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भारत में मानसून की शाखाएँ (Branches of Indian Monsoon)

मानसून भारत की जलवायु का सबसे महत्वपूर्ण और जटिल तंत्र है। इसमें मुख्यतः दो शाखाएँ होती हैं: दक्षिण-पश्चिम मानसून और उत्तर-पूर्व मानसून। भारत में मानसून की शाखाएँ (Branches of Indian Monsoon) जलवायु और कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। दक्षिण-पश्चिम मानसून भारत के अधिकांश हिस्सों में वर्षा का मुख्य स्रोत है और इसे वर्षा ऋतु के रूप में भी जाना जाता है। इस लेख में भारत में मानसून की शाखाओं (Branches of Indian Monsoon) पर विस्तृत चर्चा की गई है,जिसमें मानसून की उत्पत्ति, शाखाओं और प्रभाव शामिल हैं।

दक्षिण-पश्चिम मानसून का उद्गम और विशेषताएँ

मई के महीने में, उत्तर-पश्चिमी भारत के मैदानी क्षेत्रों में तापमान तेजी से बढ़ता है, जिससे वायुमंडलीय दबाव कम हो जाता है। यह निम्न वायुदाब इतना शक्तिशाली हो जाता है कि हिंद महासागर से आने वाली दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों को आकर्षित करता है।

दक्षिण-पश्चिम मानसून की उत्पत्ति

  1. भूमध्यरेखा को पार करना: दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा को पार कर बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में प्रवेश करती हैं।
  2. गर्म समुद्री धाराएँ: इन पवनों का मार्ग गर्म समुद्री धाराओं से होकर गुजरता है, जिससे ये भारी मात्रा में आर्द्रता लेकर आती हैं।
  3. दिशा परिवर्तन: भूमध्य रेखा को पार करने के बाद इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है, जिससे इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून कहा जाता है।

प्रस्फोट की प्रक्रिया और प्रारंभिक प्रभाव

दक्षिण-पश्चिमी मानसून की ऋतु में वर्षा अचानक आरंभ हो जाती है। पहली बारिश का असर यह होता है कि तापमान में काफी गिरावट आ जाती है। प्रचंड गर्जन और बिजली की कड़क के साथ इन आर्द्रता भरी पवनों का अचानक चलना प्रायः मानसून का ‘प्रस्फोट’ (Burst of Monsoon) कहलाता है। जून के पहले सप्ताह में, मानसून केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों में दस्तक देता है। 

तापमान में गिरावट: मानसून के आगमन के साथ तापमान में 5° से 8° सेल्सियस की गिरावट होती है।

भारत में मानसून की शाखाओं के पहुँचने की तिथियां व वर्षा का वितरण

भारत में मानसून की शाखाएँ (Branches of Indian Monsoon)

भारत में मानसून की शाखाएँ (Branches of Indian Monsoon) दो प्रमुख भागों में विभाजित होती हैं। जब मानसूनी हवाएँ भारत के भूभाग पर पहुँचती हैं, तो ये दो प्रमुख शाखाओं में बँट जाती हैं:

  1. अरब सागर की शाखा
  2. बंगाल की खाड़ी की शाखा

1. अरब सागर की मानसूनी शाखा

अरब सागर से उठने वाली मानसूनी हवाएँ तीन भागों में विभाजित होती हैं:

(i) पश्चिमी घाट की शाखा
  • प्रभावित क्षेत्र: यह शाखा पश्चिमी घाट की पवनाभिमुखी ढाल पर भारी वर्षा करती है।
  • वर्षा का स्तर: पश्चिमी तटीय क्षेत्रों में औसतन 250 से 400 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
  • वृष्टि-छाया क्षेत्र: पश्चिमी घाट को पार करने के बाद, यह हवाएँ गरम हो जाती हैं और इनमें नमी कम हो जाती है। परिणामस्वरूप, पुणे और बेंगलुरु जैसे स्थानों पर बहुत कम वर्षा होती है।
(ii) नर्मदा और तापी नदी घाटी की शाखा
  • यह शाखा मध्य भारत में प्रवेश करती है और नर्मदा और तापी नदियों की घाटियों से होकर गुजरती है।
  • प्रभावित क्षेत्र: मध्य भारत और छोटा नागपुर पठार।
  • विशेष तथ्य: गंगा के मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद, यह शाखा बंगाल की खाड़ी की मानसूनी शाखा से मिल जाती है।
(iii) सौराष्ट्र और कच्छ की शाखा
  • यह शाखा सौराष्ट्र प्रायद्वीप और कच्छ के क्षेत्रों में प्रवेश करती है।
  • वर्षा का स्तर: इस क्षेत्र में कम वर्षा होती है।
  • पंजाब और हरियाणा: यह शाखा अरावली पर्वतमाला को पार करके पंजाब और हरियाणा तक पहुँचती है।

