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प्रवास के कारण (Causes of Migration)

Estimated reading time: 11 minutes

प्रवास की परिभाषा (Definition of Migration) 

प्रवास का अर्थ है एक मानव समुदाय या समूह द्वारा अपने स्थान (प्रदेश, देश आदि) को छोडकर किसी दूसरे स्थान पर जाकर रहना या बस जाना। प्रवास के लिए स्थान परिवर्तन के साथ-साथ दोनों स्थानों में न्यूनतम दूरी का होना भी आवश्यक माना जाता है। अत: एक ही अधिवास (ग्राम या नगर) के भीतर स्थान परिवर्तन को प्रवास नहीं माना जाता है क्योंकि इससे कोई विशेष सामाजिक, आर्थिक या सांस्कृतिक परिवर्तन नहीं होते हैं। 

संयुक्त राष्ट्र संघ (U.NO.) के अनुसार “प्रवास सामान्यतः निवास स्थान को बदलते हुए एक भौगोलिक इकाई से दूसरी इकाई के लिए भौगोलिक गतिशीलता का एक रूप है।” 

आर. एन. सिंह और एस. डी. मौर्य (1997) के अनुसार “किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा अपना निवास स्थान छोड़कर अन्य स्थान के लिए स्थायी अथवा अस्थायी रूप से किया गया स्थान परिवर्तन जनसंख्या प्रवास कहलाता है।” 

प्रवास के रूप (Forms of Migration) 

जनसंख्या प्रवास के दो रूप होते हैं

(1) उत्प्रवास या प्रव्रजन (Emigration)

(2) आप्रवास या आव्रजन (Immigration)

उत्प्रवास (Emigration) 

जब व्यक्ति अपने स्थान को छोड़कर अन्य स्थान पर चला जाता है तो मूल स्थान के संदर्भ में होने वाला यह  स्थानान्तरण उत्प्रवास (Emigration) या बाह्य प्रवास (Out migration) कहलाता है और स्थानान्तरित होने वाला वह व्यक्ति उत्प्रवासी (Emigrants) कहलाएगा। उदाहरण के लिए भारत से श्रीलंका, दक्षिणी अफ्रीका, दक्षिणी-पूर्वी एशिया आदि के लिए गए हुए व्यक्तियों को भारतीय उत्प्रवासी कहा जाता है। सामान्य अर्थ में उन्हें प्रवासी भारतीय भी कहते हैं। 

आप्रवास (Immigration) 

जब व्यक्ति अन्य स्थान से आकर जिस स्थान पर बस जाता है तो व्यक्ति के बसने वाले स्थान के सन्दर्भ में होने वाला स्थानान्तरण आप्रवास या आव्रजन (Immigration) कहलाता है और इसमें भाग लेने वाला आप्रवासी (Immigrant) कहलाएगा। उदाहरण के लिए उत्तरी अमेरिका में यूरोप से आए हुए लोगों को यूरोपीय आप्रवासी कहा जाता है। इस प्रवास को अन्तः प्रवास (Immigration) भी कहा जाता है। 

एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने वाले लोगों की संख्या (आकार), गति एवं दिशा को दो विपरीत गुणों वाली शक्तियाँ नियंत्रित करती हैं, जिन्हें आकर्षण शक्ति (Pull force) और प्रतिकर्षण शक्ति (Push force) कहते हैं। 

किसी स्थान पर या प्रदेश में उपलब्ध प्राकृतिक एवं आर्थिक संसाधन तथा निवास योग्य भौगोलिक दशाएँ अन्य प्रदेशों मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। उपजाऊ कृषि भूमि, खनिज एवं शक्ति संसाधनों के भण्डार, उपयुक्त समतल भूविन्यास, जलवायु, जल की उपलब्धता आदि आकर्षण शक्तियां (Pull forces)  हैं। उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका की आकर्षण शक्ति के कारण ही अठारहवीं तथा उन्नीसवीं शताब्दियों में यूरोप के निवासी इन दोनों महाद्वीपों आकर बसे थे। 

