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प्रायद्वीपीय उच्चभूमि (Peninsular Highlands)

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Table of contents

प्रायद्वीपीय उच्च भूमि भारत का सबसे बड़ा भू-आकृतिक प्रदेश है, जो लगभग 16 लाख वर्ग कि.मी. में फैली है। अनियमित त्रिभुजाकार वाले इस प्रदेश की औसत ऊंचाई 600-900 मी. है, जिसका आधार दिल्ली कटक (रिट्ज़) और राजमहल की पहाड़ियों से तथा शीर्ष कन्याकुमारी से बना है। प्रायद्वीपीय उच्च भूमि के उत्तर-पश्चिम में अरावली, उत्तर में मैकाल श्रेणी, पूर्वोत्तर में हजारीबाग तथा राजमहल पहाड़ियों और पश्चिम में पश्चिमी घाट (सह्याद्री पर्वत) तथा पूर्व में पूर्वी घाट स्थित हैं। अनाईमुड़ी (नीलगिरि) प्रायद्वीपीय भारत का सर्वोच्च शिखर जिसकी ऊंचाई 2695 मी. है। प्रो. एस.पी. चटर्जी के अनुसार प्रायद्वीपीय उच्चभूमि को निम्न आठ वृहत् भू-आकृतिक इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है, जिनका वर्णन नीचे किया गया है 

प्रायद्वीपीय उच्चभूमि की इकाइयाँ (Peninsular Highlands)

1. उत्तरी केन्द्रीय उच्चभूमि (The North Central Highlands)

  प्रायद्वीपीय भारत की उत्तरी केन्द्रीय उच्चभूमि के अंतर्गत अरावली की पहाड़ियां, और मालवा का पठार आते हैं 

(i) अरावली

  • अरावली की पहाड़ियां मालवा पठार के उत्तर-पश्चिम में स्थित हैं 
  • यह श्रेणी दक्षिण-पश्चिम दिशा में पालनपुर (गुजरात) से उत्तर-पूर्व में दिल्ली तक लगभग 800 कि.मी. की लम्बाई तक फैली है। 
  • ये क्वार्टजाइट, नाइस तथा शिस्ट शैलों से बनी हुई विश्व के प्राचीनतम् वलित पहाड़ियां में से एक है। लंबी अवधि तक अनाच्छादन (डेन्यूडेशन) के परिणामस्वरूप की पहाड़ियां अब अवशिष्ट पर्वत के रूप में बची हुई हैं। 
  • इसकी मुख्य पहाड़ियां राजस्थान राज्य में स्थित हैं। राजस्थान की दक्षिणी पश्चिमी भाग में इसका सर्वोच्च चोटी गुरु शिखर 1722 मी. ऊंचा है। यह आबू पर्वत पर स्थित है।
  • अरावली को उदयपुर के उत्तर-पश्चिम में जार्गा पहाड़ियों (1431 मी.) के नाम से जाना जाता है। 
  • गोरानघाट दर्रा गुरुशिखर को आबू पर्वत से अलग करता है। 
  • महान सीमा भ्रंश (GBF) अरावली की पहाड़ियों को विंध्य पर्वतों से अलग करती है।

(ii) मालवा का पठार

  • त्रिभुजाकार मालवा का पठार उत्तर में अरावली, दक्षिण में विंध्य श्रेणी और पूर्व में बुंदेलखंड पठार से घिरा है। 
  • इसकी औसत ऊंचाई 800 मीटर है।
  •  यह पठार ग्रेनाइट जैसी कठोर चट्टानों से बना हुआ है।
  •  मालवा के पठार का सामान्य ढाल उत्तर-पूर्व दिशा में है। अतः इस पठार में बहने वाली अधिकतर नदियां उत्तर-पूर्व दिशा में प्रवाहित होकर यमुना नदी में जा मिलती हैं। 
  • मालवा पठार का अपवाह तंत्र दो दिशाओं में है, एक अरब सागर की ओर (नर्मदा, तापी और माही) तथा दूसरा बंगाल की खाड़ी की ओर (चंबल, सिंध, बेतवा और केन)।
  • इस पठार को छोटी-छोटी नदियों ने अनेक स्थानों पर काटकर उबड़-खाबड़ बना दिया है। अत: यहां बड़े-बड़े बीहड़ खड्ड (Ravines) पाए जाते हैं। चंबल नदी के द्वारा बनाया गया बीहड़ विशेष रुप से प्रसिद्ध है। 

