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लॉकियर की उल्का परिकल्पना, सौरमंडल की उत्पत्ति और विकास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जिसे ब्रिटिश वैज्ञानिक नॉर्मन लॉकियर ने प्रस्तुत किया था। यह परिकल्पना उन विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे B.A., M.A., UGC NET, UPSC, RPSC, KVS, NVS, DSSSB, HPSC, HTET, RTET, UPPCS, और BPSC की तैयारी कर रहे हैं। इस परिकल्पना के अध्ययन से न केवल सौरमंडल के गठन के बारे में गहन जानकारी प्राप्त होती है, बल्कि विभिन्न परीक्षाओं में इसे लेकर पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर भी आसानी से दिए जा सकते हैं।
Table of contents
परिचय
लॉकियर की उल्का परिकल्पना, 19वीं शताब्दी के ब्रिटिश वैज्ञानिक नॉर्मन लॉकियर द्वारा प्रस्तुत एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह परिकल्पना सौरमंडल की उत्पत्ति के पीछे उल्काओं की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है। जहां लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना ने सौरमंडल के निर्माण के लिए नीहारिकाओं को मुख्य आधार बनाया था, वहीं लॉकियर ने उल्काओं के आपसी टकराव और उसके परिणामस्वरूप बनी संरचनाओं को आधार बनाया।
लॉकियर की उल्का परिकल्पना
उल्का क्या हैं?
यह परिकल्पना बताती है कि आकाश में असंख्य तारे टूटते रहते हैं जिन्हें उल्का कहते हैं। टूटे हुए तारों के कुछ टुकड़े पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण भूतल पर आ गिरते हैं। इन टुकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि ये लगभग उन्हीं पदार्थों से बने हैं जिनसे हमारी पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है। उल्का पिंडों के रासायनिक विश्लेषण से यह भी ज्ञात होता है कि इनमें लोहे, निकेल, और सिलिकेट्स जैसे तत्व पाए जाते हैं, जो पृथ्वी की संरचना में भी प्रमुखता से उपस्थित हैं।
प्रारंभिक टकराव
लॉकियर की परिकल्पना के अनुसार, प्रारम्भ में दो विशाल उल्का पिंड आपस में टकराए। इस टकराव से भीषण ताप, प्रकाश और वात की उत्पत्ति हुई। यह टकराव इतना शक्तिशाली था कि इससे उत्पन्न ऊर्जा ने उल्का पिंडों को पिघला दिया और उनके पदार्थ को अंतरिक्ष में फैला दिया। इस प्रक्रिया में उत्पन्न ऊष्मा और प्रकाश ने आसपास के क्षेत्र को भी प्रभावित किया।
द्रव और गैस में परिवर्तन
उल्का पिंड के अधिकांश भाग पिघलकर द्रव में परिवर्तित हो गए और कुछ गैस में परिवर्तित होकर बादलों की भांति अंतरिक्ष में वितरित हो गए। यह गैसें और द्रव पदार्थ धीरे-धीरे एकत्रित होकर एक बड़े वायव्य महापिंड का निर्माण करने लगे। इस प्रक्रिया में गैसों के संघनन और द्रव पदार्थों के ठंडा होने से विभिन्न प्रकार के खनिज और धातुएं भी उत्पन्न हुईं।
वायव्य महापिंड का निर्माण
आकर्षण शक्ति के प्रभावाधीन ये पुनः एकत्रित हो गए और एक वायव्य महापिंड का निर्माण हुआ। आपसी टकराव के कारण यह महापिंड घूर्णन करने लगा और इसने एक सर्पिल नीहारिका का रूप धारण कर लिया। इस घूर्णन के कारण महापिंड के बाहरी भाग में अपकेन्द्रीय बल उत्पन्न हुआ, जिससे यह और अधिक फैलने लगा और विभिन्न भागों में विभाजित हो गया।
सर्पिल नीहारिका से ग्रहों की उत्पत्ति
कालान्तर में सर्पिल नीहारिका का ऊपरी भाग ठंडा होकर आंतरिक भाग से अलग हो गया और एक पिंड के रूप में सिकुड़ गया। इसी नीहारिका से पृथ्वी सहित सौरमंडल के अन्य ग्रहों की उत्पत्ति हुई। इस प्रक्रिया में नीहारिका के विभिन्न भागों ने विभिन्न ग्रहों और उपग्रहों का निर्माण किया, जिनमें से प्रत्येक का अपना विशिष्ट वातावरण और संरचना है।
निष्कर्ष
लॉकियर की उल्का परिकल्पना लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना का ही परिवर्तित रूप है। इसलिए, लाप्लेस की परिकल्पना के संबंध में उठाई गई सभी आपत्तियां इस परिकल्पना पर भी लागू होती हैं। हालांकि, लॉकियर की परिकल्पना ने उल्का पिंडों के महत्व को उजागर किया और उनके अध्ययन को बढ़ावा दिया, जिससे हमें सौरमंडल की उत्पत्ति और विकास के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त हुई।
Test Your Knowledge with MCQs
प्रश्न 1: लॉकियर की उल्का परिकल्पना के अनुसार सौरमंडल की उत्पत्ति किससे हुई?
