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तापमान का ऊर्ध्वाधर वितरण (Vertical Distribution of Temperature)
इस लेख में हम तापमान के ऊर्ध्वाधर वितरण (Vertical Distribution of Temperature) अर्थात् तापमान में ऊंचाई के साथ होने वाले परिवर्तन के बारे में जानेंगे। जिस प्रकार विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर तापमान कम हो जाता है, ठीक उसी प्रकार धरातल से ऊपर की ओर वायुमण्डल में तापमान-ह्रास पाया जाता है। अक्षांश और ऊँचाई दोनों ही तापमान को प्रभावित करते हैं। हिमालय, आल्प्स अथवा राकीज या एण्डीज आदि उच्च पर्वतमालाओं की अनेक चोटियाँ स्थायी रूप से वर्ष भर हिमाच्छादित रहती हैं।
तापमान पर ऊँचाई का अक्षांश से अधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि विषुवत् रेखा के निकट स्थित अफ्रीका का माउण्ट केनिया वर्ष भर बर्फ से ढका रहता है। इससे स्पष्ट है कि धरातल से ऊँचाई में वृद्धि के साथ ही वायु के तापमान में निश्चित दर से ह्रास होता है। वर्तमान शताब्दी में पतंगों, गुब्बारों, वायुयानों तथा रेडियो जांड (radiosondes) आदि के द्वारा मौसम सूचक यन्त्रों की सहायता से ऊपरी वायुमण्डल में किए गए परीक्षणों से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि ऊँचाई में वृद्धि के साथ तापमान नीचे गिरता है।
आइए अब तापमान के ऊर्ध्वाधर अर्थात् लम्बवत वितरण की कुछ विशेषताओं के बारे में जानते हैं:
- ऊँचाई बढ़ने के साथ वायुमण्डल में ताप का ह्रास होता जाता है। क्षोभमण्डल में प्रति 165 मीटर की ऊँचाई बढ़ने पर 1° सेल्सियस या 1 कि०मी० की ऊँचाई पर 6.4° सेल्सियस तापमान गिर जाता है जिसे तापमान की सामान्य हास दर (Normal Lapse Rate) कहा जाता है। ऊँचाई के साथ तापमान घटने का कारण यह है कि वायु गर्म धरातल के सम्पर्क में आने से ऊष्मा ग्रहण करके गर्म होती है। ज्यों-ज्यों हम ऊँचाई पर जाते हैं, भौमिक या पार्थिव विकिरण के रूप में ऊष्मा का प्रभाव कम होता जाता है और तापमान का ह्रास होता जाता है।
- तापमान की गिरावट की दर में मौसम, दिन की अवधि और स्थिति के अनुसार परिवर्तन आता रहता है। उदाहरणतः ग्रीष्मकाल में निचले दो कि०मी० तक ताप घटने की दर 5° सेल्सियस प्रति कि०मी०, 4 से 6 कि०मी० के बीच 6° सेल्सियस प्रति कि०मी० तथा 6 से 8 कि०मी० के बीच 7° सेल्सियस प्रति कि०मी० होती है।
क्यों घटता है ऊंचाई के साथ तापमान वायुमण्डल की ऊष्मा का प्रमुख स्रोत पृथ्वी है जो सूर्य से प्राप्त ऊष्मा को अनेक तरीकों से वायुमण्डल में स्थानान्तरित कर देती है। वायु की वह परत जो गरम भू-पृष्ठ के सम्पर्क में होती है, अधिक गर्म हो जाती है, वायु की ऊपरी परतें संवहन द्वारा गरम होती रहती हैं। तथापि, भू-पृष्ठ से दूरी बढ़ने के साथ-साथ संवहन द्वारा पहुँचने वाली ऊष्मा की मात्रा उत्तरोत्तर कम होती जाती है और इसलिए ताप में उत्तरोत्तर कमी होती जाती है।वायु की निचली परतों में पार्थिव विकिरण का अवशोषण करने वाले पदार्थों अर्थात् जलवाष्प, धूल-कण व कार्बन डाइऑक्साइड की काफी मात्रा होती है और इसलिए, वह अधिक गर्म होती है। भू-पृष्ठ से दूरी बढ़ने के साथ-साथ वायु में पार्थिव विकिरण का अवशोषण करने वाले पदार्थों की मात्रा में उत्तरोत्तर कमी होती है और इसलिए वायुमण्डल का ताप भी उत्तरोत्तर घटता जाता है। |
- शीतकाल में ताप गिरने की दर कुछ कम होती है।
- भूतल पर सामान्यतः 20° या 21° सेल्सियस तापमान पाया जाता है जो क्षोभमण्डल की ऊपरी सीमा क्षोभ सीमा (Tropopause) तक पहुँचते-पहुँचते – 55° से – 60° सेल्सियस तक गिर जाता है।
- क्षोभमण्डल के ऊपर स्थित समतापमण्डल के निचले 20 कि०मी० की ऊँचाई तक तापमान वहीं अर्थात -55° से -60° सेल्सियस रहता है।
- 20 से 50 कि०मी० की ऊँचाई तक ओज़ोन गैस की उपस्थिति तथा उसकी पराबैंगनी किरणों को सोखने की क्षमता के कारण तापमान बढ़ने लगता है। -60° सेल्सियस से बढ़ते-बढ़ते तापमान 0° सेल्सियस आ पहुँचता है।
- इसके बाद स्थित मध्यमण्डल में तापमान फिर से गिरने लगता है और 80 कि०मी० की ऊँचाई तक तापमान गिरकर -80° सेल्सियस पहुँच जाता है।
- इसके बाद तापमान पुनः बढ़ना आरम्भ होता है। अनुमान है कि 400 कि०मी० की ऊँचाई पर तापमान बढ़कर 1000° सेल्सियस हो जाता है। अति उच्च ताप वाले वायुमण्डल के इस भाग को तापमण्डल या ऊष्ममण्डल (Thermosphere) कहा जाता है।
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