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जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त (Demographic Transition Theory) का अध्ययन जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर उन विद्यार्थियों के लिए जो बी.ए., एम.ए., यूजीसी नेट, यूपीएससी, आरपीएससी, केवीएस, एनवीएस, डीएसएसएसबी, एचपीएससी, एचटीईटी, आरटीईटी, यूपीपीसीएस, और बीपीएससी जैसी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। यह सिद्धान्त यह बताता है कि किसी देश या क्षेत्र की जनसंख्या कैसे समय के साथ बदलती है, और यह बदलाव मुख्यतः जन्म दर और मृत्यु दर के बीच के संबंधों पर आधारित होता है। नोटेस्टीन, थाम्पसन, कार्ल साक्स, ट्रेवार्था और ब्लैकर जैसे विद्वानों ने इस सिद्धान्त को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है, जो इसके अलग-अलग चरणों को स्पष्ट करते हैं। इन चरणों का अध्ययन विद्यार्थियों को जनसंख्या के विकास और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के बीच के संबंधों को समझने में सहायक होता है।
Table of contents
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त (Demographic Transition Theory)
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त किसी देश या क्षेत्र विशेष में जनसंख्या के विकास का सामान्य विश्लेषण करता है, जो जन्म दर और मृत्यु दर में समय के साथ होने वाले परिवर्तनों पर आधारित है। जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त यह समझाने को प्रयास करता है कि लम्बी समय अवधि में जनसंख्या का विकास किस प्रकार होता है। यह सिद्धान्त आर्थिक एवं प्रौद्योगिकीय विकास और जनसंख्या के विकास में सम्बन्ध स्थापित करता है।
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त का मूल प्रतिपादन नोटेस्टीन (F.W. Notestein) ने किया था। इनका यह सिद्धान्त पाश्चात्य विकसित देशों में विगत 200 वर्षों से चली आ रही जन्म दर और मृत्यु दर में होने वाले परिवर्तन की प्रवृत्तियों पर आधारित है। नोटेस्टीन द्वारा दी गई मूल संकल्पना में समय के साथ कुछ लेखकों ने संशोधन किए और इसे नए ढंग से प्रस्तुत किया।
कुछ लेखकों ने ‘जनांकिकीय संक्रमण’ की तीन अवस्था माना है, तो कुछ ने चार अवस्था और कुछ लेखकों ने पाँच अवस्थायें मानकर इस सिद्धान्त की व्याख्या की है। नोटेस्टीन और थाम्पसन ने जनांकिकीय संक्रमण की तीन अवस्थायें माना है, तो कार्ल साक्स (Karl Sax) और ट्रेवार्था ने चार अवस्थाओं तथा ब्लैकर (Blacker ) और पीटर काक्स (P.R. Cox) ने पाँच अवस्थाओं के अनुसार जनांकिकीय सिद्धान्त की व्याख्या की।
विभिन्न लेखकों के अनुसार जनांकिकीय संक्रमण की अवस्थाएं
लेखकों के नाम | जनांकिकीय संक्रमण की अवस्थाएँ |
---|---|
एफ.डब्ल्यू. नोटेस्टीन (F.W. Notestein) | (i) उच्च वृद्धि दर अवस्था (High Growth Rate ) (ii) ह्रासमान वृद्धि दर अवस्था (Decreasing Growth Rate) (iii) जनसंख्या ह्रास अवस्था (Population Decrease) |
डब्ल्यू.एस. थाम्पसन (W.S. Thompson) | (i) पूर्व संक्रमण काल (Pre-Transition Period) (ii) संक्रमण काल (Transition Period) (iii) परा संक्रमण काल (Post-Transition Period) |
