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वायुराशि (Air Mass)

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वायुराशि का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Air Mass: Meaning and Definitions)

वायुमण्डल की उस विस्तृत और सघन राशि को वायुराशि कहते हैं जिसमें विभिन्न ऊँचाइयों पर भौतिक गुण अर्थात् तापमान और आर्द्रता के लक्षण क्षैतिज दिशा में एक जैसे हों। 

ट्रिवार्था तथा हॉर्न के अनुसार,” “वायुराशि वायुमण्डल का वह विस्तृत भाग है जिसमें तापमान, आर्द्रता तथा जल स्थैतिक स्थिरता क्षैतिज दिशा में अपेक्षाकृत एक समान हो।” 

हॉवर्ड जे० क्रिचफ़ील्ड के अनुसार, “वायुराशि वायुमण्डल का वह विस्तृत भाग है जिसमें तापमान तथा आर्द्रता सम्बन्धी विशेषताएँ क्षैतिज दिशा में समांग हैं।”

न्यूबर्जर तथा स्टीफन्स के अनुसार, “वायु का वह विशाल भाग जिसके हर स्तर पर तापमान तथा आर्द्रता सम्बन्धी परिस्थितियाँ लगभग एक-जैसी हों, वायुराशि कहलाता है।”

पीटरसन के अनुसार, “एक वायुराशि वायु का बृहद आकार है जिसकी तापक्रम तथा आर्द्रता सम्बन्धी भौतिक विशेषताएँ क्षैतिज रूप में एक समान होती हैं।”

वायुराशियों की उत्पत्ति (Origin of Air Masses)

वायुराशियों की उत्पत्ति तब होती है जब वायु समान ताप और आर्द्रता वाले धराताल पर कुछ समय के लिए टिकी रहती है। ऐसी दशा में वायु धरातल के तापमान और आर्द्रता के गुणों को अपने में धारण या समाहित करके “वायुराशि” बन जाती है। 

वायुराशि की विशेषताएँ (Characteristics of Air Masses)

  • एक वायुराशि सैंकड़ों वर्ग कि०मी० से हज़ारों वर्ग कि०मी० तक फैली हुई हो सकती है। 
  • कभी-कभी विशालता में तो एक वायुराशि एक महाद्वीप के एक बड़े हिस्से के बराबर हो सकती है। 
  • ऊँचाई की दृष्टि से तो यह पूरे क्षोभमण्डल में फैली हुई हो सकती है। 
  • वायुराशि में अनेक परतें होती हैं लेकिन सभी परतों में तापमान और आर्द्रता लगभग समान होती है।
  • जब दो विपरीत गुणों वाली वायुराशियाँ आपस में मिलती हैं तो उनके मिलन क्षेत्र अर्थात् सीमान्त क्षेत्र में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर तापमान एवं आर्द्रता सम्बन्धी दशाओं में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। 
  • वायुराशियों में तापमान एवं आर्द्रता के लम्बवत् वितरण में अन्तर पाया जाता है। ध्यान रहे कि वायुराशियों में तापमान व आर्द्रता के इस लम्बवत् वितरण पर संघनन (Condensation) के विभिन्न रूप और वर्षा की मात्रा निर्भर करती है।
  • वायुराशियाँ अपने उद्गम क्षेत्र पर स्थिर न रहकर आगे की ओर प्रवाहित होती रहती हैं। इनका स्थानान्तरण चाहे जिस दिशा में हो, ये अपने मौलिक स्वरूप को बहुत धीरे-धीरे छोड़ती हैं।
  • सभी वायुराशियाँ किसी-न-किसी धरातलीय पवन-तन्त्र (Wind System) से सम्बन्धित होती हैं। 

वायुराशियों का महत्त्व (Importance of Air Masses)

  • ऋतु परिवर्तन की अनेक ‘घटनाओं से वायुराशियों का प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्बन्ध होता है। 
  • वायुराशियाँ वाताग्रों (Air Fronts) का निर्माण करती हैं।
  • जिस भी क्षेत्र में वायुराशियाँ पहुँचती हैं, वे अपनी प्रकृति के अनुसार वहाँ के तापमान और आर्द्रता सम्बन्धी दशाओं को प्रभावित करती हैं। 

वायुराशियों की प्रकृति (Nature of Air Masses)

