Estimated reading time: 5 minutes
Table of contents
मृदा विज्ञान (pedology) के विकास तथा मिट्टियों के वर्गीकरण का सर्वप्रथम प्रयास रूसी वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था। रूसी भूवैज्ञानिक V. V. Dokuchaev ने किसी भी प्रदेश की मिट्टियों के विकास तथा उस प्रदेश की जलवायु एवं वनस्पतियों के बीच गहरा सम्बन्ध बताया है। प्रसिद्ध अमेरिकी विज्ञानी सी० यफ० मारबुत ने 1938 में ‘मृदा वर्गीकरण के व्यापक तंत्र की योजना’ (Scheme of Comprehensive System of Soil Classification) प्रस्तुत की। इस योजना को USDA SYSTEM (USDA United States Department of Agriculture) कहा जाता है क्योंकि मिट्टियों के वर्गीकरण की इस योजना का निर्माण अमेरिकी कृषि विभाग के तत्वावधान में किया गया था।
मिट्टियों का USDA SYSTEM आधारित वर्गीकरण (USDA SYSTEM of Soils’ Classification)
इस वर्गीकरण में मिट्टियों को मोटे तौर पर 3 श्रेणियों (orders) में बाँटा गया है
(i) मण्डलीय या प्रादेशिक मिट्टियाँ
(ii) अन्त: प्रदेशीय मिट्टियाँ
(iii) अमण्डलीय या अप्रादेशिक मिट्टियाँ
नोट: 1960 में अमेरिकी मृदाविज्ञानियों ने मिट्टियों के वर्गीकरण की एक नई योजना दी थी, जिसे ‘व्यापक मृदा वर्गीकरण तंत्र’ (Comprehensive Soil Classification System-CSCS) के नाम से जाना जाता है। मृदा वर्गीकरण की इस योजना को मूल रूप से ‘सातवां अनुमान’ (Seventh Approximation) कहा गया था क्योंकि 1950 के बाद से मिट्टियों के वर्गीकरण में किया जाने वाला यह सातवां संशोधन था । |
मण्डलीय या प्रादेशिक मिट्टियाँ (Zonal Soils)
मण्डलीय मिट्टियों में पूर्ण रूप से विकसित एवं प्रौढ़ मिट्टियों को शामिल किया जाता है। इनका निर्माण सुप्रवाहित (well drained) दशाओं में लम्बे समय तक किसी स्थान विशेष की वनस्पति तथा जलवायु के बीच पारस्परिक क्रियाओं के परिणामस्वरूप होता है। मण्डलीय मिट्टियों में मृदा परिच्छेदिका के प्रायः सभी संस्तरों (horizons) का विकास हो चुका होता है, लेकिन मृदा संस्तरों की संख्या तथा उनकी विशेषताएँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर अलग-2 हो सकती हैं। ऐसा स्थान विशेष की पर्यावरणीय दशाओं तथा मानव हस्तक्षेपों की मात्रा के कारण हो सकता है।
इनको भी पढ़ें 1. मृदा अपरदन के प्रकार एवं कारण 2. मृदा: परिभाषा, निर्माण, घटक एवं परिच्छेदिका |
मण्डलीय मृदा श्रेणी के अन्तर्गत 6 उपश्रेणियों (suborders) तथा 21 वृहद् मृदावर्गों (great soil groups) का निर्धारण किया गया है, जो इस प्रकार हैं
मृदा की उपश्रेणी | बृहद मृदा वर्ग |
I. शीत मण्डल की मिट्टियाँ | 1. टुण्ड्रा मिट्टियाँ |
II. शुष्क, प्रदेशों की हल्के रंग की मिट्टियाँ | 2. रेगिस्तानी मिट्टियाँ 3. रेगिस्तानी लाल मिट्टियाँ 4. सायरोजेम 5. भूरी मिट्टियाँ 6. लाल भूरी मिट्टियाँ |
III. अर्द्धशुष्क, अर्द्ध आर्द्र तथा आर्द्र घास क्षेत्रों की गहरे रंग की मिट्टियाँ | 7. चेस्टनट मिट्टियाँ 8. लाल चेस्टनट मिट्टियाँ 9. चरनोजम मिट्टियाँ 10. प्रेयरी मिट्टियाँ 11. प्रेयरी लाल मिट्टियाँ |
IV. वन, घास क्षेत्रों एवं आवान्तर क्षेत्रों की मिट्टियाँ | 12. अवक्रमित (degraded) चरनोजम मिट्टियाँ 13. कैलसियम रहित भूरी या शांटुंग भूरी मिट्टियाँ |
V. वनाच्छादित प्रदेशों की हल्के रंग वाली पाडजॉल मिट्टियाँ | 14. पाडजॉल मिट्टियाँ 15. भूरी पाडजॉल मिट्टियाँ 16. धूसर भूरी (gray brown) पाडजॉल मिट्टियाँ |