जब किसी स्थान या क्षेत्र की जलवायु संबंधी दशाएँ मानव के रहने के अयोग्य हो जाती हैं अथवा किसी प्राकृतिक संकट जैसे बाढ़, सूखा, महामारी, ज्वालामुखी उद्गार, भूकम्प आदि या आर्थिक-सामाजिक संकट जैसे निर्धनता, बेरोजगारी, धार्मिक उन्माद आदि के कारण वहाँ जीवन संकट में आ जाता है तब वहाँ से लोग अपेक्षाकृत सुरक्षित तथा आर्थिक रूप से सम्पन्न क्षेत्र की ओर चले जाते हैं। किसी स्थान को छोड़ने के लिए मजबूर करने वाली इन्हीं शक्तियों को प्रतिकर्षण शक्तियाँ (Push forces) कहते हैं। 

जनसंख्या प्रवास को प्रभावित करने वाले उपरोक्त सभी शक्तियों या कारकों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

प्रवास के कारण (Causes of Migration)

(1) प्राकृतिक कारक 

(2) आर्थिक कारक 

(3) सामाजिक-सांस्कृतिक कारक 

(4) राजनीतिक कारक

प्राकृतिक कारक 

जनसंख्या प्रवास को प्रभावित करने वाले प्राकृतिक कारकों में जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा (अकाल), ज्वालामुखी उद्गार, भूकम्प आदि प्रमुख हैं। आज विश्व में प्रजातियों का जो वितरण हम देख रहे हैं वह, समय के साथ आदिकालीन जनसंख्या के प्रवास का ही परिणाम है, जिसका मूल कारण जलवायु परिवर्तन ही माना जाता है। 

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ग्रिफिथ टेलर का मत है कि सभी प्रमुख मानव प्रजातियों के विकास का मूल स्थान मध्य एशिया है, जहाँ गर्म कालों (अन्तर्हिम युगों) में विभिन्न प्रजातियों का विकास हुआ जो हिमयुग के आने पर जलवायु के अत्यधिक ठंडी हो जाने पर बाहरी प्रदेशों के लिए स्थानान्तरित होती रहीं। इस प्रकार हिमयुग और अंतर्हिमयुग के क्रमिक आगमन के कारण मध्य एशिया से बड़े पैमाने पर मानव प्रजातियों का स्थानान्तरण बाहरी प्रदेशों के लिए होता रहा। 

अन्तिम हिमयुग के बाद जब मध्य एशिया में शुष्कता अधिक बढ़ गई और वहाँ अधिक लोगों का रहना कठिन होने लगा, तब वहाँ के निवासी बड़ी संख्या में बाहर की ओर चले गए। उनकी एक शाखा तुर्किस्तान और अफगानिस्तान के दर्रों (passes) से होकर पश्चिमोत्तर भारत में आ गई, जिन्हें आर्य के रूप में जाना जाता है। दूसरी शाखा का स्थानान्तरण मध्य एशिया से आक्रमणकारियों के रूप में  पश्चिमी एशिया तथा यूरोप, पूर्व में चीन तथा दक्षिण में भारत के लिए हुआ। 

जब शीतकाल में पर्वतीय उच्चवर्ती भाग हिमाच्छादित हो जाते हैं, तब जलवायु के शीतल और कठोर हो जाने के कारण मानव निचली घाटियों में आ जाते हैं और पूरी शीत ऋतु वहीं बिताते हैं। ग्रीष्म ऋतु के आने पर वे फिर से ऊँचे भागों के लिए प्रवास करते हैं क्योंकि तब तक वहाँ बर्फ पिघल जाती है और मौसम रहने योग्य हो जाता है। इसे मौसमी प्रवास (Transhumance) कहते हैं। आल्पस और हिमालय के पर्वतीय भागों में इस प्रकार का प्रवास अधिक होता है। 

