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प्रदेश की संकल्पना (Concept of Region)

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प्रदेश की संकल्पना (Concept of Region)

भौगोलिक अध्ययन की दो प्रधान विधियां हैं- क्रमबद्ध विधि और प्रादेशिक विधि। इसके आधार पर ही भूगोल को क्रमबद्ध भूगोल (Systematic geography) और प्रादेशिक भूगोल (Regional geography) दो वर्गो में बाँटा जाता है।

प्रदेश का अर्थ (Meaning of Region)

प्रदेश एक क्षेत्रीय इकाई होता है जिसके अंतर्गत विशिष्ट अथवा समान लक्षण (unique or similar character) पाए जाते हैं। अपने विशिष्ट अभिलक्षणों के कारण यह अन्य भूभागों से भिन्न  होता है। एक प्रदेश के अंतर्गत किसी एक या अनेक तत्वों की समानता पाई जाती है। विभाजन के किसी निश्चित आधार पर जितनी दूरी तक समानता या समरूपता पाई जाती है उसे एक प्रदेश के अंतर्गत शामिल किया जाता है। इस प्रकार एक प्रदेश की विशेषताएं दूसरे प्रदेश से भिन्न होती हैं। 

अमेरिकी भूगोलवेत्ता डी. ह्वीटलसी ने बताया कि प्रदेश में कम से कम 16 विषयों या उपादानों (topics) का अध्ययन किया जाता है और इनके आधार पर प्रदेश का सीमांकन किया जा सकता है। अपने भौगोलिक शब्दकोश में मोंकहाउस ने प्रदेश की परिभाषा इस प्रकार की है- ‘पृथ्वी तल का वह इकाई क्षेत्र जो अपने विशिष्ट अभिलक्षणों के कारण अपने समीपवर्ती अन्य इकाई क्षेत्रों से भिन्न समझा जाता है, प्रदेश कहलाता है।’ 

डी. ह्वीटलसी के अनुसार प्रदेश के जितने उपादान (विषय) हैं उतने प्रकार के प्रदेश हो सकते हैं तथा उनके पारस्परिक सहसंबंधों के आधार पर भी प्रदेश की कल्पना की जा सकती है। 

इस प्रकार विषय या उपादानों (topics) के आधार पर प्रदेश की चार श्रेणियां बनाईजा सकती है- 

1. एकल विषय प्रदेश (Single topic region): एक तत्व की समानता के आधार पर सीमांकित प्रदेश को एकल विषय प्रदेश कहते हैं जैसे मृदा प्रदेश, वनस्पति प्रदेश, भाषा प्रदेश आदि। 

2. बहुल विषय प्रदेश (Multiple topic region); कई तत्वों की संयुक्त समानता के अनुसार निर्धारित प्रदेश बहुल विषय प्रदेश कहलाते हैं जैसे प्राकृतिक प्रदेश, आर्थिक प्रदेश, जलवायु प्रदेश आदि।

3. सम्पूर्ण विषय प्रदेश (Total topic region): यदि किसी भूभाग में समस्त 16 तत्व किसी दूसरे भूभाग के उन्हीं तत्वों से क्रमशः मिलते हैं तो ऐसे प्रदेश को सम्पूर्ण विषय प्रदेश कहते हैं।

4. विशिष्ट प्रदेश या कम्पेज (Compage): ह्रीटलसी ने कई तत्वों की समानता पर आधारित प्रदेश को ‘कम्पेज’ कहा है जिसमें तत्वों का क्रम और संख्या परिवर्तनीय होती है। इसमें सभी तत्वों या विषयों का महत्व समान नहीं होता है और इसके निर्धारण में व्यक्तिनिष्ठता सर्वाधिक पाई जाती है। कम्पेज बहुल विषय प्रदेश और सम्पूर्ण विषय प्रदेश के मध्य की स्थिति है जिसमें तत्वों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है।  | 

प्रदेशों के प्रकार (Types of Regions)

प्रदेशों को दो बृहत् वर्गों में विभक्त किया जा सकता है- 

(1) जननिक प्रदेश (Generic region), और (2) विशिष्ट प्रदेश (Specific region) । 

types of region
प्रदेशों के प्रकार

जननिक प्रदेशों का वितरण भूतल के अनेक भागों में पाया जाता है जबकि विशिष्ट प्रदेश अकेला होता है जिसके अन्य उदाहरण नहीं मिलते हैं। समान अभिलक्षणों तथा स्थानिक कार्यात्मक सम्बंधों के अनुसार जननिक प्रदेश मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- (1) समरूप या लाक्षणिक प्रदेश (formal region), और (2) कार्यात्मक प्रदेश (Functional region) |

समरूप या लाक्षणिक प्रदेश (Formal region)

