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रोस्टोव का आर्थिक वृद्धि सिद्धान्त (Rostow’s Theory of Economic Growth)

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इस लेख को पढ़ने के बाद आप रोस्टोव का आर्थिक वृद्धि सिद्धान्त (Rostow’s Theory of Economic Growth) की विभिन्न अवस्थाओं को पहचान पाएंगे तथा सिद्धांत की समीक्षा करने में सक्षम होंगे।

रोस्टोव का आर्थिक वृद्धि सिद्धान्त (Rostow’s Theory of Economic Growth)

रोस्टोव एक प्रख्यात अर्थशास्त्री थे जिन्होंने आर्थिक विकास की प्रक्रिया को सरल ऐतिहासिक क्रम में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। उन्होंने आर्थिक विकास की अवस्थाओं का विश्लेषण कार्ल मार्क्स के विश्लेषण के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है। रोस्टोव ने ऐतिहासिक विश्लेषण के आधार पर एक ऐसे सिद्धान्त को प्रतिपादित करने का प्रयास किया है जो समस्त अर्थव्यवस्थाओं के विकास मार्ग को दर्शाता है। 

हालांकि रोस्टोव ने जनसंख्या सम्बन्धी अलग से किसी सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया है किन्तु उन्होंने आर्थिक विकास तथा जनसंख्या वृद्धि को सहगामी बताया है। उनके अनुसार जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति आर्थिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार पाई जाती है। 

रोस्टोव के आर्थिक वृद्धि सिद्धान्त की पांच अवस्थाएं( Five stages of Rostow’s Theory of Economic Growth)

रोस्टोव के अनुसार प्रत्येक अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित 5 क्रमिक अवस्थाओं (stages) से गुजरना पड़ता है:

1. परम्परागत समाज की अवस्था (The stage of the traditional society),

2. उत्थान से पूर्व की दशाएँ (Preconditions for Take-off),

3. उत्थान अवस्था (The Take-off stage),

4. परिपक्वोन्मुख अवस्था (The drive to maturity stage),

5. अत्यधिक उपभोग का युग (The age of high mass consumption)

रोस्टोव के आर्थिक वृद्धि सिद्धान्त की पांच अवस्थाएं

Diagrammatic Representation of Rostow's Theory of Economic Growth

परम्परागत समाज की अवस्था (The Stage of the Traditional Society)

  • यह किसी अर्थव्यवस्था या समाज के विकास की आरम्भिक अवस्था होती है जिसमें परम्परागत समाज निम्नस्तरीय संतुलन की अवस्था में रहता है। 
  • इस अवस्था में प्रौद्योगिकी अत्यन्त पिछड़ी हुई होती है जिसके कारण उत्पादन स्तर अत्यन्त निम्न पाया जाता है तथा जनसंख्या अत्यन्त कम और लगभग स्थिर पाई जाती है। 
  • परम्परागत समाज का ढांचा सामान्यतः उत्तराधिकारवादी होता है जिसमें परिवार तथा जातिगत सम्बन्धों का महत्व अधिक होता है। 
  • ऐतिहासिक दृष्टि से आदिम अवस्था से लेकर पशुपालन, आदिम कृषि तथा सामंतवादी अर्थव्यवस्थाएँ इसी अवस्था के अन्तर्गत सम्मिलित की जाती हैं। 
  • इस अवस्था में कृषि अर्थव्यवस्था का मूलाधार होती है और तीन-चौथाई से अधिक कार्यशील जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न रहती है।

उत्थान से पूर्व की दशाएँ (Pre-conditions for Take-off)

  • यह परम्परागत समाज और उत्थान अवस्था के मध्य संक्रमण स्थिति का द्योतक है जिसमें उत्थान या सतत वृद्धि (sustained growth) की पूर्व स्थितियों का निर्माण होता है। 
  • इस काल में आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में अनेक प्रकार के महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। इस संक्रमण कालीन स्थिति में कई प्रकार के सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक परिवर्तन होते हैं। 
  • इसमें ऐसे प्रबुद्ध वर्ग का उदय होता है जो यह अनुभव करने लगता है कि आर्थिक नवीनीकरण सम्भव ही नहीं बल्कि आवश्यक भी है। 
  • आर्थिक क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों जैसे पूँजी संग्रह की अपेक्षाकृत् उच्च दर, नव प्रवर्तनों (innovations) का विदोहन, विशिष्टीकरण हेतु श्रमिकों की प्रशिक्षण व्यवस्था, बड़े पैमाने पर उत्पादन का आरम्भ आदि की तुलना में जनसंख्या वृद्धि मंद पाई जाती है यद्यपि जनसंख्या वृद्धि परम्पगत समाज की तुलना में तीव्र होती है। 
  • आर्थिक प्रगति के साथ-साथ जनसंख्या वृद्धि दर में भी वृद्धि होती है। यूरोप में उत्थान से पूर्व की स्थितियों के निर्माण में जिन सामाजिक-राजनीतिक दशाओं का महत्वपूर्ण योगदान था उनमें प्रमुख हैं नवजागरण (The Renaissance), नई दुनिया (The New World), ईसाई धर्मान्दोलन (Christian reformation) आदि। 
  • रोस्टोव के अनुसार उत्थान (Take-off) या सतत औद्योगीकरण के आधार के रूप में तीन दशाओं में परिवर्तन आवश्यक होता है –
    • सामाजिक उपरिव्यय पूँजी का निर्माण तथा परिवहन के साधनों एवं बाजार क्षेत्र में विस्तार की प्रवृत्ति।
    • बढ़ते नगरीकरण तथा जनसंख्या वृद्धि हेतु कृषि में प्रौद्योगिकीय क्रांति, और
    • पूँजी सहित आयातों में विस्तार, प्राकृतिक संसाधनों का कुशल उत्पादन, क्रय-विक्रय द्वारा वित्त प्रबंध आदि।

