मृदा की परिभाषा (Definition of Soil)
जो पौधों के विकास में (उगने व बढ़ने के लिए) सहायक जीवांश, खनिजांश व नमी वाली भू-पृष्ठ की सबसे ऊपरी परत, मृदा या मिट्टी कहलाती है।
मोंकहाउस के अनुसार, “मिट्टी भूतल पर पाई जाने वाली एक ऐसी पतली परत है जिसका निर्माण चट्टानों के टूटने से प्राप्त हुए खनिज कणों, पेड़-पौधों एवं जीव-जंतुओं के गले-सड़े अंश, जीवित जीव-जंतुओं, जल तथा गैस के मिश्रण से होता है।”
मृदा का निर्माण (Formation of Soil)
आइए अब हम जानते हैं कि मिट्टी का निर्माण कैसे होता है ? हमारी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने वाली इस मिट्टी का विकास हज़ारों वर्षों में होता है। मृदा का निर्माण करने वाले प्रमुख छः कारक निम्नलिखित हैं-
उच्चावच, जनक सामग्री (मूल पदार्थ), जलवायु, वनस्पति, अन्य जीव रूप और समय ।
भू-पृष्ठ की चट्टानें (मूल पदार्थ) अपक्षय तथा अपरदन की प्रक्रिया द्वारा टूटकर चूर्ण बन जाती हैं। समय के साथ इस चूर्ण में पेड़-पौधोंऔर जीव-जंतुओं के गले-सड़े अंश, जिन्हें ह्यूमस (Humus) कहते हैं, मिल जाते हैं। चट्टान के चूर्ण में मौजूद यही खनिजांश व जीवांश मृदा या मिट्टी बनकर पेड़-पौधों को पोषित करते हैं।
मनुष्य भी अपनी विभिन्न कार्यो से मृदा के निर्माण या उसके अवक्रमण को प्रभावित करता है। इस प्रकार मृदा का निर्माण अथवा मृदाजनन (Pedogenesis) एक जटिल प्रक्रिया है। जिसमें प्राकृतिक पर्यावरण के प्रत्येक तत्त्व का एक लंबे समय में महत्वपूर्ण योगदान होता है ।
मृदा के घटक (Components of Soil)
खनिज कण (Mineral particles), जीवांश (Humus), जल ( Water ) तथा वायु (Air) मृदा के विभिन्न घटक होते हैं। इनमें से प्रत्येक की वास्तविक मात्रा मृदा के प्रकार पर निर्भर करती है। कुछ मृदाओं में, इनमें से एक या अधिक घटक कम मात्रा में होता है जबकि अन्य कुछ मृदाओं में इन घटकों का संयोजन भिन्न प्रकार का पाया जाता है। मिट्टी के यही घटक मिट्टी की गुणवत्ता का निर्धारण करते हैं।
मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile)
प्राकृतिक रूप से या मानव द्वारा किए गए मिट्टी के खड़े व गहरे कटाव को यदि हम ध्यान से देखें तो हमें कई रंगों व गठन वाली मिट्टी की एक दूसरे के ऊपर स्थित कुछ परतें दिखाई देंगी। मिट्टी की इन परतों को संस्तर (Horizons) कहा जाता है। इन संस्तरों को दिखाने वाला चित्र मृदा-परिच्छेदिका कहलाता है। अथवा किसी मृदा के ऊपरी सतह से लेकर उसके मूल चट्टान तक के मृदा स्तरों का ऊर्ध्वाधर खंड मृदा-परिच्छेदिका कहलाता है।
मृदा निर्माण की आरंभिक अवस्था में मृदा-परिच्छेदिका में केवल मूल चट्टानों से प्राप्त अपक्षयित पदार्थ ही होते हैं, उसमें जैविक पदार्थ नहीं होता। यदि लंबे समय तक अपक्षयित पदार्थ एक ही स्थान पर पड़ा रहे तो उसमें जैविक पदार्थ का मिलना शुरू हो जाता है। तभी वास्तविक मृदा-परिच्छेदिका का विकास होता है जिसमें तीन मुख्य स्तर होते हैं। जिनका वर्णन नीचे दिया गया है:
क-संस्तर (A-Horizon)
यह मृदा का यह सबसे ऊपरी स्तर है जिसे Topsoil भी कहा जाता है। इस परत के सबसे ऊपरी भाग में ह्यूमस तथा निचले भाग में चट्टान चूर्ण से प्राप्त खनिजों के अतिरिक्त जैव पदार्थ (Organic Matter) की अधिकता होती है। इसी स्तर से पौधे और वनस्पति पोषक तत्त्व प्राप्त करते हैं। इस परत से जैव एवं खनिज तत्त्व निचली परतों में पहुँच जाते हैं, जिस कारण यह स्तर अपवहन क्षेत्र (Zone of Eluviation) कहलाता है।
ख-संस्तर (B-Horizon)
क-संस्तर के नीचे ख-संस्तर होता है। यह मध्यम संस्तर है, जिसे उप-मृदा (Subsoil) कहा जाता है। आर्द्र प्रदेशों में जल के साथ घुलकर क-संस्तर के जैव और खनिज तत्त्व इस स्तर में पहुँच जाते हैं। इस क्रिया को अपक्षालन (Leaching) कहा जाता है। इस परत का ऊपरी भाग संक्रमण क्षेत्र (Transitional Zone) होता है। इसके निचले भाग में कोलायड (Colloids) का जमाव अधिक होता है। इसे विनिक्षेपण क्षेत्र (Zone of Illuviation) कहा जाता है।
ग-संस्तर (C-Horizon)
ग-संस्तर में अपक्षय द्वारा टूटे-फूटे मूल चट्टानी पदार्थ होता है। यह स्तर चट्टान से मिट्टी बनने की पहली अवस्था को प्रदर्शित करता है।
घ- संस्तर (D-Horizon)
घ- संस्तर केवल मूल, ठोस चट्टानी भाग है जो मृदा-परिच्छेदिका का हिस्सा नहीं होता। अपक्षय के प्रभाव से दूर इसी चट्टान पर मिट्टी के तीन संस्तर एक-दूसरे के ऊपर टिके हुए होते हैं।
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