कार्ल साक्स (Karl Sax) तथा जी. टी. ट्रेवार्था (G. T. Trewartha) | (i) उच्च स्थायी अवस्था (High Stationary Stage) (ii) प्रारम्भिक वर्द्धमान अवस्था (Early Expanding Stage) (iii) उत्तर वर्द्धमान अवस्था (Late Expanding Stage) (iv) निम्न स्थायी अवस्था (Low Stationary Stage) |
ब्लैकर (C.P. Blacker) | (i) उच्च स्थायी अवस्था (High Stationary Stags) (ii) प्रारम्भिक वर्द्धमान अवस्था (Early Expanding Stage) (iii) उत्तर वर्द्धमान अवस्था (Late Expanding Stage) (iv) निम्न स्थायी अवस्था (Low Stationary Stage) (v) ह्रासमान अवस्था (Declining Stage) |
नाटेस्टीन के जनांकिकीय संक्रमण की तीन अवस्थाओं की विशेषताएँ
1. जनसंख्या में उच्च वृद्धि दर की अवस्था (Stage of high growth rate) इस अवस्था में जन्म दर उच्च होती है।
2. जनसंख्या की वृद्धि दर में ह्रास की अवस्था (Stage of decreasing growth rate) इस अवस्था में जन्मदर में कमी के कारण वृद्धि दर में कमी आती है।
3. जनसंख्या ह्रास की अवस्था (Stage of population decrease) इस अवस्था में जन्म दर पुनः स्थापन दर (Replacement rate) से नीचे होती है और मृत्यु दर निम्न स्तर पर स्थिर हो जाती है।
जी. टी. ट्रेवार्था के अनुसार, प्रत्येक स्थान पर मानव प्रजनन क्रिया में समान रूप से संलग्न होता है, परंतु प्रत्येक समुदाय या क्षेत्र विशेष की अपनी अलग संस्कृति होती है, जिसके कारण मानव का व्यवहार एक स्थान से दूसरे स्थान पर बदलता रहता है। इसी सांस्कृतिक भिन्नता के कारण विभिन्न प्रदेशों में जनसंख्या के जन्मदरों में अन्तर पाया जाता है। इसी प्रकार प्रत्येक समुदाय या क्षेत्र विशेष के अलग-2 वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास के परिणाम स्वरूप मृत्युदर में अन्तर पाया जाता है।
इस प्रकार जन्मदर और मृत्युदर में स्थान और काल के अनुसार होने वाले परिवर्तन के परिणामस्वरूप जनांकिकीय संक्रमण की विभिन्न अवस्थाएं उत्पन्न होती हैं जो प्रायः कालानुक्रम (sequence) के अनुसार होती हैं। इन्हीं कारणों से वर्तमान में संसार के विभिन्न देश जनांकिकीय संक्रमण की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में हैं। जन्मदर तथा मृत्युदर के पारस्परिक परिवर्तनशील सम्बन्धों से उत्पन्न प्रतिरूपों (patterns) के अनुसार जनांकिकीय संक्रमण की चार अवस्थाएं अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट और मान्य हैं। जिनकी व्याख्या यहाँ की गई है।
जनांकिकीय संक्रमण की अवस्थाएँ
1. उच्च स्थायी अवस्था (High Stationary Stage)
- जनांकिकीय संक्रमण की यह प्रथम अवस्था है जिसमें जन्मदर और मृत्युदर दोनों उच्च होते हैं और दोनों में अंतर कम होने के कारण जनसंख्या लगभग स्थायी होती है।
- जनांकिकीय संक्रमण की इस अवस्था में जन्मदर 35 प्रति हजार से अधिक तथा लगभग स्थिर होती है
- विज्ञान, चिकित्सा तथा प्रौद्योगिकी के विकास न होनें तथा प्राकृतिक प्रकोपों तथा बीमारियों एवं महामारियों पर नियंत्रण न होने से इस अवस्था में मृत्युदर भी उच्च होती है हालांकि एक स्थान से दूसरे स्थान पर मृत्युदर में कुछ अंतर देखा जा सकता है।
