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मर्त्यता की माप (Measurement of Mortality)

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मर्त्यता का अर्थ (Meaning of Mortality) 

हम सब जानते हैं कि जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी अवश्य होगी। मृत्यु सामान्यतया अनैच्छिक अर्थात् मानव की इच्छा से नहीं होती या कहें कि मृत्यु का समय निश्चित नही होता। इस प्रकार मृत्यु (death) जीवित जन्म के बाद किसी भी समय जीवन लीला समाप्त होने वाली घटना है। यह स्पष्ट है कि मृत्यु की घटना जीवित जन्म के पश्चात् ही सम्भव है। 

अतः मर्त्यता या मृत्यु संख्या की गणना करते समय जन्म से पूर्व की भ्रूण मृत्यु अथवा जन्म के समय की मृत्यु को मर्त्यता के अंतर्गत शामिल नहीं किया जाता। किसी निश्चित क्षेत्र एवं समयावधि में मृत्युओं या मृतकों की संख्या को मर्त्यता कहा जाता है। यह जनसंख्या परिवर्तन का एक प्रमुख घटक है जो प्रजननता की अपेक्षा अधिक स्थिर तथा निश्चित और कम विचलनशील होता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की परिभाषा (1953) के अनुसार जन्म के पश्चात् किसी भी समय पर हमेशा के लिए जीवन प्रतीक का समापन मर्त्यता कहलाती है।

मर्त्यता की माप (Measurement of Mortality) 

प्रजननता की तरह जनसंख्या वृद्धि का एक आधारभूत घटक होने के कारण जनसंख्या भूगोलवेत्ता के लिए मर्त्यता की माप का भी अधिक महत्व है। मर्त्यता की माप के लिए निम्नलिखित सूचकांकों का प्रयोग किया जाता है।

(1) अशोधित मृत्यु दर (Crude Death Rate)

(2) शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate)

(3) मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate)

(4) आयु विशिष्ट मृत्यु दर (Age Specific Mortality Rate) 

(5) आयु एवं लिंग विशिष्ट मृत्यु दर (Age and Sex Specific Mortality Rate) 

(6) जीवन सारणी (Life Table)

(7) कारण विशिष्ट मृत्यु दर (Cause Specific Mortality Rate)

(1) अशोधित मृत्यु दर (Crude Death Rate) 

अशोधित मृत्यु दर मर्त्यता के सूचकांकों में सबसे सरल और प्रचलित विधि है। इसमें एक वर्ष के दौरान हुई कुल मृत्युओं और कुल जनसंख्या के अनुपात को दर्शाया जाता है। अशोधित मृत्यु दर को ज्ञात करने के लिए एक निश्चित समय अवधि (सामान्यतः एक वर्ष) में हुई कुल मृत्युओं को वर्ष के मध्य वर्ष की जनसंख्या से विभाजित करके उसको 1000 से गुणा किया जाता है। इस प्रकार अशोधित मृत्यु दर प्रति हजार जनसंख्या पर मृत्युओं की संख्या दर्शाती है। 

विश्व के विभिन्न देशों में कुल मृत्युओं और कुल जनसंख्या के आंकड़ों की उपलब्धता तथा गणना की सरलता के कारण अशोधित मृत्यु दर सबसे लोकप्रिय और प्रचलित है। अशोधित मृत्यु दर की उपयोगिता  तभी है, जब इसका प्रयोग एक समान संरचना, समान आयु, लिंग, जाति आदि वाली जनसंख्या के लिए किया जाता है। क्योंकि अलग-2 आयु वर्गों अथवा भिन्न लिंगानुपात वाली जनसंख्याओं की अशोधित मृत्यु दरों में समानता नहीं होती है। जिसके कारण इनकी तुलना से अनेक भ्रांतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। 