आर्द्रता की उपस्थिति के कारण वायुराशियाँ किसी क्षेत्र के मौसम को प्रभावित करती हैं। यदि किसी वायुराशि का तापमान उस क्षेत्र के तापमान की अपेक्षा, जिस पर वह स्थिर हो या संचरण कर रही हो, कम हो तो उस वायुराशि को ठण्डी वायुराशि (Cold Airmass) कहते हैं। यदि इसके विपरीत किसी वायुराशि का तापमान उस क्षेत्र के तापमान की अपेक्षा, जिस पर वह स्थिर है या संचरण कर रही है, अधिक हो तो उसे उष्ण वायुराशि (Warm Air Mass) कहते हैं। 

वायुराशियों की उत्पत्ति की अनुकूल दशाएँ (Favorable Conditions for the Origin of Air Masses)

  • तापमान और आर्द्रता की समान दशाओं से युक्त एक विस्तृत क्षेत्र होना चाहिए।
  • उत्पत्ति क्षेत्र या तो पूरी तरह से स्थलीय भाग हो या पूरी तरह से समुद्री भाग, क्योंकि कुछ जल और कुछ स्थल से युक्त क्षेत्र में तापमान और आर्द्रता की समरूपता नहीं हो सकती। 
  • वायुराशियों के उत्पत्ति क्षेत्र में वायु का अभिसरण (Convergence) नहीं होना चाहिए। अभिसरण होने से वायु में तापीय विषमताएँ पैदा हो जाती हैं।
  • यदि वायु में क्षैतिज गति होती है तो वह अपसरण (Divergence) प्रकार की होनी चाहिए।
  • क्षेत्र में वायुमण्डलीय दशाएँ लम्बे समय तक स्थिर रहनी चाहिएँ जिससे वायुराशियों में भिन्नताएँ पैदा न हों। 
  • उद्गम क्षेत्र पर बड़े पैमाने पर वायु को ऊपर से नीचे उतरना चाहिए। ऐसे समान ताप वाले क्षेत्र पर उतरने वाली वायुराशि धीरे-धीरे उस क्षेत्र के गुणों को धारण कर लेती है और ग्रहण किए गए गुणों को काफ़ी समय तक अपने अन्दर संजोए रखती है। 

वायुराशियों के उद्गम क्षेत्र (Source Regions of Air Masses)

वे क्षेत्र जहाँ एक जैसा गुण धारण करने वाली वायुराशियाँ उत्पन्न होती हैं, वायुराशियों के उद्गम क्षेत्र कहलाते हैं। धरातल पर वायुराशियों के छः आदर्श क्षेत्र पाए जाते हैं-

  • ध्रुवीय सागरीय क्षेत्र– अंटलांटिक एवं प्रशान्त महासागर के उत्तरी क्षेत्र (शीतकाल में) 
  • ध्रुवीय तथा आर्कटिक महाद्वीपीय क्षेत्र– यूरेशिया तथा उत्तरी अमेरिका के हिमाच्छादित भाग एवं आर्कटिक प्रदेश (शीतकाल में)
  • उष्ण कटिबन्धीय सागरीय क्षेत्र 
  • उष्ण कटिबन्धीय महाद्वीपीय क्षेत्र 
  • भूमध्य रेखीय महासागरीय क्षेत्र 
  • मानसूनी क्षेत्र 

वायुराशियों का वर्गीकरण (Classification of Air Masses)

Classification of Air Masses
वायुराशियों का वर्गीकरण

वायुराशियों का वर्गीकरण अनेक जलवायु-वेत्ताओं ने प्रस्तुत किया है, जिनमें ट्रिवार्था, पीटरसन तथा बर्गरान के नाम प्रमुख हैं। यहाँ हम ट्रिवार्था के वर्गीकरण का अध्ययन करेंगे।। जी०टी० ट्रिवार्था ने वायुराशियों का तीन आधारों पर वर्गीकरण किया है-

  • उद्गम क्षेत्र के आधार पर
  • आर्द्रता या धरातल की प्रकृति के आधार पर
  • प्रक्षेप मार्ग के आधार पर

उद्गम क्षेत्र के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the Basis of Region of Formation)

इसे वायुराशियों का भौगोलिक वर्गीकरण भी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत वायुराशियों का वर्गीकरण ताप के आधार पर किया जाता है। 

ताप के आधार पर वायुराशियों का वर्गीकरण

ताप के आधार पर वायुराशियाँ दो प्रकार की होती हैं

ध्रुवीय वायुराशि (Polar Air Masses)