इसके अंतर्गत एक या कई अभिलक्षणों या विषयों की समरूपता (समानता) पाई जाती है। ऐसे प्रदेश भूमंडल पर कई जगह स्थित होते हैं। पर्वतीय प्रदेश, सागर तटीय प्रदेश, जलवायु प्रदेश, प्राकृतिक प्रदेश, कृषि प्रदेश, औद्योगिक प्रदेश, आर्थिक प्रदेश, सांस्कृतिक प्रदेश आदि समरूप प्रदेश के उदाहरण हैं। 

प्रमुख समरूप प्रदेश निम्नांकित हैं – 

भौतिक प्रदेश (Physiographic Region)

भौतिक प्रदेशों का सीमांकन सामान्यतः उच्चावच (relief) के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार के प्रदेशों के निर्धारण में उच्चावच एक अत्यंत महत्वपूर्ण आधार रहा है किन्तु वर्तमान काल में यह विवादपूर्ण है और यह भी मान्य है कि भौतिक प्रदेश के निर्धारण में उच्चावच के साथ संरचना (structure) और अपवाह (drainage) को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। 

अतः आज भौतिक प्रदेशों का वर्गीकरण या सीमांकन सामान्यतः उच्चावच, संरचना और अपवाह के संयुक्त आधार पर किया जाता है। पर्वतीय प्रदेश, पठारी प्रदेश, मैदानी प्रदेश, अन्तर्पर्वतीय प्रदेश आदि भौतिक प्रदेश के उदाहरण हैं। 

प्राकृतिक प्रदेश (Natural Region)

प्राकृतिक प्रदेश के अंतर्गत विभिन्न प्राकृतिक तत्वों की समानता पाई जाती है। इसकी सीमा के भीतर उच्चावच, संरचना, जलवायु, मृदा, प्राकृतिक बनस्पति तथा जीव-जन्तु जैसे प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षाकृत् अधिक एकरूपता (uniformity) पाई जाती है और इसके परिणामस्वरूप प्रायः मानव जीवन एवं मानवीय क्रियाओं में भी समानता मिलती है। 

प्राकृतिक प्रदेशों के निर्धारण में जलवायु सर्वाधिक प्रभावशाली कारक होती है जिसके कारण अधिकांश प्राकृतिक प्रदेश जलवायु प्रदेश के अनुरूप पाए जाते हैं। प्राकृतिक प्रदेश संकल्पना का प्रतिपादन ब्रिटिश भूगोलवेत्ता ए. जे. हरबर्टसन (A. J. Herbertson) ने 1905 में किया था। उन्होंने मिश्रित प्राकृतिक तत्वों के आधार पर विश्व को बृहत् प्राकृतिक प्रदेशों में विभक्त किया। 

हरबर्टसन ने सम्पूर्ण भूमंडल को 15 बृहत् भागों (प्राकृतिक प्रदेशों) में विभक्त किया और उन्होंने यह भी दर्शाने का प्रयास किया कि भिन्न प्रकार की जलवायु वाले भूभागों में निवास करने वाले मनुष्यों की क्रियाएं, जीवन के ढंग, सभ्यताएं बिल्कुल भिन्न होंगी किन्तु यह यथार्थ नहीं प्रतीत होता है। 

आर्थिक प्रदेश (Economic Region)

आर्थिक प्रदेश का निर्धारण आर्थिक तत्वों की समानता के आधार पर होता है। आर्थिक तत्वों में विविधता पाई जाती है। इसमें प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधन, आर्थिक वस्तुएं, आर्थिक क्रियाएं (प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक आदि), मानव का आर्थिक व्यवहार, आर्थिक नीति, आर्थिक नियोजन आदि तत्व सम्मिलित होते हैं। भूगोल में अधिकांशतः आर्थिक क्रियाओं तथा आर्थिक वस्तुओं (उत्पादों) को ही प्रादेशिक विधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। 

संसाधन प्रदेश, औद्योगिक प्रदेश, कृषि प्रदेश, भूमि उद्योग प्रदेश, नियोजन प्रदेश, शस्य संयोजन प्रदेश आदि आर्थिक प्रदेश के दृष्टांत हैं। आर्थिक प्रदेश के अंतर्गत समस्त प्रमुख आर्थिक तत्वों के समिश्र समन्वय (Complex integration) की क्षेत्रीय अभिव्यक्ति होनी चाहिए। अतः एक आर्थिक प्रदेश में समस्त आर्थिक तत्वों की समरूपता या एकरूपता होनी चाहिए। 

सांस्कृतिक प्रदेश (Cultural Region)

सांस्कृतिक प्रदेश के अंतर्गत सांस्कृतिक तत्वों की समांगता (homogeneity) पाई जाती है। सांस्कृतिक प्रदेश के विचार का उद्भव सांस्कृतिक भूदृश्य की संकल्पना से हुआ है जिसमें वे सभी भौगोलिक तत्व या कारक सम्मिलित होते हैं जिनकी उत्पत्ति या तो मनुष्य द्वारा हुई है अथवा जो मनुष्य द्वारा किसी न किसी रूप में प्रभावित हैं। अतः सांस्कृतिक या मानवीय तत्वों की समरूपता के आधार पर निर्धारित प्रदेश को सांस्कृतिक प्रदेश कहा जाता है। 

