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जनसंख्या समस्याएं (Population Problems)

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जनसंख्या समस्याएँ (Population Problems)

विश्व के विभिन्न भागों में जनसंख्या और संसाधनों के वितरण में अधिक विषमता पायी जाती है। इसीलिए विभिन्न देशों की जनसंख्या समस्याएँ भी एक समान नहीं हैं। अनुकूलतम जनसंख्या एक आदर्श स्थिति है जिसमें कोई देश का प्रदेश सर्वाधिक सामाजिक-आर्थिक उन्नति प्राप्त कर लेता है और जनसंख्या की समस्या अत्यल्प या नगण्य रहती है। यह दशा जनसंख्या-संसाधन संतुलन की प्रतीक है जो अधिक काल तक स्थायी नहीं रह पाती है। 

अति जनसंख्या या जनाधिक्य (overpopulation) और अल्प जनसंख्या या जनाभाव (under population) दोनों ही दशाओं में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिनको प्रकृति सामान्यतः एक-दूसरे से भिन्न होती है। जनाधिक्य की समस्या विकासशील देशों के साथ ही कुछ विकसित देशों में भी पायी जाती है। इसी प्रकार जनाभाव की समस्या भी कई विकसित और विकासशील देशों में मिलती है। अतः जनसंख्या समस्या की प्रवृत्ति का सार्थक विश्लेषण अति जनसंख्या और अल्प जनसंख्या के अनुसार किया जा सकता है:

अति जनसंख्या से उत्पन्न समस्याएँ (Problems of Overpopulation)

किसी देश या प्रदेश में उपलब्ध प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों की तुलना में जनसंख्या के अधिक हो जाने से कई प्रकार की सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती. हैं जिनमें कुछ प्रमुख समस्याएँ निम्नांकित हैं :

तेजी से बढ़ती जनसंख्या

चीन, भारत, बांगलादेश, पाकिस्तान, मिस्र, इण्डोनेशिया, वियतनाम, टर्की आदि अनेक विकासशील देशों में जनसंख्या आकार पहले से ही बहुत बड़ा है। इन देशों में जनसंख्या वृद्धि दर भी ऊँची (2 प्रतिशत वार्षिक या अधिक) है जिसके कारण जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हो रही है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन, वस्त्र, आवास आदि की समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। यद्यपि पिछले दो दशकों में चीन की जन्मदर में काफी कमी आयी है किन्तु अन्य विकासशील देशों में परिवार नियोजन कार्यक्रम प्रभावशाली ढंग से क्रियान्वित न हो पाने के कारण जनसंख्या तेजी से बढ़ती जा रही है।

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निर्धनता व बेरोजगारी

सामान्यतः देखा गया है कि जनसंख्या वृद्धि की तुलना में रोजगार के अवसर नहीं बढ़ पाते हैं जिसके कारण काम करने योग्य बहुत से लोगों को समुचित काम नहीं मिल पाता है। विकासशील देशों में जहाँ उद्योग, व्यापार आदि द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों का विकास अधूरा है, अधिकांश कार्यशील जनसंख्या मुख्यतः कृषि कार्य में संलग्न होती है और उसी से जीविका प्राप्त करती है। कृषि भूमि सीमित होने तथा यंत्रीकरण आदि कारणों से कृषि में रोजगार के अवसर नहीं बढ़ पाते हैं। इससे प्रति व्यक्ति उपलब्ध कृषि भूमि की मात्रा निरन्तर घटती जा रही है। 

कृषि उपलब्धता कम होने और बेरोजगारी में वृद्धि होने के कारण ग्रामीण निर्धनता निरन्तर बढ़ती जा रही है। रोजगार के अभाव और ग्रामीण निर्धनता के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों की ओर जनसंख्या का स्थानांतरण होता है। किन्तु नगरीय क्षेत्रों में आवश्यकता से अधिक जनसंख्या के संकेन्द्रण के परिणामस्वरूप वहाँ भी बेरोजगारी बढ़ती जाती है। नगरों में शैक्षिक बेरोजगारी अधिक पायी जाती है।

खाने की समस्या

भारत सहित अधिकांश विकाससील देशों में बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्यपूर्ति तथा अन्य पोषाहारों की कमी से कुपोषण की समस्या पायी जाती है। कुपोषण से शिशु मृत्युदर और मातृत्व मृत्युदर अधिक पायी जाती है। जनसंख्या के एक बड़े भाग को भरपेट एवं संतुलित भोजन न प्राप्त हो पाने के कारण जनस्वास्थ्य नीचे गिर जाता है जिसका कार्यक्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 

भोजन का मुख्य आधार कृषि उत्पादन में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि की तुलना में कम हो पाती है जिसके परिणामस्वरूप खाद्य समस्या विकराल होती जाती है। जनता की भूख मिटाने के लिए प्रतिवर्ष बड़ी मात्रा में खाद्य सामग्री विदेशों से आथात करनी पड़ती है जिससे देश की ऋणग्रस्तता बढ़ती जाती है।