A) गैसीय नीहारिका
B) उल्का पिंडों के टकराव
C) धूल और गैस के बादलों
D) विशाल तारों के विस्फोट
प्रश्न 2: लॉकियर की उल्का परिकल्पना को किस वैज्ञानिक ने प्रस्तुत किया था?
A) चार्ल्स डार्विन
B) अल्बर्ट आइंस्टीन
C) नॉर्मन लॉकियर
D) इसाक न्यूटन
प्रश्न 3: लॉकियर की परिकल्पना में वायव्य महापिंड किसके कारण बना?
A) उल्का पिंडों के पिघलने से
B) उल्का पिंडों के आपसी टकराव से
C) गैस और धूल के संघनन से
D) तारों के विस्फोट से
प्रश्न 4: लॉकियर की परिकल्पना के अनुसार सर्पिल नीहारिका का निर्माण किस प्रक्रिया से हुआ?
A) ठंडा होने से
B) घूर्णन से
C) विस्फोट से
D) संघनन से
प्रश्न 5: लॉकियर की उल्का परिकल्पना का संबंध किस सिद्धांत से है?
A) प्लेट टेक्टोनिक्स
B) लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना
C) बिग बैंग थ्योरी
D) क्वांटम थ्योरी
प्रश्न 6: लॉकियर की परिकल्पना के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति किससे हुई?
A) सर्पिल नीहारिका के ठंडा होने से
B) उल्का पिंडों के संघनन से
C) धूल के बादलों के संघनन से
D) तारों के विस्फोट से
प्रश्न 7: लॉकियर की उल्का परिकल्पना का मुख्य बिंदु क्या है?
A) उल्का पिंडों का विस्फोट
B) उल्का पिंडों का आपसी टकराव
C) गैसों का संघनन
D) तारों का गठन
प्रश्न 8: लॉकियर की परिकल्पना को किसने प्रेरित किया?
A) लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना
B) प्लेट टेक्टोनिक्स
C) बिग बैंग थ्योरी
D) न्यूटन की ग्रेविटी थ्योरी
प्रश्न 9: लॉकियर की परिकल्पना के अनुसार, उल्का पिंडों के टकराव से क्या उत्पन्न हुआ?
A) धूल और गैस
B) ताप, प्रकाश, और गैस
C) केवल गैस
D) केवल प्रकाश
प्रश्न 10: लॉकियर की उल्का परिकल्पना में वायव्य महापिंड किस प्रक्रिया के कारण बना?
A) संघनन
B) घूर्णन
C) आपसी टकराव
D) ठंडा होना
उत्तर:
- B) उल्का पिंडों के टकराव
- C) नॉर्मन लॉकियर
- B) उल्का पिंडों के आपसी टकराव से
- B) घूर्णन से
- B) लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना
- A) सर्पिल नीहारिका के ठंडा होने से
- B) उल्का पिंडों का आपसी टकराव
- A) लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना
- B) ताप, प्रकाश, और गैस
- C) आपसी टकराव
FAQs
लॉकियर की उल्का परिकल्पना ब्रिटिश वैज्ञानिक नॉर्मन लॉकियर द्वारा प्रस्तुत की गई थी। इस सिद्धांत के अनुसार, सौरमंडल की उत्पत्ति विशाल उल्का पिंडों के आपसी टकराव से हुई। इस टकराव से उत्पन्न ऊर्जा ने द्रव और गैस में परिवर्तित होकर वायव्य महापिंड का निर्माण किया, जिसने आगे चलकर सर्पिल नीहारिका का रूप धारण किया। इसी नीहारिका से पृथ्वी सहित सौरमंडल के अन्य ग्रहों का गठन हुआ। यह परिकल्पना लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना का एक संशोधित रूप मानी जाती है।
लॉकियर की उल्का परिकल्पना लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना पर आधारित है। हालांकि, इसमें कुछ संशोधन किए गए हैं, जिसमें उल्काओं के आपसी टकराव और उनके परिणामस्वरूप बने वायव्य महापिंड और सर्पिल नीहारिका की भूमिका को प्रमुखता दी गई है। यह सिद्धांत सौरमंडल के ग्रहों के गठन और विकास को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
लॉकियर की उल्का परिकल्पना पर कई आपत्तियां उठाई गई हैं, जो लाप्लेस की नीहारिका परिकल्पना से मिलती-जुलती हैं। इनमें ग्रहों के आकार, घूर्णन गति, और कोणीय संवेग से संबंधित समस्याएं शामिल हैं। इसके अलावा, इस परिकल्पना में स्पष्ट नहीं किया गया कि उल्का पिंडों के टकराव से उत्पन्न ऊर्जा ग्रहों के गठन के लिए कैसे पर्याप्त हो सकती है। इन आपत्तियों के बावजूद, यह सिद्धांत खगोल विज्ञान में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।