देखा जाए तो अशोधित मृत्यु दर से हम जनसंख्या वृद्धि व जीवन प्रत्याशा का अनुमान तो लगा सकते है किन्तु इससे मर्त्यता की वास्तविक स्थिति तथा इसके कारणों की सही जानकारी नहीं हो पाती है।

अशोधित मृत्यु दर के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं

1. किसी क्षेत्र की कुल जनसंख्या में भिन्न-भिन्न जन समुदाय शामिल होते हैं जिनमें मृत्यु दरें एक-दूसरे से भिन्न होती हैं। 

2. इसकी गणना में आयु वर्ग पर ध्यान नहीं दिया जाता है जबकि मृत्युदर पर सर्वाधिक प्रभाव आयु वर्ग का ही होता है। प्रारम्भिक आयु वर्ग (0-4) और ऊपरी आयु वर्ग (60+) में मृत्युदर सर्वोच्च पायी जाती है किन्तु अशोधित मृत्युदर की गणना में सम्पूर्ण जनसंख्या को एक समान मान लिया जाता है। 

3. अशोधित मृत्युदर केवल औसत दशा को ही प्रदर्शित करती है और इस पर पराकाष्ठा आयु वर्गों (शिशु वर्ग और वृद्ध आयु वर्ग) का प्रभाव अधिक होता है जो मध्यवर्ती आयु वर्गों के वास्तविक मृत्युदरों को कई गुना तक बढ़ा देता है। 

4. अशोधित मृत्युदर से लिंग, जाति, आर्थिक दशा आदि के अनुसार मृत्यु के कारणों का पता नहीं चल पाता है जिसके कारण इसका उपयोग नीति निर्धारण अथवा किसी अन्य सार्थक उपयोग के लिए भ्रामक सिद्ध हो सकता है। 

(2) शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate) 

शिशु मृत्यु दर का सम्बन्ध आयु के प्रथम वर्ष में होने वाली शिशुओं की मृत्युओं से है। इसके द्वारा किसी वर्ष में एक वर्ष से कम आयु वाले शिशुओं की मृत्यु संख्या और उसी वर्ष में जन्म लेने वाले कुल जीवित शिशुओं की संख्या के अनुपात को दर्शाया जाता है। 

कुल शिशुओं में नर शिशु (male child) और स्त्री शिशु (female child) दोनों को शामिल किया जाता है। दोनों की मृत्यु दर में अन्तर पाया जाता है। अतः नर शिशु मृत्युदर और स्त्री शिशु मृत्युदर की गणना भी अलग-2 की जा सकती है, जो अपेक्षाकृत् अधिक उपयोगी तथा सार्थक हो सकती है। नर शिशु मृत्युदर की गणना में केवल नर शिशुओं की मृत्यु संख्या को कुल नर जन्मों से विभाजित किया जा सकता है। 

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इसी प्रकार स्त्री शिशु मृत्युदर की गणना में स्त्री शिशुओं की मृत्यु संख्या में स्त्री शिशुओं के कुल जन्मों से भाग दिया जाता है और परिणाम में 1000 से गुणा किया जाता है। जीवन का प्रथम वर्ष जीवन सारणी को प्रभावित करने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण वर्ष होता है जिसमें मृत्युओं की संख्या आयु के किसी भी अन्य वर्ग (उच्च आयु वर्ग के अतिरिक्त) की तुलना में अधिक पाई जाती है। 

शिशु मृत्युओं की संख्या अधिक होने पर कुल मृत्यु संख्या में इसका उच्च अनुपात पाया जाता है, जो समाज के पिछड़ेपन, कुपोषण, चिकित्सा सुविधाओं के अभाव आदि का सूचक होता है। किसी देश में निम्न शिशु मृत्युदर को सामान्यतः उच्च जीवन स्तर, अच्छे जन स्वास्थ्य, चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धि आदि का प्रतीक माना जाता है। शिशु मृत्यु दर निम्न होने पर बच्चों के जीवित रहने की संभावना प्रबल होती है और माता-पिता प्रायः अधिक सन्तानें नहीं उत्पन्न करना चाहते हैं जिससे प्रजनन दर निम्न रहती है।