2. दक्षिण केन्द्रीय उच्चभूमि (South Central Highlands)

  प्रायद्वीपीय भारत की दक्षिण केन्द्रीय उच्चभूमि के अंतर्गत मुख्य रूप से विंध्य श्रेणी आती है 

  • विंध्य श्रेणी का फैलाव पश्चिम में गुजरात के जोबत और राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से लेकर बिहार के सासाराम तक है। 
  • यह श्रेणी लगभग 1050 कि.मी. लंबी है और इसकी ऊंचाई 450 से 600 मी. के बीच है।
  • पूर्व में कैमूर की पहाड़ियों को छोड़कर मैकाल श्रेणी, विध्य और सतपुड़ा पर्वतों को जोड़ने का कार्य करती है। 

इस उच्चभूमि को दो उप-भू-आकृतिक वर्गों में बांटा गया है:

(i) बुंदेलखंड (विंध्याचल पठार)

  • बुंदेलखंड पठार उत्तर में यमुना नदी, दक्षिण में विंध्य पर्वत, उत्तर-पश्चिम में चंबल तथा दक्षिण-पूर्व में पन्ना – अजयगढ़ श्रेणी से घिरा है। 
  • बुंदेलखंड उच्चभूमि का विस्तार उत्तर प्रदेश के बांदा, हमीरपुर, जालौन और ललितपुर जिलों और मध्य प्रदेश के दतिया, टीकमगढ़, छत्तरपुर और पन्ना जिलों में है। 
  • जीर्णता (senility) इस प्रदेश की स्थलाकृतिक विशेषता है। 
  • बेतवा, धसान और केन के द्वारा इस प्रदेश में तीखे खड्डों, क्षिप्तिकाओं, महाजल प्रपातों (cataracts) और जलप्रपातों (waterfalls) का विकास किया गया है।

(ii) विंध्याचल-बाघेलखंड

  • इस प्रदेश में मध्य प्रदेश के सतना और रीवा के पठार हैं। उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर का पठार, भी इसमें शामिल है। 
  • विंध्याचल-बाघेलखंड की ऊंचाई (elevation) 150 से 1200 मी. के बीच है। 
  • इसके दक्षिण में नर्मदा-सोन द्रोणी (भ्रंश घाटी) स्थित हैं, जिसमें आर्कियन और बिजवार श्रेणियों की चट्टानें विद्यमान हैं। 
  • सिंगरौली और दुधी (150-300 मी.) इसकी ऊपरी गोंडवाना बेसिन हैं, जहां कोयले भंडार की प्रचुरता है। 
  • नर्मदा और सोन के अतिरिक्त कर्मनासा, टोंस, केन और बेलांदरे यहां की अन्य नदियां हैं।
  • नर्मदा और तापी नदियों के बीच सतपुड़ा श्रेणी स्थित है जो विंध्य के समानांतर है। 
  • सतपुड़ा श्रेणी के अंतर्गत राजपिपला की पहाड़िया, महादेव की पहाड़ियों और मैकाल श्रेणी आते हैं।
  • सतपुड़ा की सर्वोच्च चोटी धूपगढ़ (1350 मी. पंचमढ़ी के पास) है। अमरकंटक (1064 मी.) सतपुड़ा पर्वतों की दूसरी महत्वपूर्ण चोटी है।

3. छोटानागपुर पठार (The Chotanagpur Plateau)

  • छोटानागपुर पठार का विस्तार प. बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के पूर्वोत्तर भाग तक है। 
  • इस पठार के उत्तर-पश्चिम में सोन नदी बहती हुई गंगा में जा मिलती है तथा इसकी उत्तरी सीमा राजमहल की पहाड़ियां बनाती हैं।
  • इस पठार के अंतर्गत कई अन्य छोटे पठार जैसे उत्तर में रांची का पठार, दक्षिण में हजारीबाग का पठार आदि शामिल हैं। 
  • यह अर्कियन काल के ग्रेनाइट एवं नाइस से निर्मित है और गोंडवाना काल के कोयले का भंडार है, जो भारत का लगभग तीन-चौथाई कोयला प्रदान करते हैं।
  • छोटानागपुर पठार का मध्य-पश्चिमी भाग सर्वाधिक ऊंचा है, जिसकी सामान्य ऊंचाई लगभग 1100 मी. है तथा इस भाग को ‘पाट (pat)’ क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। 
  • बराकर, दामोदर, सुवर्ण रेखा और कोयला यहां प्रवाहित होने वाली मुख्य नदियां हैं। 

