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नगरों के वर्गीकरण की शुद्ध सांख्यिकीय विधियां
यह विधि पूरी तरह से आँकड़ों के वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित है। इसमें नगर के प्रत्येक व्यवसाय या कार्य के लिए सांख्यिकीय मापदण्ड (Parameters) निर्धारित किए जाते हैं और उनका प्रयोग सभी नगरों पर समान रूप से किया जाता है। नगरों के वर्गीकरण की सांख्यिकीय विधि का प्रयोग विभिन्न विद्वानों ने अपने-2 कार्य में किया है, जिनमें से कुछ का संक्षिप्त वर्णन नीचे किया जा रहा है
एल०एल० पोवनेल (L.L. Pownell) की विधि
सन् 1953 में पोवनेल ने अपने शोधपत्र ‘The Functions of New Zealand Towns’ में न्यूजीलैण्ड के नगरों का कार्यिक वर्गीकरण प्रस्तुत किया। उन्होंने नगरों के कार्यों को छः व्यवसाय वर्गों में विभक्त कर इनके व्यवसाय वर्गों के प्रतिशत आँकड़े संकलित किए। फिर निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई
- सबसे पहले अध्ययन के लिए चुने गए प्रदेश के सभी नगरों के प्रत्येक कार्य का औसत ज्ञात किया।
- फिर विभिन्न प्रकार्यों का प्रतिशत अलग-अलग नगरों के लिए ज्ञात किया।
- इसके पश्चात् प्रादेशिक स्तर पर प्रत्येक कार्य का औसत ज्ञात किया।
- अन्ततः किसी कार्य के प्रादेशिक औसत एवं नगर में उसी कार्य के औसत से प्रतिशत विचलन ज्ञात किया। यह प्रतिशत विचलन धनात्मक (plus) अथवा ऋणात्मक (minus) कुछ भी हो सकता है।
यदि विचलन धनात्मक है तो संबंधित नगर उस कार्य में विशिष्टीकरण रखता है और यदि वह ऋणात्मक है तो नहीं।
इसके अनुसार प्रदेश के विभिन्न नगरों का प्रतिशत ज्ञात करके उन्हें विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
नेल्सन की मानक विचलन विधि (Standard Deviation Method of Nelson)
1955 में हॉवर्ड जे० नेल्सन (Howard J. Nelson) ने पोवनेल की सांख्यिकीय विधि को आधार मानकर अपने शोधपत्र ‘A Service Classification of American Cities’ में अमेरिका का 897 नगरों का कार्यात्मक वर्गीकरण प्रस्तुत किया। नेल्सन ने अपने अध्ययन का आधार 1950 की जनगणना के आँकड़ों को बनाया और 10,000 से अधिक जनसंख्या वाले 897 नगरों को अध्ययन के लिए चुना। उन्होंने किसी नगर के कार्य के विशिष्टीकरण की मात्रा का मापन करने के लिए निम्नलिखित चार गणनाएँ (Calculations) कीं-
- 897 नगरों की समस्त आर्थिक क्रियाओं को 10 वर्गों में विभक्त करना।
- इन नगरों की कुल क्रियाशील जनसंख्या (Working Population) का इन 9 वर्गों में अलग-अलग प्रतिशत ज्ञात करना।
- इन सभी नगरों के अलग-अलग व्यवसायों में संलग्न व्यक्तियों के प्रतिशत का औसत ज्ञात करना।
- प्रत्येक व्यवसाय के इन औसतों से अलग-अलग प्रामाणिक विचलनों को ज्ञात करना।