उच्च ध्रुवीय अक्षांशों में उत्पन्न होने वाली इन वायुराशियों के लिए ट्रिवार्था ने ‘P’ अक्षर का प्रयोग किया है । यहाँ ‘P’ अक्षर ‘Polar’ वायुराशि का संक्षेप-शब्द (Abbreviation) है। ध्रुवीय वायुराशियों के एक अन्य रूप आर्कटिक (Arctic) को A अक्षर द्वारा प्रकट किया जाता है।

उष्ण कटिबन्धीय वायुराशि (Tropical Air Mass)

उष्ण कटिबन्ध में पैदा होने वाली इन वायुराशियों के लिए ट्रिवार्था ने ‘T’ अक्षर का प्रयोग किया है। यहाँ ‘T’ अक्षर ‘Tropical’ वायुराशि का शब्द संक्षेप है। उष्ण कटिबन्धीय वायुराशि का एक और रूप भूमध्य रेखीय वायुराशि (Equatorial Air Mass) है जिसे ‘E’ अक्षर द्वारा प्रकट किया जाता है।

आर्द्रता अथवा धरातल की प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण

आर्द्रता के आधार पर ट्रिवार्था ने वायुराशियों के दो प्रकार बताए हैं-

महाद्वीपीय वायुराशि (Continental Air Mass)

महाद्वीपों पर उत्पन्न होने वाली इन वायुराशियों को ‘C’ अक्षर द्वारा प्रकट किया जाता है। यहाँ ‘C’ अक्षर ‘Continent’ का संक्षेप शब्द है। स्थलीय होने के कारण इन वायुराशियों में आर्द्रता कम पाई जाती है। महाद्वीपीय वायुराशियों के भी आगे दो उपभाग हैं-

महाद्वीपीय ध्रुवीय (Continental Polar- cP) वायुराशि

ध्रुवीय क्षेत्रों में स्थित महाद्वीपीय भागों में उत्पन्न होने वाली वायुराशियों को महाद्वीपीय ध्रुवीय (Continental Polar- cP) वायुराशि कहा जाता है। यूरेशिया में उत्पन्न होने वाली वायुराशियाँ cP का बढ़िया उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

महाद्वीपीय उष्ण कटिबन्धीय (Continental Tropical- cT) वायुराशि

उष्ण कटिबन्ध में स्थित महाद्वीपीय भागों में उत्पन्न होने वाली वायुराशि को महाद्वीपीय उष्ण कटिबन्धीय (Continental Tropical- cT) वायुराशि कहा जाता है। 

महासागरीय वायुराशि (Maritime Air Mass)

समुद्रों पर उत्पन्न होने वाली इन वायुराशियों को ट्रिवार्था ने ‘m’ अक्षर द्वारा प्रकट किया है। इन वायुराशियों में आर्द्रता अधिक होती है। महासागरीय वायुराशियों के भी आगे दो उपभाग हैं-

महासागरीय ध्रुवीय (Maritime Polar- mP) वायुराशि

ध्रुवीय समुद्रों पर उत्पन्न होने वाली वायुराशियों को महासागरीय ध्रुवीय (Maritime Polar- mP) वायुराशि कहा जाता है। उत्तरी प्रशान्त महासागर में उत्पन्न होने वाली वायुराशिया mP वायुराशियों का श्रेष्ठ उदाहरण मानी जाती हैं।

महासागरीय उष्ण कटिबन्धीय (Maritime Tropical- mT) वायुराशि

उष्ण कटिबन्धीय समुद्रों पर उत्पन्न होने वाली वायुराशियों को महासागरीय उष्ण कटिबन्धीय (Maritime Tropical- mT) वायुराशि कहा जाता है। मैक्सिको की खाड़ी में उत्पन्न होने वाली वायुराशियाँ mT वायुराशियों का श्रेष्ठ उदाहरण मानी जाती हैं। 

इस प्रकार उद्गम क्षेत्र या उत्पत्ति क्षेत्र की प्रकृति के आधार पर ट्रिवार्था ने वायुराशियों को चार वर्गों में बाँटा है- 

  • महाद्वीपीय ध्रुवीय वायुराशि – cP
  • महासागरीय ध्रुवीय वायुराशि – mP 
  • महाद्वीपीय उष्ण कटिबन्धीय वायुराशि- cT 
  • महासागरीय उष्ण कटिबन्धीय वायुराशि- mT 

प्रक्षेप मार्ग (Trajectory) के आधार पर वायुराशियों का वर्गीकरण

उद्गम क्षेत्र छोड़ने के बाद वायुराशियों के भौतिक गुणों में परिवर्तन आ जाता है। यह परिवर्तन वायुराशियों के तापमान, आर्द्रता और स्थायित्व में होता है। परिवर्तन की यह प्रक्रिया दो प्रकार से सम्पन्न होती है