इसके विपरीत जहाँ शिशु मृत्युदर उच्च होती है वहाँ बच्चों के जीवित रहने का विश्वास तथा आशा कम होती है। जिसके कारण माता-पिता कई सन्तानों को प्राप्त करने के इच्छुक होते हैं, जिसका प्रभाव उच्च प्रजननता के रूप में सामने आता है। आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों यथा विकासशील देशों में कुपोषण, अंधविश्वास, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी, निर्धनता आदि के कारण शिशु मृत्यु दर उच्च पाई जाती है। किसी-किसी विकासशील देश में प्रति 1000 जन्में शिशुओं पर मृत शिशुओं की संख्या 200 से 250 तक पायी जाती है। 

विकसित देशों में शिशु मृत्यु दर सामान्यतः 25 प्रति हजार से भी कम पाई जाती है जो उनके उच्च जीवन स्तर, सफाई तथा स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रसार, उच्च शैक्षिक स्तर आदि का परिणाम है। शिशु मृत्युदर की गणना में सबसे बड़ी समस्या शिशु मृत्यु सम्बन्धी सही आंकड़ों का उपलब्ध न होना है। जीवन के प्रथम वर्ष विशेष रूप से एक महीने के भीतर ही मृतक शिशुओं के मृत्युओं का पंजीकरण आवश्यक रूप से नहीं किया जाता है। अतः सामान्यतः शिशु मृत्युओं की वास्तविक संख्या के स्थान पर अनुमानित संख्या से ही काम चलाना पड़ता है। 

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(3) मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate) 

मातृ मृत्यु दर एक निश्चित समयावधि (प्रायः एक वर्ष) में माताओं की मृत्यु संख्या और कुल जीवित जन्मों के अनुपात को दर्शाता है। इसकी गणना के लिए गर्भावस्था, सन्तानोत्पत्ति के समय अथवा शिशु जन्म से सम्बन्धित कारणों से होने वाली माताओं की कुल मृत्यु संख्या को कुल जीवित जन्मों से विभाजित करके उसमें 10,000 से गुणा किया जाता है। इस प्रकार प्रति 10 हजार जीवित जन्मों पर प्रसव कारणों से होने वाली माताओं की मृत्यु संख्या की गणना की जाती है।

इस प्रकार मातृ मृत्यु दर मुख्य रूप से माताओं की मृत्यु संख्या से सम्बन्धित है और माताओं की मृत्यु का प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्त्रियों के पोषण स्तर, सामान्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धि से है। अतः इस दर के माध्यम से स्त्रियों के मातृत्व धारण की आयु, सन्तान वहन की आवृत्ति, सामान्य स्वास्थ्य आदि की जानकारी प्राप्त होती है। 

(4) आयु विशिष्ट मृत्यु दर (Age Specific Mortality Rate)

किसी विशिष्ट आयु वर्ग के लिए ज्ञात की जाने वाली मृत्यु दर को आयु विशिष्ट मृत्यु दर कहते हैं। यह अशोधित मृत्यु दर का ही एक रूप है जिसकी गणना विभिन्न आयु वर्गों के लिए अलग-अलग की जाती है। यह किसी विशिष्ट आयु वर्ग में कुल मृत्युओं और कुल जनसंख्या के अनुपात को दर्शाती है। 

यदि हम आयु विशिष्ट मृत्युदर के आंकड़ों का आरेखीय प्रदर्शन कर्ण तो आयु विशिष्ट मृत्युदर के आरेख की आकृति आंग्ल भाषा के ‘U’ अक्षर के समान दिखाई पड़ती है। क्योंकि जीवन काल के प्रथम वर्ष में मृत्युदर सर्वाधिक होती है जो प्रायः दूसरे से आठवे नौवें वर्ष तक तीव्रता से गिरती जाती है और इसके पश्चात् 40 वर्ष की आयु तक लगभग स्थिर (निम्न) रहती है। 40 वर्ष के पश्चात् इसमें उत्थान होने लगता है और 60 वर्ष के बाद यह अधिक उच्चता प्राप्त कर लेती है। इसी प्रवृत्ति के कारण आयु विशिष्ट मृत्युदर की वक्र की आकृति U अक्षर के समान हो जाती है।

