कोरियालिस बल (Coriolis Force)
पृथ्वी की घूर्णन या दैनिक गति के कारण उत्पन्न आभासी बल जिसके कारण उत्तरी गोलार्द्ध में पवन अपने पथ के दाई ओर, तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाई ओर मुड़ जाती है, कोरियालिस बल (Coriolis force) कहलाता है। इसे विक्षेपक बल (deflective force) भी कहते हैं, पवन की दिशा को मोड़ देता है। पृथ्वी के आवर्तन से उत्पन्न होने वाले विक्षेपक बल एवं उसके प्रभावों की विवेचना सर्वप्रथम कोरियालिस नामक फ्राँसीसी भौतिक शास्त्री ने सन् 1844 में की। उन्हीं के नाम के आधार पर इस आभासी बल को ‘कोरियालिस बल’ की संज्ञा प्रदान की गई।
पृथ्वी की दैनिक गति द्वारा उत्पन्न यह विक्षेपक बल धरातल पर प्रत्येक गतिमान वस्तु को प्रभावित करता है, चाहे वह महासागरीय धारा हो, अथवा बन्दूक से छोड़ी गई गोली। न्यूटन द्वारा प्रतिपादित गति के नियम के अनुसार, यदि कोई वस्तु समान वेग से एक सीधी रेखा में जा रही है, तो वह उसी वेग से उसी दिशा में तब तक चलती रहेगी, जब तक कोई बाहरी बल उस पर न लगाया जाए।
जब वायुदाब-प्रवणता बल के कारण कोई वायु-कण गतिमान होता है, तब उसमें एक सीधी रेखा में चलते रहने की सामान्य प्रवृत्ति विद्यमान रहती है। किन्तु पृथ्वी के आवर्तन के कारण अक्षांश और देशान्तर रेखायें अपनी स्थिति बदल देती हैं, जिससे पवन की दिशा में परिवर्तन हो जाता है।
कोरियालिस बल निम्नलिखित का समानुपाती होता है :-
(क) गतिमान वस्तु का वेग
(ख) गतिमान वस्तु की संहति, तथा
(ग) अक्षांश का ज्या (sine)
- चूंकि कोरियालिस बल अक्षांश के ज्या (sine) पर निर्भर करता है, अतः विषुवत् रेखा (0 अक्षांश) पर यह शून्य होता है (क्योंकि sin 0 का मन शून्य होता है) तथा ध्रुवों के पास इसकी मात्रा अधिकतम होती है।
- कोरियालिस बल की एक अन्य विशेषता यह है कि वह गतिमान वस्तु से समकोण पर (लम्बवत्) कार्य करता है जिससे उस बल का प्रभाव उसकी दिशा पर पड़ता है, न कि उसके वेग पर।
- यह बल प्रत्येक दिशा में समान होता है।
- वास्तव में, विक्षेपक बल वास्तविक बल नहीं, अपितु आभासी बल है, जो पृथ्वी के आवर्तन तथा उसके धरातल पर गतिशील वायु के कारण उत्पन्न होता है।
- वायु की गति तथा उस पर कार्य करने वाले बलों पर विचार करते समय इसे कदापि नहीं भूलना चाहिए कि प्रत्येक पवन आवर्तनशील पृथ्वी के सापेक्ष वायु की गति प्रदर्शित करता है।
मान लीजिए दफ्ती का एक गोल टुकड़ा वामावर्त (anti-clockwise) दिशा में घूर्णन कर रहा है। यदि C बिन्दु पर स्थित कोई वस्तु इस चक्रिका (disc) से बाहर P बिन्दु की ओर गतिमान हो, तो अन्तरिक्ष में स्थित प्रेक्षक को P वस्तु CP मार्ग से चलती दिखाई देगी। इस चक्रिका के तल पर स्थित प्रेक्षक C बिन्दु से वस्तु के चलते समय T बिन्दु पर था, किन्तु जितने समय में C वस्तु P तक पहुँचेगी, उतने ही समय में चक्रिका के आवर्तन के कारण प्रेक्षक अपने को T बिन्दु पर स्थित पाएगा।
ऐसी स्थिति में चक्रिका के तल पर स्थित प्रेक्षक को ऐसा प्रतीत होगा कि किसी बल F के कारण C वस्तु अपने पथ से दाई ओर मुड़ गई। इसी आभासी बल को ‘कोरियालिस बल’ कहा जाता है। यह याद रहे कि अन्तरिक्ष में स्थित प्रेक्षक ने C वस्तु की निरपेक्ष गति (absolute motion) को देखा, जब कि चक्रिका पर स्थित प्रेक्षक को वस्तु की सापेक्ष गति (relative motion) दिखाई पड़ी।
चित्र में प्रदर्शित AB में प्रदर्शित तथा A ‘B’ दो रेखाएं अपनी सापेक्ष स्थिति से यह भी सिद्ध करती हैं कि विक्षेपक बल का प्रभाव केवल उत्तर से दक्षिण अथवा दक्षिण से उत्तर चलने वाली वस्तुओं पर ही नहीं पड़ता, बल्कि, उसके द्वारा पूर्व-पश्चिम तथा पश्चिम-पूर्व अथवा किसी तिरछे मार्ग से चलने वाली वस्तुएं भी समान रूप से प्रभावित होती हैं। प्रत्येक दशा में, कोई भी गतिमान वस्तु उत्तरी गोलार्द्ध में अपने पथ के दाई ओर, तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाई ओर मुड़ जाती है।
किसी आवर्तनशील पिण्ड पर होने वाले विक्षेप को फूको (Foucault) ने सन् 1851 में पेरिस में एक लोलक (pendulum) द्वारा प्रदर्शित किया था। उनके द्वारा लटकाया गया लोलक जो प्रारम्भ में उत्तर से दक्षिण दिशा में दोलन कर रहा था, क्रमशः उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा में दोलन करने लगा। वास्तव में लोलक की स्थिति तो यथावत् बनी रही, किन्तु धरातल पर बनने वाले निशानों की स्थिति में, पृथ्वी के आवर्तन के कारण देशान्तर बदल जाने से परिवर्तन हो गया।
इसी प्रकार यदि पश्चिम से पूर्व की ओर घूमते हुए किसी ग्लोब पर उत्तरी ध्रुव से विषुवत् रेखा की ओर पेंसिल से निशान बनाया जाए, तो हम देखेंगे कि इस प्रकार बना निशान एक वक्र रेखा होगा, जिसकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम होगी। यद्यपि हमारे हाथ में पकड़ी गई पेंसिल की प्रारम्भिक दिशा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, तथापि ग्लोब के आवर्तन (घूमने) के कारण पेंसिल की गति की दिशा में तथाकथित परिवर्तन हो गया।
जलवायु विज्ञान में केवल उसके प्रभाव पर बल दिया जाता है। कोरियालिस बल से उत्पन्न विक्षेप के कारण ही भू-तल पर तथा कथित वायुदाब पेटियाँ अथवा सनातनी पवनों की पेटियाँ पाई जाती हैं। वायुराशियों एवं विभिन्न प्रकार के तूफानों की उत्पत्ति में भी इस बल का परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है।
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