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प्राथमिक क्रिया: पशुचारण (Primary Activity: Pastoralism)

घास प्रदेशों में जहाँ बहुत कम वर्षा होती है या गर्म एवं ठण्डे मरुस्थलों में जहाँ वर्षा एवं तापमान की दशाएँ कृषि के लिए अनुकूल नहीं होती वहां अन्य क्रियाओं के मुकाबले पशुचारण प्रमुख आर्थिक क्रिया होती है। इन घास भूमियों (grasslands) में पशुचारण से संबंधित दो प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ प्रचलित हैं

(i) चलवासी पशुचारण ( nomadic herding) एवं 

(ii) वाणिज्यिक पशुचारण (commercial grazing)

इन दोनों प्रकार की क्रियाओं में कुछ समानताएं व असमानताएं पाई जाती है, जो इस प्रकार से हैं 

समानताएँ 

1. क्योंकि थोड़े से पशुओं को चराने के लिए भी  भूमिकई हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। इसलिए दोनों में विस्तृत भूमि का उपयोग होता है। 

2. दोनों में ही विरल या कम जनसंख्या पाई जाती हैं।

3. फसलों के उत्पादन की अपेक्षा पशु-पालन की प्रधानता होती है।

4. पशुओं के झुण्ड प्रमुख रूप से प्राकृतिक वनस्पति पर ही निर्भर करते हैं।

भिन्न्ताएँ 

1 जहाँ वाणिज्यिक पशुचारण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड के घास के मैदानों में किया जाता है। वहीं चलवासी पशुचारण मुख्यतः पुरानी दुनियाँ के क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। 

2. चलवासी पशुचारकों के निवास स्थान या डेरे (encampments) अस्थायी होते हैं, ये मौसमी प्रवास (seasonal migration) करते रहते हैं, जबकि वाणिज्यिक पशुचारण में ‘रैन्च’ (ranches) पर स्थायी आवास बना लिए जाते हैं।

3. वाणिज्यिक पशुपालक (rancher) किसी विशिष्ट या एक ही प्रकार के पशु पालते हैं तथा उनके उत्पाद में विशेषीकरण रखते हैं, जो उस क्षेत्र के लिए अनुकूल होता है। जबकि चलवासी पशुचारक अनेक प्रकार के पशु रखते हैं। 

4. चलवासी पशुचारण में केवल स्थानीय उपयोग के लिये भोजन उत्पादन, वस्त्रों, आवासों  तथा अन्य सामग्री की व्यवस्था की जाती है, जबकि वाणिज्यिक पशुचारण में पशु उत्पादन बाहर के बाजारों के लिए प्राप्त किए जाते हैं।

5. वाणिज्यिक पशुचारण में पशुओं को चराने तथा मोटा करने के लिए किसी दूसरे स्थान पर भेजा जाता है तथा उन्हें काटने का कार्य दूसरे स्थान पर किया जाता है। जबकि चलवासी पशुचारण में पशुओं को काटना तथा उनसे विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार करने का काम उसी क्षेत्र में किया जाता है

6. चलवासी पशुचारण शताब्दियों से किया जा रहा है, जबकि वाणिज्यिक पशु चारण मात्र 150 वर्ष पुराना है।

चलवासी पशुचारण (Nomadic Herding)

चलवासी पशुचारण में अर्थव्यवस्था का रूप निर्वाहक है (subsistence economy) है, जिसमें लोग अपने पशुओं से प्राप्त दूध, रक्त, माँस, ऊन, खालों आदि पर निर्भर करते हैं। कुछ पशु भार व सवारी ढ़ोने के भी काम आते हैं। ये लोग पशुओं से प्राप्त होने वाले पदार्थों के बदले में खाने की सामान तथा अन्य जरूरत की वस्तुएँ प्राप्त कर लेते हैं। चलवासी पशुचारक चारे तथा पानी की तलाश में निरन्तर या रुक रुक कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। चारे (forage) तथा जल की मात्रा ही किसी स्थान पर चलवासियों के रुकने तथा स्थानान्तरण की दिशा को निश्चित करती है।