यदि किसी नगर में एक व्यवसाय का औसत प्रतिशत माध्य +1 मानक विचलन के मूल्य से अधिक है तो वह नगर उस व्यवसाय में विशेषीकरण रखेगा। नेल्सन ने प्रत्येक कार्य के विशेषीकरण के अनुसार तीन श्रेणियाँ बनाईं
- माध्य + 1 प्रामाणिक विचलन
- माध्य + 2 प्रामाणिक विचलन
- माध्य + 3 प्रामाणिक विचलन
उपर्युक्त विधि द्वारा माध्य से विचलनों के तीन स्तरों का निर्धारण किया जाता है तथा उसी के अनुसार नगरों को उनकी उपर्युक्त श्रेणियों में रखा जाता है।
किसी नगर में उद्योग (Mf) व्यवसाय का औसत यदि +1 प्रामाणिक विचलन से अधिक है तो उसे Mf श्रेणी में रखेंगे और यह औसत यदि +2 प्रामाणिक विचलन तथा + 3 प्रामाणिक विचलन से अधिक है तो उसे क्रमशः Mf1 तथा Mf3 श्रेणी में रखा जाएगा। यही विधि नगर के प्रत्येक व्यवसाय के लिए प्रयुक्त की जाती है। इस प्रकार नेल्सन की विधि पोवनेल की सरल प्रतिशत विधि की अपेक्षा अधिक व्यवस्थित, तर्कसंगत और यथार्थ (Reality) के निकट है।
व्यवसाय | +1 प्रा० वि० | +2 प्रा० वि० | +3 प्रा० वि० |
---|---|---|---|
1. विनिमय उद्योग 2. फुटकर व्यापार 3. व्यावसायिक सेवा 4. परिवहन एवं संचार 5. व्यक्तिगत सेवा 6. सार्वजानिक प्रशासन 7. थोक व्यापार 8. वित्त सेवा और रीयल इस्टेट 9. खनन 10. विभिन्नीकृत | Mf R Pf T Ps Pb W F Mi D | Mf2 R2 Pf2 T2 Ps2 Pb2 W2 F2 Mi2 D2 | Mf3 R3 Pf3 T3 Ps3 Pb3 W3 F3 Mi3 D3 |
नेल्सन की विधि के गुण (Merits of Nelson’s Method)
- नेल्सन द्वारा अपनाई गई सांख्यिकीय विधि आज भी लोकप्रिय बनी हुई है और दुनिया भर के देशों के विद्वानों ने अपने-अपने नगरों के कार्यिक विश्लेषण के लिए इस विधि को अपनाया।
- इस विधि के माध्य से मानक विचलन ज्ञात करना न केवल सरल है बल्कि वैज्ञानिक भी है।
- इस विधि द्वारा विचरण मापन तथा विचरण-मात्रा (Degree of variation) की तुलना आसानी से की जा सकती है।
- इस विधि द्वारा प्रत्येक सेवा वर्ग को अलग-अलग करके किसी भी नगर के किसी भी कार्य की विशिष्टता को आसानी से जाना जा सकता है, जिससे नगर का प्रकार्यात्मक पदानुक्रम ज्ञात किया जा सकता है।
नेल्सन की विधि के दोष (Demerits of Nelson’s Method)
- नेल्सन ने अपने विश्लेषण में नगरों के आकार को ध्यान में नहीं रखा।
- यह विधि उन विकसित नगरों के लिए अधिक कारगर (प्रभावी) है जिन नगरों में कार्यों का विशिष्टीकरण अधिक पाया जाता है।
भारत जैसे देश के नगरों के लिए, जहाँ बहुलकर्मी लोग रहते हैं, यह विधि अधिक उपयोगी नहीं है। वास्तव में यह विधि नगरों की गुणात्मक विशेषता ही बताती है और इससे मात्रात्मक विशेषता का ज्ञान नहीं होता । उदाहरणतः भारत में वस्तु-निर्माण उद्योग के लिए फिरोजाबाद का मानव विचलन 5 (SD 5 or Mf 5) और कानपुर का मानक विचलन 2 (SD2 or Mf2) है। इससे यह पता चलता है कि फिरोजाबाद कानपुर से अधिक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक नगर है, जबकि वास्तविक स्थिति इससे बिल्कुल विपरीत है।