उपरोक्त जलवायु और मौसमी कारकों के अलावा अधिक वर्षा के कारण आने वाली बाढ़ों के कारण भी लोग अपने आवास छोड़ने के लिए विवश हो जाते हैं। वर्ष न होने से उत्पन्न सूखा तथा अकाल के कारण भी लोगों को अपना स्थान छोड़कर अन्य क्षेत्रों मेंजाना पड़ता है। किसी क्षेत्र में विनाशकारी भूकम्प आ जाने अथवा ज्वालामुखी विस्फोट हो जाने पर भी वहाँ के निवासी अन्य सुरक्षित स्थानों पर चले जाते हैं। किसी क्षेत्र में मिट्टियों के अनुपजाऊ हो जाने, खनिज स्रोतों के समाप्त हो जाने, शुष्क एवं अर्द्धशुष्क भागों में जलाशयों के सूख जाने पर, जीविका के साधनों के अभाव में वहाँ से जनसंख्या का पलायन अन्य क्षेत्रों में होने लगता है। 

आर्थिक कारक 

जनसंख्या प्रवास के अन्य कारणों की तुलना में आर्थिक कारण अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। जहां कृषि के अनुकूल भौगोलिक दशाएँ जैसे पर्याप्त कृषि योग्य भूमि, उपजाऊ मिट्टी, सिंचाई के साधन, उपयुक्त जलवायु आदि होती हैं, वे क्षेत्र जनसंख्या को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और वहाँ बाहर से जनसंख्या का आकर बसने लगती हैं। जैसे उत्तरी भारत के विशाल मैदान, चीन के पूर्वी भाग, उत्तरी-पश्चिमी यूरोप आदि प्रदेशों में जनसंख्या की अधिकता के लिए उपरोक्त आर्थिक कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। 

उपरोक्त परिस्थियों के विपरीत जब किसी क्षेत्र या देश में जनसंख्या अत्यधिक बढ़ जाती है तो वहाँ खाद्यान्न तथा अन्य जीवन के उपयोगी साधनों की कमी पड़ने लगती है तथा वहाँ के लोग ऐसे क्षेत्रों की खोज करने लग जाते हैं जहाँ अधिक आर्थिक संसाधन हो। उदाहरण के लिए 18वीं शताब्दी में यूरोप में जनसंख्या वृद्धि तथा गिरते स्तर के कारण ही असंख्य यूरोपवासी आर्थिक संसाधनों की प्राप्ति के लिए उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका और आस्ट्रेलिया महाद्वीपों के लिए चले गए। 

आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए ग्रामीण क्षेत्रों से बहुत से युवक रोजगार की खोज में समीपवर्ती नगरों अथवा दूरवर्ती बड़े नगरों के लिए प्रवास करते हैं जिनमें से कुछ वहीं पर अपना स्थायी निवास बना लेते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के हजारों लोग पश्चिमी बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र के औद्योगिक नगरों में काम करते हैं। विश्व के अनेक भागों में इस प्रकार के उदाहरण मिलते हैं। 

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प्रायः सभी महानगरों तथा उनके उपनगरीय क्षेत्रों (Suburban areas) के मध्य आर्थिक कारणों से दैनिक प्रवास होता है। उपनगरीय क्षेत्रों से लोग प्रतिनि प्रातः काम करने के लिए नगर की ओर जाते हैं और रात्रि विश्राम करने के लिए शाम को अपने-अपने घरों को लौट आते हैं। 

सामाजिक-सांस्कृतिक कारक 

जनसंख्या प्रवास के लिए उत्तरदायी कारकों में कुछ सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों का भी अपना विशेष महत्व है। सामाजिक प्रथायें, मान्यताएँ एवं स्तर तथा धार्मिक संकट आदि कारक प्रवास को प्रभावित या नियंत्रित करते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय समाज में विवाह के पश्चात् स्त्रियाँ अपने माता-पिता के घर से अपने पति के घर के लिए प्रवास करती हैं। भारत में विवाह स्त्रियों के प्रवास का सर्व प्रमुख कारक है। किंग्सले डेविस (1951) ने भी कहा है कि भारत में विवाह के कारण स्त्रियों के प्रवास की मात्रा अति उच्च है जबकि भारतीय जनता की गतिशीलता कम पायी जाती है। 

विकासशील देशों तथा पिछड़े हुए समाजों में सामान्य रूप से सामाजिक स्तर पर पिछड़े हुए लोगों में गतिशीलता (प्रवास की प्रवृति) अधिक मिलती है। उदाहरणार्थ, भारत में अनुसूचित तथा अनुसूचित जन जातियों और बहुत सी पिछड़ी जातियों के पास भूमि या अन्य स्थायी सम्पत्तियों का आभाव होता है। अतः ये लोग रोजगार और जीविका की खोज में अन्य क्षेत्रों तथा नगरों के लिए प्रवास करते हैं जबकि उच्च जातियों के लोग अपनी सम्पत्ति और भूमियों से आबद्ध होते हैं और अपना निवास नहीं छोड़ना चाहते हैं। 