देखा जाए तो चलवासी पशुचारण में प्रवास के रास्ते और क्षेत्र निश्चित होते हैं। कुछ चलवासी जनजातियाँ खेती भी करती हैं। वे लोग फसलें उगाकर उन्हें किसी की देख-रेख के बिना ही छोड़ देते हैं। अर्द्धचलवासी जातियाँ कुछ समय गाँवों में बिताती हैं, जहाँ अनेक स्थायी घर होते हैं। ऋतु-प्रवास (transhumance) में पशुओं के झुण्ड कुछ चरवाहों की देख-रेख में मौसमी रूप से स्थानान्तरण करते हैं, जबकि अधिकांश लोग स्थायी घरों में रहते फसलों की देखभाल करते हैं।

चलवासी पशुचारण का शुरुआत यूरेशिया तथा अफ्रीका में हुई जहाँ मानव ने पालतू पशुओं का सर्वप्रथम उपयोग किया था। बाद में ये पालतू पशु अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया में लाये गये। किन्तु, नयी दुनिया में चलवासी पशुचारण का स्थान वाणिज्यिक पशुचारण में ले लिया है।

वर्तमान समय में विश्व में चलवासी पशुचारण के चार प्रमुख क्षेत्र हैं- 

(i) मध्य एशिया 

(ii) दक्षिण पश्चिमी एशिया, 

(ii) उत्तरी एवं पूर्वी अफ्रीका, तथा 

(iv) टुण्ड्रा 

ये सभी विशाल क्षेत्र विरल आबाद (sparsely populated) हैं। इन प्रदेशों में सीमित वर्षा तथा फसल उगने की अवधि कम (छोटी) होने के कारण कृषि के बजाय पशुचारण अधिक उपयुक्त है। मध्य एशिया में नये तकनीकी विकास से अब यान्त्रिक कृषि (mechanized agriculture) तथा सिंचित कृषि (irrigated farming) भी होने लगी हैं. ऐसे प्रदेशों में लोग अब फार्मों के निकट निर्मित स्थायी घरों में रहते हैं।

मध्य एशिया में चलवासी पशुचारण

मध्य एशिया में मंगोलिया तथा इसके साथ लगते चीन, तिब्बत, तुर्किस्तान तथा स्टेपी शामिल हैं। ये चलवासी पशुचारक के परम्परागत क्षेत्र हैं, जहाँ इन देशों की 25 से 75 प्रतिशत तक जनसंख्या निवास करती है। चलवासी पशुचारकों में प्रमुख से कज्जाक, कामुक, खिरगीज तथा मंगोल लोग शामिल हैं। 

काल्मुक लोग अल्टाई पर्वतों एवं समीपवर्ती बेसिनों के निवासी हैं। काल्मुक लोग मुख्यतः घोड़े पालते हैं, साथ ही भेड़ और बकरियाँ भी गाय-बैल भी, माँस, दूध, खालों, सीगों आदि के अतिरिक्त भारवाहक पशु (beast of burden) पाले जाते हैं। खच्चर तथा ऊँट भी प्रमुख भारवाहक पशु हैं।

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कज्जाक लोग कैस्पियन सागर एवं मध्य एशिया के ऊँचे पर्वतों के बीच स्थित मैदानों में रहते हैं। 

खिरगीज लोग श्यान, शान एवं समीपवर्ती पामीर के उच्च बेसिनों में रहते हैं। 

मंगोल उत्तरी पश्चिमी चीन तथा बाह्य मंगोलिया में रहते हैं।

इन क्षेत्रों में भेड़ें मुख्यतः पाली जाती हैं जिनसे माँस, दूध, ऊन, तथा खाले प्राप्त होती हैं। बकरियाँ भी बड़ी संख्या में पाली जाती हैं जिनसे मांस, दूध, ऊन, तथा बाल प्राप्त होते हैं।

चलवासी लोग दो प्रकार का स्थानान्तरण करते हैं- स्थानीय एवं मौसमी निरन्तर स्थानान्तरण चलवासी जीवन का आधार है। शीतकाल में ये लोग स्थायी कैम्पों में रहते हैं। स्थानान्तरण बसन्त ऋतु में प्रारम्भ होता है, ये लोग ठण्डे ग्रीष्मकालीन चरागाहों की ओर स्थानान्तरण करते हैं। वर्षाकाल के प्रारम्भ में, जब भारी वर्षा होती है, तो ये एक स्थान पर थोड़े समय के लिए रुक जाते हैं।

