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अवजनसंख्या (Under Population) 

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अवजनसंख्या (Under Population)

जब किसी प्रदेश में उपलब्ध संसाधनों के पूर्ण विकास या उपयोग के लिए जितनी जनसंख्या की आवश्यकता होती है उससे कम जनसंख्या पाई जाती है, तो इस स्थिति के लिए अधोजनसंख्या, अल्प जनसंख्या, जनाभाव, जनाल्पता, अवजनसंख्या आदि शब्दावलियों का प्रयोग किया जाता है। इस दशा में देश में विद्यमान संसाधन बेरोजगारी में वृद्धि किए बिना अथवा जीवन स्तर में बिना गिरावट लाए ही वर्तमान से अधिक जनसंख्या के भरण-पोषण के लिए सक्षम होते हैं। 

इस प्रकार अवजनसंख्या वाले प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि से उत्पादन स्तर और जीवन स्तर में उत्थान संभव हो सकता  है। वास्तव में यह अनुकूलतम जनसंख्या से कम जनसंख्या होने की स्थिति को दर्शाता है। अतः जनसंख्या वृद्धि से इसकी गति की दिशा अनुकूलतम की ओर होती है। इस प्रकार यदि किसी प्रदेश की जनसंख्या वहाँ के लिए आदर्श या अनुकूलतम जनसंख्या से कम है तो उस प्रदेश के और अधिक विकास के लिए जनसंख्या वृद्धि वांछनीय होती है और उसका तब तक बढ़ना प्रदेश के विकास के पक्ष में होता है जब तक वह अनुकूलतम सीमा तक नहीं पहुँच जाती है। 

क्लार्क (J.I. Clarke) के मतानुसारअधोजनसंख्या या अवजनसंख्या वहाँ पाई जा सकती है जहाँ जनसंख्या इतनी अल्प होती है कि वह इसके संसाधनों का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाती है अथवा जहाँ संसाधन जीवन स्तर में कमी के बिना अथवा बेरोजगारी में वृद्धि किए बिना ही बृहत्तर जनसंख्या का पोषण करने में समर्थ होते हैं।’ 

अवजनसंख्या की प्रकृति पूर्ण (Absolute) और सापेक्ष (Relative) दोनों प्रकार की हो सकती है। पूर्ण जनाभाव या अवजनसंख्या की स्थिति बहुत कम पाई जाती है। यह केवल एकाकी लघु क्षेत्रीय इकाई में ही उत्पन्न हो सकती है जिसका आर्थिक, सामाजिक या राजनीतिक सम्बन्ध अन्य क्षेत्रों से न हो। किन्तु ऐसी स्थिति वर्तमान विश्व के अधिकांश भागों में नहीं पाई जाती है। 

सामान्यतः सापेक्ष जनाभाव या अवजनसंख्या ही अधिक प्रचलित है और विश्व के विकसित तथा विकासशील सभी प्रकार के भूभागों में पाई जा सकती है। सापेक्ष जनाभाव या अवजनसंख्या के लिए सामान्यतः जनसंख्या का अल्प होना अथवा संसाधनों के विकास का अभाव (या अल्प विकास) उत्तरदायी होता है। जब युद्ध, महामारी या अन्य किसी प्राकृतिक प्रकोप से किसी क्षेत्र में मृत्युदर में तीव्र वृद्धि से जनसंख्या ह्रास हो जाता है तब वहाँ जनसंख्या और संसाधन का सन्तुलन बिगड़ जाता है और जनाभाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है। 

इस प्रकार की स्थिति अधिकांशतः पिछड़े समाजों में उत्पन्न होती है जहाँ चिकित्सा तथा स्वास्थ्य सुविधाओं का प्रचार बहुत कम होता है। भारत में 20वीं शताब्दी के प्रथम दो दशकों में प्लेग, हैजा, इन्फ्लूएंजा जैसी महामारियों के परिणामस्वरूप जनसंख्या में उल्लेखनीय ह्रास हो गया था। विश्व के कई विकासशील देशों में अधोजनसंख्या की स्थिति पाई जाती है। मध्य अफ्रीका और लैटिन अमेरिका (मुख्यतः ब्राजील) के घने जंगली भागों में जनसंख्या बहुत कम है। 

वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान के अभाव में जनसंख्या अकुशल भी है और वहाँ उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के विकास या विदोहन के लिए सक्षम नहीं है। इस कारण इन क्षेत्रों का पर्याप्त विकास नहीं हो पा रहा है। इस प्रकार ऐसे क्षेत्रों में जनाभाव की स्थिति प्रौद्योगिकी के विकास के अभाव के कारण उत्पन्न हुई है। यहाँ पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन (वन, औद्योगिक खनिज, कोयला, जल आदि) विद्यमान होते हुए भी उनका विदोहन नहीं हो पा रहा है। इन प्रदेशों के विकास के लिए अभी जनसंख्या वृद्धि वांछनीय है। 

कुछ विकसित देशों में भी जनाभाव या अवजनसंख्या की स्थिति देखी जा सकती है लेकिन वह विस्तृत ग्रामीण क्षेत्रों में ही अधिक सामान्य है। संसार के शीतोष्ण घास के मैदानों में जनाभाव की दशाएँ पाई जाती हैं। यूरेशिया में स्टेपीज, दक्षिण अमेरिका में पंपास, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में प्रेयरी, अफ्रीका के वेल्स तथा आस्ट्रेलिया के डाउन्स घास प्रदेशों में विस्तृत कृषि भूमि उपलब्ध है किन्तु वहाँ जनसंख्या का घनत्व अल्प है और अनेक क्षेत्रों में गहन कृषि के लिए पर्याप्त नहीं है। यह भी अवजनसंख्या का ही एक रूप है क्योंकि इन प्रदेशों में वर्तमान से अधिक जनसंख्या के भरण-पोषण की क्षमता विद्यमान है और साथ ही जनसंख्या वृद्धि से कृषि उत्पादनों में और अधिक वृद्धि की सम्भावनाएँ हैं। 

विश्व स्तरीय अध्ययन से यह प्रतीत होता है कि अवजनसंख्या की व्यापक समस्या निम्न प्रौद्योगिकी विकास वाले ऐसे प्रदेशों में मिलती है जहाँ विस्तृत भूमि और संसाधन विद्यमान हैं किन्तु जनसंख्या अकुशल एवं अनभिज्ञ होने के कारण उपलब्ध संसाधनों का विदोहन करने में समर्थ नहीं है। विकसित देशों में जनाभाव की समस्या बहुत सीमित है और केवल कुछ सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में ही पाई जा सकती है क्योंकि उन्नत प्रौद्योगिकी, यातायात एवं संचार माध्यमों आदि के प्रसार एवं प्रयोग से ये देश जनसंख्या-संसाधन के क्षेत्रीय असंतुलन को ठीक करने में सदैव तत्पर रहते हैं।

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