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों का जन्म दोनों गोलाद्धों के मध्य अक्षांशों (35°-65°) में होता है। इनका प्रभाव क्षेत्र भी यही अर्थात् शीतोष्ण कटिबन्ध है। उत्तरी गोलार्द्ध में ये चक्रवात केवल सर्दियों में आते हैं जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में जलभाग के अधिक होने के कारण लगभग सारा वर्ष चलते रहते हैं।

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति (Origin of temperate cyclones)

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में अनेक सिद्धान्त प्रचलित हैं, लेकिन इनमें जे० बर्कनीज (J. Berknese) द्वारा प्रतिपादित ध्रुवीय वाताग्र सिद्धान्त (Polar Front Theory) सर्वाधिक मान्य है।

इस सिद्धान्त के अनुसार शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति दो भिन्न-भिन्न तापमान तथा आर्द्रता वाली वायुराशियों के विपरीत दिशाओं से आकर मिलने से होती है। कम तापमान तथा कम आर्द्रता वाली वायुराशि ध्रुवीय प्रदेशों से ध्रुवीय पवनों के साथ आती है तथा अधिक तापमान व अधिक आर्द्रता वाली वायुराशि उपोष्ण कटिबन्ध से पछुवा पवनों के साथ आती है। 

ये उष्ण तथा शीतल वायुराशियाँ 60° अक्षांश के निकट एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं। सम्पर्क में आने पर ये तुरन्त एक-दूसरे में विलीन नहीं हो जाती अपितु कुछ समय तक इनके बीच एक सुनिश्चित सीमा तल बना रहता है जिसे ध्रुवीय वाताग्र (Polar Front) कहते हैं। ध्रुवीय वाताग्र मुख्यतः तीन क्षेत्रों में पाए जाते हैं-

  • अल्यूशियन द्वीप समूह के निकट
  • आइसलैण्ड के निकट
  • भूमध्य सागर के निकट

उपरोक्त क्षेत्रों या प्रदेशों में इन ध्रुवीय वाताग्र के सहारे विभिन्न अवस्थाओं में  शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात का विकास होता है। इन विभन्न अवस्थाओं का वर्णन नीचे किया जा रहा है। 

Position of fronts in temperate cyclone

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात के विकास की अवस्थाएँ (Stages of development of a temperate cyclone)

बर्कनीज़ ने चक्रवात की उत्पत्ति से लेकर समापन तक के जीवन-चक्र को निम्नलिखित छह अवस्थाओं में बाँटा है।

Stages of development of a temperate cyclone
प्रथम अवस्था (first stage)

इस प्रारम्भिक अवस्था में उत्तर से आने वाली शीत एवं शुष्क वायु तथा दक्षिण से आने वाली उष्ण एवं आर्द्र वायु एक-दूसरे के समीप आ जाती हैं। कॉरिआलिस प्रभाव के अधीन ये पवनें एक-दूसरे के समान्तर चलती हैं। इन दोनों वायुराशियों के बीच वाताग्र क्षैतिज दिशा में विस्तृत है। वाताग्र स्थायी है और किसी भी वायुराशि में वाताग्र को हटाने की सामर्थ्य विकसित नहीं हो पाई है।

दूसरी अवस्था (second stage)

यह चक्रवात की बाल्यावस्था है। इस अवस्था में गरम वायुराशि वाताग्र को धकेल कर ठण्डी वायुराशि में घुसने का प्रयास करती है और ठण्डी वायुराशि भारी होने के कारण नीचे आने लगती है। इससे वाताग्र एक तरंग (Wave- Shape) का रूप धारण करने लगता है। तरंग जैसी बनावट के कारण ही शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों को प्रायः तरंग चक्रवात (Wave Cyclone) भी कहा जाता है। 