इसके विपरीत विकसित देशों में सर्वाधिक प्रवास की प्रवृत्ति कुशल, सुशिक्षित तथा आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों में पाई जाती है। उच्च स्तरीय व्यक्तियों में प्रशिक्षण तथा योग्यता का स्तर उच्च होता है और वे अपेक्षाकृत् अधिक दूरी के (अन्तर्राष्ट्रीय) प्रवास के लिए तैयार रहते है। शिक्षा  भी प्रवास को प्रोत्साहित करती है। यह एक ओर कार्यकुशलता और योग्यता को बढ़ाती है तो दूसरी और उन प्राचीन परम्पराओं तथा रूढ़ियों से मुक्ति दिलाती है जो प्रवास में बाधक होती हैं। 

पढ़ाई के लिए विद्यार्थी और शिक्षित एवं प्रशिक्षित युवक रोजगार के लिए  गाँवों से दूरवर्ती क्षेत्रों या नगरों के लिए प्रवास करते हैं। जिन समुदायों में प्राचीन परम्पराएँ, रूढ़िवादी विचार, जातीय बंधन आदि अधिक प्रबल होते हैं, वहाँ प्रवास की मात्रा अत्यंत सीमित होती हैं। इसके विपरीत सामाजिक मेल-जोल वाले उन्नत समाज में सामाजिक उन्मुक्तता और रोजगार का विस्तार अधिक होता है, जिससे प्रवास को गति मिलती है। सामान्य रूप से जो परिवार या समुदाय एक बार प्रवास कर लेता है वह उच्च आर्थिक स्तर की प्राप्ति के लिए भविष्य में भी प्रयत्नशील रहता है और उसमें प्रवास की भावना सक्रिय रहती है। 

धार्मिक संकट तथा धार्मिक स्वतंत्रता की भावना भी प्रवास को प्रोत्साहित करती है। जब किसी देश में दो भिन्न धार्मिक समुदायों के बीच अस्तित्व का युद्ध आरम्भ हो जाता है तब कमजोर समुदायों को अपना निवास स्थान छोड़कर अन्यन्त्र भागने के लिए विवश होना पड़ता है। धार्मिक संकटों के कारण लाखों यहूदियों की जर्मनी और हागनाट समुदायों के हजारों लोगों को फ्रांस छोड़ना पड़ा। 

यहूदी इजराइल को अपना राष्ट्रीय गृह (National Home) मानते हैं और द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् से वहाँ संसार के विभिन्न भागों से यहूदी एकत्रित होने लगे हैं। इससे इजराइल में यहूदियों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। सन् 1947 में भारत और पाकिस्तान का विभाजन राजनीतिक कारणों से हुआ था किन्तु उस विभाजन का आधार धार्मिक (हिन्दू-मुसलमान) ही था। इसके परिणामस्वरूप करोड़ों हिन्दू पाकिस्तान से भारत को और लाखों मुसलमान भारत से पाकिस्तान (तत्कालीन पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान) के लिए स्थानान्तरित हुए। 

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विभिन्न ऐतिहासिक कालों में धर्म तथा संस्कृति के प्रचार के लिए व्यक्ति तथा व्यक्तियों के समूह देश-विदेश की यात्राएँ करते रहे हैं। ईसा से 500 वर्ष पूर्व से लेकर पांचवीं शताब्दी तक धर्म तथा संस्कृति के प्रचार के लिए बहुत से भारतीय सीमावर्ती देशों – बर्मा (म्यांमार) श्रीलंका, नेपाल, मलाया, हिन्दचीन, जावा, सुमात्रा आदि के लिए स्थानान्तरित हुए थे। आज भी विश्व के विभिन्न भागों से प्रति वर्ष लाखों तीर्थयात्री अपने-अपने तीर्थस्थलों के लिए प्रस्थान करते हैं और कुछ दिनों बाद अपने निवास स्थानों को लौट आते हैं। 

