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मृदा अपरदन के प्रकार व कारण (Types and Causes of Soil Erosion)

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जब जल या वायु के प्रभाव में आकर मृदा की ऊपरी परत कटकर हब जाती है, तो इसे मृदा अपरदन कहते हैं। मृदा का अपरदन  उन इलाकों में अधिक होता है, जहाँ धरातल वनस्पतिहीन तथा खड़े ढाल वाला होता है।

मृदा अपरदन के प्रकार (Types of Soil Erosion)

1. परतदार अपरदन (Layer or Sheets Erosion) 2. रिल या क्षुद्र सरिता (Rill) अपरदन 3. नालीदार अपरदन (Gully Erosion)

1. परतदार अपरदन (Layer or Sheet Erosion)

जब मृदा की ऊपरी परत को जल बहा ले जाए या वायु उड़ा ले जाए तो उसे परतदार अपरदन कहते हैं। यह अपरदन उन क्षेत्रों में अधिक होता है जहाँ भूमि सामान्य ढाल वाली एवं वर्षा बौछारों के रूप में हो या वनस्पति का अभाव हो। यह क्रिया मुख्य रूप से राजस्थान, पंजाब तथा हरियाणा के दक्षिण-पश्चिमी भागों में तथा हिमालय क्षेत्रों में होती है। यह क्रिया धीमी गति से होती है, जिसका मानव को आसानी से आभास नहीं हो पाता। हालांकि इससे एक बहुत बड़े भू-खण्ड की उपजाऊ मृदा नष्ट हो जाती है।

2. रिल या क्षुद्र सरिता (Rill) अपरदन 

इस प्रकार के अपरदन में मृदा की ऊपरी सतह पर जल के प्रवाह द्वारा ऊंगलियों-जैसे (finger-shaped) गढ्ढों का निर्माण हो जाता है।

3. नालीदार अपरदन (Gully Erosion)

खड़े ढाल तथा भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में तेज गति से बहता हुआ जल जब मिट्टी को काटकर करके नालियाँ बना लेता है तो उसे  नालीदार अपरदन कहते हैं। कभी-कभी ये नालियाँ इतना विकराल धारण कर लेती है कि मृदा सदा के लिए कृषि के अयोग्य हो जाती है। चम्बल नदी की घाटी में इस प्रकार का अपरदन देखने को मिलता है।

अपरदन के कारण (Causes of Erosion)

मृदा अपरदन के कई भौतिक तथा मानवीय कारण हैं। जिनमें से प्रमुखनिम्नलिखित है।

(क) भौतिक कारक (Physical Factors)

1. नदी

नदी तीन प्रकार से मृदा अपरदन करती है।

(क) नदी कटाव द्वारा खड्ड बनाती है। चम्बल तथा यमुना के कछार प्रदेशों में इसके उदाहरण देखने को मिलते हैं। 

(ख) जब नदी अपना रास्ता बदलती है तो आस-पास के इलाके में मृदा अपरदन करती है। कोसी नदी ने कई बार अपना रास्ता बदला है।

(ग) बाढ़ के समय नदी का पानी दूर-दूर तक फैल जाता है तथा मृदा की परत को बहाकर ले जाता है। 

2. मूसलाधार वर्षा 

जब मूसलाधार वर्षा होती है, तब वर्षा का जल तेज गति से धरातल पर बहने लगता है और मृदा का अपरदन करता है।

3. भूमि का ढाल 

समतल भूमि पर अपरदन कम होता है, परन्तु खड़े ढाल वाली भूमि पर अपरदन अत्यधिक होता है। 

4.वायु

शुष्क वनस्पतिहीन मरुस्थलीय प्रदेशों में वायु मृदा अपरदन का सबसे बड़ा कारण है। वायु द्वारा मृदा अपरदन वायु की गति पर निर्भर करता है। तेज चलने वाली वायु अधिक मात्रा में अपरदन करती है। राजस्थान में वायु द्वारा अपरदन होता है। 

5. समुद्री लहरें 

तटीय भागों में समुद्र से ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं और तटवर्ती क्षेत्रों में मृदा अपरदन करती हैं। जब कभी समुद्र में चक्रवात बनता है तो वह तट पर आकार बड़े पैमाने पर मृदा अपरदन करता है। तट के निकट होने वाले मृदा अपरदन को तटीय अपरदन भी कहते हैं। उड़ीसा, पश्चिम बंगाल तथा केरल के तट पर तटीय अपरदन विशेष रूप से देखने को मिलता है। 

6. हिमनदी 

हिमालय के ऊंचे पर्वतों में बर्फ गिरती है और वह ढलान के साथ हिमनदी के रूप में बहती है। आगे बढ़ती हुई हिमनदी बड़े पैमाने पर मृदा अपरदन करती है।

(ख) मानवीय कारक (Human Factors)

1. वनस्पति का नाश 

पेड़-पौधों की जड़े मिट्टी को जकड़े रखती हैं जिससे जल तथा वायु मिट्टी का अपरदन आसानी से नहीं कर सकते। इसके अतिरिक्त पेड़ों के तने पानी के बहाव की गति को कम कर देते हैं। जिन क्षेत्रों में वनस्पति का नाश किया गया, यहाँ मृदा अपरदन बहुत ही अधिक मात्रा में हो रहा है।

2. पशु-चारण

वन पशुओं के लिए चारा प्रदान करते हैं परन्तु आवश्यकता से अधिक पशुचारण से वनस्पति का नाश होता है जिससे मिट्टी की हानि पहुंचती है। अधिक चराई से वनस्पति का आवरण समाप्त हो जाता है जिससे मिट्टी खोखली हो जाती है। इस स्थिति में मिट्टी पर जल तथा वायु का प्रभाव तीव्र होता है।

इसके अतिरिक्त पशु चरते समय अपने खुर से मिट्टी को उखाड़कर टीला कर देते हैं जिससे मिट्टी वर्षा तथा पवनों के प्रभावाचीन शीघ्र ही अपदित हो जाती है। हिमालय पर्वतमालाओं में पशुओं के अधिक मात्रा में चराने से बहुत-सी बहुमूल्य मिट्टी का अपरदन हो चुका है।

3. कृषि 

मृदा अपरदन कृषि के ढंग पर बहुत हद तक निर्भर करता है। कृषि के अवैज्ञानिक ढंग तीन प्रकार से मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी होते हैं: 

(i) यदि ढाल की ओर खेत की जुताई की जाए तो पानी सरलता से मिट्टी को बहाकर मे जाता है।

(ii) यदि खेत में बार-बार एक ही फसल बोई जाए और फसल चक्र (Rotation of Crops) प्रणाली का प्रयोग न किया आए तो मिट्टी में उपस्थित खनिज तथा अन्य तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता है और अपरदन आसानी से होता है। 

(iii) स्थानान्तरी कृषि से वनों का नाश होता है और मिट्टी कट जाती है। उत्तर पूर्वी भारत में स्थानातरी कृषि द्वारा बड़े पैमाने पर अपरदन हुआ है।

4. मनुष्य तथा जीव-जन्तु

मनुष्य अपनी आवश्यकता के लिए खेत जोतता है, नहरें तथा कुएँ खोदता है, भवन-निर्माण करता है तथा अन्य कई प्रकार से मृदा अपरदन का कारण बनता है। कई प्रकार के जीव भी अपने निवास के लिए मिट्टी में बिल बनाते हैं और मिट्टी को खोखला कर-कर देते हैं। परिणामस्वरूप वायु तथा जल उस मिट्टी को आसानी से बहाकर ले जाते हैं।

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