(5) आयु एवं लिंग विशिष्ट मृत्य दर (Age and Sex Specific Mortality Rate) 

जहां आयु विशिष्ट मृत्यु दर की गणना में स्त्री और पुरुष दोनों के सम्मिलित आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है। वहीं आयु एवं लिंग विशिष्ट मृत्य दर की गणना में स्त्री और पुरुष दोनों की अलग-अलग मृत्यु दरों की गणना की जाती है। जिसके कारण इसे आयु एवं लिंग विशिष्ट मृत्यु दर कहते हैं। 

आयु एवं लिंग विशिष्ट मृत्य दर के परिकलन हेतु एक वर्ष में किसी विशिष्ट आयु वर्ग में स्त्रियों अथवा पुरुषों की कुल मृत्यु संख्या को उसी आयु वर्ग एवं लिंग की कुल संख्या से भाग किया जाता है और परिणाम में 1000 से गुणा किया जाता है। 

आयु और लिंग के अनुसार मृत्युओं के आंकड़ों की उपलब्धता में कठिनाई के कारण उपयोगी होते हुए भी इसका प्रचलन अधिक नहीं है। यह आयु और लिंग के अनुसार अशोधित मृत्युदर को ही दर्शाती है। अतः इसे ऐसे परिष्करण की आवश्यकता है जिससे अशोधित मृत्यु दर के दोषों को कम करके इसे सर्वग्राह्य और अधिक उपयोगी बनाया जा सके। 

(6) जीवन सारणी (Life Table) 

जीवन सारणी भिन्न-भिन्न आयु पर मृत्युदर की माप की परोक्ष विधि है। क्रमागत आयु विशिष्ट मृत्युदर के समान ही जीवन सारणी का भी निर्माण किया जाता है, जिसके लिए पर्यवेक्षित मृत्यु दशाओं का ज्ञान आवश्यक होता है। जीवन सारणी के द्वारा भिन्न-भिन्न आयु वर्गों में व्यक्ति के जीवित रहने (उत्तर जीविता) तथा मृत्यु के सम्बन्ध में सम्भावनाओं (मृत्यु सम्भाविता) की अभिव्यक्ति होती है। जनांकिकी में मृत्यु दर गणना की यह एक परम्परागत विधि है जिसकी शुद्धता जीवन पंजीकरण तथा जनगणनाओं की विश्वसनीयता पर निर्भर करती है। 

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विकासशील देशों में इस प्रकार के आंकड़ों के अभाव में जीवन सारणी की रचना अत्यन्त कठिन होती है और यह अधिक शुद्ध और सार्थक भी नहीं रह जाती है। यही कारण है कि इसकी गणना विकसित देशों के लिए ही अधिक उपयोगी और विश्वसनीय हो सकती है जहाँ विकसित तकनीक, उच्च शैक्षिक स्तर, सामाजिक जागरूकता आदि के फलस्वरूप इस प्रकार के विश्वसनीय आंकड़े एकत्रित किये जा सकते हैं। 

डी० बोग (1969) के अनुसार, “जीवन सारणी एक अंकगणितीय माडल है जो एक नियत समय पर जनसंख्या में मर्त्यता दशाओं को प्रकट करता है और दीर्घ जीविता (Longevity) के लिए आधार प्रस्तुत करता है।” उत्तरजीविता दर (Survival rate) की गणना एक निश्चित अन्तराल (सामान्यतः 1 वर्ष या 5 वर्ष) पर निर्मित जीवन सारणी के रूप में की जाती है। 