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इस अवस्था में वाताग्र को उष्ण व शीतल वाताग्रों में बाँटा जा सकता है। उष्ण वायु के आगे स्थित वाताग्र को उष्ण वाताग्र (Warm Front) तथा शीतल वायु के आगे स्थित वाताग्र को शीत वाताम्र (Cold Front) कहते हैं। दोनों वाताग्रों के बीच पाया जाने वाला क्षेत्र उष्ण खण्ड (Warm Sector) कहलाता है तथा इससे बाहर शीतल वायु वाला भाग शीत खण्ड (Cold Sector) कहलाता है। इस वाताग्र पर उष्ण एवं आर्द्र वायु ऊपर उठने को मजबूर हो जाती है। आकाश में बादल छाए रहते हैं और वर्षा होती है।

तीसरी अवस्था (third stage)

यह चक्रवात की प्रौढ़ावस्था का आरम्भ है। इसमें शीतल वायु तेज़ी से नीचे उतरती है तथा उष्ण वायु को परे धकेलती है। इससे उष्ण खण्ड (Warm Sector) आकार में छोटा हो जाता है।

चौथी अवस्था (fourth stage)

यह चक्रवात की प्रौढ़ावस्था का पूर्ण विकसित रूप है। इसमें शीत वाताग्र की शीतल वायु उष्ण वायु को ऊपर की ओर धकेलती है जिससे उष्ण वायु केन्द्र में स्थापित हो जाती है। फलतः वहाँ निम्न दाब केन्द्र विकसित होने लगता है और शीतल वायु तेज़ी से केन्द्र की ओर चलने लगती है।

पाँचवीं अवस्था (fifth stage)

यह चक्रवात के समाप्त होने की पहली अवस्था है। शीतल वायु उष्ण वायु को तब तक ऊपर धकेलती रहती है जब तक उसका भू-पृष्ठ से सम्पर्क नहीं टूट जाता। धीरे-धीरे शीत व उष्ण वाताग्र आपस में मिल जाते हैं और एक नया वाताग्र बनता है जिसे अधिविष्ट वाताग्र (Occluded Front) कहा जाता है।

छठी अवस्था (sixth stage)

इस अन्तिम अवस्था में चक्रवात समाप्त हो जाता है। शीतल वायुराशि भू-पृष्ठ पर बहने लगती है तथा उष्ण वायुराशि उसके ऊपर। दोनों वायुराशियाँ पहली अवस्था की तरह एक-दूसरे के समान्तर किन्तु विपरीत दिशा में चलने लगती हैं और उनके बीच में पहले की तरह स्थायी और सीधा वाताग्र क्षैतिज दिशा में विकसित हो जाता है।

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात का आकार तथा विस्तार (Size and extent of temperate cyclone)

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की रूपरेखा (Outline) अनियमित होती है। अधिकांश विकसित चक्रवात अण्डाकार होते हैं जिनकी लम्बाई उनकी चौड़ाई से दुगुनी होती है। प्रायः इन चक्रवातों का व्यास 500-600 कि०मी० होता है, लेकिन कई चक्रवात हज़ारों वर्ग कि०मी० क्षेत्र पर फैले होते हैं। इनकी ऊँचाई 8 से 10 कि०मी० तक होती है।

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में पवनों का वेग तथा प्रवाह (Velocity and flow of winds in a temperate cyclone)

इन चक्रवातों में समदाब रेखाओं की संख्या कम होती है व वे एक-दूसरे से दूर-दूर विस्तृत होती हैं। इससे सिद्ध होता है कि शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों में दाब प्रवणता तथा वेग दोनों कम होते हैं। सर्दियों में यह चक्रवात 40 से 60 कि०मी० प्रतिघण्टा तथा गर्मियों में 15 से 20 कि०मी० प्रति घण्टा की गति से चलते हैं। ये चक्रवात पछुवा पवनों की दिशा में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलभाग अधिक होने के कारण इन चक्रवातों का मार्ग हल्का घुमावदार हो जाता है, किन्तु दक्षिणी गोलार्द्ध में जलीय भाग की अधिकता के कारण ये सरल रेखीय मार्ग अपना लेते हैं।

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में मौसमी दशाएँ (Weather conditions in a temperate cyclone)

