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आर्थिक क्रियाओं के प्रकार (Typology of Economic Activities)

जीविकोपार्जन तथा जीवन-यापन के लिए की जाने वाली आर्थिक क्रियाओं (Economic Activities) को व्यवसाय (occupations) या पेशा कहा जाता है। व्यवसायों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

1. प्राथमिक व्यवसाय (Primary Occupations)

प्राथमिक व्यवसाय में वो क्रियाएं शामिल होती हैं जो प्रकृति के संसाधनों का सीधा उपयोग करती है। इस प्रकार मानव के प्राथमिक व्यवसाय काफी हद तक प्राकृतिक संसाधनों तथा संस्कृति के द्वारा निश्चित  होते हैं। प्राकृतिक संसाधनों में सर्वप्रमुख संसाधन जलवायु,  भूमि की बनावट, मिट्टी और वनस्पति हैं। अत प्राथमिक व्यवसायों के औद्योगिक क्षेत्र इन चार तत्वों से ही सम्बन्धित होते हैं । प्राथमिक व्यवसाय मानव के आरम्भिक व्यवसाय होते हैं। इनमें निन्लिखित क्रियाएं या व्यवसाय शामिल हैं:

1. भोजन का एकत्रीकरण (Food gathering) 

यह मानव का सबसे महत्वपूर्ण एवं प्राचीन व्यवसाय है, जो अनेक क्षेत्रों में आज भी प्रचलित है। इसके निम्नलिखित तीन भाग हैं.

(1) जंगलो से वानस्पतिक खाद्य-पदार्थों को एकत्र करना । 

(2) जानवरों का शिकार करना ।

(3) मछली पकड़ना ।

2. पशुचारण (Pastoralism) 

एकत्रीकरण तथा आखेट के साथ मानव ने कुछ पशुओं को पालतू बना लिया। वह उन्हें घास के मैदानों में जल क्षेत्रों के समीप चराया करता था। विश्व में अर्द्ध-मरूस्थलीय प्रदेशों तथा स्टैपी एवं टैगा प्रदेशों के वनों में आज भी पशुचारण का व्यवसाय होता है। मुख्यतः पशुचारकों की सभी आवश्यकतायें पशुओं के द्वारा ही पूरी की जाती हैं।

3. आदिमकालीन कृषि (Rudimentary agriculture) 

एकत्रीकरण तथा पशुचारण के साथ-साथ ही मानव ने वृक्षों को पालना, पौधों को उगाना तथा उनसे भोज्य पदार्थ प्राप्त करना सीख लिया था । अर्द्धविकसित औज़ारों (कुदाली, आदि) के द्वारा केवल मानव श्रम पर आधारित कृषि कार्य मानव ने सीख लिया था । इस कृषि में मोटे अनाज तथा कुछ सब्जियाँ एवं फल उत्पादन का कार्य किया जाता है। वर्तमान समय में इस प्रकार की कृषि के क्षेत्र द०पू० एशिया के द्वीपों के आन्तरिक भाग हैं।

4. पूर्वी ढंग की कृषि (Eastern agriculture)  

यह पूर्वी एशिया की सघन कृषि है । इसमें सिंचाई एवं रासायनिक उर्वरकों का मुख्य उपयोग होता है। चावल, गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा व दालें यहाँ की प्रमुख फसलें हैं।

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विभिन्न प्रकार की प्राथमिक क्रियाएं

5. पाश्चात्य ढंग की कृषि (Western agriculture)

यह कृषि का आधुनिक विकसित रूप है। इसमें सारा काम शक्ति चालित मशीनों के द्वारा किया जाता है। गेहूँ इसकी प्रमुख फसल है। यह अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा कुछ यूरोपियन देशों में की जाती है।

6. वन उद्योग एवं लकड़ी काटना (Forestry and lumbering)

वनों से पदार्थों का एकत्रीकरण तथा लकड़ी-काटना मानव का प्राथमिक व्यवसाय है, जो द्वितीय तथा तृतीय श्रेणी के व्यवसायों तक उपयोगी रहता है।

 7. खनन (Mining) 

खनन व्यवसाय अर्थात मकानों के लिये पत्थर खोदना, भूमि से कोयला, तेल तथा धातु खनिज एवं खनिजों के अयस्क निकालना खनन व्यवसाय कहलाता है। द्वितीय तथा तृतीय श्रेणी के व्यवसायों में भी इनका उपयोग होता है।