लोगों के रहने अर्थात् मकान की समस्या

जनसंख्या आकार के अनुपात में आवास (निवास गृह) की भी आवश्यकता पड़ती है। ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक निर्धनता के कारण अनेक परिवार अपना घर नहीं बना पाते हैं और वे टूटी-फूटी झोपड़ियों में आश्रय लेते हैं। नगरीय क्षेत्रों में भी ग्रामीण प्रवास के कारण जनसंख्या का भारी जमाव हो जाता है। किन्तु इस बढ़ी हुई जनसंख्या के लिए नगर में निवासगृह उपलब्ध न हो पाने अथवा किराया अधिक होने के कारण बहुत से अल्पाय वाले तथा निर्धन लोग सार्वजनिक भूमियों पर अवैध रूप से झुग्गी- झोपड़ियाँ बनाकर रहने लगते हैं। 

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इससे मलिन बस्तियों का विकास होता है, जहाँ प्रायः पानी, बिजली, जल निकास, सड़क आदि कोई भी नगरीय सुविधा उपलब्ध नहीं होती है। इस प्रकार मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली, कानपुर आदि बड़े-बड़े नगरों में एक चौथाई से लेकर लगभग आधी जनसंख्या प्रदूषण और गन्दगी से पूर्ण और अनेक सामाजिक बुराइयों की गढ़ इन्हीं मलिन (गन्दी) बस्तियों में जीवन बिताने के लिए विवश होती हैं।

आर्थिक विकास में बाधा

जनसंख्या अधिक होने पर राष्ट्रीय सरकारों को अपनी आय का अधिकांश भाग जनसंख्या की प्राथमिक आवश्यकताओं भोजन, वस्त्र, आश्रय आदि की पूर्ति पर खर्च हो जाता है और विकास कार्यों के लिए बहुत कम धन बच पाता है। विकास संबंधी जो कार्य हो भी पाता है वह भी थोड़े ही समय में जनसंख्या बढ़ जाने पर निरर्थक सिद्ध होता है अथवा अपर्याप्त हो जाता है। पूँजी के अभाव में औद्योगीकरण की गति भी शिथिल पड़ जाती है। प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में ह्रास होने से जीवन स्तर में गिरावट आती है।

अल्प जनसंख्या की समस्याएँ (Problems of Under Population)

अधिक क्षेत्रीय विस्तार वाले कई विकसित तथा विकासशील देशों में उपलब्ध संसाधनों की तुलना में अल्प जनसंख्या पायी जाती है। वहाँ जनसंख्या की कमी के कारण विकास की गति प्रायः मंद पायी जाती है। ऐसे देशों में जनसंख्या की वृद्धि से आर्थिक विकास में प्रगति की प्रबल सम्भावनाएँ हैं। विकसित देशों में आस्ट्रेलिया, कनाडा, रूस आदि तथा विकासशील देशों में ब्राजील, अर्जन्टीना, यूरुग्वे तथा उष्ण कटिबंधीय अनेक अफ्रीकी देश इसी श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। अल्प जनसंख्या (जनाभाव) से उत्पन्न प्रमुख समस्याएँ निम्नांकित हैं :

कामगरों का अभाव

जनसंख्या ही श्रम का स्रोत होती है। अल्प जनसंख्या वाले प्रदेशों में जनसंख्या की कमी के कारण कृषि, उद्योग, खनन आदि के लिए पर्याप्त मात्रा में श्रमिक नहीं उपलब्ध हो पाते हैं। श्रमिकों की कमी को पूरा करने के लिए अन्य देशों से अपेक्षाकृत् अधिक मजदूरी तथा सुविधाएँ प्रदान करके विदेशों से श्रमिक लाने पड़ते हैं। कुशल तथा अकुशल दोनों प्रकार के श्रमिकों की कमी के कारण वहाँ उपलब्ध संसाधनों वन, खनिज, कृषि भूमि, जल आदि का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है।

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धीमा आर्थिक विकास

अल्प जनसंख्या के कारण केवल श्रमिकों की ही कमी नहीं होती बल्कि देश में उपभोक्ताओं की भी कमी रहती है। इन कारणों से आर्थिक विकास मंद गति से होता है। इसीलिए जनाभाव वाले देशों के लिए जनसंख्या वृद्धि लाभदायक होती है।

सुरक्षा सबन्धित समस्या

किसी देश की सुरक्षा के लिए पर्याप्त संगठित सैन्य बल की आवश्यकता होती है। जनसंख्या की कमी सुरक्षा की दृष्टि से नकारात्मक होती है। इतना ही नहीं संसाधनों की प्रचुर उपलब्धता से आकर्षित होकर विदेशी आक्रमण का भी भय बना रहता है।

जनसंख्या ह्रास की समस्या

कुछ यूरोपीय विकसित देशों यथा जर्मनी, फ्रांस, इटली आदि में परिवार नियोजन के प्रति बढ़ती तत्परता के कारण जन्मदर अत्यधिक निम्न (4 से 5 प्रति हजार) है और मृत्युदर भी लगभग इसी के समान है। इस प्रकार जन्मदर में और कमी आने पर जनसंख्या ह्रास की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

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