चक्रवात के आने से पहले पूर्वी पवनें बहने लगती हैं और आकाश में पक्षाभ मेघों की सफ़ेद पतली धारियाँ दिखने लगती हैं। चक्रवात के आते ही तापमान बढ़ने और वायुदाब घटने लगता है। चन्द्रमा और सूर्य के चारों ओर प्रभामण्डल (Halo) बन जाते हैं। पवन की दिशा बदल जाती है और उसका वेग बढ़ जाता है। 

लगभग 24 घण्टे तक मन्द बौछार पड़ती रहती है। उष्ण वाताग्र के आ जाने पर वर्षा रुक जाती है। वायुदाब स्थिर (Constant) हो जाता है और आकाश में बादल भी हल्के हो जाते हैं। उष्ण वाताग्र के गुज़र जाने पर ताप गिरने लगता है अर्थात् ठण्ड बढ़ने लगती है। यह स्थिति शीत वाताग्र के आगमन की सूचक है। शीत वाताग्र के आते ही कपासी और कपासी वर्षी मेघ छा जाते हैं। गरज के साथ बौछारें पड़ती हैं और कभी-कभी ओले भी पड़ते हैं। शीत वाताग्र जल्दी से गुजर जाता है और मौसम बिल्कुल साफ़ हो जाता है।

Weather conditions in a temperate cyclone

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों के मुख्य क्षेत्र (Major areas of temperate cyclones)

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात दक्षिणी गोलार्द्ध में पछुवा पवनों के सहारे 30° से 65° अक्षांशों के बीच सारा साल चलते रहते हैं, किन्तु उत्तरी गोलार्द्ध में केवल शीत ऋतु में निम्नलिखित क्षेत्रों में चलते हैं-

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उत्तरी अन्ध महासागर (northern atlantic ocean)

यहाँ ये चक्रवात शीत ऋतु में आइसलैण्ड तथा ग्रीनलैण्ड से आने वाली ठण्डी ध्रुवीय पवनों तथा गल्फ़ स्ट्रीम के ऊपर से होकर आने वाली गर्म पछुवा पवनों के मिलने से बनते हैं। इन चक्रवातों का प्रभाव ग्रेट ब्रिटेन, नार्वे, स्वीडन तथा उत्तरी-पश्चिमी यूरोप में विशेष रूप से पड़ता है।

भूमध्य सागर (Mediterranean Sea)

भूमध्य सागर पर सर्दियों में आर्द्र पछुवा पवनें चलती हैं। इन पवनों का मध्य यूरोप से आने वाली ठण्डी व शुष्क पवनों से सम्पर्क होने पर इन चक्रवातों की उत्पत्ति होती है। भूमध्य सागरीय क्षेत्रों को पार करके ये चक्रवात मध्य-पूर्व के देशों – टर्की, इराक, ईरान तथा अफ़गानिस्तान को पार करके पाकिस्तान होते हुए दिसम्बर,जनवरी और फरवरी के महीनों में भारत पहुँचते है। इन्ह। चक्रवातों से जम्मू और कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक वर्षा होती है। यही अवदाब ही हिमालयी क्षेत्रों में हिमपात करते हैं। सर्दियों में उत्तरी भारत में होने वाली यह वर्षा रबी की फसल के लिए लाभप्रद साबित होती है।

उत्तरी प्रशान्त महासागर (north pacific ocean)

यहाँ ये चक्रवात अल्यूशियन द्वीप समूह के निकट उत्पन्न होते हैं और रॉकीज़ पर्वतमाला को पार करके उत्तरी संयुक्त राज्य अमेरिका तथा दक्षिणी कनाडा में वर्षा करते हैं।

चीन सागर (china sea)

यहाँ सर्दियों में ये चक्रवात जापान सागर के निकट उत्पन्न होते हैं और चीन सागर से होते हुए उत्तरी व मध्य चीन तक पहुँच जाते हैं तथा वर्षा करते हैं।

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Tropical Cyclones)

उष्ण कटिबन्ध में उत्पन्न चक्रवातों को उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं।

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की उत्पत्ति (Origin of tropical cyclone)

