Estimated reading time: 4 minutes
Table of contents
भ्रंश के विभिन्न प्रकारों को जानने से पहले हमें भ्रंश का अर्थ एवं उससे संबंधित कुछ शब्दावली को जानना होगा, ताकि भ्रंश के प्रकारों को भलीभांति समझ सकें। उसके लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।
भ्रंश का अर्थ एवं उससे संबंधित शब्दावली
आइए अब भ्रंश के विभिन्न प्रकारों के बारे में जानते हैं।
भ्रंश के प्रकार (types of faults)
सामान्य भ्रंश (normal fault)
सामान्य भ्रंश (Normal Fault) का निर्माण तनाव बल के कारण होता है। चट्टानों में तनाव बल के कारण दरार पड़ जाने से उसके दोनों खण्ड जब विपरीत दिशाओं में खिसक जाते हैं और उनके मध्य की दूरी बढ़ जाती है। जिससे सामान्य भ्रंश का निर्माण होता है। इस प्रकार सामान्य भ्रंश से भू-पटल में प्रसार होता है। सामान्य भ्रंश वाले भ्रंश तल (fault plane) लम्बवत् या खड़े ढाल वाले होते हैं।
सामान्य भ्रंश के कारण बनने वाले खड़े ढाल वाले कगार को भ्रंश कगार (fault scarp) कहा जाता है। भ्रंश कगार की ऊंचाई कुछ मीटर से लेकर हजार मीटर तक होती है। लेकिन इस प्रकार बने कगार की वास्तविक ऊंचाई का पता लगाना मुश्किल होता है, क्योंकि समय के साथ उसमें अपरदन द्वारा ह्रास हो जाता है।
व्युत्क्रम भ्रंश (reverse fault)
व्युत्क्रम भ्रंश संपीडन के कारण बनते हैं। संपीडन के कारण बनने वाले दबाव से दरार के दोनों ओर के चट्टानी खण्ड एक दूसरे की ओर खिसकने लगते हैं तथा वे एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाते हैं। इस क्रिया को उत्क्रम (thrust) कहा जाता है। और इस प्रकार निर्मित भ्रंश व्युत्क्रम भ्रंश कहलाता है। इसे आरूढ़ भ्रंश या क्षेपित भ्रंश (Thrust Fault) भी कहा जाता है। इसमें सतह का फैलाव पहले की तुलना में घट जाता है। इस तरह के भ्रंश में शीर्ष भित्ति या निलम्बी दीवार (hanging wall) भ्रंश तल के ऊपर की ओर चढ़ जाती है अर्थात् शीर्ष भित्ति ऊपरी खण्ड के साथ ऊपर की ओर होती है। भ्रंश तल का ढाल सामान्य होता है।
क्योंकि इस भ्रंश का निर्माण संपीडन से उत्पन्न बल के कारण होता है, अत: इसे संपीडनात्मक भ्रंश (compressional fault) भी कहा जाता है। जब कभी संपीडन अधिक होता है तो भ्रंश का एक खण्ड दूसरे पर चढ़ जाता है। इस तरह के भ्रंश को अधिक्षिप्त भ्रंश (overthrust fault) कहते हैं। इसमें भ्रंश तल प्रायः क्षैतिज रहता है।
उपर्युक्त दोनों भ्रंशों के द्वारा कगारों (Escarpments) का निर्माण होता है, जिसके सहारे लटकती घाटी एवं जलप्रपातों का भी विकास होता है। उदाहरण के लिए पश्चिमी घाट कगार एवं विंध्यन कगार क्षेत्र में ऐसा देखा जा सकता है।
पाश्र्व या नतिलम्बी सर्पण भ्रंश (transcurrent or strike-slip fault)
जब कभी किसी स्थलीय भाग की चट्टानों पर दो विपरीत दिशाओं से दबाव पड़ता है तो दोनों ओर के भू-खंड भ्रंश तल के सहारे धँसने या ऊपर उठने के बजाए आगे-पीछे खिसते हैं। इस प्रकार के भ्रंश को ट्रांसकरेन्ट भ्रंश या ‘नतिलम्बी भ्रंश’ (Transcurrent or Strike-Slip Fault) कहा जाता है। इस प्रकार के भ्रंशों में कगार (Scarp) नहीं बनते और यदि बनते भी हैं तो वे बहुत ही कम ऊँचे होते हैं। कैलिफोर्निया के सान एंड्रियास भ्रंश का निर्माण इसी प्रकार हुआ है। हिमालय के गढ़वाल व उत्तरकाशी क्षेत्र में भी ऐसे भ्रंश देखने को मिलते हैं।
जब चट्टानी खण्ड का खिसकाव भ्रंश तल की बांयी ओर होता है तो उसे वाम पार्श्ववर्ती (left lateral) या सिनिस्ट्रल भ्रंश कहते हैं तथा चट्टानी खण्ड का जब स्थानान्तरण भ्रंश तल के दायीं ओर होता है तो उसे दक्षिण पाश्ववर्ती भ्रंश (right lateral fault) या डेक्सट्रल भ्रंश कहते हैं।
सोपानी भ्रंश (step fault)
जब किसी क्षेत्र में एक-दूसरे के समानांतर अनेक भ्रंश होते हैं एवं सभी भ्रंश तलों की ढाल एक ही दिशा में होती है, तो वे सीढ़ियों जैसे दिखाई देते हैं, जिन्हें सोपानी भ्रंश कहते हैं। यूरोप की राइन घाटी सोपानी भ्रंशों पर ही स्थित है। इस तरह के भ्रंश के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि भ्रंश द्वारा अधः क्षेपित खंड का अधोगमन एक ही दिशा में हो।
References
- भौतिक भूगोल, डॉ. सविंद्र सिंह
- भूआकृतिक विज्ञान, बी. सी. जाट
- भूगोल, डी. आर. खुल्लर
4 Responses
Bahut acha hai