VI वनाच्छादित उपोष्ण एवं उष्ण प्रदेशों की लेटराइट मिट्टियाँ | 17. पीली पाडजॉल मिट्टियाँ 18. लाल पाडजॉल मिट्टियाँ (टेरारोसा) 19. पीली-भूरी लेटराइट मिट्टियाँ 20. लाल-भूरी लेटराइट मिट्टियाँ 21. लेटराइट मिट्टियाँ |
अन्तः मण्डलीय या अन्तः प्रादेशिक मिट्टियाँ (intrazonal soils)
इस मिट्टियों उत्पत्ति उन क्षेत्रों में होती है जहाँ पर निचले भागों में जलभराव (waterlogging) रहता है तथा जल के निकास की उचित व्यवस्था नहीं होती है। अतः ये मिट्टियाँ कुप्रवाहित (poorly drained) होती हैं। इस श्रेणी की मिट्टियों को 3 उपश्रेणियों तथा 12 वृहद् मृदा समूहों में बाँटा गया है
मृदा की उपश्रेणी | बृहद मृदा वर्ग |
I. शुष्क प्रदेशों एवं सागर तटीय जमावों के क्षेत्रों की अपूर्ण प्रवाहित (imperfectly drained) लवणीय मिट्टियाँ | 1. लवण मिट्टियाँ 2. क्षार मिट्टियाँ 3. सोलोथ मिट्टियाँ |
II. दलदली क्षेत्रों की मिट्टियाँ | 4. चरागाह / बांगर मिट्टियाँ 5. अल्पाइन चरागाह मिट्टियाँ 6. बॉग मिट्टियाँ 7. अर्द्ध बॉग मिट्टियाँ 8. प्लानोसॉल 9. भूमिगत जल पाडजाल मिट्टियाँ 10. भूमिगत जल लेटराइट मिट्टियाँ |
III. कैलसियम युक्त मिट्टियाँ | 11. भूरी वन मिट्टियाँ 12. रेण्डजिना मिट्टियाँ |
अमण्डलीय / अप्रादेशिक मिट्टियाँ (azonal soils)
अमण्डलीय मिट्टियों में मृदा परिच्छेदिका की ऊपरी सतह से लेकर निचली सतह तक मिट्टियों की रचना वव गुणों में समानता देखने को मिलती है। अर्थात् इन मिट्टियों में संस्तरों (soil horizons) का पूर्ण विकास नहीं होता है। इसके निम्न कारण हैं –
(अ) पर्याप्त समय का अभाव
(ब) ढलवा सतह या धरातल
(स) हर साल नए पदार्थों के जमाव के कारण मिट्टियों का सतत नवीनीकरण होना जैसे – जलोढ़ मैदानी प्रदेशों में बाढ़ के कारण हर वर्ष नई कांप / जलोढ़ का जमाव होता रहता है।
इस श्रेणी में 3 वृहद् मृदा समूहों का निर्धारण किया गया है
1. लिथोसॉल
2. जलोढ़ / कांप मिट्टियाँ
3. रेतीली मिट्टियाँ
USDA योजना के दोष या कमियाँ
- USDA योजना प्रमुख रूप से अमेरिकी अनुभवों एवं उदाहरणों पर ही आधारित है।
- विश्व के विभिन्न भागों में प्रादेशिक तथा स्थानीय स्तरों पर मिट्टियों के शोध कार्यों के परिणामस्वरूप मिट्टियों से सम्बन्धित नई सूचनाएँ व आंकड़े उपलब्ध होने के बावजूद (1938 के बाद) उनका इस योजना में उपयोग नहीं किया गया।
- USDA योजना में उष्ण कटिबन्धी मिट्टियों को भली भाँति शामिल नहीं किया गया।
- यह योजना मिट्टियों के गुणों तथा जलवायु की भूमिका के बीच सम्बन्धों की ऐसी मान्यताओं एवं स्वयं सिद्ध तथ्यों (axioms) पर आधारित है जिनके सत्यापन के लिए ठोस प्रमाण एवं उदाहरण सुलभ नहीं हैं।
- USDA वर्गीकरण में प्रयुक्त शब्दावलियों को भली भाँति परिभाषित नहीं किया गया है।
- इस वर्गीकरण के अन्तर्गत अछूती (virgin) या अविक्षुब्ध (undisturbed) मिट्टियों पर अधिक ध्यान दिया गया है।
Reference
- भौतिक भूगोल, डॉ. सविन्द्र सिंह
You May Also Like
- भारत में मृदा का वर्गीकरण (Classification of Soils in India)
- Classification of Indian Soils
- मृदा: परिभाषा, निर्माण, घटक एवं परिच्छेदिका (Soil: Definition, Formation, Components and Profile)
- Understanding Earth’s Four Spheres: A Unique and Interconnected System
- मृदा अपरदन के प्रकार व कारण (Types and Causes of Soil Erosion)