मटीला व थॉम्पसन की आर्थिक आधार विधि (Economic Base Method of Matila and Thompson)
सन् 1953 में जे०एम० मटीला और डब्ल्यू०आर० थॉम्पसन ने एक नई सांख्यिकीय विधि अपनाई। इन विद्वानों ने किसी नगर द्वारा राष्ट्रीय औसत से अधिक कार्यकर्त्ता रखने वाले कार्य के लिए एक अतिरिक्त श्रम-शक्ति सूचकांक विकसित किया। इस सूचकांक का आकलन निम्नलिखित सूत्र की सहायता से किया जाता है-
S = ei – et x Ei / Et यहाँ, S = अतिरिक्त श्रम सूचकांक (index of Surplus Labor) ei = नगर में किसी कार्य में लगे कार्यकर्ताओं की संख्या et = नगर में सभी कार्यों में लगे कार्यकर्ताओं की कुल संख्या Ei = पूरे प्रदेश में उस कार्य में लगे कार्यकर्ताओं की संख्या Et = पूरे प्रदेश में सभी कार्यों में लगे कार्यकर्ताओं की कुल संख्या |
यदि ei के बराबर et × Ei / Et का मान आता है तो इसका अर्थ यह है कि उस नगर में वह कार्य संतुलित है अर्थात् उस नगर का उस कार्य में विशेषीकरण नहीं है। यदि यह मान अधिक आता है तो वह नगर उस कार्य में विशेषीकरण रखता है। इस सूत्र को निम्नलिखित उदाहरण से भली-भाँति समझा जा सकता है
मान लो किसी नगर के एक कार्य के लिए निम्नलिखित आँकड़े हैं
ei=500, et 4000, Ei = 12,000, Et = 60,000
तो सूत्र के अनुसार,
= 500 – 4,000×12,000 / 60,000
= 500 – 800
यहाँ पर ei का मान e ix Ei / Et से काफी कम है। अतः यह नगर इस कार्य में विशेषीकरण नहीं रखता।
वेब की कार्यिक संकेतांक विधि (Functional Indication Method of Webb)
जे० डब्ल्यू० वेब (J.W. Webb) ने सन् 1959 में अपने शोधपत्र ‘Basic Concept in the Analysis of Small Urban Centres of Minnesota’ में नगरों के कार्यात्मक वर्गीकरण हेतु कार्यात्मक सूचकांक (Functional Index) तथा विशिष्टीकरण सूचकांक (Specialization Index) की गणना की। इस नई विधि का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
- सम्पूर्ण नगरीय समूह में स्थित सभी नगरों में उस कार्य का औसत प्रतिशत ज्ञात कर लिया जाता है।
- इसके पश्चात् प्रत्येक नगर में उस कार्य में लगे कार्यकर्ताओं का प्रतिशत अलग-अलग निकाल लिया जाता है।
- यह जानने के लिए कि, कौन-सा कार्य अधिक महत्त्वपूर्ण है, नगर के कार्यात्मक प्रतिशत के कार्यों से गुणा किया जाता है।
- इन सबका अलग-अलग अनुपातों का स्थानिक कार्यात्मक प्रतिशत से गुणा करके कार्यात्मक सूचकांक प्राप्त किया जाता है।
कार्यात्मक सूचकांक = नगर में किसी कार्य में संलग्न जनसंख्या का प्रतिशत / प्रदेश के सभी नगरों में उसी कार्य में संलग्न जनसंख्या का औसत
विशिष्टीकरण सूचकांक प्राप्त करने के लिए सभी कार्यात्मक सूचकांकों को जोड़कर 100 से भाग किया जाता है। विशिष्टीकरण सूचकांकों के आधार पर वेब महोदय ने नगरों को 7 विशिष्टीकरण वर्गों में विभक्त किया।
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