विभिन्न देशों से हजारों मुसलमान तीर्थयात्री प्रति वर्ष हज करने के लिए मक्का और मदीना (अरब) जाते हैं। इसी प्रकार हिन्दू तीर्थयात्री बड़ी संख्या में बद्रीनाथ, अमरनाथ, काशी, प्रयाग, मथुरा, द्वारकापुरी, पुरी रामेश्वरम् आदि तीर्थ स्थानों को जाते हैं। तीर्थ यात्रियों तथा पर्यटकों का प्रवास अस्थायी और प्राय: कुछ निश्चित समय के लिए होता है। ब्रिटिश शासन काल में ईसाई धर्म के प्रचार के लिए अनेक मिशनरी और पादरी (अंग्रेज) भारत आये और यहीं बस गये। 

राजनीतिक कारक 

जनसंख्या प्रवास लिए उत्तरदायी राजनीतिक कारणों में आक्रमण, राज्य विस्तार की प्रबल इच्छा, उपनिवेश स्थापना, राज्य नीति आदि प्रमुख हैं। जब किसी देश में जनसंख्या अधिक बढ़ जाने अथवा खाद्यपदार्थ की कमी हो जाने से खाद्य समस्या उत्पन्न हो जाती है तब वहाँ के देशवासी अपने राज्य के विस्तार के लिए प्रेरित होते हैं और पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण करते हैं। आक्रामक सेनायें युद्ध के लिए अन्य राज्यों को प्रस्थान करती हैं। उनमें से कुछ सैनिक मारे जाते हैं, कुछ अपने स्वदेश लौट आते हैं और कई बार कुछ लोग विदेशों में ही बस जाते हैं। 

भारत पर महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी, बाबर, तैमूर आदि ने अक्रमण किया था। उनके साथ आये हुए हजारों सैनिक भारत में ही बस गये और स्वदेश नहीं लौटे। सत्रहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी तक अंग्रजों, पुर्तगालियों, स्पेनियों, डचों, जर्मनों, फ्रांसीसियों और इतालवी लोगों ने उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और आस्ट्रेलिया में अपने-अपने उपनिवेशों की स्थापना की और करोड़ों यूरोपीय लोग आए। 

राजनीतिक कारणों से बलात् (जबरन) स्थानान्तरण भी होते रहे हैं। युद्ध में बंदी व दास बनाए गए लोगों को विजेता देशों में काम करवाने हेतु स्थानान्तरित किया गया। 18वीं शताब्दी में जब अमेरिका में दास प्रथा प्रचलित थी अफ्रीका से हजारों नीग्रो लोगों को जबरदस्ती पकड़ कर दास के रूप में काम करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका ले जाया गया था। 

अनेक बार युद्ध और मृत्यु के भय से बहुत सी जनता शरणार्थी के रूप में पड़ोसी देशों में भाग जाती है। अफगानिस्तान इसका ताजा उदाहरण है। सन् 1947 में भारत-पाक विभाजन के परिणामस्वरूप करोड़ों हिन्दुओं और मुसलमानों ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर किया था। लाखों हिन्दू परिवारों ने पाकिस्तान से भारत को और मुसलमान परिवारों ने भारत से पाकिस्तान के लिए प्रस्थान किया और वहीं बस गये। यह आधुनिक काल का एक बृहत् और अद्वितीय जनसंख्या प्रवास था। 

सन् 1971 में तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान के सैनिक शासन ने पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांगलादेश) में चल रहे स्वतंत्रता आन्दोलन को दबाने के लिए वहाँ की जनता पर अधिक अत्याचार और बर्बरतापूर्ण व्यवहार किया जिससे लगभग एक करोड़ शरणार्थी सीमा पार करके भारत में आ गए थे और पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्र हो जाने पर (बांगलादेश के रूप में गणतंत्र की स्थापना हो जाने पर) वे शीघ्र ही स्वदेश वापस लौट गए।

References

  1. जनसंख्या भूगोल, डॉ. एस. डी. मौर्या
  2. जनसंख्या भूगोल, आर. सी. चान्दना

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