- इस अवस्था में जन्मदर लगभग स्थिर होती है किन्तु मृत्युदर घटती-बढ़ती रहती है, जिसके परिणामस्वरूप जन्मदर और मृत्युदर एक दूसरे के सापेक्ष ऊपर-नीचे होती रहती है। अंततः जन्मदर, मृत्युदर से कुछ अधिक होती है। जिससे जनसंख्या अति मन्द गति से बढ़ती है।
- जनांकिकीय संक्रमण की प्रथम अवस्था कृषीय समाज (Agrarian society) की विशेषता मानी जाती है। इसमें जनसंख्या घनत्व कम होता है, बड़े परिवार को पूँजी माना जाता है और लोग अपना परिवार बढ़ाना चाहते हैं।
- चिकित्सा सुविधाओं तथा खाद्य पूर्ति के अभाव में जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) निम्न होती है।
- इस अवस्था में द्वितीयक तथा तृतीयक व्यवसाय प्रारंभिक अवस्था में होते हैं, प्रौद्योगिकी का विकास बहुत ही कम होता है तथा औद्योगिक एवं नगरीय विकास अत्यन्त सीमित होता है। अतः इसे पूर्व औद्योगिक (Pre-industrial) अथवा पूर्व आधुनिक (Pre-modern) अवस्था भी कहा जाता है।
- उन्नीसवीं शताब्दी के पहले विश्व के लगभग सभी देश जनांकिकीय संक्रमण की प्रथम अवस्था में थे।
- 19वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में कुछ देश इस अवस्था से निकलकर द्वितीय अवस्था (प्रारंभिक वर्द्धमान जनसंख्या) में प्रवेश किये। आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक के विकास तथा यातायात और संचार माध्यमों के प्रसार से अत्यन्त पिछड़े हुए क्षेत्रों में भी आयातित दवाओं का कुछ प्रयोग होने लगा है जिससे स्वाभाविक मृत्युदर में निश्चित रूप से ह्रास हुआ है। यही कारण है कि वर्तमान में सम्भवतः विश्व का कोई भी देश जनांकिकीय संक्रमण की प्रथम अवस्था में नहीं है।
2. प्रारंभिक वर्द्धमान अवस्था (Early Expanding Stage)
- जनांकिकीय संक्रमण की इस दूसरी अवस्था में जन्म दर तो उच्च और लगभग स्थायी रहती है,किन्तु मृत्युदर कम होने लग जाती है जिसके कारण कुल जनसंख्या में वृद्धि होने लगती है।
- इस अवस्था में जन्मदर 35 प्रति हजार या इससे ऊपर रहती है, किन्तु मृत्युदर 25 से 15 प्रति हजार के मध्य पाई जाती है।
- मृत्यु दर में ह्रास (कमी) के लिए कई कारक उत्तरदायी होते हैं जिनमें पोषक भोजन की उपलब्धता, सफाई तथा स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार, बीमारियों पर नियंत्रण तथा राजनीतिक स्थिरता के कारण युद्धों में कमी आदि प्रमुख हैं।
- वर्तमान समय में अनेक विकासशील देश इसी अवस्था से गुजर रहे हैं।
- जनांकिकीय संक्रमण की इस अवस्था में जनसंख्या तेजी से बढ़ती जाती है। अफ्रीका में इथोपिया, घाना, मोरक्को, नाइजीरिया, सूडान, कीनिया, तंजानिया, यूगांडा तथा जायरे; एशिया में अफगानिस्तान, बांगलादेश, ईरान, ईराक, म्यांमार (बर्मा), नेपाल, आदि देश जनांकिकीय संक्रमण की द्वितीय अवस्था में हैं, जहाँ 1990 के दशक में जन्म दर 35-52 प्रति हजार के मध्य थी।
- कीनिया, बांगलादेश, पाकिस्तान आदि कुछ देशों में मृत्युदर 15 प्रति हजार से नीचे आ गयी है किन्तु जन्मदर अभी भी काफी ऊँची है।
3. उत्तर वर्द्धमान अवस्था (Late Expanding Stage)