4. मेघालय पठार एवं मिकिर पहाड़ियां (The Meghalaya Plateau and Mikir Hills)

  • मेघालय के पठार का निर्माण राजमहल की पहाड़ियों से परे फैली हुई प्रायद्वीपीय पठार की चट्टानें ही करती हैं। इस पठार को शिलांग का पठार भी कहा जाता है। 
  • मेघालय पठार को माल्दा दर्रा प्रायद्वीपीय भारत से अलग करता है। 
  • इसके अंतर्गत गारो, खासी, जैंतीया, मिकिर और रेंगमा पहाड़ियां आती हैं। 
  • इसके उद्भव का इतिहास काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है, जिसमें अपरदन के अन्यान्य चरणों, तलछटीकरण, पटलविरूपण (diastrophism), अंतर्भेदन (intrusion) से परिपूर्ण निर्गमन (emergence), निमज्जन (submergence) और सतह समतलीकरण (planation surface) के साक्ष्य पाये जाते हैं।
  • इस पठार की खांसी की पहाड़ियों का मध्यवर्ती भाग एक मेज की भांति है, जहां शिलांग नगर स्थित है और यहाँ इस पठार की सर्वाधिक ऊंचाई शिलांग चोटी (1823 मी.) में है।
  • गारो पहाड़ियों की सर्वोच्च ऊंचाई नॉकरेक चोटी (1515 मी.) में देखने को मिलती है। 
  • की पहाड़ियों में स्थित चेरापूंजी से 16 कि.मी. पश्चिम स्थित मौसीनराम (25°15′ उत्तर, 91°44′ पूरब) में विश्व की सर्वाधिक वर्षा अंकित की जाती है।
  • मिकिर पहाड़ियां मेघालय पठार से विलगित हैं तथा तीन तरफ से मैदानों से घिरी हैं। 
  • मिकिर पहाड़ियों के दक्षिणी श्रेणी को रंगमा पहाड़ियों ( 900 मी.) के नाम से जानते हैं। 
  • धनश्री और जमुना यहां प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदियां हैं तथा इसका अपवाह तंत्र अरीय है।

5. उत्तरी दक्कन/ महाराष्ट्र पठार (The North Deccan/ Maharashtra Plateau)

  • उत्तरी दक्कन या महाराष्ट्र पठार के अंतर्गत कोंकण तट एवं सहयाद्रि को छोड़कर संपूर्ण महाराष्ट्र शामिल है। 
  • यह क्रिटेशस काल की बेसाल्ट चट्टानों से ढका हुआ है। इसके पश्चिमी भागों में बेसाल्ट की परत सर्वाधिक मोटी (लगभग 3 कि.मी.) है, जिसकी मोटाई पूरब और दक्षिण-पूरब की तरफ घटती जाती है। 
  • महाराष्ट्र पठार की सबसे असाधारण विशेषता इसका भ्रंश (1000 मी.) है, जो अरब सागर को ऊंची तटरेखा उपलब्ध कराता है।
  • इसके उत्तरी भाग में पूरब से पश्चिम की ओर तापी नदी बहती है। 
  • जहां दक्षिण की तरफ इसकी ढाल साधारण है वहीं उत्तर की तरफ (सतपुड़ा पहाड़ियों की ओर) इसमें तीखे ढाल मिलते हैं।

उत्तरी दक्कन की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्न प्रकार हैं:

(i) महानदी बेसिन

  • रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग और राजगढ़ जिलों तक फैले महानदी बेसिन को छत्तीसगढ़ मैदान के नाम से भी जाना जाता है
  • इसका निर्माण मुख्यतया आर्कियन और कुडप्पा शैल-समूहों से हुआ है। 
  • महानदी और इसकी शाखाएं (सीवनाथ, हसदेव और माना) यहां बहने वाली मुख्य नदियां हैं।