 2. द्वितीय श्रेणी के व्यवसाय (Secondary Occupations)

द्वितीय श्रेणी के व्यवसाय में वे क्रियाएं शामिल होती है जो प्राकृतिक संसाधनों का रूप बदलकर उनको मूल्यवान बना देती हैं। जैसे कपास से कपड़ा बनाना, गन्ने से चीनी बनाना, कच्चे लोहे से इस्पात का निर्माण करना, लकड़ी से फर्नीचर तैयार करना आदि क्रियाएं। इस प्रकार द्वितीय श्रेणी के व्यवसायों में निर्माण-उद्योग (manufacturing), विकसित खनन (mining), आदि क्रियाएं शामिल होती हैं।

इन व्यवसायों को निश्चित करने में प्राकृतिक संसाधनों (natural resources) तथा सांस्कृतिक संसाधनों (cultural resources), दोनों का प्रभाव होता है। इनको निर्धारित करने वाले संसाधन – (i) खनिज पदार्थ (minerals), (ii) औद्योगिक – ईंधन अर्थात् कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, जलविद्युत, परमाणु ऊर्जा, आदि। (iii) कच्चे माल (raw materials), (iv) परिवहन (transport) की सुविधायें, (v) पूँजी, और (vi) बाज़ार (market ) होते हैं। 

3. तृतीय श्रेणी के व्यवसाय (Tertiary Occupations)

तृतीय श्रेणी के व्यवसाय में वे क्रियाएं शामिल होती हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राथमिक व द्वितीयक क्रियाओं को पूरा करने में मदद करती है। जैसे उद्योगों में तैयार माल को उपभोक्ता तक पहुंचाने के लिए अन्य क्रियाओं जैसे परिवहन के साधन, बैंकिंग, व्यापार आदि क्रियाओं का सहारा लेना पड़ता है। अतः सेवाओं से संबंधित ये क्रियाएं तृतीयक क्रियाएं (tertiary activities) कहलाती है।

इनको सांस्कृतिक वातावरण (cultural environment) निश्चित करता है। परिवहन, संचार साधन (communication), व्यापार (trade), चिकित्सा, आदि सेवाओं का स्तर उस क्षेत्र के मनुष्यों के सांस्कृतिक स्तर तथा वैज्ञानिक और तकनीकी उन्नति के द्वारा निश्चित किया जाता है।

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इस क्रियाओं को आगे चतुर्थक (Quaternary) तथा पंचक (Quinary) क्रियाओं में वर्गीकृत किया जा सकता

 4. चतुर्थ श्रेणी के व्यवसाय (Quaternary Occupations)

 सेवा व्यवसायों को जीन गॉटमैन (Jean Gottmann) महोदय ने दो वर्गों में विभाजित किया है। उनके अनुसार, वे सेवाएँ जो प्रत्यक्ष रूप से उत्पादन कार्य को प्रभावित करती हैं वे तृतीयक सेवाएँ हैं और इनमें यातायात, संचार तथा व्यापार आदि सेवाएँ सम्मिलित हैं। परन्तु वे सेवाएँ जो अप्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से उत्पादन को प्रभावित करती हैं उन्हें गॉटमैन महोदय ने चतुर्थक व्यवसाय (Quaternary Occupation) की संज्ञा दी है।

इस दृष्टि में शिक्षण, अनुसन्धान, स्वास्थ्य सेवा, – नेतागिरी तथा प्रशासन आदि चतुर्थ व्यवसाय हैं। इस प्रकार इस वर्ग में शिक्षक, वैज्ञानिक, डॉक्टर, नेता, प्रशासक आदि व्यक्तियों का व्यवसाय सम्मिलित है। इस वर्ग में उच्च श्रेणी के व्यवसाय एवं सेवायें आती हैं। जैसे— प्रबन्धन, शोध, शासन, सरकार, नियोजन तथा विश्वस्तरीय सेवायें

हाल ही के वर्षों में आर्थिक क्रियाएँ बहुत विशिष्ट एवं जटिल हो गई हैं। फलस्वरूप चतुर्थक क्रियाओं में पर्याप्त वृद्धि हुई है। चतुर्थक शब्द से तात्पर्य उन उच्च बौद्धिक व्यवसायों में हैं, जिनका दायित्व चिन्तन तथा शोध और विकास के लिए नए विचार देना है। आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक विकसित देशों में इनकी संख्या निरन्तर बढ़ रही है। इस वर्ग की विशिष्टता लोगों का उच्च वेतनमान और पदोन्नति के लिए उनका अत्यधिक गतिशील होना है।