- जनांकिकीय संक्रमण की इस तृतीय अवस्था में जन्मदर में भी कमी होने लगती है और मृत्युदर में तीव्र ह्रास से वह निम्न स्तर तक आ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या वृद्धि दर पहले से (द्वितीय अवस्था) से कम हो जाती है।
- इस अवस्था में जन्मदर 20 प्रति हजार से ऊपर रहती है किन्तु मृत्युदर 15 प्रति हजार से कम पाई जाती है।
- उत्तर वर्द्धमान अवस्था में औद्योगिक और नगरीय समाज विकसित होता है, जिसमें बच्चों के पालन-पोषण तथा शिक्षा आदि पर बढ़ते भार से लोगों में परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता में वृद्धि होती है और वे विभिन्न कृत्रिम उपायों से परिवार को सीमित करने का प्रयास करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जन्मदर में कमी आने लग जाती है।
- जनांकिकीय संक्रमण की यह अवस्था मुख्यतः अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों में पायी जाती है। अफ्रीका में अल्जीरिया, मिस्र और दक्षिण अफ्रीका, एशिया में मलेशिया, भारत, फिलीपीन्स, श्रीलंका, थाईलैंड, टर्की आदि और लैटिन अमेरिका में अर्जनटाइना, ब्राजील, चिली, कोलम्बिया, मैक्सिको, पीरू, वेनेजुएला आदि देश जनांकिकीय संक्रमण की तीसरी अवस्था से गुजर रहे हैं।
- इन देशों के जन्मदर 20 से 35 प्रति हजार के मध्य हैं और मृत्युदर घटकर 15 प्रति हजार से नीचे आ गयी है।
4. निम्न स्थायी अवस्था (Low Stationary Stage)
- यह जनांकिकीय संक्रमण की चतुर्थ अवस्था है जिसमें जन्मदर और मृत्युदर दोनों निम्न स्तर पर पहुँच कर लगभग स्थिर हो जाती हैं, जिससे जनसंख्या स्थायी हो जाती है और जनसंख्या वृद्धि लगभग रुक जाती है।
- इस अवस्था में जन्मदर की तुलना में मृत्युदर अधिक स्थिर होती है।
- बच्चों के पालन-पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर बढ़ते खर्च तथा उच्च जीवन स्तर के प्रति सजग होने के कारण लोग कृत्रिम साधनों के प्रयोग से परिवार को सीमित करने हेतु प्रयासरत रहते हैं जिससे जन्मदर नियंत्रित और निम्न पायी जाती है।
- एक ओर तो चिकित्सा विज्ञान एवं तकनीकी के विकसित होने से महामारियों तथा बीमारियों पर नियंत्रण हो जाता है तथा दूसरी ओर उच्च स्तरीय पोषण की सुविधाएं विद्यमान होती हैं। इसके प्रभाव से मृत्युदर घटकर निम्न स्तर तक पहुँच कर स्थायी हो जाती है।
- इस प्रकार विकसित, औद्योगीकृत तथा नगरीकृत समाज में जन्मदर और मृत्युदर दोनों निम्नतम स्तर तक पहुँच जाते हैं।
- जनांकिकीय संक्रमण की चतुर्थ अवस्था में केवल विकसित देश आते हैं जहाँ औद्योगीकरण और नगरीकरण का स्तर उच्च है और तकनीकी विकास भी उच्चतर स्तर पर है।
- उत्तरी अमेरिका में सं०रा०अ० और कनाडा, रूस सहित यूरोप के अनेक देश ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, पोलैण्ड, बेल्जियम, स्वीडन, हंगरी, चेक – गणराज्य, यूक्रेन, स्पेन आदि, एशिया में जापान और चीन तथा आस्ट्रेलिया जनांकिकीय संक्रमण की चतुर्थ अवस्था में हैं।
Test Your Knowledge with MCQs
प्रश्न 1: जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त का मूल प्रतिपादन किसने किया था?