(ii) छत्तीसगढ़ का मैदान

  • छत्तीसगढ़ मैदान की सीमाओं पर पहाड़ियों और पठारों की श्रृंखला मौजूद हैं। लोमारी पठार, पेंड्रा पठार तथा छुरी और रायगढ़ की पहाड़ियां इसकी उत्तरी सीमा का निर्माण करती हैं। 
  • छत्तीसगढ़ राज्य का प्रसिद्ध कोयला क्षेत्र ‘कोरबा’ इसी मैदान में है। इसके गोंडवाना शैल-समूहों में बिटुमिनस कोयले की प्रचुरता है, जिसकी आपूर्ति भिलाई इस्पात संयंत्र को होती है। 
  • इसकी पश्चिमी सीमा पर मैकाल श्रेणी स्थित है जिसकी ऊंचाई 700-900 मी. के मध्य है। 
  • इसके दक्षिणी सीमा पर दल्ली राजहारा पहाड़ियां स्थित हैं तथा दक्षिण-पूर्व में रायपुर जिले की उच्चभूमि स्थित है। 
  • दक्षिणी दुर्ग जिले में स्थित दल्ली-राजहारा की धारवाड़ क्रम की चट्टानों में लौह अयस्क (हेमेटाइट) की प्रचुरता है। दल्ली राजहारा के लौह अयस्कों की भिलाई इस्पात संयंत्र को आपूर्ति की जाती है। 

(iii) गढ़जात पहाड़ियां

  • गढ़जात पहाड़ियों को उड़ीसा उच्चभूमि के नाम से भी जाना जाता है। 
  • यह उत्तर में छोटानागपुर पठार, पश्चिम में महानदी बेसिन, दक्षिण में पूर्वी घाट और पठार, पूर्व में उत्कल मैदान से घिरा है। 
  • यह प्रदेश मुख्यतया आर्कियन काल के ग्रेनाइट, नाइस और चुम्बकीय चट्टानों से निर्मित है।
  •  गोंडवाना, तलचर, बराकर और कमाढी इस प्रदेश की प्रमुख श्रृंखलाएं (series) हैं।

(iv) दण्डकारण्य

  • दण्डकारण्य एक तरंगित (undulating) पठार है जो उड़ीसा के कोरापुर एवं कालाहांडी जिलों, छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले और आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी, विशाखापत्तनम तथा श्रीकाकुलम जिलों तक फैला है।
  • बैलाडीला श्रेणी इसी पठार का हिस्सा है, जिसकी अबुझमार पहाड़ियां भारत की सबसे धनी लौह अयस्क भंडारों में से एक हैं। 
  • महानदी की सहायक तेल और उदांती एवं गोदावरी की सहायक साबरी एवं सिलेरू यहां प्रवाहित होने वाली नदियां हैं।

6. दक्षिणी दक्कन (The South Deccan)

दक्षिणी दक्कन प्रदेश के अंतगर्त कई पठार शामिल हैं, जिनकी चर्चा निम्न प्रकार है:

(i) कर्नाटक पठार

  • इस पठार का विस्तार कर्नाटक राज्य तथा केरल के कन्नोर और कोझीकोड जिलों में है। 
  • इस पठार की औसत ऊंचाई 600-900 मी. है। 
  • बाबा बुदन पहाड़ियों में स्थित मुलानगिरि (1913 मी.) इस पठार की सर्वोच्च चोटी और कुद्रेमुख (1892 मी.) इसकी दूसरी सर्वोच्च चोटी है।  
  • कर्नाटक पठार के उत्तरी उच्च भाग को मलंद तथा दक्षिणी भाग को मैदान (Maidan) कहा जाता है।
  • कावेरी और तुंगभद्रा यहां प्रवाहित होने वाली नदियां है। 
  • नंदी घाटी इस प्रदेश की ग्रीष्मकालीन शरणस्थली (सैरगाह) है।

(ii) तेलांगना पठार

  • तेलांगना के पठार में मुख्यतया धारवाड़ और कुडप्पा शैलें पायी जाती हैं। वैसे इसके गोदावरी बेसिन में गोंडवाना क्रम की शैलें भी विद्यमान हैं।

(iii) तमिलनाडु उच्चभूमि

  • यह उच्चभूमि दक्षिण सहयाद्रि तथा तमिलनाडु के तटीय मैदानों के बीच स्थित है। 
  • जावदी और शेवराय पहाड़ियों में चारकोनाइट हैं। 
  • कोयम्बटूर और अन्नामलाई के बीच एक चौड़ा अंतराल (खाली जगह) है, जिसे पलाक्काड दर्रा (पालघाट) के नाम से जाना आता है। 
  • लगभग 24 कि.मी. चौड़े इस दर्रे से होकर पूरब-पश्चिम दिशा में गायत्री नदी बहती है, जो तमिलनाडु को केरल तट से जोड़ती है।