यद्यपि चलवासी जातियाँ मूलतः पशुओं पर निर्भर करती हैं, तथापि कुछ जातियाँ खेती भी करती हैं, ये सूक्ष्म अनाज, , गेहूँ रूई, जी तथा अन्य फसलें उगायी हैं।

दक्षिणी पश्चिमी एशिया में चलवासी पशुचारण

इस प्रदेश में अफगानिस्तान, ईरान, इराक, सऊदी अरब, टर्की शामिल हैं। यह प्रदेश मध्य एशिया की अपेक्षा कम विषम तथा कम ऊंचा है। किन्तु यहाँ मध्य एशिया की अपेक्षा बहुत कम वर्षा होती है।

 भेड़ तथा बकरी अत्यधिक गर्मी तथा अकाल से सर्वोत्तम रूप से अनुकूलन करने वाले पशु हैं। इसीलिए इन प्रदेशों के प्रमुख पशु हैं। मरुस्थलों में ऊँट विशेषतः, समानुकूलित पशु है। अरब में घोड़े अधिक पाले जाते हैं। यहाँ स्थानान्तरण का प्रतिरूप मध्य एशिया जैसा है ईरान तथा अफगानिस्तान के पठार के चलवासी लोग ऋतु प्रवास (transhumance) अपनाते हैं। वे शीतऋतु में नीचे घाटियों में चले जाते हैं तथा ग्रीष्म ऋतु पर्वतीय ढालों पर बिताते हैं। अरब के बद्दू चरवाहे अपने पशुओं को शीतकाल में अरब के मरुस्थल के सीमावर्ती क्षेत्रों में तथा गीष्म ऋतु में उच्चभूमियों में चराते हैं। 

अरब का बद्दू ऊंट व गधों के साथ प्रवास पर जाता हुआ

उत्तरी तथा पूर्वी अफ्रीका में चलवासी पशुचारण

उत्तरी तथा पूर्वी अफ्रीका में सहारा, उत्तरी सूडान तथा पूर्वी मध्य अफ्रीका की उच्चभूमियाँ सम्मिलित हैं। उत्तरी अफ्रीका की जनजातियाँ शीत ऋतु में सहारा की सीमा के सहारे रहती हैं तथा गीष्मऋतु में एटलस पर्वतों या मरुद्यानों में निवास करती हैं। पूर्वी मध्यवर्ती अफ्रीका में मसई तथा अन्य चलवासी जातियाँ भी पशुपालन करती हैं। ये लोग शीतकाल में छोटी घास वाले सवाना तथा निचली घाटियों में अपने मवेशी तथा भेड़ों को चराते हैं तथा ग्रीष्म ऋतु में उच्च पठारों तथा पर्वतीय चरागाहों में चले जाते हैं।

मसाई लोग गायों के झुण्ड को चराते हुए

 इस प्रदेश में भी स्थायीकरण (sedentarization) की प्रवृत्ति उभरी है। सऊदी अरब में सरकार ने चलवासी पशु चारकों को खेती के लिए अनेक सुविधाएँ प्रदान कर स्थायी रूप से बसने के लिए प्रोत्साहित किया है। पेट्रोलियम उद्योग विकसित होने से भी बहुत से चरवाहे वर्ग इस उद्योग की ओर आकृष्ट हो गये हैं। मिस्र तथा टर्की में भी उनकी सरकारों ने इसी प्रकार के सुधार लागू किये हैं। मोरक्को, अल्जीरिया तथा ट्यूनीशिया में चलवासी चरवाहों में स्थायी कृषि को स्वेच्छा पूर्वक अपना लिया है।

