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पारिस्थितिक तंत्र की कार्यविधि (Functioning of Ecosystem)
पारिस्थितिक तंत्र सदैव गतिशील एवं क्रियाशील रहता है। किसी भी पारिस्थितिक तंत्र की क्रियाशीलता उसमें संचरित होने वाले ऊर्जा प्रवाह प्रतिरूप के ऊपर निर्भर करती है। पारिस्थितिक तंत्र का प्रमुख कार्य पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखना होता है। संतुलित जीवमण्डल में उसके जैव घटक अपने जीवन चक्र द्वारा निवेश एवं उत्पादन के बीच संतुलन बनाए रखते हैं।
पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह सजीव एवं निर्जीव तत्वों के वितरण और संचरण में सहायक होता है। ऊर्जा प्रवाह जीव जगत और भौतिक जगत के बीच अन्तःक्रिया में भी सहायक होता है। कार्यविधि की दृष्टि से किसी पारिस्थितिक तंत्र के तीन महत्त्वपूर्ण घटक होते है – पदार्थ, ऊर्जा और जीव।
नीचे दिए गए चित्र से स्पष्ट है कि इकोतंत्र एक क्रियाशील इकाई है, जिसमें जीव-पदार्थ-ऊर्जा एक निश्चित व्यवस्था एवं संतुलन के अन्तर्गत परस्पर अन्तःक्रिया करते रहते हैं। इकोतंत्र की यह कार्यशैली स्वचालित होती है। इकोतंत्र का इस कार्यात्मक व्यवस्था में सजीव एवं निर्जीव परस्पर पारिस्थितिवश आपस में गुथे रहते हैं। ऊर्जा और पदार्थों के चक्रीय प्रवाह के कारण इकोतंत्र की क्रियाशीलता सतत् जारी रहती है।
हरे पौधे सूर्यताप से प्रकाश और खनिजों से रासायनिक क्रिया करके अपना भोजन बनाते हैं। हरे पौधे शाकाहारी जीवधारियों के भोजन का आधार हैं। इस प्रकार पोषण स्तर और आहार श्रृंखला इकोतंत्र की कार्यविधि का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू है।
पारिस्थितिक तंत्र में संचरित होने वाले पोषक तत्वों को तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है–
1. मुख्य तत्व (Macro elements) – प्राथमिक उत्पादक स्वपोषित वनस्पति जगत हेतु ऑक्सीजन, कार्बन एवं हाइड्रोजन तत्वों की प्रमुख आवश्यकता होती है।
2. गौण तत्व (Micro-elements) – नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक आदि की पौधों को अपेक्षाकृत अधिक तादाद में जरूरत होती है।
3. विरल तत्व (Trace Elements) – लोहा, जस्ता, मैगनीज, कोबाल्ट सदृश्य लगभग एक सौ विरल तत्वों की पौधों को बहुत कम मात्रा में आवश्यकता होती है।