7. पश्चिमी घाट

  • पश्चिमी घाट या सहयाद्रि का विस्तार तापी नदी के मुहाने से लेकर कन्या कुमारी (कोमोरिन अंतरीप) तक पश्चिमी तट के समानांतर उत्तर-दक्षिण दिशा में विस्तृत है। 
  • इसकी लंबाई लगभग 1600 . कि.मी. है। 
  • पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढाल तीव्र तथा पूर्वी ढाल मंद है। 
  • पश्चिमी घाट वास्तव में भ्रंश पर्वत हैं। जिनकी उत्पत्ति भू-भाग के अरब सागर में अधोवलन (downwarping) से हुई है।  
  • सहयाद्रि प्रायद्वीप भाग के जलविभाजक (Water Divide) का निर्माण करता है। अरब सागर की ओर बहने वाली नदियां तीव्रगामी हैं। 
  • शरवती नदी पर स्थित गरसोप्पा (जोग जलप्रपात) भारत का सबसे ऊंचा जलप्रपात है। 
  • पश्चिमी घाट की औसत ऊंचाई 1000-3000 मी. के बीच है।
  • कुद्रेमुख (1892 मी.), पुष्पागिरि (1714 मी.), कलसुबई (1646 मी.), सल्हर (1567 मी.), महाबालेश्वर (1438 मी.) और हरिश्चन्द्र (1424 मी.) पश्चिमी घाट की महत्वपूर्ण चोटियां हैं। 
  • पश्चिमी घाट दक्षिण में पूर्वी घाट से मिलकर एक पर्वतीय गांठ (नीलगिरी) का निर्माण करता है, जिसकी सर्वोच्च चोटी दोदाबेट्टा (2637 मी.) है। 
  • नीलगिरि के दक्षिण में पालघाट (पलक्काड दर्रा) स्थित है। 
  • पश्चिमी घाट को पालघाट (पालक्कड़) के दक्षिण अन्नामलाई पहाड़ियों के नाम से जानते हैं। 
  • थाल घाट और भोर घाट पश्चिमी घाट के अन्य महत्वपूर्ण दरें हैं।
  • अनाईमुड़ी (2695 मी.) सह्याद्री का सर्वोच्च शिखर है। 

8. पूर्वी घाट

  • पूर्वी घाट दक्कन के पठार की पूर्वी सीमा का निर्माण करते हैं।
  • पूर्वी घाट विभिन्न पहाड़ियों की वृहत् श्रृंखलाओं से मिलकर बना है। 
  • पूर्वी घाट की औसत ऊंचाई लगभग 600 मी. है, वैसे महानदी और गोदावरी नदियों के बीच इसकी औसत ऊंचाई लगभग 1000 मी. है। 
  • पूर्वी घाट का सर्वोच्च शिखर (चोटी) देवोदी मुंडा (उड़ीसा) है, जिसकी ऊंचाई समुद्रतल से 1598 मी. है।
  • इसकी अन्य महत्वपूर्ण चोटियां अरोया कौंडा (1680 मी.), सिंगराजु (1516 मी.), नीमलगिरि (1515 मी.) और महेन्द्रगिरि (1501 मी.) हैं, जो क्रमश: उड़ीसा के कोरापुट और गंजाम जिलों में स्थित हैं।
  • कृष्णा नदी और चेन्नई के बीच इसकी कई श्रेणियां अवस्थित हैं। जैसे:- कोंडाविडु, नल्लामलाई, वेलिकांड्स, पालकोंडा और इर्रामाला। 
  • इन श्रेणियों की निरंतरता सेशाचलम (कुड़प्पा और अनंतपुर जिलों), जावादी, शेवरॉय, पंचइमलाई, सिरूमलाई और वारूसनाद पहाड़ियों में देखी जा सकती है।