टुण्ड्रा में चलवासी पशुचारण

टुण्ड्रा का विस्तार आर्कटिक प्रदेश में लाखों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर हैं। कुछ प्रदेशों में रेन्डियर चराए जाते हैं। रेन्डियर का सबसे बड़ा संकेन्द्रण उत्तरी स्कैन्डिनेविया के लैपलैण्ड, साइबेरिया के पश्चिमी भाग में तथा उत्तरी पूर्वी साइबेरिया के चकची एवं कमचटका प्रायद्वीप में मिलते हैं। उत्तरी अमेरिका में रेन्डियर पश्चिमी अलास्का, कनाडा में उत्तरी मैकेन्ज़ी घाटी, तथा ग्रीनलैण्ड के गोडथाब फियोर्ड में होता है।

स्केन्डिनेविया की लैप्स जनजाति विख्यात रेन्डियर चारक हैं। उनके स्थानान्तरण रेन्डियर द्वारा प्रदत्त भोजन की सप्लाई पर निर्भर है। उनके मार्ग वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं। वे स्वतन्त्रतापूर्वक नार्वे, स्वीडन तथा फिनलैण्ड में घूमते हैं।

साइबेरिया के रेन्डियर पशुचारकों की अर्थव्यवस्था लैप्स लोगों के जैसी है। उत्तरी साइबेरिया की कुछ जनजातियाँ पूर्ण रूप से अपने पशुओं पर निर्भर करती हैं, किन्तु अधिकांश जनजातियाँ आखेट तथा मत्स्योत्पादन द्वारा भोजन की पूर्ति करती हैं। ये लोग राई, जी, आलू आदि फसलें भी उगा लेते हैं। यूरेशियाई टुण्ड्रा में हाल ही में अनेक परिवर्तन हुए हैं। अनेक लैप्स लोग अब नौकरियाँ करने लगे हैं। सोवियत रूस में अनेक रेन्डियर चरवाहे अब सामूहिक फार्मों पर काम करने लगे हैं।

अलास्का में रेन्डियर पालन का विकास ऊन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में किया गया। एस्किमो लोगों को तेजी से नष्ट हुए, वन्य जीवों को पालन करना सिखाने के लिए साइबेरिया के लैप्स लोगों को बुलाया गया। किन्तु एस्किमो लोग नयी जीवन शैली से स्वयं को समायोजत न कर सकें। कनाडा में भी रेन्डियर पालन के लिए सभी सरकारी प्रयास विफल हो गये।

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वाणिज्यिक पशुचारण (Commercial Grazing) 

वाणिज्यिक पशुचारण, उष्णकटिबन्धीय एवं शीतोष्ण घास भूमियों का प्रमुख व्यवसाय है।

 उष्ण कटिबन्धीय घास प्रदेश

अफ्रीका तथा उत्तरी अस्ट्रेलिया के ‘सवाना’ तथा दक्षिणी अमेरिकी के ‘लानोज’ तथा ‘कम्पोज’ उष्ण कटिबन्धीय घास प्रदेश है। निम्न से मध्यम वर्षा लम्बी, कठोर घास के लिये पर्याप्त है। बीच बीच में वृक्ष बिखरे हुए पाये जाते हैं। नदियों के सहारे कुछ वृक्ष उगते हैं। सवाना वनस्पति आर्द्रतर किनारों पर वनों में जबकि शुष्कतर किनारों पर ये मरुस्थली कंटीली वनस्पति में बदल जाती हैं।।

सवाना – अफ्रीका के सवाना घास प्रदेश दीर्घकाल से पशुचारण के क्षेत्र रहे हैं। यहाँ मुख्यतः माँस तथा भारवाहन के लिये मवेशी पाले जाते हैं, किन्तु यहाँ के मवेशियों का माँस उत्तम किस्म का नहीं होता है। यहाँ पशुओं के लिए न तो बाड़ों (ranches) की उचित व्यवस्था की गयी है, और न ही  पशुओं की नस्ल सुधारने के प्रयास किये गये हैं। पशुरोग, बाढ़ अकाल आदि अन्य बाधाएँ हैं। कुछ जनजातियाँ भेड़, बकरी, सुअर, मुर्गी आदि भी पालती हैं। वाणिज्यिक दृष्टि से अफ्रीका के सवाना प्रदेश में पशु पालन महत्त्वपूर्ण नहीं है। 