सांस्कृतिक तत्वों (प्रजाति, धर्म, भाषा, मानव जीवन, दर्शन, प्रथा आदि) की समरूपता के आधार पर निर्धारित प्रदेश को सांस्कृतिक प्रदेश कहा जाता है। इस अर्थ में सांस्कृतिक प्रदेश के तीन प्रमुख पदानुक्रम होते हैं – 

(अ) बृहत् सांस्कृतिक प्रदेश (Macro cultural region) या सांस्कृतिक मण्डल (Cultural world)

(ब) मध्यम सांस्कृतिक प्रदेश (Meso cultural region) या सांस्कृतिक परिमंडल (Cultural realm)

(स) लघु सांस्कृतिक प्रदेश (Micro cultural region) या सांस्कृतिक क्षेत्र या प्रदेश (Cultural area or region) I (v) भौगोलिक प्रदेश (Geographical Region)

भूमंडल का वह भाग जिसके अंतर्गत सम्पूर्ण या अधिकांश भौगोलिक दशाओं (तत्वों) में समानता (समरूपता) पाई जाती है, भौगोलिक प्रदेश कहलाता है। इसका प्रयोग प्राकृतिक प्रदेश (Natural region) के पर्यायवाची के रूप में भी किया जाता है। वास्तव में प्रदेश की उत्पत्ति ही भौगोलिक होती है। विभिन्न भौगोलिक उपादानों (topics) के आधार पर वर्गीकृत प्रदेशों की अपनी-अपनी विशेषताएं होती हैं। किन्तु समस्त भौगोलिक तत्वों में एकरूपता या समरूपता का विचार कल्पना मात्र है। 

कुछ भूगोलवेत्ता मानते हैं कि भूगोल के किसी तत्व या उपादान की समानता के आधार पर निर्मित प्रदेश को भौगोलिक प्रदेश कहा जा सकता है। अन्य विद्वानों के अनुसार भूगोल के अंतर्सम्बंधित कुछ निश्चित तत्वों (उपादानों) के आधार पर विभाजित प्रदेश को भौगोलिक प्रदेश कहा जायेगा। कुछ भूगोलवेत्ताओं के विचार से सांस्कृतिक भूदृश्य के आधार पर सीमांकित प्रदेश को भौगोलिक प्रदेश माना जाना चाहिए। सर्वाधिक मान्य विचार के अनुसार भौगोलिक प्रदेश का प्रयोग ऐसे प्राकृतिक प्रदेश के लिए किया जा सकता है जिसके अंतर्गत प्राकृतिक और मानवीय सभी प्रकार की भौगोलिक दशाओं की समरूपता पायी जाती है। 

कार्यात्मक या कर्मोपलक्षी प्रदेश (Functional Region)

कार्यात्मक प्रदेश के अंतर्गत कार्यात्मक संगठन की एकरूपता पाई जाती है तथा इसके समस्त भागों में पारस्परिक कार्यात्मक निर्भरता पाई जाती है। इस प्रकार के प्रदेश में केन्द्रीयता (Centrality) की उपस्थिति अनिवार्य होती है और समस्त प्रदेश एक केन्द्रीय स्थिति के चतुर्दिक फैला होता है। इसे केन्द्र आधारित प्रदेश (nodal region), संगठनात्मक प्रदेश (organizational region) आदि नामों से भी जाना जाता है। नगर प्रदेश (city region) या नगरीय प्रभाव क्षेत्र (umland), बाजार क्षेत्र (market area), बन्दरगाहों के पृष्ठ प्रदेश (hinterland) आदि कार्यात्मक प्रदेश के उदाहरण हैं। 

सामान्यतः किसी केन्द्रस्थल, नगर या समुद्रपत्तन और उसके आस-पास के क्षेत्रों के मध्य विभिन्न कार्यात्मक सम्बंधों के आधार पर ऐसे (कार्यात्मक) प्रदेशों का निर्धारण होता है। नगर में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति इस क्षेत्र में होती है और इसके बदले प्रभाव क्षेत्र से खाद्यान्न, शाक-सब्जी, दूध एवं दूध से निर्मित वस्तुएं, कच्चे माल, श्रम आदि की आपूर्ति नगर को होती है। इस प्रकार नगर या केन्द्रस्थल और उसके परिक्षेत्र (प्रभाव क्षेत्र) के मध्य परस्पर निर्भरता पायी जाती है और सम्पूर्ण प्रदेश कार्यात्मक रूप से अंतर्सम्बंधित होता हैं।

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