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प्रवास का आकर्षण एवं दाब सिद्धान्त (Pull and Push Theory of Migration) 

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प्रवास का आकर्षण एवं दाब सिद्धान्त (Pull and Push Theory of Migration)

आकर्षण एवं दाब सिद्धान्त प्रवास के कारणों तथा प्रवासियों द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रदर्शित करता है। यह सिद्धान्त प्रतिपादित करता है कि किसी भी व्यक्ति के लिए प्रवास का निर्णय दो विपरीत शक्तियों- आकर्षण (Pull) और दाब (Push) के अन्तर्द्वन्द्व का परिणाम होता है। 

प्रवासी के मूल स्थान पर दाब या प्रतिकर्षण शक्ति और गन्तव्य स्थान पर आकर्षण शक्ति क्रियाशील होती है जो मनुष्य को प्रवास के लिए प्रेरित करती है। 

प्रवास की दाब या दबाव शक्ति (Push Force)

यह प्रवासी के मूल स्थान पर क्रियाशील होती है और लोगों को अपना निवास स्थान छोड़ कर बाहर जाने के लिए बाध्य या प्रेरित करती है। किसी स्थान पर व्याप्त निर्धनता, बेरोजगारी, कम मजदूरी, अत्याचार एवं उत्पीड़न तथा युद्ध, बाढ़, सूखा, भूकम्प आदि प्राकृतिक प्रकोप वहाँ के निवासियों को अपना स्थान छोड़ने के लिए दबाव डालते हैं।

प्रवास की आकर्षण शक्ति (Pull Force)

यह गन्तव्य स्थलों पर विद्यमान होती है। विभिन्न गन्तव्य स्थलों पर उपस्थित सुविधाएँ लोगों को बाहर से अपनी ओर आकर्षित करती हैं जिससे आवासन प्रक्रिया आरम्भ होती है। गन्तव्य स्थान पर विविध रोजगार के अवसर, चिकित्सा, शिक्षा, मनोरंजन आदि की उच्चतर सुविधाओं आदि की उपस्थिति के परिणामस्वरूप वह लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। 

इस प्रकार स्पष्ट है कि किसी स्थान पर दबाव के कारण उत्प्रवास (Emigration) और आकर्षण के फलस्वरूप आप्रवास (Immigration) की प्रक्रिया क्रियाशील होती है। इन दोनों स्थितियों के अतिरिक्त तीसरी स्थिति भी हो सकती है जिससे दबाव और आकर्षण दोनों ही प्रकार के कारक निष्क्रिय होते हैं और किसी प्रकार के प्रवास को उत्पन्न नहीं करते हैं।

प्रवास के आकर्षण और दाब सिद्धान्त के दो अन्य आयाम

  • प्रवास चयनात्मकता
  • प्रवास लोच

प्रवास चयनात्मकता (Migration Selectivity)

प्रवास चयनात्मक (Selective) होता है। किसी भी देश-काल में सभी व्यक्तियों या मानव समूहों में प्रवास की मात्रा या प्रकृति समान नहीं होती है बल्कि एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति की तुलना में और एक समूह की दूसरे समूह की तुलना में अधिक प्रवास की सम्भावना होती है। इस प्रकार के चयनात्मक प्रवास को दो उपवर्गों में विभक्त किया जा सकता है –

विभेदक चयनात्मकता (Differential Selectivity)

इसके अन्तर्गत आयु, लिंग तथा आर्थिक स्तर में भिन्नता के कारण होने वाले प्रवास को सम्मिलित किया जाता है। सामान्यतः बच्चों तथा वृद्ध व्यक्तियों की तुलना में युवा एवं प्रौढ़ लोगों का और स्त्रियों की तुलना में पुरुषों का प्रवास अधिक होता है। इसी प्रकार लम्बी दूरी के प्रवास में प्रायः निर्धन लोगों की तुलना में सम्पन्न लोग अधिक भाग लेते हैं।

व्यावसायिक चयनात्मकता (Occupational Selectivity)

इसके अन्तर्गत व्यक्तियों के व्यवसाय में अंतर के कारण उत्पन्न प्रवास में भिन्नता को समाहित किया जाता है। उदाहरण के लिए व्यवसायी लोगों में श्रमिकों की तुलना में तथा औद्योगिक श्रमिकों में कृषकों की तुलना में गतिशीलता अधिक पाई जाती है। 

प्रवास लोच (Migration Elasticity)

इसके अनुसार प्रवास को उत्पन्न करने वाले दबाव (Pressure) अथवा प्रलोभन (Inducement) से विभिन्न व्यक्तियों में अलग-अलग प्रतिक्रिया होती है और प्रवास प्रक्रिया लोचदार होती है। कभी-कभी दबाव अथवा आकर्षण के अत्यल्प होने पर ही लोग प्रवास के लिए तत्पर हो जाते हैं जबकि अनेक बार इन तत्वों के अधिक प्रबल होने अथवा अधिक समय तक प्रभावी होने पर ही लोग प्रवास के लिए बाध्य या तैयार होते हैं। 

इस तथ्य को ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया के मध्य होने वाले प्रवास से समझा जा सकता है। आस्ट्रेलिया के लिए जाने वाले कुछ ब्रिटिश प्रवासी जिन आकांक्षाओं को लेकर प्रवास किए थे, उनकी पूर्ति न होने पर वे निराश होकर ब्रिटेन वापस लौट आए, किन्तु उनमें से कितने ही लोगों को लौटने पर स्वदेश में रोजगार नहीं मिल पाया जिसके कारण वे पुनः ब्रिटेन से आस्ट्रेलिया चए गए। इस उदाहरण से स्पष्ट है कि प्रवासी प्रवास से पूर्व अपने मूल स्थान और गन्तव्य स्थान पर विद्यमान सुविधाओं और असुविधाओं का अध्ययन करते हैं और तत्पश्चात् प्रवास करने अथवा अपने स्थान पर बने रहने का निर्णय करते हैं। 

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