FAQs

अरावली पहाड़ियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए

ये पहाड़ियाँ मालवा पठार के उत्तर-पश्चिमी में स्थित हैं। ये दक्षिण-पश्चिम में अहमदाबाद से उत्तर-पूर्व में दिल्ली तक लगभग 800 किमी० की लम्बाई में फैली हुई हैं। ये कठोर क्वार्टजाइट, नाइस तथा शिस्ट शैलों से बनी बहुत ही प्राचीन वलित पहाड़ियाँ हैं जो काफी अपरदन के बाद अब अवशिष्ट पर्वत का रूप धारण कर गई हैं और विच्छिन पहाड़ियों के रूप में हैं। इसकी सबसे ऊँची चोटी का नाम गुरु शिखर है जो 1,722 मीटर ऊँची है। यह आबू पर्वत पर स्थित है।

अरावली पर्वत का विस्तार कहाँ से कहाँ तक है?

अरावली पर्वत दक्षिण-पश्चिम में अहमदाबाद से उत्तर-पूर्व में दिल्ली तक लगभग 800 किमी० की लम्बाई में फैली हुई हैं।

अरावली कौन से पर्वत का उदाहरण है?

अरावली कठोर क्वार्टजाइट, नाइस तथा शिस्ट चट्टानों से बनी प्राचीन वलित पहाड़ियाँ हैं जो अपरदन के बाद वर्तमान में अवशिष्ट पर्वत का रूप धारण कर चुकी हैं।

अरावली पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी का नाम क्या है?

अरावली पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी आबू पर्वत पर स्थित गुरु शिखर है जिसकी ऊंचाई 1,722 मीटर है।

मालवा का पठार कहाँ स्थित है?

मालवा का पठार प्रायद्वीपीय भारत की उत्तरी केन्द्रीय उच्चभूमि का भाग है, जो उत्तर में अरावली, दक्षिण में विंध्य श्रेणी और पूर्व में बुंदेलखंड पठार से घिरा है। यह भारत के राजस्थान एवं मध्यप्रदेश राज्यों में फैला है। 

बुंदेलखंड का पठार कौन से राज्य में स्थित है?

बुंदेलखंड पठार का विस्तार उत्तर प्रदेश के बांदा, हमीरपुर, जालौन और ललितपुर जिलों और मध्य प्रदेश के दतिया, टीकमगढ़, छत्तरपुर और पन्ना जिलों में है। 

सतना और रीवा के पठार कहां पर हैं?

प्रायद्वीपीय भारत की दक्षिण केन्द्रीय उच्चभूमि के अंतर्गत आने वाले विंध्याचल-बाघेलखंड खण्ड के भाग हैं। प्रादेशिक रूप से ये पठार मध्य प्रदेश राज्य में स्थित हैं।

सतपुड़ा श्रेणी के अंतर्गत आने वाली प्रमुख पहाड़ियां कौन-2 सी हैं?

सतपुड़ा श्रेणी के अंतर्गत आने वाली प्रमुख पहाड़ियां राजपिपला , महादेव और मैकाल हैं।

सतपुड़ा पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी कौन सी है?

सतपुड़ा पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी धूपगढ़ जो पंचमढ़ी के पास स्थित है तथा इसकी ऊंचाई 1350 मीटर है।

सतपुड़ा पहाड़ी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी कौन सी है?

अमरकंटक जिसकी 1064 मीटर है, सतपुड़ा पहाड़ी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है।

पालघाट पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

पालघाट, पश्चिमी घाट में काफी चौड़ा तथा गहरा दर्रा है। इसकी चौड़ाई कहीं भी 24 किमी० से कम नहीं है। इसका तल समुद्र तल से केवल 144 मीटर ऊंचा है जबकि आस-पास की पर्वत श्रेणियाँ 1,500 से 2,000 मीटर तक ऊँची हैं। वस्तुतः पालघाट एक ‘दरार घाटी’ है जिसमें से कोची-चेन्नई रेलमार्ग होकर जाता है। 

छोटा नागपुर पठार की क्या विशेषता है? 

झारखंड में स्थित छोटा नागपुर पठार खनिजों की दृष्टि से बहुत धनी प्रदेश हैं। दामोदर नदी छोटा नागपुर पठार की प्रमुख नदी है। यह इस पठार के मध्य भाग में एक भ्रंश घाटी में से गुजरती हुई पश्चिम-पूर्व दिशा में बहती है। यहाँ पर गोंडवाना युग के कोयला-भण्डार हैं जो भारत का लगभग तीन-चौथाई कोयला प्रदान करते हैं।

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