2. बंगाल की खाड़ी की मानसूनी शाखा

बंगाल की खाड़ी से उठने वाली मानसूनी हवाएँ दो भागों में विभाजित होती हैं:

(i) गंगा के मैदानी क्षेत्रों की शाखा
  • प्रभावित क्षेत्र: यह शाखा बिहार, उत्तर प्रदेश और पंजाब के मैदानी क्षेत्रों में बारिश करती है।
  • विशेष तथ्य: यह शाखा पश्चिमी हिमालय तक पहुँचती है और धर्मशाला जैसे स्थानों पर भारी वर्षा करती है।
(ii) ब्रह्मपुत्र घाटी की शाखा
  • प्रभावित क्षेत्र: यह शाखा उत्तर-पूर्वी भारत के राज्यों में बारिश करती है।
  • विशेष तथ्य: मेघालय की खासी और गारो पहाड़ियों में इस शाखा की बारिश होती है।
  • मॉसिनराम और चेरापूंजी, जो विश्व के सबसे वर्षा-बहुल स्थान हैं, इसी शाखा के प्रभाव में आते हैं।

तमिलनाडु में मानसून का प्रभाव क्यों कम है?

दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान, तमिलनाडु तट पर वर्षा कम होने के पीछे दो मुख्य कारण हैं:

  1. बंगाल की खाड़ी की मानसूनी हवाएँ इस क्षेत्र से समानांतर होकर गुजरती हैं।
  2. तमिलनाडु अरब सागर की शाखा के वृष्टि-छाया क्षेत्र में स्थित है।

मानसून के निवर्तन की ऋतु (अक्टूबर-नवंबर)

सितंबर के अंत में, जब सूर्य दक्षिणायन हो जाता है, तो मानसून कमजोर पड़ने लगता है। इसे मानसून का निवर्तन कहा जाता है।

  • पहला चरण: मानसून राजस्थान और गुजरात से लौटता है।
  • दूसरा चरण: यह गंगा के मैदानों से होते हुए दक्षिण भारत में प्रवेश करता है।
  • अंतिम चरण: नवंबर के अंत तक, मानसून पूरी तरह से भारत से वापस लौट जाता है।

मानसून के निवर्तन का प्रभाव

  1. उत्तर भारत में शुष्क मौसम: मानसून के जाने के बाद उत्तर भारत में सूखा मौसम रहता है।
  2. पूर्वी तट पर वर्षा: इस अवधि में, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा होती है।

चक्रवातीय प्रभाव

  • मानसून के निवर्तन के दौरान, अंडमान सागर और बंगाल की खाड़ी में चक्रवात उत्पन्न होते हैं।
  • प्रमुख क्षेत्र: गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टाई क्षेत्र में यह चक्रवात भारी नुकसान पहुँचाते हैं।

निष्कर्ष

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत में मानसून की शाखाएँ  (Branches of Indian Monsoon) देश के जलवायु तंत्र का आधार हैं। दक्षिण-पश्चिम मानसून भारत के लिए केवल एक मौसमी घटना नहीं है, बल्कि यह देश की कृषि, जल संसाधन और पारिस्थितिकी का मुख्य आधार है। इसकी अरब सागर और बंगाल की खाड़ी की शाखाएँ भारत के विभिन्न हिस्सों में जलवायु और जीवनशैली को प्रभावित करती हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य:

  • मॉसिनराम में विश्व की सबसे अधिक वार्षिक वर्षा होती है।
  • मानसून के दौरान, देश की कुल वर्षा का 75% प्राप्त होता है।
  • तमिलनाडु तट पर वर्षा मुख्यतः उत्तर-पूर्व मानसून के कारण होती है।

भारत की मानसूनी प्रणाली का प्रभाव व्यापक और विविध है। यह न केवल भारत की जैव विविधता और पर्यावरण को बनाए रखती है, बल्कि इसकी अर्थव्यवस्था और समाज को भी गहराई से प्रभावित करती है।

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