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पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता (Productivity of Ecosystem) का अर्थ
पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता का निर्धारण उत्पादन दर (Production rate) से किया जाता है। एक इकाई क्षेत्र एवं समय में प्राथमिक उत्पादकों (हरे पौधों) द्वारा उत्पन्न जैविक पदार्थों की मात्रा पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता (Productivity of Ecosystem) कहलाती है।
दूसरे शब्दों में स्वपोषी पौधों द्वारा प्रति इकाई समयावधि में संचित ऊर्जा पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता होती है। उदाहरण के लिए एक वन से निशिचत समय में जितनी जैविक पदार्थों की मात्रा उत्पन्न होगी वह उसकी उत्पादकता होगी। हरे पौधो द्वारा अकार्बनिक पदार्थों का उत्पादन संचित ऊर्जा पर निर्भर करता है।
पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता (Productivity of Ecosystem) दो कारकों पर निर्भर करती है-
(1) सूर्य ऊर्जा की उपलब्धता एवं
(2) प्राथमिक उत्पादों की उत्पादन क्षमता।
पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता (Productivity of Ecosystem) के प्रकार
प्राथमिक उत्पादकता (Primary Productivity)
स्वयंपोषी उत्पादकों (हरे पौधे) द्वारा प्रकाश- संश्लेषण द्वारा कार्बनिक पदार्थों का उत्पादन प्राथमिक उत्पादन होता है। दूसरे शब्दों में कार्बनिक जैव भार में वृद्धि या ऊर्जा परिवर्तन की दर प्राथमिक उत्पादकता कहलाती है। प्राथमिक उत्पादन में भाग लेने वाले स्वयं-पोषी पौधे प्राथमिक उत्पादक (Primary Producers) कहलाते हैं। इसमें रसायन संश्लेषी जीवाणु (Chemosynthetic bacteria) भी भाग लेते हैं।
प्राथमिक उत्पादकता दो प्रकार की होती है :-
(क) सकल प्राथमिक उत्पादकता (Gross Primary Productivity)
निश्चित समय में प्रकाश या रासायनिक संश्लेषण द्वारा जैविक पदार्थों के उत्पादन को सकल प्राथमिक उत्पादकता (Gross Primary Productivity) कहते हैं।
(ख) शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता (Net Primary Productivity)
सकल प्राथमिक उत्पादन में से कुछ पदार्थ श्वसन क्रिया में कार्बनिक पदार्थों के विखण्डन से नष्ट हो जाते हैं। इन नष्ट पदार्थों को सकल प्राथामिक उत्पादकता से घटने पर शुद्ध प्राथमिक उत्पादन (Net Primary Production) प्राप्त होता है। इस प्रकार पौधों में निश्चित समय में प्रकाश संश्लेषण द्वारा निर्मित कार्बनिक भोज्य पदार्थों का श्वसन के पश्चात् संचय शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता (Net Primary Productivity) कहलाती है।
द्वितीयक उत्पादकता (Secondary Productivity)
शाकाहारी जीव पौधों में संचित ऊर्जा का उपयोग करते हैं। ये इस संचित ऊर्जा के सूक्ष्म भाग को ही उत्पादकता में बदल पाते हैं। इस प्रकार उपभोक्ता स्तर पर संचित ऊर्जा द्वितीयक उत्पादकता (Secondary Productivity) कहलाती है। द्वितीयक उत्पादकता गतिशील होती है एवं एक जीव से दूसरे जीव में गमन करती है।
शुद्ध उत्पादकता (Net Productivity)
इकाई समय में शुद्ध प्राथमिक उत्पादन (Net Primary Production) में से उपभोक्ताओं द्वारा प्रयुक्त कार्बनिक पदार्थों को घटाकर शेष बचे कार्बनिक पदार्थ को शुद्ध उत्पादकता (Net Productivity) कहते हैं। इसकी गणना महिनों या वर्षों में की जाती है।
पारिस्थितिक तंत्र में संपूर्ण जैव सामग्री का सकल भार जैव भार (Biomass) कहलाता है। सबसे अधिक शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता भूमध्यरेखीय वनों (प्रतिवर्ष 2000 ग्रा. प्रति वर्ग मी.) में पायी जाती है। सबसे कम उत्पादकता रेगिस्तानी, हिमाच्छादित, चट्टानी क्षेत्रों (3 ग्रा. से 5 ग्रा प्रति वर्ग मी. प्रतिवर्ष) में पायी जाती है। उथली झीलों, घास के मैदानों, कृषि क्षेत्रों में मध्यम उत्पादकता पायी जाती है।
विश्लेषणों से ज्ञात होता है कि जलीय तंत्र एवं गन्ने के खेत की उत्पादकता सबसे अधिक (तालिका देखें) होती है।
क्रमांक | पारिस्थितिक तंत्र | औसत उपादकता प्रति वर्ग मीटर प्रतिदिन |
---|---|---|
1. | गन्ने का खेत | 10 ग्रा. |
2. | जलीय तंत्र | 6 ग्रा. |
3. | चावल का खेत | 3 ग्रा. |
पर्यावरण भूगोल से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण Notes नीचे दिए गए हैं:
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One Response
This is so easy & hard a/ c