(a) डब्ल्यू.एस. थाम्पसन
(b) एफ.डब्ल्यू. नोटेस्टीन
(c) कार्ल साक्स
(d) जी. टी. ट्रेवार्था
प्रश्न 2: जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त की तीसरी अवस्था को क्या कहा जाता है?
(a) उच्च स्थायी अवस्था
(b) प्रारम्भिक वर्द्धमान अवस्था
(c) उत्तर वर्द्धमान अवस्था
(d) निम्न स्थायी अवस्था
प्रश्न 3: किस विद्वान ने जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त की चार अवस्थाओं का उल्लेख किया है?
(a) एफ.डब्ल्यू. नोटेस्टीन
(b) कार्ल साक्स
(c) ब्लैकर
(d) पीटर काक्स
प्रश्न 4: जनांकिकीय संक्रमण की पहली अवस्था में जनसंख्या की वृद्धि दर कैसी होती है?
(a) उच्च वृद्धि दर
(b) मध्यम वृद्धि दर
(c) निम्न वृद्धि दर
(d) स्थिर वृद्धि दर
प्रश्न 5: जनांकिकीय संक्रमण की दूसरी अवस्था में मृत्यु दर कैसी होती है?
(a) उच्च
(b) स्थिर
(c) घटती हुई
(d) बढ़ती हुई
प्रश्न 6: जनांकिकीय संक्रमण की निम्न स्थायी अवस्था में किस प्रकार की जनसंख्या वृद्धि होती है?
(a) उच्च
(b) स्थिर
(c) तीव्र
(d) नकारात्मक
प्रश्न 7: वर्तमान में विश्व के अधिकांश विकासशील देश जनांकिकीय संक्रमण की किस अवस्था में हैं?
(a) पहली
(b) दूसरी
(c) तीसरी
(d) चौथी
उत्तर:
1: (b) एफ.डब्ल्यू. नोटेस्टीन
2: (c) उत्तर वर्द्धमान अवस्था
3: (b) कार्ल साक्स
4: (a) उच्च वृद्धि दर
5: (c) घटती हुई
6: (b) स्थिर
7: (c) तीसरी
FAQs
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त (Demographic Transition Theory)जनसंख्या की वृद्धि और गिरावट के विभिन्न चरणों को समझाने के लिए उपयोग किया जाता है। यह सिद्धान्त बताता है कि किसी देश की जनसंख्या कैसे समय के साथ बदलाव करती है, जो मुख्य रूप से जन्म दर और मृत्यु दर के आधार पर होता है।
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त में चार मुख्य अवस्थाएँ होती हैं:
उच्च स्थिर अवस्था (High Stationary Stage)
प्रारम्भिक वर्द्धमान अवस्था (Early Expanding Stage)
उत्तर वर्द्धमान अवस्था (Late Expanding Stage)
निम्न स्थिर अवस्था (Low Stationary Stage)
जनांकिकीय संक्रमण की दूसरी अवस्था में मृत्यु दर में गिरावट स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, स्वच्छता में वृद्धि और भोजन की बेहतर उपलब्धता के कारण होती है। इस कारण जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगती है।
जनांकिकीय संक्रमण सिद्धान्त का महत्व यह है कि यह किसी देश की जनसंख्या संरचना को समझने और उसकी विकास की स्थिति का आकलन करने में मदद करता है। यह सिद्धान्त सरकारों को जनसंख्या नीतियाँ बनाने में मार्गदर्शन प्रदान करता है।
वर्तमान में भारत जनांकिकीय संक्रमण की तीसरी अवस्था में है, जिसमें जन्म दर में कमी हो रही है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि दर अभी भी सकारात्मक है।
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