केम्पोज – दक्षिणी अमेरिका में ब्राजील केकेम्पोज अन्य, उष्णकटिबन्धीय घास के मैदानों से बेहतर है। ब्राजील में मवेशी पालन का प्रारम्भ आन्तरिक खनन क्षेत्रों में श्रमिकों के लिये माँस की माँग की पूर्ति के लिए किया गया। आज लाखों मवेशी तीन प्रमुख क्षेत्रों में चराए जाते हैं- 

(i) पराग्वे की निम्न भूमियों में जिन्हें पेन्टानल कहा जाते हैं, 

(ii) दक्षिमी माटोग्रासो के पठारी प्रदेश में जिसे कैम्पोडा वकारियों कहा जाता है, तथा 

(iii) माटो ग्रोसो तथा दक्षिणी गोइयास के पठार पर, जिसे कैम्पो सेराडोकहा जाता है। 

कैम्पोज में माँस तथा दूध वाले मवेशियों की वर्णशंकर(hybrid) किस्में विकसित की गयी हैं जो उच्च तापमानों तथा पशुरोगों को सहन कर पाती हैं। किन्तु अभी भी ब्राजील के मवेशी पालन उद्योग के विभव (potential) का पूर्णतः उपयोग नहीं किया जा सका। है। 

लानोज – वेनेजुला एवं कोलम्बिया के लानोज घास प्रदेशों में व्यापक स्तर पर मवेशी पालन किया जाता है। अधिकांश मवेशी क्रियोलोनस्ल की हैं जो यहाँ की जलवायु की दशओं में पूर्णतः समायोजित हैं। यद्यपि इनमें माँस की प्राप्ति कम होती हैं। प्राकृतिक चरागाहों की धारण क्षमता निम्न है। अतः यहाँ के पशु कम मोटे होते हैं। पशुरोग भी काफी होने से मवेशी मर जाते हैं।  

ग्रान चाकों – ये घास के मैदान उत्तरी अर्टेन्टाइना, पश्चिमी पराग्वे तथा दक्षिणी पूर्वी बोलीविया में विस्तृत हैं। यहाँ पशु भारवाहन तथा माँस के लिए पाले जाते हैं। मवेशियों की नस्लें उत्तम न होने के कारण वे अधिक माँस प्रदान नहीं करते। चरागाहों की बाड़ा-बन्दी नहीं की गयी है और पशुओं के नस्लें सुधारने के भी प्रयास नहीं किये गये हैं।

आस्ट्रेलिया के सवाना घास प्रदेश पश्चिमी आस्ट्रेलिया के उत्तरी भागों तथा क्वीन्सलैण्ड राज्यों में विस्तृत हैं। वर्षा की अनियमितता तथा परिवर्तनशीलता के कारण लम्बी चारे वाली घासें तथा एकेंशिया उगते हैं जो मवेशियों के लिये उत्तम भोजन प्रदान करते हैं, यद्यपि इसमें प्रोटीन की कमी होती है। जल की कमी भी एक बड़ी समस्या है। अधिकांश नदियाँ आन्तरायिक (intermittent) होने के कारण यहाँ कुएं ही जल प्राप्ति का प्रमुख स्रोत हैं।

इन दशाओं में क्षेत्र की पोषण क्षमता अत्यल्प हैं, यद्यपि ‘स्टेशन’ (पशुफार्म) बहुत बड़े हैं। इन स्टेशनों पर चरवाहों (ranchers) का जीवन बहुत एकाकी होता है, यद्यपि प्रत्येक स्टेशन पर रेडियो, टेलीग्राम, वायु सेवाओं आदि सुविधाएं उपलब्ध हैं। इस प्रदेश की एकान्तता (isolation) तथा बाजारों से दूरी पशु उद्योग में सबसे बड़ी बाधा है। यहां खरगोश तथा डिंगो का भी निरन्तर खतरा रहता है।