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात दोनों गोलार्धों में लगभग 5° से 30° अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं। भूमध्य रेखा के 5° उत्तर व 5° दक्षिणी (डोलड्रम क्षेत्र) अक्षांशों के बीच कॉरिआलिस बल अत्यन्त क्षीण होता है। अतः इस क्षेत्र में वायुदाब कम होते हुए भी पवनें वृत्ताकार रूप नहीं ले पातीं, जिसमें चक्रवात नहीं बन पाते। 

इन चक्रवातों की उत्पत्ति उष्ण कटिबन्ध के विस्तृत महासागरों के पश्चिमी भागों में ग्रीष्म ऋतु में होती है। इस अवधि में डोलड्रम का भूमध्य रेखा से परे अधिकतम विस्तार होता है। परिणामस्वरूप वहाँ संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती हुई वायु की विशाल राशियाँ महासागरों के पश्चिमी भागों से पर्याप्त आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। भूमध्य से परे कॉरिआलिस बल तथा पृथ्वी के घूर्णन के कारण हवाओं की व्यवस्था चक्रीय हो जाती है। 

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति के लिए निम्नलिखित दशाएँ आवश्यक हैं-

  • विस्तृत समुद्री क्षेत्र, जिसके तल का तापमान 27° सेल्सियस हो।
  • वायुमण्डल शान्त हो अर्थात् पवन प्रवाह अत्यन्त मन्द हो।
  • वायु में संवहन धाराएँ उत्पन्न होती रहें तथा
  • वायु में सापेक्षिक आर्द्रता बहुत अधिक हो।

ये सभी दशाएँ गर्मियों में गर्म समुद्रों के ऊपर खिसके (Shifted) हुए डोलड्रम क्षेत्र में पाई जाती हैं।

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात का आकार तथा विस्तार (Size and extent of tropical cyclone)

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात वृत्ताकार अथवा दीर्घ वृत्ताकार (Elliptical) होते हैं। इनके भीतरी न्यूनतम तथा बाहरी अधिकतम वायुदाब में प्रायः 55-60 मिलीबार का अन्तर होता है। सामान्यतः इनके केन्द्र में वायुदाब 960 मिलीबार तथा बाहर का वायुदाब 1020 मिलीबार होता है। ये चक्रवात शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों से आकार में छोटे होते हैं। इनका व्यास 100 से 700 कि०मी० तक होता है। लेकिन कुछ चक्रवातों का व्यास केवल 40-50 कि०मी० तक ही होता है।

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में पवनों का वेग (Wind velocity in tropical cyclone)

अधिक दाब प्रवणता के कारण उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों में पवनों का वेग 100 कि०मी० प्रतिघण्टा से भी अधिक हो जाता है। फिर भी एक ही चक्रवात के भिन्न-भिन्न भागों में पवन का वेग भिन्न-भिन्न होता है। उदाहरण के लिए

  • चक्रवात के अग्रभाग के आने से पहले पवन का वेग 3-4 कि०मी० प्रति घण्टा होता है।
  • अग्रभाग के आते ही पवन का वेग 50-60 कि०मी० प्रति घण्टा या इससे भी ज्यादा हो जाता है।
  • चक्रवात का केन्द्र अथवा आँख (Eye) आ जाने पर पवन का वेग 1 कि०मी० प्रति घण्टा से भी कम हो जाता है। विभिन्न चक्रवातों में पवन का वेग 40-50 कि०मी० प्रति घण्टा से 500 कि०मी० प्रति घण्टा तक हो सकता है।
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उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में मौसमी दशाएँ (Weather conditions in a tropical cyclone)

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात के समीप आने पर वायु शान्त हो जाती है और क्षितिज (Horizon) की ओर पक्षाभ-स्तरी मेघ दिखाई देने लगते हैं। शीघ्र ही मेघों का पतला आवरण आकाश में छा जाता है। सूर्य या चन्द्रमा के गिर्द प्रभामण्डल (Halo) दिखाई देने लगता है। चक्रवात के अग्रभाग के आते ही तापमान थोड़ा बढ़ जाता है, वायुदाब घट जाता है और पवन का वेग तीव्र हो जाता है । आकाश में कपासी वर्षा मेघ छा जाते हैं और वर्षा होने लगती है। 