उत्थान की अवस्था (The Take-off Stage)

  • उत्थान से पूर्व की अवस्था में पूँजी संग्रह की दर में वृद्धि, कार्यात्मक विशिष्टीकरण, प्राकृतिक संसाधनों तथा नव-प्रवर्तनों (नवीनताओं) के विदोहन, सामाजिक जागरूकता आदि के परिणामस्वरूप एक ऐसा आधार तैयार हो जाता है जो सतत आर्थिक या औद्योगिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त करता है। 
  • रोस्टोव के अनुसार उत्थान अवस्था में
    • शुद्ध विनियोग की दर राष्ट्रीय आय के 5 प्रतिशत से बढ़कर 10 प्रतिशत हो जाती है
    • एक या एक से अधिक विनिर्माण उद्योगों (Manufacturing Industries) का विकास होता है, और 
    • ऐसे सामाजिक, राजनीतिक तथा संस्थागत संगठनों का उदय होता है जो आर्थिक विकास हेतु अधिक सक्रिय होते हैं। 
  • रोस्टोव का मत है कि उत्थान अवस्था की अवधि अत्यन्त अल्प (20 से 30 वर्ष) होती है और इस अवधि में आधुनिकीकरण की शक्तियाँ परम्परागत समाज के मूल्यों तथा अभिरुचियों को पार करते हुए आगे बढ़ जाती हैं।
  • रोस्टोव के शब्दों में, “उत्थान औद्योगिक क्रांति है जो उत्पादन के साधनों पर आमूल परिवर्तनों से प्रत्यक्ष रूप से संयुक्त रहती है जिसका समय की अपेक्षाकृत् अल्प अवधि में अपना निर्णायक परिणाम होता है।”
  • उत्थान की अवस्था सर्वप्रथम ब्रिटेन में अट्ठारहवीं शताब्दी के अंतिम दो दशकों (1783-1802) में उत्पन्न हुई थी। फ्रांस और बेल्जियम में यह अवस्था 1830-1860 तक, संयुक्त राज्य अमेरिका में 1843- 1860 तक, जर्मनी में 1850-1873 तक और जापान में 1878-1900 तक मानी जाती है। उत्थान की अवस्था रूस में 1890-1914 और कनाडा में 1896-1914 थी।
  • उत्थान अवस्था में तीव्र औद्योगीकरण के साथ ही नगरीकरण में तीव्र वृद्धि होती है।
  • आर्थिक उत्पादनों तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि आदि सकारात्मक कारणों से जनसंख्या में भी तीव्र गति से वृद्धि होती है। 
  • प्रौद्योगिकीय विकास से बीमारियों तथा रोगों पर नियंत्रण लगने से मृत्युदर में कमी जनसंख्या वृद्धि की महत्वपूर्ण जनांकिकीय कारण होती है।

परिपक्वोन्मुख अवस्था (The Stage of Drive to Maturity)

  • रोस्टोव ने पश्चिमी यूरोपीय देशों (मुख्यतः इंग्लैण्ड), संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान तथा रूस के ऐतिहासिक तथ्यों का विश्लेषण करते हुए यह मत प्रस्तुत किया कि उत्थान अवस्था लगभग 20 से 30 वर्ष रहती है। अल्पावधि वाली उत्थान अवस्था के पश्चात् शीघ्र ही परिपक्वता की ओर अग्रसर अवस्था आरम्भ हो जाती है। 
  • रोस्टोव के अनुसार, “परिपक्वोन्मुख अवस्था वह अवधि है जब कोई समाज अपने अधिकांश साधनों पर तत्कालीन आधुनिक प्रौद्योगिकी के परिक्षेत्र का प्रभावपूर्ण व्यवहार करता है।” 
  • इस अवस्था की अवधि सामान्यतः 40 से 50 वर्ष की होती है। 
  • इस दीर्घकालीन सतत आर्थिक विकास की अवस्था में पुरानी एवं परम्परागत उत्पादन प्रणाली के स्थान पर नवीन तकनीकों का प्रयोग किया जाने लगता है। 
  • इस अवस्था में अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत हो जाती है कि वह अप्रत्याशित झटके को सहने में समर्थ होती है। 
  • इस अवस्था में शुद्ध विनियोग की दर राष्ट्रीय आय के 10 प्रतिशत से अधिक रहती है। 
  • तीव्र औद्योगीकरण, नगरीकरण तथा अर्थिक विकास के परिणामस्वरूप जनसंख्या में भी तीव्र वृद्धि होती है किन्तु वार्षिक वृद्धि पर उत्थान अवस्था की तुलना में कुछ निम्न रहती है। 
  • जनसंख्या का आकार निरन्तर बढ़ता जाता है।