शीतोष्ण कटिबन्धीय घास मैदान

शीतोष्ण कटिबन्धीय घास के मैदानों का विस्तार उत्तरी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, दक्षिणपूर्वी न्यूजीलैण्ड, दक्षिण पूर्वी दक्षिण अमेरिका तथा अफ्रीका के व्यापक क्षेत्र में है। इसके अलावा एन्डीज (दक्षिण अमेरिका) के पर्वतीय क्षेत्रों तथा ग्रेट ब्रिटेन के मुरलैंड में वाणिज्यिक पशुचारण स्थानीय स्तर पर होता है।

प्रेयरी – उत्तरी अमेरिका में प्रेयरी घास प्रदेशों का विस्तार मुख्यतः पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A) एवं कनाडा तथा उत्तरी मैक्सिकों में है। उपनिवेशीकरण के पूर्व इन प्रदेशों पर बाइसन के विशाल झुण्ड चरा करते थे। 16वीं शताब्दी में सर्वप्रथम स्पेनी उपनिवेशको द्वारा उत्तरी मैक्सिको में मवेशी तथा घोड़े लाये गये। शीघ्र ही मवेशी पालन का विस्तार पश्चिम की ओर घास प्रदेशों में हो गया।

1880 के बाद खुले पशु चारण का स्थान सुसंगठित वाणिज्यिक पशुचारण ने से लिया। रेलों के विकास में परिवहन की सुविधाएँ उपलब्ध होने पर फार्मों पर मोटा किया गये मवेशियों को बाजारों तक भेजना आसान हो गया। इन पशुओं को मक्का खिलाकर मोटा किया जाता था। रेफ्रिजरेशन तथा आधुनिक पैकिंग के विकसित होने पर माँस को दूरस्थ बाजारों में भेजा जाने लगा। इन सुधारों से पशुचारण कुशल हो गया। 

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वर्तमान समय में, पशुफार्म (रैन्च) बहुत विशाल हैं, जो हजारों हैक्टेयर क्षेत्र पर विस्तृत हैं। माँस वाले तथा दूध वाले मवेशी पृथक् पाले जाते हैं। फार्मों पर भेड़ें भी पाली जाती हैं, टैक्सास के एडवर्ड पठार पर अंगोरा बकरियाँ पाली जाती हैं। माँस वाले मवेशी मुख्यतः विशाल मैदानों में एरिजोना तथा ओरेगन के पठारों पर तथा पर्वतीय घाटियों में पाले जाते हैं। माँस वाले मवेशी अब दक्षिणी पूर्वी संयुक्त राज्य में भी पाले जाते हैं।  

मैक्सिको में पवेशी पालन देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख अंग है। मैक्सिको का पशु उद्योग निम्न उत्पादकता तथा विशाल चरागाहों के लिये विशिष्ट है। देश के मध्यवर्ती क्षेत्र में मवेशी पालन संकेन्द्रित है। उत्तरी क्षेत्रों में मवेशी प्राकृतिक घासों तथा झाड़ियों पर पलते हैं। मैक्सिको के 90% मवेशी देशज (native) प्रकार के हैं।

 पम्पाज- दक्षिणी अमेरिका में अर्जेन्टाइना में वाणिज्यिक पशुचारण देश की अर्थव्यवस्था के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है। अर्जेन्टाइना विश्व के 1/3 माँस, 79% मटन (भेड़ माँस) तथा 9% ऊन का निर्यात करता है। यही नहीं देश में माँस की स्थानीय खपत भी बहुत है । अर्जेन्टाइना के प्रधान पशुचारण क्षेत्र पम्पाज, पराना- पराये नदियों के मध्य स्थित निम्नभूमि, पश्चिम के शुष्क मैदान एवं पर्वत, तथा दक्षिण में पैटेगोनिया में स्थित हैं।

इनमें से प्रत्येक क्षेत्र जलवायु, स्थलाकृति, बाजारों से दूरी तथा पशुचारण की दशाओं में सर्वथा भिन्न है। पम्पाज के उर्वर मैदानों में अर्जेन्टाइना के अधिकांश मांस वाले मवेशी तथा एक तिहाई भेड़े मिलती हैं। मवेशियों को ‘अल्फाल्फा‘ घास पर पाला जाता है जो पम्पाज क्षेत्र का प्रमुख पशु आहार (चारा) है। विशाल ‘एस्टेन्शिया‘ (estancias) पर सर्वोत्तम किस्मों के पशु पाले जाते हैं।