5. पंचक क्रियाएँ (Quinary Occupations)

पंचक क्रियाएँ वे उच्च स्तरीय सेवाएँ हैं जो आविष्कार, नवीन तथा विद्यमान विचारों की पुनर्व्यवस्था तथा व्याख्या और नवीन तकनीकों (New technologies) के उपयोग एवं मूल्यांकन (Evaluation) पर केन्द्रित होती हैं। इन्हें प्रायः गोल्ड कॉलर (Gold Collar) व्यवसाय कहा जाता है।

विशिष्ट एवं उच्च शुल्क (High Wages) प्राप्त करने वाले वरिष्ठ व्यावसायिक प्रशासक, सरकारी अधिकारी, अनुसन्धान वैज्ञानिक, वित्तीय एवं कानूनी परामर्शदाता इनका प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रगतिशील अर्थव्यवस्थाओं की संरचना में उनकी महत्ता उनकी संख्या से कहीं अधिक होती है। पंचक क्रियाएँ अत्यधिक प्रभावशाली होती हैं और इनमें आलोचनात्मक निर्णय के गुण सम्मिलित होते हैं।

बाह्य स्रोत (Out Sourcing)

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बाह्य स्रोत (Out Sourcing) से अभिप्राय बाहर के लोगों को काम अर्थात् नौकरियाँ देना है। यह काम की दक्षता को बढ़ाने और लागत कम करने के उद्देश्य से किया जाता है। जब समुद्रों से पार स्थित प्रदेशों में कार्य दिया जाता है तो इसे दूरवती टेकबन्दी (Off Shoring) कहा जाता है। बाह्य स्रोत में सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology), मानव संसाधन तथा आह्वान केन्द्र (Call Centre) आदि व्यापारिक क्रियाएँ सम्मिलित हैं। कभी-कभी इसमें निर्माण तथा इन्जीनियरिंग कार्य भी सम्मिलित होते हैं।

डाटा संसाधन, जो सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) से सम्बन्धित सेवा है, एशिया, पूर्वी यूरोप तथा अफ्रीकी देशों में आसानी से कार्यान्वित किया जा सकता है। इन देशों में विकसित देशों की तुलना में अच्छी अंग्रेज़ी जानने वाले सूचना प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित कर्मचारी कम वेतन पर उपलब्ध होते हैं।

इस प्रकार हैदराबाद या | मनीला (फिलिपिन्स) में स्थित एक कम्पनी संयुक्त राज्य अमेरिका या जापान जैसे देश के लिए अच्छा कार्य कर सकती है। इससे कुल खर्च भी बहुत कम होता है जिससे समुद्र पार करवाना लाभदायक सिद्ध होता है, चाहे वे भारत, चीन या कम जनसंख्या वाले अफ्रीका के वोत्सवाना जैसे देश भी क्यों न हों।

बाह्य स्रोत के परिणामस्वरूप भारत, चीन, पूर्वी यूरोप, इज़राइल, फिलीपीन्स तथा कोस्टारीका में अनेक आह्नान केन्द्र (Call Centre) स्थापित हो गए हैं। इसने इन देशों में नये काम उत्पन्न कर दिए हैं, परन्तु इसने उन देशों में नौकरी प्राप्त करने के जिज्ञासुओं के लिए संकट भी उत्पन्न कर दिया है जो बाहर के स्रोतों से कार्यकर्ता मँगवाते हैं।

चतुर्थक सेवाओं में ज्ञान संसाधन बाह्य स्रोत (Knowledge Processing, Outsourcing-KPOs) की नई प्रवृत्ति उत्पन्न हो गई है। KPOs उद्योग व्यापारिक प्रक्रिया बाह्य स्रोत (Business Process Out Sourcing- BPO) से नितान्त भिन्न है। इसमें अत्यधिक उच्च कुशलता वाले कार्यकर्ता होते हैं। KPO कम्पनियों को अतिरिक्त व्यापारिक अवसर उत्पन्न करने के लिए योग्य बनाते हैं। अनुसन्धान एवं विकास गतिविधियाँ, व्यापारिक अनुसन्धान तथा बौद्धिक सम्पत्ति अनुसन्धान इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

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