ऊष्मागतिक रूपान्तर (Thermodynamic Modification)

वायुराशि की निचली परत और भूतल के बीच ऊष्मा के आदान-प्रदान के कारण वायुराशि के गरम अथवा ठण्डे होने की प्रक्रिया को ऊष्मागतिक परिवर्तन कहते हैं। ऊष्मागतिक परिवर्तन तीन बातों पर निर्भर करता है- 

  • सतह का स्वभाव कैसा है ?
  • उद्गम क्षेत्र से प्रभावित क्षेत्र तक वायुराशि का भ्रमण पथ कितना लम्बा है ? 
  • उद्गम क्षेत्र से प्रभावित क्षेत्र तक पहुँचने में कितने दिन लगे ? 

जब कोई ठण्डी वायुराशि गरम धरातल पर चलती है तो- 

  • उसकी निचली परत धीरे-धीरे गरम होने लगती है
  • परिणामस्वरूप वायुराशि में संवहन धाराओं (Conventional Currents) का विकास होने लगता है। इससे वायु अस्थिर (Unstable) होने लगती है।
  • कपासी मेघ बनते हैं और विक्षोभ (Disturbances) पैदा होते हैं और संघनन तथा वर्षण (Precipitation) होता है
  • ऐसी वायुराशि को ‘K’ अक्षर (K = Kalt = Cold यानि शीतल) द्वारा प्रकट किया जाता है। ‘K’ नामक अक्षर से यह पता चलता है कि यह वायुराशि अपने मार्ग की अपेक्षा अधिक ठण्डी है। उदाहरण : जब कोई ध्रुवीय वायुराशि उष्ण कटिबन्ध की ओर बढ़ती है तो उसके साथ ‘K’ अक्षर लगा देते हैं; जैसे cPK (महाद्वीपीय ध्रुवीय) वायुराशि अथवा mPK (महासागरीय ध्रुवीय) वायुराशि अपने से अधिक गरम धरातल पर चलकर आई है।

इसके विपरीत जब कोई गरम वायुराशि ठण्डे धरातल की ओर बढ़ती है तो-

  • उसकी निचली परतें धीरे-धीरे ठण्डी होने लगती हैं। 
  • वायुराशि में तापमान के व्युत्क्रमण (Inversion of Temperature) की दशा पैदा हो जाती है जिससे ऊँचाई के साथ वायु ठण्डी नहीं हो पाती।
  • परिणामस्वरूप वायु में स्थायित्व (Stability) का विकास होता है। 
  • इन दशाओं में संघनन तथा वर्षण की सम्भावनाएँ कम होती हैं।
  • ऐसी वायुराशि को ‘W’ अक्षर (W = Warm = उष्ण) द्वारा प्रकट किया जाता है। W नामक अक्षर से यह पता चलता कि यह वायुराशि अपने मार्ग की अपेक्षा अधिक गरम है। उदाहरण : जब कोई उष्ण कटिबन्धीय वायुराशि ध्रुवों की ओर चलने लगती है तो उसके साथ ‘W’ अक्षर लगा देते हैं; जैसे mTW (महासागरीय उष्ण कटिबन्धीय) वायुराशि अथवा cTW (महाद्वीपीय उष्ण कटिबन्धीय) वायुराशि अपने से अधिक ठण्डे धरातल पर चलकर आई हैं। 

यांत्रिक अथवा गतिज रूपान्तर (Dynamic or Mechanical Modification)

इस रूपान्तर में धरातल की गर्मी या ठण्ड का प्रभाव नहीं होता। इसमें चक्रवात, प्रति चक्रवातों तथा धरातल के घर्षण के द्वारा वायु के ऊपर उठने या नीचे उतरने से वायुराशियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आते हैं। चक्रवात में वायु के ऊपर उठने से असन्तुलन आ जाता है । जिसे ‘u’ अक्षर द्वारा प्रकट किया जाता है। इसके विपरीत प्रतिचक्रवात में वायु के नीचे उतरने से सन्तुलन आ जाता है जिसे ‘s’ अक्षर द्वारा प्रकट किया जाता है। यहाँ u का मतलब Unstable (अस्थिर) से है तथा s का मतलब Stable (स्थिर) से है। इस प्रकार ट्रिवार्था ने विश्व की समस्त वायुराशियों को उनके भौतिक गुणों के आधार पर 16 विभागों में वर्गीकृत किया है।

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