पम्पा में सुविकसित रेल मार्गों के कारण फार्मों पर मोटे किये गये मवेशियों को समुद्रतटों पर स्थित आधुनिक पशुकाटने के संयन्त्रों तथा भेजने की उत्तम व्यवस्था है। रेफ्रिजरेटर युक्त जलयानों द्वारा माँस का निर्यात यूरोपीय देशों को किया जाता है। इस प्रदेश में प्रायः अकाल तथा पशुरोगों का संकट रहता है।

पैटेगोनिया के शुष्क मैदानों तथा पर्वतीय क्षेत्रों में पम्पा से भिन्न चारण अर्थ व्यवस्था प्रचलित है। यहाँ वर्षा की कमी तथा परिवर्तनशीलता के कारण चारा कम होता है। अतः पशुओं का घनत्व भी कम है। मवेशी, भेड़, घोड़े, खच्चर, बिखरे हुए सिंचित क्षेत्रों में चराए जाते हैं। उत्तरी पश्चिम के कंटीली वनस्पति के क्षेत्रों में बकरियों की संख्या अधिक है। यहाँ मैरिनो भेड़ ऊन के लिये पाली जाती है। 

युरुग्वे तथा दक्षिणी ब्राजील में वाणिज्यिक पशुचारण एक प्रमुख आर्थिक क्रिया है। युरुग्वे के कुल निर्यातों में लगभग आधा अंशदान केवल ऊन का होता है, किन्तु यहाँ पशुचारण उदयोग कम उन्नत तथा कम उत्पादक हैं। प्राकृतिक चरागाह अतिचारण (overgrazing) के शिकार हैं। मवेशियों को जई खिलाकर मोटा किया जाता है, उसकी उत्पादकता दर निम्न हैं। माँस भी निम्न कोटि का होता है। ब्राजील में भी पोषक चारे की कमी तथा पशुरोगों की व्यापकता के कारण प्रदेश की क्षमता का पूर्ण विकास नहीं हो सका है।

आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड के ‘डाउन्स‘ उत्तरी गोलार्द्ध के प्रमुख देशों में बहुत दूर स्थित हैं। ये डाउन्स देश की अर्थव्यवस्था तथा राष्ट्रीय आय में बहुत योगदान देते हैं। यहाँ भेड़े अधिक पाली जाती हैं। तीन चौथाई से अधिक भेड़े देश के पूर्वी तथा दक्षिणी पूर्वी आर्द्रतर एवं पर्वतीय क्षेत्रों में पाली जाती है। शेष भेड़ें दक्षिणी आस्ट्रेलिया तथा पश्चिमी आस्ट्रेलिया के तटवर्ती क्षेत्रों में पाली जाती हैं। भेड़े विशाल फार्मो पर पाली जाती हैं जिन्हें स्टेशनकहा जाता है। अधिकांश फार्म कँटीली बाड़ों द्वारा घिरे होते हैं, तथा उनमें रहने तथा अन्य सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध होती है। 

दक्षिणी अफ्रीका के वेल्ड घास प्रदेशों में लम्बी तथा छोटी दोनों प्रकार की घासें व्यापक रूप से पायी जाती हैं। प्रमुख चरागाह समुद्रतल से 1000 से 2000 मीटर तक की ऊँचाई पर स्थित है, जहाँ 100 दिनों तक पाला पड़ता है। यहाँ रेलमार्गों का प्रायः अभाव ही है। यहाँ भेड़ चारण प्रमुख उद्योग है तथा स्वर्ण के बाद ऊन ही दक्षिणी अफ्रीका का प्रमुख निर्यात पदार्थ है। यहाँ ‘काराकुल’ किस्म की भेड़ें अधिक मिलती हैं।

दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका विश्व का बृहत ‘पर्शियन लैम्ब’ उत्पादक है, मोहेर (ऊन) प्रदान करने वाली बकरी तथा मवेशी अन्य पशु हैं। दक्षिणी अफ्रीका विश्व में तृतीय वृहत्तम मोहेर उत्पादक देश है।

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