अत्यधिक उपभोग का युग (The Age of High Mass Consumption)

  • यह आर्थिक विकास की सर्वोत्तम अवस्था है जिसमें यातायात के साधनों के विकास, टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण एवं आपूर्ति, घरेलू मशीनी उपकरणों के अधिक प्रयोग आदि के रूप में उपभोग स्तर अत्यन्त उच्च पाया जाता है। 
  • इस अवस्था में समाज का ध्यान पूर्ति की अपेक्षा मांग पर, उत्पादन की समस्याओं की अपेक्षा वस्तुओं के अधिक उपभोग पर और सबसे अधिक जनकल्याण सम्बन्धी समस्याओं पर अधिक बढ़ जाता है। इस युग में अर्थव्यवस्था के अग्रणी क्षेत्र टिकाऊ उपभोग वस्तुओं तथा सेवाओं की ओर उन्मुख हो जाते हैं। 
  • रोस्टोव के अनुसार पाश्चात्य विकसित देश यथा संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, पश्चिमी यूरोपीय देश (ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैण्ड आदि) तथा जापान अत्यधिक उपभोग की अवस्था में पहुँच चुके हैं। रूस भी लगभग इसी अवस्था में पहुँच चुका है। 
  • यह अर्थव्यवस्था की पूर्ण परिपक्वास्था है जिसमें प्रतिव्यक्ति उत्पादन, आय तथा उपभोग सभी अत्यंत उच्च स्तर पर होता है।
  • रोस्टोव द्वारा विश्लेषित अत्यधिक उपभोग की अवस्था में प्रौद्योगिकी तथा वैज्ञानिक विकास अपने उच्चतम स्तर पर होता है। 
  • चिकित्सकीय सुविधाओं, उच्च पोषण स्तर, साफ-सफाई आदि के परिणामस्वरूप रोगों तथा बीमारियों पर लगभग पूर्ण नियंत्रण पा लिया जाता है जिसमें मृत्युदर निम्नतम तथा जीवन प्रत्याशा उच्चतम हो जाती है। 
  • संतानों के पालन-पोषण पर बढ़ते खर्च के प्रति जागरूकता बढ़ जाने से जन्मदर अत्यंत निम्न हो जाती है। 
  • इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि अत्यंत मंद हो जाती है अथवा स्थिर हो जाती है। यह जनांकिकीय संक्रमण की अंतिम अवस्था की द्योतक है।

सिद्धान्त की समीक्षा

रोस्टोव ने आर्थिक विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या किया है। आर्थिक विकास का समाज के विकास से सीधा सम्बन्ध होने के कारण यह जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति को भी प्रदर्शित करता है। रोस्टोव का यह सिद्धान्त (माडल) जनसंख्या वृद्धि के संदर्भ में जनांकिकीय संक्रमण माडल के लगभग समान है जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि सामाजिक विकास आर्थिक विकास का अनुगामी तथा सहचर होता है। 

रोस्टोव माडल की प्रथम अवस्था में जनसंख्या अत्यंत अल्प तथा लगभग स्थिर रहती है अथवा अति मंदगति से बढ़ती है। द्वितीय अवस्था में अर्थव्यवस्था के विकास के साथ जनसंख्या में भी साधारण वृद्धि होने लगती है। तीसरी अवस्था से जनसंख्या की वृद्धि में तीव्रता आ जाती है और जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगती है। चौथी अवस्था में जनसंख्या वृद्धि तीव्रता से ही होती है किन्तु वृद्धि दर लगभग स्थिर होने लगती है। तृतीय तथा चतुर्थ अवस्थाओं के कई देश जनसंख्या विस्फोट की स्थिति में होते हैं और जन्मदर में कमी लाने का प्रयास करते हैं जिससे वे विस्फोटक स्थिति से मुक्त हो सकें। 

आर्थिक विकास की अंतिम (पंचम) अवस्था में अर्थव्यवस्था पूर्ण परिपक्व होती है और जनता उच्चतम जीवन स्तर व्यतीत करती है। उपभोग स्तर अत्यंत उच्च रहता है तथा जन्मदर और मृत्युदर दोनों के अत्यंत निम्न स्तर पर आ जाने से जनसंख्या उच्च स्तर पर लगभग स्थिर हो जाती है। रोस्टोव माडल पाश्चात्य विकसित देशों के अनुभव पर आधारित है और भिन्न सामाजिक-आर्थिक दशाओं के कारण यह विकासशील देशों पर बहुत कम लागू होता है।

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