चक्रवात की आँख पहुँचते ही वायु अचानक शान्त हो जाती है और वर्षा बन्द हो जाती है। आकाश पुनः स्वच्छ एवं गहरा नीला हो जाता है। जब चक्रवात की आँख समुद्र के ऊपर से गुज़रती है तो वहाँ बहुत ऊँची-ऊँची (पर्वताकार) लहरें उठने लगती हैं। आँख के गुजर जाने के बाद पवनें तूफ़ानी वेग से चलने लगती हैं। यह हालात 7-8 घण्टे तक बने रहते हैं। चक्रवात में पृष्ठ भाग के गुज़र जाने के बाद पवन प्रवाह मन्द पड़ जाता है और मौसम फिर से सुहावना हो जाता है 

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों का मार्ग तथा प्रभाव क्षेत्र (Path and area of influence of tropical cyclones)

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की दिशा विभिन्न अक्षांशों में भिन्न-भिन्न होती है, उदाहरण के लिए 

  • भूमध्य रेखा तथा 15° अक्षांश रेखा के बीच ये सन्मार्गी पवनों (Trade Winds) की दिशा में पूर्व की ओर मुड़ जाते हैं।
  • 15° से 30° अक्षांश रेखाओं के मध्य इनकी दिशा अनिश्चित रहती है।
  • 30° अक्षांशों को पार करते ही ये पश्चिम से पूर्व की ओर पछुवा पवनों की दिशा में मुड़ जाते हैं
  • स्थल पर पहुँच कर ये चक्रवात समाप्त होने लगते हैं, क्योंकि ज़मीन पर जलवाष्प की कमी होती है और पवनों का धरातल से घर्षण बढ़ जाता है।

इन चक्रवातों का प्रभाव अग्रलिखित क्षेत्रों पर विशेष रूप से होता है-

कैरिबियन सागर (Caribean sea)

यहाँ ये चक्रवात जून से अक्तूबर तक चार-पाँच बार उठते हैं और पश्चिमी द्वीप समूह, फ्लोरिडा तथा दक्षिण-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका को प्रभावित करते हैं। यहाँ इन चक्रवातों को हरिकेन (Hurricane) कहा जाता है।

चीन सागर (china sea)

इस क्षेत्र में ये चक्रवात जून से अक्तूबर तक 25-30 बार उठते हैं तथा फिलीपीन्स, चीन तथा जापान को प्रभावित करते हैं। यहाँ इन चक्रवातों को टाइफून (Typhoon) कहा जाता है।

हिन्द महासागर (indian ocean)

हिन्द महासागर से वर्ष में दो-तीन बार उठने वाले ये चक्रवात भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, मेडागास्कर तथा ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी तट के अतिरिक्त अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी को भी प्रभावित करते हैं। 

ऑस्ट्रेलिया में इन चक्रवातों को विली-विलीज़ (Willy-Willies) तथा संयुक्त राज्य अमेरिका तथा मैक्सिको में (कैरिबियन सागर में) इन्हें टारनैडो (Tornado) कहा जाता है।

उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात जिस इलाके से गुज़रते हैं सब कुछ मटियामेट करते चलते हैं। गर्मियों के बाद और शरद ऋतु से पहले ये चक्रवात भारत के तटीय भागों में महाविनाश का मंचन करते हैं। 29 अक्तूबर, 1999 को ओड़िशा के तट पर आया चक्रवात भीष्णतम चक्रवात (Super Cyclone) था जो 260 कि०मी० प्रति घण्टा की गति से आया था। वर्तमान में राडार तथा उपग्रह आदि की सहायता से इन चक्रवातों का पूर्वानुमान लगाना तथा टी०वी० व रेडियो की सहायता से उनके प्रकोप को कम करने में सहायता मिली है।

उष्ण एवं शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में अंतर (Difference between tropical and temperate cyclones)



उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Tropical Cyclones)
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Temperate Cyclones)
ये चक्रवात उष्ण कटिबन्ध में 50 से 30° अक्षांशों के बीच दोनों गोलार्दों में चलते हैं।ये चक्रवात शीतोष्ण कटिबन्ध में 35° से 65° अक्षांशों के बीच दोनों गोलार्दों में चलते हैं।
ये चक्रवात 15° अक्षांश तक पूर्व से पश्चिम को चलते हैं। 15° से 30° के बीच इनकी दिशा अनिश्चित होती है। 30° अक्षांश के बाद ये पश्चिम से पूर्व दिशा में चलकर समाप्त हो जाते हैं।ये चक्रवात सारा साल पछुवा पवनों के प्रभाव में पश्चिम से पूर्व दिशा में चलते रहते हैं।
साधारणतः इनका व्यास 100 कि०मी० से 700 कि०मी० तक होता है। कुछ चक्रवात छोटे भी होते हैं।साधारणतः इनका व्यास 500 से 700 कि०मी० तक होता है। कुछ चक्रवात कई हज़ार कि०मी० व्यास के भी होते हैं।
इन चक्रवातों का आकार छोटा होने के कारण दाब प्रवणता अधिक होती है।इन चक्रवातों का आकार बड़ा होने के कारण दाब प्रवणता कम होती है।
अधिक दाब प्रवणता के कारण पवनें तेज़ गति से चलती हैं। साधारणतः पवन की गति 100 से 200 कि०मी० प्रति घण्टा होती है।कम दाब प्रवणता के कारण पवनें मन्द गति से चलती हैं। साधारणतः पवन की गति 30 से 40 कि०मी० प्रति घण्टा होती है।
इनका जन्म संवहनीय धाराओं के कारण अन्तः उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (ITCZ) तल पर होता है।इनका जन्म शीतल तथा उष्ण वायुराशियों के मिलने पर होता है।
ये चक्रवात प्रायः उष्ण समुद्री भागों में उत्पन्न व विकसित होते हैं।ये चक्रवात समुद्री तथा स्थलीय दोनों भागों पर समान रूप से उत्पन्न तथा विकसित होते हैं।
ये ग्रीष्मकाल में उत्पन्न होते हैं।ये शीतकाल में उत्पन्न होते हैं।
इन चक्रवातों में कोई वाताग्र (Front) नहीं होता।इन चक्रवातों में उष्ण तथा वाताग्र होते हैं।
समदाब रेखाएँ पास-पास होती हैं।समदाब रेखाएँ दूर-दूर होती हैं।
केन्द्र के चारों ओर दूरी के साथ तापमान एक समान घटता है।इनके उष्ण खण्ड में तापमान अधिक तथा शीत खण्ड में तापमान कम होता है।
पवनें चक्राकार मार्ग में चलती हैं।पवनों की गति और दिशा वाताग्रों पर निर्भर करती है।
वर्षा तेज़ होती है।वर्षा धीरे-धीरे होती है।
इन चक्रवातों में वर्षा कुछ ही घण्टों तक होती है।इन चक्रवातों में वर्षा कई-कई दिन होती रहती है।
इनमें वर्षा के साथ हिम व ओले नहीं गिरते।इनमें वर्षा के साथ हिम व ओले गिरते हैं।
इन चक्रवातों को ऊर्जा संघनन की गुप्त ऊष्मा (Latent Heat of Condensation) से मिलती है।इन चक्रवातों की ऊर्जा वायुराशियों के घनत्व के अन्तर पर निर्भर करती है।
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात तेज़ पवनों और भारी वर्षा के कारण विनाशकारी होते हैं।शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात मन्द हवाओं और वर्षा के कारण विनाशकारी नहीं होते।
इन चक्रवातों के केन्द्र (आँख) में पवनें शान्त हो जाती हैं और वर्षा रुक जाती है।इन चक्रवातों के केन्द्र में पवनें भी चलती रहती हैं और वर्षा भी होती रहती है।
उष्ण एवं शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में अंतर

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