एक वर्ष के वय-अन्तराल पर बनायी गयी सारणी को संक्षिप्त जीवन सारणी (Abridged Life Table) के नाम से जाना जाता है। जीवन सारणी की रचना करते समय गणना की सुगमता तथा तुलनीयता के उद्देश्य से प्रायः 10,000 जनसंख्या को आधारी जनसंख्या मानकर गणना आरंभ की जाती है। एक वर्ष के समय अन्तराल के अनुसार जीवन सारणी के निर्माण की प्रक्रिया को नीचे दी गई तालिका में प्रदर्शित किया गया है और इसके द्वारा प्रतिवर्ष होने वाली मृत्यु सम्भाविताओं (Mortality probabilities) के परिकलन की विधि को समझाया गया है।

साधारण जीवन सारणी (काल्पनिक)

आयुएक वर्ष के अन्तराल पर उत्तर जीविताक्रमागत वर्ष के मध्य मृत्यु संख्याक्रमागत वर्ष के मध्य मृत्यु संभाविता प्रति 1000
0100002000200
180001000125
270001000143
3600050083
4550050036
5530020039
6520010019
7500010020
84900
40400010025
413900
जीवन सारणी (Life Table) 

जीवन सारणी का निर्माण आयु एवं लिंग के अनुसार भी किया जा सकता है। इसके लिए निश्चित समय अंतराल पर कुल उत्तर जीविता तथा मृत्यु संख्या के स्थान पर स्त्रियों अथवा पुरुषों की उत्तर जीविता तथा मृत्यु संख्या को सम्मिलित किया जाता है। जीवन सारणी द्वारा किसी देश या प्रदेश की जनसंख्या की मर्त्यता प्रवृत्ति का अधिक वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है किन्तु आवश्यक सूचनाओं (आंकड़ों) के अभाव के कारण इसका निर्माण प्राय: कठिन और जटिल होता है। यही कारण है कि उपयोगी होते हुए भी जीवन सारणी का व्यावहारिक महत्व कम हो जाता है। 

(7) कारण विशिष्ट मृत्यु दर (Cause Specific Mortality Rate) 

कारण विशिष्ट मृत्यु दर कारण के अनुसार मृत्युदर को प्रदर्शित करती है। यह किसी नियत समयावधि (प्राय: 1 वर्ष) में किसी विशेष कारण से होने वाली मृत्युओं की कुल संख्या और उसी अवधि की औसत जनसंख्या के अनुपात की सूचक होती है। किसी बीमारी या अन्य कारणों से एक वर्ष में होने वाली मृत्युओं की संख्या कुल जनसंख्या के अनुपात में बहुत कम होती है। अतः इस अनुपात को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करने के उद्देश्य से प्राप्त अनुपात में 10,000 या 1,00,000 से गुणा कर दिया जाता है। इस प्रकार मृत्युदर की गणना प्रति 10 हजार अथवा प्रति 1 लाख जनसंख्या पर जाती है।

कारण विशिष्ट मृत्युदर की गणना आयु तथा लिंग के अनुसार भी की जा सकती है। विशेष आयु के लिए किसी आयु वर्ग की विशिष्ट कारण से होने वाली मृत्युओं और उसी आयु वर्ग की कुल जनसंख्या के अनुपात का परिकलन किया जाता है। यदि विशिष्ट आयु वर्ग में स्त्री और पुरुष के कारण विशेष से होने वाली मृत्युओं की संख्या में उसी वर्ग के स्त्री और पुरुषों की कुल संख्या से भाग दिया जाय और उसमें 10,000 से गुणा किया जाय तो आयु एवं लिंग के अनुसार कारण मृत्युदर प्राप्त होगी।

References

  1. जनसंख्या भूगोल, डॉ. एस. डी. मौर्या
  2. जनसंख्या भूगोल, आर. सी. चान्दना

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